छोटी लोककथाएं

यह एक किसान की कहानी है जो एक गाँव में अपनी पत्नी के साथ रहता था। उनके पास एक छोटी सी जमीन थी जहां वे सब्जियों की खेती करते थे और उन सब्जियों को बाजार में बेच देते थे। गांव में एक सरोवर के पास एक मंदिर बना हुआ था। गांव के लोग सरोवर की देवी को मछलि और सरोवर किनारे लगे पेड़ के आम चढ़ाते थे। इसलिए सभी को अपने स्वार्थ के लिए पेड़ और झील का उपयोग करने की मनाही थी।

एक दिन किसान मंदिर को पार कर रहा था और उसने देखा कि पेड़ से बहुत सारे रसीले आम लटके हुए हैं। उसने चारों और देखा और पाया की आस पास कोई नहीं था। । यह अच्छा अवसर पाकर, उसने जल्दी से पेड़ से एक आम तोड़ा और उसे धोने के लिए सरोवर के किनारे चला गया। जैसे ही वह सरोवर में गया, उसने देखा कि कई मछलियाँ तैर रही हैं। उत्साहित किसान सरोवर से आधा दर्जन मछलियां पकड़कर खुशी-खुशी घर वापस चला गया |

अपने घर पहुँचने पर, उसने तुरंत अपनी पत्नी को मछलियाँ दीं और उसे स्वादिष्ट भोजन बनाने को कहा। पर जब पत्नी ने मछली का पहला टुकड़ा खाया तो वह तुरंत बेहोश हो गई। जैसे ही वह बेहोश हुई, पीछे से एक आवाज आई। आवाज ने किसान से कहा कि उसे उसके लालच की सजा मिली है। किसान ने अपनी गलती के लिए माफी मांगी और अपनी पत्नी को बचाने का अनुरोध किया। आवाज ने किसान को आदेश दिया कि मछली बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाले सभी बर्तन उसी सरोवर सरोवर में फेंक दे। उसने वैसे ही किया और इस तरह उसकी पत्नी फिर से उठ खड़ी हुई।

यह कहानी हमें कभी भी चोरी न करने और हमेशा नेक रास्ते पर चलने की सीख देती है।

सच्ची मित्रता

कश्मीरी लोक कथा

एक राजा और उसका मंत्री बहुत अच्छे मित्र थे। वे हमेशा साथ रहते थे। उनकी तरह, उनके बेटे भी एक साथ बड़े हुए और बहुत करीबी दोस्त बने । एक दिन दोनों शिकार पर गए। रास्ते में उन्हें बहुत प्यास लगी और वे थक गए इसलिए उन्होंने एक पेड़ के नीचे आराम करने का फैसला किया। मंत्री का बेटा पानी की तलाश में गहरे जंगल में चला गया। एक झरने के पास पहुँचकर उसने एक सुंदर परी को देखा। लेकिन परी के पास एक शेर बैठा था। उसने धीरे से झील से कुछ पानी निकाला और अपने दोस्त के पास वापस लौट आया।

उसने राजा के बेटे को घटना सुनाई और उसे झरने के पास ले गया। वहां पहुंचने पर उन्होंने देखा कि शेर परी की गोद में सो रहा है। उन्होंने परी को महल में ले जाने का फैसला किया जबकि मंत्री का बेटा शेर के साथ ही रहा। थोड़ी देर बाद जब शेर उठा तो लड़के ने कहा कि उसका दोस्त परी को महल में ले गया है। शेर फिर हँसा और उससे कहा कि अगर राजा का बेटा सच्चा दोस्त होता तो वह उसे शेर के साथ कभी अकेला नहीं छोड़ता। फिर उसने तीन महान मित्रों- एक राजा, एक पुजारी और एक भवन निर्माता की कहानी सुनाना शुरू किया, जिन्होंने दोस्ती का सही अर्थ दिखाया और अंत तक हमेशा एक-दूसरे के साथ रहे।

कहानी एक बड़ा सबक देती है कि हमें अपने दोस्तों का चयन बहुत ध्यान से करना चाहिए।

बहुत पहले की बात है, खासी जन समूह में कानन नाम की एक खूबसूरत लड़की थी। एक बार एक बाघ ने उसे पकड़ लिया और गुफा में ले गया। जब भूखे बाघ ने लड़की को देखा, तो उसने महसूस किया कि वह लड़की उसकी भूख को संतुष्ट करने के लिए बहुत छोटी है। इसलिए उसने उसे बड़े होने तक कुछ समय के लिए रखने का फैसला किया।

