दाख़िलेमून ख़ुदेमून रो कुश्त व बीरूनेमून मर्दुम रो

एक व्यक्ति का एक बहुत बड़ा बाग़ था। उसके बाग़ में हर प्रकार के फल का पेड़ मौजूद था। उसने अपने बाग़ की भली भांति देख-भाल के लिए बाग़ ही में एक घर बना लिया था और उसी में रहता था। उसके सौ से अधिक नौकर थे जो बाग़ की देख-भाल में उसकी सहायता करते थे। जो भी दूर से उसे, उसके बाग़ को और उसके नौकरों को देखता था तो यही सोचता था कि कितना भाग्यशाली है वह, कितने अच्छे स्थान पर जीवन बिता रहा है और कितना अधिक धन है उसके पास। बाग़बानी करने वाले उसके मित्र और उससे थोक में फल ख़रीदने वाले छुट्टियों में उससे मिलने आते थे। वे जब भी उसके बाग़ में जाते तो या तो उसे विभिन्न प्रकार के रंग बिरंगे फलों से लदा हुआ पाते या फिर पेड़ों पर फूल लगे होते और वे फल देने के लिए तैयार होते। वे एक दो दिन बाग़ के भीतर बने हुए घर में रहते और मीठी-2 यादें लिए हुए नगर वापस चले जाते। उस व्यक्ति के मित्र सदैव उससे कहते थे कि कितने भाग्यशाली हो तुम, सुबह जब तुम सोकर उठते हो तभी से रात तक फूल, पेड़, फल और हरियाली देखते हो, न तो तुम्हें नगर के प्रदूषण का सामना करना पड़ता है और न ही कोई अन्य कठिनाई उठानी पड़ती है।

वह व्यक्ति पेड़ों की देख-भाल में आने वाली कठिनाइयों के बारे में बताता और कहता कि यदि एक दिन भी देर से वर्षा हो या अधिक वर्षा हो जाए या इसी प्रकार शीतकाल और ग्रीष्मकाल के आने जाने में जल्दी या विलम्ब हो जाए तो ऐसी समस्याएं खड़ी हो जाती हैं जिनकी क्षति पूर्ति नहीं की जा सकती। वह इस संबंध में जितनी भी बात करता, उसके मित्र समझ ही नहीं पाते थे। वह व्यक्ति जानता था कि समुद्र में जा चुका व्यक्ति ही चक्रवात के संकट का अनुमान लगा सकता है और जिन लोगों के बाग़ में काम नहीं किया है और केवल फलों और फूलों को देखा है वे इस काम की कड़ाई और कठिनाई को नहीं समझ सकते। इसी कारण वह अपने मित्रों और मिलने जुलने वालों से इस संबंध में बहुत अधिक बात नहीं करता था।

एक वर्ष शीत ऋतु जल्दी समाप्त हो गई अतः वसंत ऋतु से पूर्व ही फलों के पेड़ों पर फूल लग गए किंतु अभी वसंत ऋतु का पहला महीना भी समाप्त न हुआ था कि पुनः ठंडक पड़ने लगी। तेज़ हवाओं, वर्षा और ओलों ने पेड़ों पर आक्रमण कर दिया। कोमल फूल, जो तेज़ हवाओं की शक्ति और ओलों की मार सहन करने की क्षमता नहीं रखते थे, बहुत जल्दी टहनियों से अलग हो कर धरती पर गिर पड़े। टहनियां, जो अपनी शीतकालीन नींद से जागी ही थीं कि उन्हें ठंडक लगने लगीं और वे पुनः सो गईं। ठंडक के इस अल्पकालीन आक्रमण के बाद किसी भी पेड़ पर न तो पत्ता उगा और न ही फूल लगा और जिस पेड़ पर फूल नहीं लगते उसमें फल भी नहीं उगते।

उस वर्ष उस व्यक्ति से थोक में फल ख़रीदने वालों ने बहुत अधिक प्रतीक्षा की कि उनके मित्र के फल नगर में आएं किंतु ऐसा नहीं हुआ। उन्होंने सोचा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारे मित्र पर कोई संकट आ गया हो? इसके बाद वे सब इकट्ठे हो कर अपने मित्र के बड़े बाग़ में पहुंचे। जब उन्होंने बाग़ को देखा तो उनके मुंह आश्चर्य से खुले रह गए। बाग़ एकदम ख़ाली पड़ा था। न तो फल थे, न फूल थे और न ही पत्ते। बाग़ में काम करने वाले मज़दूर दुखी चेहरों के साथ पेड़ों के नीचे बैठे थे। बाग़ का मालिक भी एक कोने में बैठा हुआ यह सोच रहा था कि वह इतने सारे नौकरों का वेतन किस प्रकार से देगा? उसके मित्र बड़े दुख के साथ उसके निकट पहुंचे और पूछा कि क्या हुआ? क्यों इतने दुखी दिखाई दे रहे हो? तुम्हारे बाग़ को क्या हुआ है? उसने अपने मित्रों को पूरी बात बताई और कहा कि मैंने बड़ी मेहनत की ताकि मेरा बाग़ पतझड़ और शीत ऋतु से सुरक्षित निकल जाए, बाग़ की देख भाल के लिए कई रातें मैं सोया भी नहीं किंतु दो तीन दिन के लिए मौसम ठंडा हो गया और मैंने जितनी मेहनत की थी और बाग़ पर जितना पैसा ख़र्च किया था सब बेकार हो गया। तुम लोग देख रहे हो कि मेरा बाग़ अपनी सुंदरता के चलते बाहर से लोगों की हत्या करता है और भीतर से हम लोगों की हत्या कर रहा है। बाहर से सभी को इस प्रकार के बाग़ की लालसा होती है बल्कि वे इस संबंध में ईर्ष्या भी करते हैं करते हैं किंतु भीतर से इसमें इतनी समस्याएं और कठिनाइयां हैं कि कभी कभी हमारी स्थिति ऐसी हो जाती है जैसी तुम लोग इस समय देख रहे हो।

उसी के बाद से ऐसे अवसर पर जब कोई विदित रूप से किसी रोचक वस्तु या स्थिति को देख कर उससे ईर्ष्या करता है किंतु उसे प्राप्त करने में आने वाली कठिनाइयों की अनदेखी करता है तो कहते हैं, दाख़िलेमून ख़ुदेमून रो कुश्त व बीरूनेमून मर्दुम रो।

Ravi KUMAR

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