90 के दसक में कोयला माफियाओं के फलने फूलने का वक़्त था।छोटे स्कूल कॉलेजो से पढ़कर निकले युवाओं के पास दो ही ऑप्शन थे पहला कोई खुद का कामधाम करना जिनमे गाड़ी चलाना, गेराज खोलना मुख्य था।दूसरा काम था कोयले की दलाली जिसमे हाथ काले होते ही है।
इन्हीं सबके बीच वो पढ़े लिखे बेरोजगार युवा अपना भविष्य तलाश करते थे।
ऐसी ही एक कहानी हमारे जगदीश की भी है।थे तो ये पढ़ने लिखने में औसत पर कॉलेज के दिनों में इनको एक ईसाई कन्या से प्रेम हो गया।कॉलेज खत्म होने के बाद इन्होंने पिता का बिज़नेस जो कि एक बुक स्टोर था उसमें पिताजी का हाथ बटाने लगे।
घर पर इन्होंने उस ईसाई समुदाय की कन्या से विवाह की बात छेड़ी।घर वालों को ये बात बहुत ही नागवार गुजरी।पर जवानी का जोश जगदीश भाई साहब पर हावी था उन्होंने आव देखा न ताव जाकर कोर्ट मैरिज कर ली।और उस फूल सी कुमारी मीरा को लेकर घर चले आये।घरवाले इस हादसे को कबूल नहीं कर पाए और जगदीश को घर से निकाल दिया।
घर से निकलने के बाद उनके पास कमाई का जरिया खत्म हो गया।जगदीश सबसे आसान रास्ते को चुना और एक गैंग जॉइन कर लिया।पांडेय गैंग जिनका मुख्य काम कोयले की दलाली और रंगदारी वसूली थी।।
जुर्म की दुनिया मे उसके जो कदम पड़े वो रुकने का नाम ही नहीं लिए उधर जुर्म की दुनिया मे उसका कद बढ़ रहा था इधर उसका परिवार।एक के बाद एक वो तीन बच्चों का बाप बन गया।
जुर्म की दुनिया अगर रोमांच से भरी है तो साथ मे कानून का डर और दुश्मनों की भी कोई कमी नहीं है।कुछ दिनों बाद एक मर्डर केस में जगदीश को जेल हो गयी।इसी मर्डर ने जगदीश को पांडेय गैंग में पहचान दिलवायी।और प्रदेश के हिस्ट्रीशीटर में उनका नाम मशहूर हो गया।ये मर्डर उन्होंने एक कोल ब्यवसायी का किया था जिसने रंगदारी देने से मना कर दिया था।
जेल में उसकी मुलाकात एक कुख्यात गैंगस्टर करीम से हुई वहाँ पर करीम ने उसे छोटी मोटी रंगदारी के बदले में खुद का गैंग बनाने की सलाह दी और समर्थन देने का वायदा भी।उनकी दोस्ती जेल में ही काफी गहरी हो गई थी।
बेल पर बाहर आने के बाद जगदीश ने अपना गैंग बना दिया वो अब पांडेय गैंग के समानांतर अपना गैंग चला रहा था।और आदमियों और हथियारों की सप्लाई करीम कर रहा था।करीम का इलाका उत्तरी प्रदेश में था प्रदेश के दक्षिणी छोर पर वो जगदीश के सहारे अपने पांव पसार रहा था।
करीम को राज्य सरकार के कुछ मंत्रियों का सह प्राप्त था इस वजह से वह अपने गैंग को और अपने गैरकानूनी धंधों को बेख़ौफ़ होकर चला रहा था।
अब वह राज्य के दक्षिणी छोर पर भी अपना खौफ़ फैलाना शुरू कर दिया।
अब एक ही धंधे में दो गैंग जैसे एक म्यान में दो तलवार रहना।दोनो ही गुटो में मनमुटाव और टकराव होता ही गया और एक दिन दोनों गुटों ने एक दूसरे के खिलाफ जंग का एलान कर दिया।
एक तरफ जगदीश का गुट दूसरे तरफ पांडेय का गुट।सुरु सुरु में दोनों में छिटपुट लड़ाइयां होती थी धीरे धीरे ये बड़े गैंगवार में बदल गयी।
ऐसी ही एक गैंगवार का नतीजा निकला कि पाण्डेय गुट के मुखिया भोला पांडेय को अपने जान से हाथ धोना पड़ा।
जगदीश अपने छेत्र में मसीहा के रुप में जाना जाता था। अपने पुश्तैनी गांव में उसकी छवि रॉबिनहुड के जैसी थी। गांव का जो भी व्यक्ति मदद की आस में उसके पास आता था, निराश नहीं लौटता था। जेल में बंद रहते उसने गांव के 110 गरीब लड़कियों की शादी कराई थी जगदीश के बारे में कहा जाता है कि वह बचपन में बहुत ही सुशील था। उसके पिता एजी ऑफिस में ऑडिटर के पद पर थे। उसके नौ भाई- बहन थेैं, जिनमें सभी की शादी हो चुकी है। उसका बचपन सहर में ही गुजरा था। 1982 में कॉलेज से उसने ग्रेजुएट की पढ़ाई पूरी की थी।
पर उसके आदमियों द्वारा किये गए भोला की हत्या का खामियाजा तो उसे भुगतना ही था।पांडेय गैंग के लोगो ने उसकी हत्या का बहुत प्लान बनाया पर जेल में होने के कारण वो कुछ भी न कर सके।