बाघ उसे बहुत कुछ खिलाता था और स्थिति से अनजान, कानन धीरे-धीरे गुफा में घर जैसा महसूस करने लगी। गुफा में एक चूहा भी रहता था। चूहे ने अगले दिन बाघ को कानन को खाने की बात करते हुए सुना। चूहा तुरंत कानन के पास गया और उसे सारी बात बता दी। चिंतित कानन ने चूहे से उसकी मदद करने को कहा । उसने उसे गुफा से बाहर जाने और एक जादूगर मेंढक से मिलने का सुझाव दिया। कहानी आगे बढ़ती है । मेंढक कानन की मदद करने को तैयार हो जाता है। पर बदले मे कानन को अपना सेवक बना लेता है। मेंढक के पास एक जादुई खाल थी।

चूहे ने एक बार फिर कनान को मेंढक से बचाया और उसे एक जादुई पेड़ के पास ले गया जिसकी शाखाएँ नीले आकाश तक पहुंचती थीं । वापस गुफा में, जब बाघ ने देखा कि कानन गायब है, तो वह बहुत क्रोधित हुआ। आकाश में “का संगी ” नाम की एक देवी ने कनान को आश्रय दिया। दूसरी ओर का संगी को मेंढक की जादुई खाल के बारे में पता चला और उसने उसे जला दिया। जादूगर मेंढक का संगी से लड़ने के लिए आकाश में आया।

दोनों में भयंकर युद्ध हुआ पर अंत में सब धरती वासियों ने इतनी जोर से नगाड़े और ढोल बजाये की मेंढक डर कर भाग गया और का-संगी जीत गई। इसीलिए आज भी उस प्रजाति के लोग सूर्य ग्रहण पर ढोल नगाड़े बजा कर सूर्य की मदद करते हैं।

यह लोक कथा उस समय की है जब जानवर बोलते और नाचते थे। एक बार एक सुस्त पंखों वाला मोर रहता था | लेकिन उसे अपनी लंबी पूंछ पर बहुत गर्व था। अपनी लंबी लंबी पूंछ के कारण, वह कभी अपने पड़ोसियों के पास नहीं जा सका। वह केवल बड़े घरों और पैसे वाले लोगों से मिलने जाता था। उसके घमण्ड के कारण उसके पड़ोसी उसे नापसंद करने लगे। वे पीठ पीछे मोर का मजाक उड़ाते थे। एक दिन उन्होंने उस से मज़ाक करने का करने का फैसला किया। उन्होंने कहा कि एक बर्ड क्लब बनाया गया है और सभी पक्षियों ने मोर को अपना नेता

बनाने के लिए वोट दिया है। मुखिया को का संगी की यात्रा करने और उसके साथ नीले आकाश में उड़ान भरने का मौका मिलेगा। क- संगी सूर्य की देवी थीं। मोर बहुत उत्साहित था। मोर ने अपनी यात्रा के लिए उड़ान भरी। उसके जाने के तुरंत बाद, अन्य पक्षी गपशप करने लगे और उनकी छोटी सी चाल पर हंसने लगे। का-सांगी अपने महल में अकेली रहती थी। इसलिए, वह अपने स्थान पर एक अतिथि को पाकर बहुत खुश थी।

दिन बीतते गए और मोर पर्याप्त सुविधाओं के साथ एक महान जीवन व्यतीत करता था। धीरे-धीरे उनका अभिमान आसमान पर पहुंच गया। का संगी अपना अधिक समय मोर के साथ बिताती थी, परिणामस्वरूप वह अपनी गर्मी से पृथ्वी को गले नहीं लगा पाती थी। धरती ठंडी होने लगी और जंगल के जानवर बीमार और उदास रहने लगे। हर समय बारिश होने लगी, सब कुछ तबाह हो रहा था और पृथ्वी पर कोई खुशी नहीं बची थी।

सभी जानवरों ने इंसानो से मदद मांगी और इस नतीजे पर पहुंचे कि मोर की वजह से का-संगी को आसमान से अपनी गर्मी बरसाने का समय नहीं मिल रहा है। इसलिए मोर को वापस धरती पर लाना सभी के लिए जरूरी है। उन्होंने एक बूढ़ी औरत की मदद से पृथ्वी को बचाने के लिए एक और तरकीब लगाई और मोर को आकर्षित कर वापिस धरती पर आने के लिए मजबूर कर दिया।

मोर की याद में जो आंसू का-संगी ने बहाये, वह मोर के पंखो पर गिरे और रंग बिरंगे निशान छोड़ गए, जो आज भी मोर के पंखो पर देखे जा सकते हैं।

