अफ्रीकी लोक-कथा | चींटियाँ

अनानसी और उसका बेटा कवेकू – दोनों बहुत चतुर किसान थे. उन दोनों के खेत अलग-अलग थे और हर साल उनमें लहलहाती फसल होती थी. एक साल दुर्भाग्यवश उन्होंने अपने सबसे अच्छे बीज खेत में बोए लेकिन बारिश नहीं होने के कारण उनके खेत में कुछ भी न उगा.

उदास कवेकू अपने सूखे खेत में घूम रहा था और सोच रहा था कि इस साल उसके परिवार को अन्न कहाँ से मिलेगा. उसने खेत की मेड़ पर एक कुबड़े बौने को बैठा देखा. बौने ने कवेकू से उदास होने का कारण पूछा. कवेकू के बताने पर बौने ने कहा कि वह खेत में बारिश लाने में उसकी मदद करेगा. उसने कवेकू से कहा कि वह कहीं से दो छोटी लकडियाँ ले आए और उन्हें उसके कूबड़ पर ढ़ोल की तरह बजाए. कवेकू ने ऐसा ही किया. वे दोनों गाने लगे:

“पानी, पानी ऊपर जाओ;
बारिश बनकर नीचे आओ!”

यह देखकर कवेकू की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा कि गाते-गाते ज़ोरदार बारिश होने लगी और खेत की मिटटी ने पूरे पानी को सोख लिया. अगले ही दिन बीजों से अंकुर फूट पड़े और बढ़िया फसल होने लगी.

अनानसी को जल्द ही कवेकू के खेत में बढ़िया फसल होने की खबर मिल गई. उसका खुद का खेत तो सूखा ही पड़ा था. वह कवेकू के पास गया और उसने कवेकू से बारिश होने का कारण पूछा. कवेकू का मन साफ़ था और उसने कुबड़े बौने वाली बात अपने पिता को बता दी.

अनानसी ने भी उसी तरह से अपने खेत में पानी लाने का निश्चय किया. उसने दो मोटी लकडियाँ ले लीं और सोचा – “मेरे बेटे ने कुबड़े बौने से छोटी लकड़ियों से काम लिया. मैं मोटी लकडियां इस्तेमाल करके उससे दुगनी बारिश करवाऊँगा.”

जब उसने कुबड़े बौने को अपनी ओर आते देखा उसने सावधानी से दोनों लकडियाँ छुपा दीं. पहले की तरह कुबड़े बौने ने अनानसी से उदास होने का कारण पूछा और अनानसी ने उसे अपनी समस्या बता दी. कुबड़े ने उससे कहा – “कहीं से दो छोटी लकडियाँ ले आओ और उन्हें मेरे कूबड़ पर ढोल की तरह बजाओ. मैं बारिश को बुला दूंगा.”

लेकिन अनानसी ने अपनी मोटी लकडियां निकाल लीं और उनसे उसने कुबड़े बौने को इतनी जोर से पीटा कि बेचारा बौना मर गया. अनानसी यह देखकर बहुत डर गया क्योंकि उसे मालूम था कि बौना वहां के राजा का चहेता जोकर था. वह सोचने लगा कि इस घटना का दोष वह किसके मत्थे मढे. उसने बौने का मृत शरीर उठाया और उसे एक कोला के पेड़ के पास ले गया. उसने मृत बौने को पेड़ की ऊपरी शाखा पर बिठा दिया और पेड़ के नीचे बैठकर किसी के आने की प्रतीक्षा करने लगा.

इस बीच कवेकू यह देखने के लिए आया कि उसने पिता को बारिश कराने में सफलता मिली या नहीं. उसने अपने पिता को पेड़ के नीचे अकेले बैठे देखा और उससे पूछा – “पिताजी, क्या आपको कुबड़ा बौना नहीं मिला?”

अनानसी ने कहा – “मिल गया. लेकिन वह पेड़ पर चढ़कर कोला लेने गया है और मैं उसकी प्रतीक्षा कर रहा हूँ.”

“मैं ऊपर चढ़कर उसे नीचे लिवा लाता हूँ” – कवेकू ने कहा और वह फ़ौरन पेड़ पर चढ़ गया. पेड़ के ऊपर उसने जैसे ही बौने को छुआ, बौना धड़ाम से नीचे गिर गया.”

“अरे, ये तुमने क्या कर दिया!” – कपटी अनानसी चिल्लाया – “तुमने राजा के चहेते जोकर को मार डाला!

“हाँ!” – कवेकू ने कहा. अब तक वह अपने पिता की चाल को समझ चुका था. वह बोला – “राजा उससे बहुत नाराज़ है और उसने कुबड़े बौने को मारने वाले को एक थैली सोना देने की मुनादी की है. मैं अब जाकर अपना ईनाम लूँगा.”

“नहीं! नहीं!” – अनानसी चिल्लाया – “ईनाम मैं लूँगा! मैंने उसे दो मोटी लकड़ियों से पीटकर मारा है. उसे मैं राजा के पास ले जाऊंगा!”

“ठीक है” – कवेकू ने कहा – “अगर आपने उसे मारा है तो आप ही ले जाओ”.

ईनाम मिलने के लालच में अनानसी बौने की लाश को ढोकर ले गया. राजा अपने प्रिय बौने की मृत्यु के बारे में जानकार बड़ा क्रोधित हुआ. उसने बौने की लाश को एक बड़े बक्से में बंद करके यह आदेश दिया कि अनानसी सजा के रूप में उस बक्से को हमेशा अपने सर के ऊपर ढोएगा. राजा ने बक्से पर ऐसा जादू-टोना करवा दिया कि बक्सा कभी भी जमीन पर न उतारा जा सके. अनानसी उस बक्से को किसी और के सर पर रखकर ही उससे मुक्ति पा सकता था और कोई भी ऐसा करने को राज़ी नहीं था.

अनानसी उस बक्से को अपने सर पर ढोकर दुहरा सा हो गया. एक दिन उसे रास्ते में एक चींटी मिली. अनानसी ने चींटी से कहा – “क्या तुम कुछ देर के लिए इस बक्से को अपने सर पर रख लोगी? मुझे बाज़ार जाकर कुछ ज़रूरी सामान खरीदना है”.

चींटी ने अनानसी से कहा – “अनानसी, मैं तुम्हारी सारी चालाकी समझती हूँ. तुम इस बक्से से छुटकारा पाना चाहते हो”.

“नहीं, नहीं. ऐसा नहीं है. मैं सच कह रहा हूँ कि मैं जल्द ही वापस आ जाऊँगा और तुमसे ये बक्सा ले लूँगा!” – अनानसी बोला.

बेचारी भोली-भाली चींटी अनानसी के बहकावे में आ गई. उसने वह बक्सा अपने सर पर रखवा लिया. अनानसी वहां से जाने के बाद फिर कभी वापस नहीं आया. चींटी ज़िन्दगी भर उसकी राह देखती रही और एक दिन मर गई. उसी चींटी की याद में सारी चींटियाँ अपने शरीर से भी बड़े और भारी बोझ ढोती रहती हैं.

Ravi KUMAR

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