अबतक दोनो गुट के लोग परिवार को इन सारे दुश्मनी से दूर रखते थे पर पांडेय गुट के लोगो ने खीज कर जगदीश की पत्नी पर कातिलाना हमला करवा दिया।जिसमें एक गोली मीरा के सिर में लगी।महीनों कोमा में रहने के बाद जगदीश के किये हुए किसी पुण्य के बदौलत मीरा की जान बच गयी।
यहीं से दोनों गैंग का मूक समझौता टूट गया।वे लोग अब गैंग के साथ उनके परिवार वालों पर भी हमला करने लगे।
इधर भोला पांडेय के मौत के बाद किशोर ने उस गैंग को संभालना चालू कर दिया।पर कुछ समय के बाद जगदीश के शूटर्स ने किशोर का काम तमाम कर दिया।किशोर के मरने के बाद गैंग की बागडोर कमल ने संभाल लिया।किशोर पांडेय की पत्नी वर्षा समाजसेवी बनकर राजनीति में अपना दावा साबित करने में जुट गई।
कमल ने अपने चाचा और दादा के मौत का बदला लेने के लिए जगदीश की रेकी चालू करवा दी।कुछ महीनों के बाद अदालत की पेसी के दौरान अदालत परिसर में बम के धमाके हुए पुलिश वाले जो जगदीश को लेकर अदालत आये थे वो धमाके की जगह भाग कर पहुँचे तबतक कमल के शूटर्स ने इधर जगदीश पर ताबड़तोड़ गोलियों की बारिश कर दी।जगदीश वहीं दम तोड़ देते हैं।
जगदीश के मरने के बाद उसके परिवार वाले स्तब्ध रह गए उनका बेटा जो काफी अच्छी पढ़ाई कर रहा था वो वापस आया और अपने पिता का अंतिम संस्कार किया।अंतिम संस्कार के कुछ दिनों बाद अमन अपनी पढ़ाई लिखाई छोड़कर गैंग को संभालने लगा।
बीच बीच मे गैंगवार और पुलिस मुड़भेड़ में सैकड़ों लोग दोनो तरफ से मारे गए पर अमन और उसके गुर्गे अंडरग्राउंड होकर अपना गैंग चलते रहे और कमल का गैंग जो अब एक गैंग न होकर सामाजिक उथान समिति बन चुकी थी अमन के लोग उसके लोगो को रेकी कर कर मारते रहे।
वर्षा अपने कार्यकर्ताओं के बचाओ में कुछ नही कर पा रहीं थीं और अमन उन सुधर चुके लोगो को पुरानी रंजिश के नाम पर मारता रहा।कुछ तो नए कार्यकर्ता जिनकी जिंदगी में जुर्म का नामोनिशान भी नहीं था उनकी भी हत्या दिन ब दिन होती जा रही है।लोग डर और दहसत में दिन गुजर रहे।सामान्य जीवन जीने वाले भी रंगदारी और जान बचाने के लिए या तो प्रदेश छोड़कर जा रहे है या फिर रंगदारी भर रहे है।
हर माता पिता और भाई इसी डर में जिंदगी गुजार रहा है कि अगला नंबर उसके किस अपने का है।जो पेट भरने के लिए अपनी जमा पूंजी लगाकर कुछ काम धंधे में लगे है वो सब छोड़कर जाए भी तो जाए कहाँ।पुलिस भी गैंगस्टरों से हफ्ता वसूली करके मूकदर्शक बनी रहती है।सरकार रोकथाम करने में नाकामयाब साबित हो रही है।
मीडिया इन गैंगस्टरों को हीरो बना रही है।जैसे बाप की हत्या का बदला लेने पर अमन को दसरथ पुत्र की उपाधि से नवाजा गया तो उनके शूटर्स को समाचार पत्रों में कुछ यूं वर्णित किया गया जैसे वो कोई हीरो हो।इनके छोटे मोटे व्यग्तिगत सहयोग को रॉबिनहुड या दाता के उपाधि से नवाजा जाता है।
बेकसूर लोगो की मौत का तांडव बे खौफ़ बदस्तूर जारी है।कुछ लोग जो समाजसेवी थे और कोयलांचल को भयमुक्त करना चाहते थे चुन चुन कर उनको भी मारा जा रहा है।केंद्र सरकार शायद इनसब बातो का संज्ञान ले मगर राज्य सरकार की बेरुखी राज्य की स्थिति बाद से बदतर किये जा रही है।राज्य का दोतरफ़ा चेहरा देख कर दुःख होता है।एकतरफ भुखमरी का आलम है दूसरी तरफ गुंडागर्दी पर सरकार बस प्रदेश के खनिजो के दोहन में लगी हुई है।
हम भी दूध के धुले नहीं है क्राइम और मर्डर जैसे हमारी जिंदगी में एक एंटरटेनमेंट का साधन बन गया है।क्राइम हमे रोमांचित करता है।इन अपराधियों पर फिल्में बनाकर उनका महिमा मंडन किया जाता है और हम उसे देखकर अपराधी को अपनी सिम्पथि भी देते है।
पर खबरदार जबतक हम दर्शक दीर्घा में हैं तभी तक यह रोमांच है जब हमपर या हमारे अपनो पर ये अपराध का कोहरा मंडराएगा तब हमे वास्तविक स्वरूप का पता चलेगा।
हर किसी को क्राइम पसंद है किसी न किसी रूप में कोई अपने अंदर की जिजीविषा शांत करने के लिए क्राइम कहानियों को माध्यम बनाता है तो कोई फिल्मों और सीरियल के जरिये ।जानवरों में भी इतनी बर्बरता नहीं होती जितनी की सभ्य मानव जाति के अंदर भरी है।
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