भिखारी और लड्डू

यह एक दक्षिण भारतीय लोक कथा है।

मूर्ति और उसकी पत्नी भावी का एक साथ रहते थे । मूर्ति को भीख में जो भी चावल मिलता, वह दोनों के लिए दिन में दो बार खाने के लिए पर्याप्त था। एक बार, मूर्ति के दोस्त ने उन्हें रात के खाने के लिए आमंत्रित किया और उन्हें चावल से बने लड्डू भेंट किए। भावी को लड्डू इतने पसंद आये की उसने अगले दिन वही लड्डू घर में बनाये । लेकिन वो कुल 5 लड्डू थे।

दोनों में से कोई आखरी और पांचवा लड्डू बांटना नहीं चाहता था, इसलिए उन्होंने फैसला किया कि वह आँखें बंद कर के लेट जाएंगे और जो कोई भी अपनी आंख पहले खोलेगा और पहले बात करेगा उसे 2 लड्डू मिलेंगे और दूसरे को तीन। तीन दिन बीत गए, वे नहीं उठे। ग्रामीण परेशान होने लगे। जब ग्रामीणों ने अपना घर खोला और उन्हें लेटा हुआ देखा, तो उन्हें लगा कि यह दोनों नहीं रहे।

भावी और मूर्ति को उनके अंतिम संस्कार के लिए ले जाया गया, जब मूर्ति अचानक उठे और चिल्लाए “मैं दो लड्डू से खुश हूं।” बाद में उन्होंने पूरी कहानी ग्रामीणों को बताई। तभी से मूर्ति को गांव में “लड्डू भिखारी” नाम दिया गया।

बोधिसत्ता की बहादुरी

एक समय की बात है, ब्रह्मदत्त नाम का एक बनारस का राजा था। बोधिसत्व का जन्म ब्रह्मदत्त की प्रमुख रानी के पुत्र के रूप में हुआ था। नामकरण के दिन ही ब्रह्मदत्त ने 800 ब्राह्मणों की मनोकामना पूरी करी। उसके बाद ब्रह्मदत्त ने ब्राह्मणों से पुत्र के भाग्य के बारे में पूछा।

ब्राह्मणों ने राजा से कहा कि उसका पुत्र उसके बाद राजा बनेगा और अपनी बुद्धि और 5 हथियारों से पूरे भारत पर शासन करेगा। जब बोधिसत्व 16 वर्ष के थे, तब उन्हें अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए कहा गया था। राजा ने बोधिसत्व को अपने गुरु के लिए गुरु दक्षिणा के रूप में एक हजार मुद्राएं दीं और उन्हें कंधार राज्य भेज दिया, जहां एक बुद्धिमान शिक्षक रहता था। बोधिसत्व ने अपनी शिक्षा पूरी की, गुरु से उपहार के रूप में 5 हथियार प्राप्त किए। उन्होंने अपने गुरु से विदा ली और तक्षिला को छोड़ दिया और अपने 5 हथियारों के साथ बनारस के लिए रवाना हो गए।

रास्ते में, उनका सामना एक शक्तिशाली राक्षस से हुआ, लेकिन बोधिसत्व में पर्याप्त आत्मविश्वास था और वे घबराए नहीं। उसके आत्मविश्वास और निडर रवैये को देखकर राक्षस ने उसे जाने दिया। वन छोड़ने से पहले, बोधिसत्व ने राक्षस को भक्ति के मार्ग पर चलने और क्रूरता के मार्ग को छोड़ने का आदेश दिया। कुछ लोग अभी भी जंगल के बाहर इंतजार कर रहे थे। बोधिसत्व ने उन्हें सारी बातें बताईं और फिर बनारस की ओर चल पड़े। आगे जाकर जब बोधिसत्व राजा बना तो उसने बड़ी ईमानदारी और बुद्धि से लोगों की सेवा की और देश की सेवा की।

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मासूम सावित्री
गुजराती लोक कथा

एक गाँव में सावित्री नाम की एक बच्ची अपने माता ापिता और तीन भाइयों के साथ रहती थी। एक दिन, सावित्री के माता पिता तीर्थ यात्रा पर चले गए। माता पिता के जाने के बाद तीनो भाइयों ने सावित्री को परेशान करना शुरुर कर दिया।

एक दिन सब से बड़ा भाई ने सावत्री को जानबूझकर एक छोटी सी रस्सी और छेद वाले घड़े में पानी लेने कुँए पर भेजा और समय पर न आने पर दंड देने की धमकी भी दी। कुँए पर पहुंच कर सावित्री रोने लगी। वहां एक सांप और मेंढक रहते थे जो सावित्री का रोआ सुन कर बहार आ गए. दोनों ने सावित्री की मदद करने की ठानी। सांप ने रस्सी से जुड़ कर रस्सी को लम्बा बना दिया और मेंढक घड़े में इस तरह बैठ गया की घड़े छेद बंद हो गया। सावित्री पानी निकाल कर ख़ुशी ख़ुशी घर चली गई।

