चार भाई – हिन्दी लोककथा

किसी गाँव में चार भाई रहते थे. चारों भाइयों में आपस में बड़ा प्रेम था और सभी एक दूसरे का कहना मानते थे. एक बार उनके इलाके में बहुत भयंकर अकाल पड़ा. कई वर्षों तक वर्षा नहीं हुई जिस कारण खाने के लाले पड़ गए. ऐसे हालात में चारों भाइयों ने रोजी-रोटी की तलाश में दूसरे क्षेत्र में जाने का निश्चय किया.

एक दिन उन्होंने अपने साथ कुछ जरूरी सामान बाँधा और गाँव छोड़कर निकल पड़े. चलते-चलते रास्ते में उन्हें एक नदी मिली जिसके किनारे एक पेड़ था. उस पेड़ के नीचे वे सुस्ताने और आराम करने के लिए रुक गए. चारों भाई बहुत थके हुए थे इसलिए जरा सा लेटते ही उनकी आँख लग गई और वे गहरी नींद में सो गए.

आधी रात के वक़्त अचानक किसी चिड़िया के चीखने की आवाज़ से उनकी आँख खुली. बड़े भाई ने अपने एक भाई से चिड़िया को पकड़ने के लिए कहा जिसने थोड़ी सी मेहनत के बाद उसे पकड़ लिया.

अब उसने दूसरे भाई से अपना चाकू लाने को कहा और सबसे छोटे भाई से लकडियाँ इकट्ठी करके आग जलाने को कहा. सभी भाई अपना-अपना काम काम करने में लग गए. यह देखकर चिड़िया बहुत डर गई.

अचानक उसने इंसानों की आवाज़ में बड़े भाई से कहा – “तुम यह क्या करने जा रहे हो. तुमने चाकू और लकडियाँ क्यों मंगवाईं हैं ?”

बड़ा भाई बोला – “हम लोग भूखे हैं. हम तुम्हें मारेंगे और भूनकर खायेंगे.”

अब तो चिड़िया डर के मारे कांपने लगी. उसने अपनी जान की भीख मांगते हुए कहा – “तुम मुझे छोड़ दो, मेरी जान बख्श दो. बदले में मैं तुम्हें एक बहुत बड़े खजाने का पता बताऊँगी.”

बड़ा भाई बोला – “पहले खजाने का पता बताओ फिर मैं तुम्हें छोड़ दूंगा.”

चिड़िया बोली – “ठीक है, तुम इस पेड़ के तने के नीचे खुदाई करो, तुम्हें खजाना मिलेगा.”

चारों भाइयों ने पेड़ के तने के नीचे खोदा तो उन्हें सचमुच बहुत सारी सोने चांदी की मोहरें मिल गईं.

खजाना मिलने पर उन्होंने वायदे के मुताबिक़ चिड़िया को छोड़ दिया और आपस में सलाह की कि अब जब खजाना मिल ही गया है तो परदेस जाने की क्या जरूरत है. वापस अपने गाँव चलते हैं. और चारों भाई खजाना लेकर ख़ुशी ख़ुशी गाँव लौट आये.

गाँव आकर उन्होंने अपना बढ़िया सा घर बनवाया और उसमें रहने लगे. धीरे – धीरे उन भाइयों को खजाना कैसे मिला यह बात गाँव के दूसरे लोगों में भी फ़ैल गई.

इनके घर के पास ही चार भाइयों का एक परिवार और रहता था जो अकाल के चलते भुखमरी के कगार पर पहुँच चुका था. वे चारों भाई भी एक दिन इन भाइयों की तरह अपनी किस्मत आजमाने निकल पड़े और उसी नदी के किनारे पर उसी पेड़ के नीचे रुके.

लेटते ही वे सो गए और आधी रात को चिड़िया के चीखने से उनकी नींद भी खुल गई. अब इन भाइयों को भी लगने लगा कि उनकी किस्मत भी खुलने वाली है. लेकिन इन भाइयों में एकता न थी और न ही वे एक दूसरे की सुनते थे.

बड़े भाई ने अपने से छोटे भाई से चिड़िया को पकड़ने को कहा तो वह बोला – “मुझसे नहीं उठा जाता, तुम खुद ही पकड़ लो.”

दूसरे से चाकू लाने को कहा तो वह कहने लगा – “मैं क्या चाकू साथ लेकर घूमता हूँ … सामान में कही रखा होगा खुद ही क्यों नहीं ढूँढ़ लेते !”

इसी तरह चौथा भाई भी लकडियाँ बीनने में आनाकानी करता हुआ बैठा रहा तब तक चिड़िया उड़कर ऊंची डाल पर जा बैठी और बोली – “तुम वापस चले जाओ. तुम लोगों का कुछ भला नहीं हो सकता जब तक कि तुम लोग एक दूसरे की बात मानना न सीख जाओ. तुमसे पहले जो चार भाई यहाँ आये थे उनमें एकता थी, एक दूसरे का कहा मानते थे. लेकिन तुम लोगों का तो आपस में बर्ताव भाई होते हुए भी भाइयों जैसा नहीं है.”

इतना कहकर चिड़िया फुर्र से उड़ गई और चारों भाई ठगे से देखते रह गए.

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