एक समय की घटना है, एक बूढ़े आदमी ने अपनी बहुत सी सम्पत्ति अपने पत्र के नाम कर दी । उसने अपनी वसीयत में लिखा कि उसकी सारी सम्पत्ति उसके मरने के बाद उसके पुत्र की हो जाएगी । और वसीयत करने के कुछ दिन बाद ही उसकी मृत्यु हो गई ।

सम्पत्ति इतनी अधिक थी कि उसका पुत्र और आगे आने वाली सात पुरतें तक भी आराम से बैठे-बैठे बिना कोई काम-धंधा किए खा-पी सकती थीं । मगर उसका पुत्र अभी भी सतुष्ट नहीं था, वह अधिक से अधिक धन कमाना चाहता था ।

इसलिए उसने अपनी सभी अचल सम्पत्ति बेच दी और भिन्न-भिन्न वस्तुओं की खरीद-फरोख्त कर उनका व्यापार करना आरभ कर दिया । भाग्यवश वह बहुत कम समय में अत्यधिक सफल हुआ तथा शीघ्र ही पहले से अधिक धनवान हो गया ।

उसने इतना अधिक धन इकट्ठा कर लिया कि दूसरे व्यापारी उससे ईर्ष्या करने लगे । कभी-कभी दूसरे व्यापारी या उसके मित्र उससे उसकी सफलता का रहस्य पूछते तो वह कहता : “मैं इसलिए उन्नति कर रहा हूं कि मैं अपने धंधे को समझता हूं और कठोर परिश्रम करता हूं ।

मैं अपने ग्राहकों को भी खुश रखना जानता हूं ।” चूंकि उसने सचमुच व्यापार में तरक्की की थी, इसलिए उसके मित्र और अन्य व्यापारी उसकी शेखीबाजी को सच मानते थे । अपनी इस कामयाबी के कारण उसमें बड़ा ही अहंकार आ गया था ।

मगर उसे फिर भी अपने धन से संतुष्टि नहीं थी, वह अभी भी बहुत-सा धन कमाना चाहता था । उसने व्यापार में अपने हाथ-पैर फैलाने आरंभ कर दिए । आरंभ में तो उसे व्यापार में लाभ हुआ । मगर उसका अहंकार इतना बढ़ गया था कि भाग्य की देवी उससे अप्रसन्न हो गई ।

उसे व्यापार में घाटा होने लगा । पहली घटना तब हुई, जबकि माल से भरा उसका समुद्री जहाज डाकुओं ने लूट लिया । दूसरी घटना में माल से लदा जहाज अरब सागर में डूब गया । उसके भाग्य में कुछ न कुछ अपशकुन उत्पन्न हो गया था । तीसरी घटना ने उसे बिस्कूल ही उखाड़ फेंका ।

वह दर-दर का भिखारी बन गया । उसका सारा व्यापार चौपट हो गया । उसकी यह दुर्दशा देखकर उसके मित्रों ने पूछा : ”भाई, तुम्हारी यह दुर्दशा आखिर हुई कैसे ?” इस पर उसने अपने भाग्य को कोसा और कहा: ”क्या बताऊं, किस्मत ने साथ नहीं दिया !” भाग्य की देवी उसकी बात सुनकर अप्रसन्न हो गई ।

वह साक्षात उसके सामने प्रकट होकर बोली : “तुम सचमुच बहुत अकृतज्ञ हो । जब तक तुम सफलता की सीढ़ियां चढ़ते रहे, तब तक तुम उसका सारा श्रेय खुद लेते रहे, मगर जैसे ही हालात खराब हुए तुमने भाग्य को धिक्कारना आरम्भ कर दिया । याद रखो मनुष्य की अकृतष्मता तथा उसका अहंकार ही उसे ले डूबता है ।”

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