अगले दिन दूसरे भाई ने सावित्री को अपने सफ़ेद मैले कपडे धोने के लिए भेजा और जानबूझकर उसे साबुन नहीं दिया। तालाब पर पहुंच कर सावित्री रोने लगी। तभी वहां से एक सारस निकला और रोती हुई सावित्री को देख कर उसकी मदद के लिए रुक गया। सरस कपड़ों पर लोटने लगा जिस से कपडे दूध जैसे सफ़ेद हो गए। सावित्री ख़ुशी ख़ुशी कपडे ले कर घर चली गई।

अगले दिन तीसरे भाई ने सावित्री को खूब सारे अनाज में से धान अलग करने को दिए। इतने सारे धान सावित्री अकेले अलग नहीं कर सकती थी। सावित्री को दुविधा में देख कर पास में रहने वाली एक चिड़िया उसकी मदद के लिए आ गयी। उस चिड़िया ने अपने साथियों को भी बुला लिया और उन सब ने मिल कर तुरंत अनाज में से धान अलग कर दिए। सावित्री के भाई छिप कर यह सब देख रहे थे। उन्हें अपने किये पर पछतावा हुआ और उन्होंने फिर कभी सावित्री को परेशान ना करने की ठानी।

दयालु किसान
यह बच्चों के लिए एक कश्मीरी लोक कथा है।

एक गाँव में एक किसान रहता था। किसान खेती करने में व्यस्त था तभी उसकी पत्नी वहां आयी और उसके लिए खाना रख कर वहां से घर वापस चली गयी। जब किसान को फुर्सत मिली तो उसने खाना खाने की सोची। पर यह क्या। खाने का बर्तन खाली था। किसान को लगा की उसकी पत्नी ने उसके साथ मज़ाक किया है और वह नाराज़ हो गया। घर जा कर उसने अपनी पत्नी पर बहुत गुस्सा किया। पत्नी को भी कुछ समझ ना आया।

अगले दिन वह एक अलग तरह के बर्तन में किसान को खाना देने गयी और किसान को व्यस्त देख कर खाना वहीँ रख कर घर वापस आ गयी। कुछ देर बाद एक सियार वहां आया और खाने के बर्तन में मुँह डाल के खाना खाने की कोशिश करने लगा। पर इस बार वह सफल नहीं हुआ और उसका मुँह बर्तन में फंस गया। सियार हल्ला मचाने लगा। सियार को इस हालत में देख के किसान समझ गया की कल उसका खाना कहा गायब हुआ था। वह डंडा ले कर सियार के पास आया . सियार ने उस से अपनी जान बचाने की गुज़ारिश की। किसान को सियार पर दया आ गयी और उसने सियार को बर्तन से मुक्त कर दिया। सियार ने किसान को धन्यवाद दिया और किसान की मदद का वडा कर के वहां से चला गया।

सियार सीधा राजा के पास गया और वहां जा के सियार ने किसान के बारे में राजा को सब बताया। राजा बहुत दिन से अपने खेतों के लिए एक ऐसा ही मेहनती किसान ढूंढ रहा था और उसने सियार से किसान को राजमहल लाने को कहा।

सियार किसान के घर गया और उसे अगले दिन सुबह कही चलने को तैयार रहने को कहा। अगले दिन सुबह, किसान और सियार राजमहल की तरफ निकल पड़े। राजमहल के पास पहुँच कर किसान घबरा गया। उसे लगा सियार राजा से कह कर उसे सज़ा दिलवाएगा। डरते डरते किसान महल के अंदर गया। राजा किसान को देखते ही खुश हो गया। पर किसान दर के मारे काँप रहा था। तब राजा ने किसान को बताया की उसने किसान को सज़ा देने के लिए नहीं बल्कि उसे नौकरी देने के लिए बुलाया था। अब किसान की जान में जान आयी। राजा ने किसान को अपने पास नौकरी पर रख लिया और उसकी साड़ी गरीबी दूर कर दी।

ब्राह्मण और नौकर
गुजराती लोक कथा

एक गाँव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था। ब्राह्मण अनपढ़ था इसलिए वह कोई काम नहीं कर सकता था। एक दिन ब्राह्मण की पत्नी ने उसे राजा के पास अपनी समस्या ले कर जाने की सलाह दी। ब्राह्मण ने राजा के पास जा कर उसे आशीर्वाद दिया। राजा ने ब्राह्मण से खुश हो कर एक पर्ची दी और उस पर्ची को खजांची के पास ले जा कर अपना इनाम लेने को कहा। ब्राह्मण बहुत खुश हुआ। वह अक्सर राजा के पास आने लगा।

