चार दोस्तों की आँखें नम करने वाली कहानी

vector drawing of school boys going together to school.

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स्कूल के चार करीबी दोस्तों की आँखें नम करने वाली कहानी है।जिन्होंने एक ही स्कूल में कक्षा बारवीं तक पढ़ाई की है।

उस समय शहर में इकलौता लग्ज़री होटल था।

कक्षा बारवीं की परीक्षा के बाद उन्होंने तय किया कि हमें उस होटल में जाकर चाय-नाश्ता करना चाहिए।

उन चारों ने मुश्किल से चालीस रुपये जमा किए, रविवार का दिन था, और साढ़े दस बजे वे चारों साइकिल से होटल पहुँचे।

सीताराम, जयराम, रामचन्द्र और रविशरण चाय-नाश्ता करते हुए बातें करने लगे।

उन चारों ने सर्वसम्मति से फैसला किया कि पचास साल बाद हम 01 अप्रैल को इस होटल में फिर मिलेंगे।

तब तक हम सब को बहुत मेहनत करनी चाहिए, यह देखना दिलचस्प होगा कि किसकी कितनी प्रगति हुई है।

जो दोस्त उस दिन बाद में होटल आएगा उसे उस समय का होटल का बिल देना होगा।

उनको चाय नाश्ता परोसने वाला वेटर कालू यह सब सुन रहा था, उसने कहा कि अगर मैं यहाँ रहा, तो मैं इस होटल में आप सब का इंतज़ार करूँगा।

आगे की शिक्षा के लिए चारों अलग- अलग हो गए।

सीताराम शहर छोड़कर आगे की पढ़ाई के लिए अपने फूफ़ा के पास चला गया था, जयराम आगे की पढ़ाई के लिए अपने चाचा के पास चला गया, रामचन्द्र और रविशरण को शहर के अलग-अलग कॉलेजों में दाखिला मिला।

आखिरकार रामचन्द्र भी शहर छोड़कर चला गया।

दिन, महीने, साल बीत गए।

पचास वर्षों में उस शहर में आमूल-चूल परिवर्तन आया, शहर की आबादी बढ़ी, सड़कों, फ्लाईओवर ने महानगरों की सूरत बदल दी।

अब वह होटल फाइव स्टार होटल बन गया था, वेटर कालू अब कालू सेठ बन गया और इस होटल का मालिक बन गया।

पचास साल बाद, निर्धारित तिथि, 01 अप्रैल को दोपहर में, एक लग्जरी कार होटल के दरवाजे पर आई।

सीताराम कार से उतरा और पोर्च की ओर चलने लगा, सीताराम के पास अब तीन ज्वैलरी शो रूम हैं।

सीताराम होटल के मालिक कालू सेठ के पास पहुँचा, दोनों एक दूसरे को देखते रहे।

कालू सेठ ने कहा कि रविशरण सर ने आपके लिए एक महीने पहले एक टेबल बुक किया था।

सीताराम मन ही मन खुश था कि वह चारों में से पहला था, इसलिए उसे आज का बिल नहीं देना पड़ेगा, और वह सबसे पहले आने के लिए अपने दोस्तों का मज़ाक उड़ाएगा।

एक घंटे में जयराम आ गया, जयराम शहर का बड़ा राजनेता व बिजनेस मैन बन गया था।

अपनी उम्र के हिसाब से वह अब एक सीनियर सिटिज़न की तरह लग रहा था।

अब दोनों बातें कर रहे थे और दूसरे मित्रों का इंतज़ार कर रहे थे, तीसरा मित्र रामचन्द्र आधे घंटे में आ गया।

उससे बात करने पर दोनों को पता चला कि रामचन्द्र बिज़नेसमैन बन गया है।

तीनों मित्रों की आँखें बार-बार दरवाजे पर जा रही थीं, रविशरण कब आएगा ?

इतनी देर में कालू सेठ ने कहा कि रविशरण सर की ओर से एक मैसेज आया है, तुम लोग चाय-नाश्ता शुरू करो, मैं आ रहा हूँ।

तीनों पचास साल बाद एक-दूसरे से मिलकर खुश थे।

घंटों तक मजाक चलता रहा, लेकिन रविशरण नहीं आया।

कालू सेठ ने कहा कि फिर से रविशरण सर का मैसेज आया है, आप तीनों अपना मनपसंद मेन्यू चुनकर खाना शुरू करें।

खाना खा लिया तो भी रविशरण नहीं दिखा, बिल माँगते ही तीनों को जवाब मिला कि ऑनलाइन बिल का भुगतान हो गया है।

शाम के आठ बजे एक युवक कार से उतरा और भारी मन से निकलने की तैयारी कर रहे तीनों मित्रों के पास पहुँचा, तीनों उस आदमी को देखते ही रह गए।

युवक कहने लगा, मैं आपके दोस्त का बेटा यशवर्धन हूँ, मेरे पिता का नाम रविशरण है।

पिताजी ने मुझे आज आपके आने के बारे में बताया था, उन्हें इस दिन का इंतजार था, लेकिन पिछले महीने एक गंभीर बीमारी के कारण उनका निधन हो गया।

उन्होंने मुझे देर से मिलने के लिए कहा, अगर मैं जल्दी निकल गया, तो वे दुखी होंगे, क्योंकि मेरे दोस्त तब नहीं हँसेंगे, जब उन्हें पता चलेगा कि मैं इस दुनिया में नहीं हूँ, तो वे एक-दूसरे से मिलने की खुशी खो देंगे।

इसलिए उन्होंने मुझे देर से आने का आदेश दिया।

उन्होंने मुझे उनकी ओर से आपको गले लगाने के लिए भी कहा, यशवर्धन ने अपने दोनों हाथ फैला दिए।

आसपास के लोग उत्सुकता से इस दृश्य को देख रहे थे, उन्हें लगा कि उन्होंने इस युवक को कहीं देखा है।

यशवर्धन ने कहा कि मेरे पिता शिक्षक बने, और मुझे पढ़ाकर कलेक्टर बनाया, आज मैं इस शहर का कलेक्टर हूँ।

सब चकित थे, कालू सेठ ने कहा कि अब पचास साल बाद नहीं, बल्कि हर पचास दिन में हम अपने होटल में बार-बार मिलेंगे, और हर बार मेरी तरफ से एक भव्य पार्टी होगी।

अपने दोस्त-मित्रों व सगे-सम्बन्धियों से मिलते रहो, अपनों से मिलने के लिए बरसों का इंतज़ार मत करो, जाने कब किसकी बिछड़ने की बारी आ जाए और हमें पता ही न चले।

शायद यही हाल हमारा भी है। हम अपने कुछ दोस्तों को सुप्रभात, शुभरात्रि आदि का मैसेज भेज कर ज़िंदा रहने का प्रमाण देते हैं।

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