एक दिन राजा के नौकर ने ब्राह्मण से बक्शीश मांगी। ब्राह्मण कोई जवाब दिए बिना वहां से चला गया। नौकर ने ब्राह्मण को सबक सिखाने की ठानी। अगले दिन नौकर ने ब्राह्मण से कहा की राजा तुम से नाराज हैं क्योंकि उन्हें तुम्हारे मुँह से दुर्गन्ध आती है। ब्राह्मण घबरा गया और अगली बार राजा से मिलने अपने नाक मुँह पर कपड़ा रख कर गया।

शाम को नौकर ने राजा से कहा की आज ब्राह्मण नाक मुँह पर कपड़ा इसलिए रख कर आया था क्योंकि वह कह रहा था की उसे आप के कान से दुर्गन्ध आती है। राजा को यह सुन कर क्रोध आया। अगले दिन जब ब्राह्मण महल से वापस लौट रहा था तब नौकर ने फिर उस से बक्शीश मांगी। ब्राह्मण को जो पर्ची राजा से मिली थी वही उसने नौकर को दे दी। नौकर ख़ुशी ख़ुशी खजांची के पास पहुंचा। खजांची ने नौकर को बैठने को कहा। कुछ देर में एक नाई आया और नौकर के नाक कान काट के ले गया। नौकर गुस्से में राजा से शिकायत करने गया। राजा नौकर की बात सुन कर सारा माज़रा समझ गए। उन्होंने कहा तुम ने नौकर की झूठी शिकायत की इसलिए तुम्हारे साथ ऐसा हुआ।

जादुई पेड़

किसी जगह पर पीपल का एक बहुत बड़ा पेड़ था। वहां रहने वाले लोगों का यह मानना था की यह पीपल का पेड़ बहुत पवित्र है। कुछ समय बीता, वहां केराजा की एक बेटी हुई। बेटी का नाम रूपा रखा गया। रूपा को बाग़-बगीचे में खेलना बहुत अच्छा लगता था। जैसे ही रूपा की पढ़ाई पूरी होती, वह सीधे राज बगीचे में खेलने चली जाती।

एक दिन रूपा बगीचे में खेल रही थी। तभी उसके पास एक तितली आ कर बैठी। इसके पंखों में हीरे जड़े हुए थे। तभी तितली उड़ चली और रूपा उसका पीछा करते करते जंगल में निकल गयी। कुछ देर बाद रूपा को एहसास हुआ की वह भटक गयी है। तभी तेज़ तूफ़ान शुरू हो गया और रूपा रोने लगी। अचानक से रूपा के पीछे लगे पीपल के पेड़ की डाली आगे आयी और उसने रूपा उठा कर कहा की उसके रहते रूपा को डरने की कोई ज़रुरत नहीं है। जब तक तूफ़ान थम नहीं गया, पीपल के पेड़ ने रूपा को अपने अंदर छिपाये रखा। तब तक रूपा को ढूंढते हुए सैनिक आ गए और उसे अपने साथ महल वापस ले गए।

धीरे धीरे रूपा और पीपल के पेड़ की दोस्त बढ़ने लगी। जब राजा को इसकी भनक लगी तो वह विचलित हो उठा। रूपा किसी खतरे में न पड़ जाये यह सोच कर उसने जंगल के सभी पेड़ कटवाने का निर्णय ले लिया। राजा के आदेश से सैनिक जंगल में पेड़ काटने पहुंचे पर वह जैसे ही पीपल के पेड़ की टहनियां काटते, पेड़ से नयी टहनियां ऊग आती। सैनिक घबरा गए। तब पीपल के पेड़ ने गरज कर कहा की सालों से वह और उसके साथी इंसानों को सांस लेने के लिए हवा देते आ रहे हैं , और आज यह लोग उन्हें ही ख़त्म करने चले हैं। अगर पेड़ नहीं रहे, तो इंसान भी नहीं बचेंगे। यह पता चलने पर राजा को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने अपना निर्णय वापस लिया और रूपा और पीपल के पेड़ की दोस्ती की फ़िक्र छोड़ दी।

गुरु और शिष्य

एक आश्रम में एक गुरूजी अपने 4 शिष्यों के साथ रहते थे। एक बार गुरूजी और शिष्य आश्रम में उगाये फल और सब्ज़ी बेचने बैल गाडी में बैठ कर बाजार की तरफ निकले। बैलगाड़ी कहीं न रोकने का आदेश दे कर गुरूजी सो गए। तभी एक ठोकर लगी और गुरूजी की पगड़ी गिर पड़ी। पर जैसा की गुरूजी का आदेश था , शिष्यों ने बैल गाडी नहीं रोकी। जब गुरूजी की नींद टूटी तो उन्हें अपने शिष्यों की मूर्खता पर बहुत गुस्सा आया। इस बार सोने से पहले गुरूजी ने आदेश दिया की बैलगाड़ी में से जो भी गिरे उसे उठाना है।

कुछ दूर जा कर बैलों ने गोबर कर दिया। शिष्यों ने बैलगाड़ी रोकी और गोबर उठा कर गुरूजी के बगल में रख दिया। जब गुरूजी की नींद टूटी तो उन्हें अपने शिष्यों की मूर्खता पर बहुत गुस्सा आया। इस बार उन्होंने सोने से पहले कागज़ पर एक सूची बनायी जिसमे किस सामन को उठाने के लिए रुकना है और किस सामान के लिए नहीं रुकना है, यह लिखा था।

बैलगाड़ी कुछ दूर चली और फिर उसमे ठोकर लगी। इस बार गुरूजी बैलगाड़ी से लुढ़क कर एक दल-दल में गिर गए। शिष्यों ने गुरूजी की दी हुई सूची निकाली और देखा की उठाने वाले सामान में कहीं भी गुरूजी का नाम नहीं था। गुरूजी चिल्लाते रहे और शिष्य मुँह झुकाये खड़े रहे। तभी वहां से एक बूढी औरत निकली। उसने पूरा नज़ारा देखा और शिष्यों से गुरूजी को निकालने को कहा। शिष्यों ने पूरी कहानी कह सुनाई। बूढी औरत ने शिष्यों से कागज़ लिया और उठाने वाले सामान की सूची में गुरूजी का नाम लिख दिया। फिर शिष्यों ने गुरूजी को बहार निकला और सब वापस आश्रम चले गए।

जादुई चिड़िया

बहुत समय पहले, नीलगिरि पहाड़ियों के नीचे एक शंगरीला नाम का राज्य था। वहां का राजा – ऋषिराज बहुत दयालु और मेहनती राजा था जिसकी वजह से पूरे राज्य में खुशहाली थी। शंगरीला राज्य में एक कोकिला नाम की कोयल थी जो बहुत मधुर गीत गाने के लिए जानी जाती थी। नीलगिरि पहाड़ी के दूसरी तरफ दूसरा राज्य था जिसका नाम डोंगरीला था। डोंगरीला राज्य शंगरीला के बिलकुल विपरीत राज्य था , वह का राजा जगतगुरु बहुत ही स्वार्थी और ईर्ष्यालु राजा था।

एक बार जगतगुरु शंगरीला से हो कर गुज़रा और वहां की रौनक देख कर प्रसन्न हो गया। वापस आने के बाद जगतगुरु ने अपने प्रधान मंत्री ज्ञानदीप को बुलाया और शंगरीला की खुशाली का राज़ पता करने को कहा। ज्ञानदीप ने 10 दिन तक शंगरीला का भ्रमण किया और वापस आ कर जगत गुरु को बताया की शंगरीला की खुशहाली का राज़ एक कोयल है जो दिन रात सुरीला गाना गाती है। यह सुन कर जगतगुरु सोचने लगा की किस तरह उस कोयल को हासिल किया जाए। वह युद्ध नहीं कर सकता था क्योंकि शंगरीला की सेना बहुत ताकतवर थी। इसलिए उसने एक चाल सोची। जगतगुरु एक साधू बन कर शंगरीला के राजा ऋषिराज के महल में गया। साधु को आया देख कर ऋषिराज ने उसका खूब अतिथि सत्कार किया। अगले दिन वापस आने से पहले साधु के भेष में जगतगुरु ने ऋषिराज से कुछ दिनों के लिए कोकिला को अपने साथ ले जाने की इच्छा प्रकट की। ऋषिराज को कोकिला दने की बिलकुल इच्छा नहीं थी पर साधु को मन करना उन्हें ठीक नहीं लगा और उन्होंने कोकिला को जगतगुरु के साथ जाने दिया। वापस आ कर जगत गुरु ने कोकिला को सोने के पिंजरे में दाल दिया और उसका गाना सुन ने का इंतज़ार करने लगा।

एक महीने बीता पर कोकिला के कंठ से आवाज़ नहीं निकली। जगतगुरु इसका समाधान पूछने अपने राज्य के एक तपस्वी प्रशांत बाबा के पास गया। वहां प्रशांत बाबा ने उसे समझाया की शंगरीला की खुशहाली का राज़ कोकिला नहीं बल्कि ऋषिराज का दयालु और मेहनती स्वभाव है। प्रशांत बाबा ने जगतसुरु से अपने स्वार्थी स्वाभाव को छोड़ कर कोकिला को वापस लौटाने की सलाह दी। जगतगुरु ने प्रशांत बाबा की बात मानी और कोकिला को ऋषिराज को वापस लौटा दिया। कुछ दिन बाद डोंगरीला भी समृद्ध और खुशहाल राज्य बन गया।

मिठाई की दूकान में मक्खी

गोपाल अपनी पत्नी के साथ दोपहर में आराम कर रहा था। पर उसके बेटे हरी को नींद नहीं आ रही थी। दरअसल हरी की स्कूल की छुट्टियां चल रहीं थी और उसके सारे दोस्त कहीं न कहीं घूमने चले गए थे। हरी घर में रहते रहते ऊब गया था। हरी ने अपनी माँ को जगाया और उनसे मिठाई खाने जाने के लिए पैसे मांगे। पर उसकी माँ उसकी बात टाल के फिर से सो गयी। हरी ने अपने पिता गोपाल से भी पैसे लेने की कोशिश करी पर निराशा ही हाथ लगी।

फिर हरी खुद ही घर से निकला और मिठाई की दूकान के सामने पहुँच गया। वह वहां खड़ा हो कर सोचने लगा की बिना पैसे के मिठाई कैसे खायी जाए। कुछ देर बाद उसने देखा की हलवाई दुकान अपने छोटे बेटे को सँभालने दे कर खुद सोने जा रहा है। यह देख कर हरी के दिमाग में एक तरकीब आयी। वह दूकान पर पहुंचा और मिठाई मांगने लगा। इस पर हलवाई के बेटे ने हरी से पैसे मांगे। हरी ने कहा की उसे मिठाई खाने के लिए पैसे देने की ज़रुरत नहीं है। हलवाई के बेटे को हरी की बात का यकीन न आया। हरी ने हलवाई के बेटे से कहा की की वह जाए और अपने पिताजी को बता आये की दुकान पर मिठाई खाने हरी आया है फिर देखते हैं वह क्या कहते हैं। हलवाई के बेटे ने ऐसा ही किया। हलवाई यह सुन कर भड़क गया की उसका बेटा उसे मक्खी के दूकान पर आने जैसी छोटी बात के लिए जगाने आ गया। उसने अपने बेटे को वहां डांट के भगा दिया। हलवाई के बेटे ने फिर हरी से कुछ न कहा। हरी ने मनपसंद मिठाई खायी और वहां से खिसक लिया।

शाम को गोपाल को हरी की हरकत का पता चला। एक तरफ गोपाल को अपने बेटे के तेज़ दिमाग पर आश्चर्य हुआ पर दूसरी तरफ उसे अपने बेटे के किसी की दूकान से इस तरह मुफ्त में खाने का दुःख भी हुआ। गोपाल ने हरी से वादा लिया की दोबारा वह ऐसा कभी नहीं करेगा। उसे जो भी चाहिए होगा वह अपने माता पिता को बताएगा।

शायरा की दिवाली

बहुत समय पहले की बात है जब देवी देवता इंसान मिलने धरती पर आते थे। एक गाँव में शायरा नाम की बच्ची अपनी माँ के साथ रहती थी। वह दोनों दूसरों के कपडे धो कर पैसे कमाते थे। शायरा सोच रही थी की इस बार दिवाली पर वह अपनी माँ को क्या उपहार देगी। तभी एक कौवा वहां उड़ता हुआ आया और अपनी चोंच से एक मोतियों का हार गिरा गया। शायरा खुश हो गयी की इस बार वह अपनी माँ को दिवाली पर हार देगी।

अगले दिन शायरा को पता चलता है की यह हार रानी का है और वह इसके खोने से बहुत परेशां है। शायरा मायूस हो गयी। पर आखरी में शायरा ने उस हार को रानी को वापस लौटाने का निर्णय लिया और राजमहल की तरफ चल पड़ी। रानी अपना हार वापस पा कर बहुत खुश हुई और उसने बदले में शायरा की कोई एक इच्छा पूरी करने का वादा किया। शायरा ने रानी से कहा की दिवाली वाली रात को पूरे गाँव में तक तक अँधेरा रखा जाए जब तक वह एक आतिशबाजी कर के इशारा न दे। उसके बाद सब रौशनी कर सकते हैं।

रानी ने शायरा की बात मान कर पूरे गाँव में घोषणा करा दी। दिवाली वाली रात को पूरे गाँव में अँधेरा था सिर्फ शायरा के घर में दिए जल रहे थे। तभी शायरा के घर में दरवाज़ा खटका। शायरा ने दरवाज़ा खोला और उसे जैसी उम्मीद थी उसने सामने देवी लक्ष्मी को खड़ा पाया। देवी लक्ष्मी ने शायरा और उसके परिवार को हमेशा धनवान रहने आशीर्वाद दिया अंतर्ध्यान हो गयीं। इसके बाद शायरा ने आतिशबाजी चला के सब को अपने अपने घर रोशन कर लेने का इशारा दिया

दावत
यह एक दक्षिण भारतीय लोक कथा है |

एक बार सूरज, पवन और चन्द्रमा अपने चाचा-चाची बिजली और तूफ़ान के घर दावत खाने गए थे। उनकी माँ, जो दूर सितारों में से एक थी , अपने बच्चों का वापस आने का इंतज़ार कर रही थी। दावत में, तरह तरह के पकवान थे। सूरज और पवन ने जम के दावत के मज़े उड़ाए। पर चन्द्रमा को अपनी अकेली माँ का ध्यान था इसलिए उसने खाने के साथ साथ थोड़े से पकवान माँ के लिए भी रख लिए।

घर वापस आने पर जब माँ ने अपने बच्चों से पूछा की वह उसके लिए क्या लाये तो सूरज और पवन बोले की हम दावत खाने गए थे, आप के लिए कुछ लाने नहीं। तभी चन्द्रमा ने अपनी माँ से कहा की आप थाली ले कर आइये में आप के लिए बहुत से व्यंजन ले कर आया हूँ। यह सुन कर सितारा माँ खुश हो गयीं। पर वह सूरज और पवन के स्वार्थी व्यवहार से नाराज़ भी थीं इसलिए उन्होंने दोनों को श्राप दिया की गर्मी में धरती पर रहने वाले लोग सूरज और पवन का मुँह भी देखना पसंद नहीं करेंगे। वहीँ उन्होंने चन्द्रमा को आशीर्वाद देते हुए कहा की उसे देख कर लोगों को राहत मिलेगी। आज भी गर्मी में सूरज और पवन यानी गरम लू से लोग बचते हैं लेकिन शांत शीतल चन्द्रमा को देख कर उन्हें सुकून मिलता है।

शनि देव का आशीर्वाद
यह बच्चों के लिए एक दक्षिण भारतीय लोक कथा है |

एक छोटे से कस्बे में एक गरीब ब्राह्मण अपनी 3 बेटियों के साथ रहता था। वह लोग खेती कर के अपना जीवन बिताते थे। एक बार सावन के शनिवार को, ब्राह्मण सुबह जल्दी उठा और अपनी सब से छोटी बेटी से खाना बना के रखने का बोल कर अपनी दोनों बड़ी बेटियों के साथ खेत पर निकल गया। ब्राह्मण के जाने के बाद शनि देव वहां भिखारी के भेष में आये और छोटी बेटी से नहाने का पानी, थोड़ा तेल और कुछ खाने को माँगा। छोटी बेटी ने जो कुछ शनि देव ने माँगा वह सब उन्हें दे दे दिया। शनि देव ने प्रसन्न हो कर ब्राह्मण का घर खाने के सामान से भर दिया और जिन पत्तलों में खाना खाया उन्हें मोड़ कर छत में फंसा कर चले गए। ब्राह्मण वापस आया तो वह बहुत खुश हुआ।

अगले 2 शनिवार को किसान की बड़ी बेटियां बरी बरी से घर पर रुकी। पर दोनों ने ही भेष बदल कर आये शनि देव को खाली हाथ लौटा दिया। इस पर शनि देव नाराज़ हुए और उनके श्राप से ब्राह्मण के घर जो कुछ था वह भी खाली हो गया। ब्राह्मण को जब यह बात पता चली तो उसे अपनी दोनों बड़ी बेटियां पर बहुत गुस्सा आया। अगले शनिवार को वह फिर से अपनी सब से छोटी बेटी को घर में छोड़ कर गया। शनि देव भिखारी के भेष में आये और उन्होंने जो जो माँगा छोटी बेटी ने उन्हें दे दिया। शनि देव ने प्रसन्न हो कर ब्राह्मण का घर फिर से खाने के सामान से भर दिया। ब्राह्मण ने अपनी दोनों बेटियों के साथ मिल कर शनि देव से मांफी मांगी और जब छत पर उस जगह जा कर देखा जहाँ शनि देव खाने के बाद पत्तल रखते थे तो वहां उन्हें हीरे जवाहरात मिले। ब्राह्मण की सारी गरीबी दूर हो गयी और वह ख़ुशी ख़ुशी रहने लगा।

Ravi KUMAR

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