Khargosh aur Sher ki Kahani
एक बार किसी जंगल में बहुत खूंखार शेर रहता था। वह शेर इतना खतरनाक था कि कोई भी जानवर उसके सामने आता था तो उसे वह मार देता था। इसी कारण जंगल के सभी जानवर हमेशा उससे डरते रहते थे। जब भी शेर जंगल में भ्रमण के लिए निकलता तो जंगल के सभी जीव कांपने लग जाते थे।
दिन प्रतिदिन शेर का आतंक जैसे-जैसे बढ़ने लगा वैसे वैसे जंगल में रहने वाले जानवर और ज्यादा परेशान रहने लगे। एक दिन सब ने मिलकर यह निर्णय किया कि वे शेर से बात करेंगे और प्रतिदिन बारी बारी से एक जानवर शेर के पास भोजन बन कर जाएगा जिससे शेर उसे खाकर अपनी भूख मिटा लेगा। इससे वे शेर के बढ़ते आतंक से मुक्ति पाएंगे और जंगल में प्रसन्नतपूर्वक रह सकेंगे।
जब सभी जानवरों ने यह प्रस्ताव शेर के सामने प्रस्तुत किया तो शेर बहुत प्रसन्न हुआ और मन ही मन सोचने लगा कि अब उसे आराम से बैठे बिठाए भोजन मिल जाया करेगा वो भी बिना किसी मेहनत के।
शेर ने यह प्रस्ताव सुनते ही तुरंत इसे स्वीकार कर लिया और कहने लगा ठीक है जैसी तुम्हारी मर्जी। इसके बाद प्रतिदिन बारी बारी से जानवर शेर के समक्ष भोजन बनकर जाने लगे। इसके कारण शेर की मौज आ गई क्योंकि अब उसे शिकार करने की मेहनत नहीं करनी पड़ती थी और भोजन भी हाथ पर मिल जाता था। इसके कारण वह बहुत प्रसन्न रहने लगा।
कुछ दिन इसी तरह बीत जाने के बाद अब बारी एक खरगोश की आई जो बहुत बुद्धिमान था। जब खरगोश का शेर के पास आने का समय हुआ तब वह रास्ते के बीच में विश्राम करने लगा और बहुत देर बाद शेर के पास पहुंचा।
जब खरगोश शेर के पास पहुंचा तो शेर बहुत क्रोधित हुआ और बोला कि तू इतनी देर से कहां था। तेरी देरी की वजह से मेरी भूख और बढ़ गई है। उसके बाद खरगोश बोला, मैं तो समय पर ही निकला था परंतु मुझे बीच रास्ते में दूसरा शेर मिला जो मुझे खाने के लिए उत्सुक था। मैं वहां बड़ी मुश्किल से अपनी जान बचाकर यहां आया हूं। इसके अलावा वह अपने आपको इस इलाके का राजा भी बता रहा था।
इतना सुनते ही शेर और ज्यादा क्रोधित हो गया एवं खरगोश से बोला कि मुझे उस शेर के पास लेकर चल जो यह कह रहा था कि मैं ही यहां का राजा हूं। आज पहले मैं उसे मारूंगा फिर उसके बाद ही भोजन ग्रहण करूंगा।
खरगोश शेर को एक गहरे कुएं के पास लेकर गया और बोला कि वह दुष्ट इसी कुएं में रहता है जो अपने आपको यहां का राजा बता रहा था। शेर भागते हुए उस कुएं के पास गया और कुए के अंदर झांकने लगा। कुएं में उसे अपना ही प्रतिबिंब पानी में नजर आया जिसे वह दूसरा शेर समझने लगा। जैसे ही शेर ने जोर से गर्जना करी वैसे ही उसकी आवाज टकराकर वापस आयी। इसके बाद शेर इतना क्रोधित हो गया कि बिना कुछ सोचे और समझे सीधा कुएं में कूद गया। कुए में कूदते ही वह छटपटाने लगा और छटपटाने के कुछ समय पश्चात उसकी मृत्यु हो गई।
यह सब देखकर खरगोश बहुत खुश हुआ और जंगल के अन्य जानवरों को शेर की मृत्यु का समाचार देने गया। शेर की मृत्यु का समाचार सुनते ही जंगल के सभी जानवर खुश हो गए और खरगोश की जय जयकार करने लगे।
Bandar aur Sher ki Kahani
एक बार बंदर और शेर में यह बहस होने लगी कि बुद्धि और बल में कौन बड़ा है। बंदर ने शेर से कहा मुझे जंगल में किसी का भी नहीं है क्योंकि मेरे पास बुद्धि है और मैं इतना बुद्धिमान हूं कि मैं किसी भी मुसीबत से बड़े आराम से निकल सकता हूं।
उतने में शेर ने जवाब दिया कि तुम्हारी बुद्धि मेरी ताकत के आगे कुछ भी नहीं है। अगर मैं चाहूं तो अपने बल से यहीं तुम्हारा काम तमाम कर सकता हूं।
Panchtantra ki Kahaniya
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उसके बाद बंदर ने कहा कि मैं तुम्हें यह साबित करके दिखाऊंगा कि बुद्धि बल से बड़ी होती है। फिर शेर ने कहा ठीक है, तो तुम मुझे कभी भी बल को अपनी बुद्धि से हराकर दिखाओ। अगर तुम ऐसा कर देते हो तो मैं समझ जाऊंगा की बुद्धि बल से बड़ी है।
कुछ दिन बीत जाने के बाद एक दिन जब शेर जंगल में भ्रमण कर रहा था तभी वह एक बड़े गड्ढे में गिरा जिससे उसके पांव में चोट लग गई। जैसे ही शेर लंगड़ाते हुए गड्ढे से बाहर निकला उतने में एक शिकारी ने शेर की तरह बंदूक तान रखी थी। शेर को समझ आ गया कि वह गड्ढा शिकारी ने किया था।
शेर के कुछ आगे सोचने से पहले ही ऊपर से बहुत सारे पत्थर शिकारी की तरफ गिरने लगे जिसमें से एक पत्थर शिकारी के सर पर आकर जोर से लगा। ये सब देख शिकारी भयभीत हो गया और घायल अवस्था में वहां से भाग गया।
शेर इससे पहले की अपने मन में कुछ और सोच पाता कि तभी बंदर ने पेड़ से शेर को आवाज लगाई क्या हुआ आपकी ताकत को आज राजा जी? आपकी ताकत आज आपके काम नहीं आई क्या?
तभी शेर ने बंदर से कहा कि तुम यहां कैसे। इतने में बंदर ने जवाब दिया कि ये शिकारी शिकार करने का विचार थोड़े दिन पहले से ही कर रहा था और मैं इस पर नजर बनाए हुए था। मुझे पता था कि यह आज आप का शिकार यहां करने आएगा। इसलिए मैंने पेड़ पर बहुत सारे पत्थर इकट्ठे कर रखे थे ताकि जरूरत पड़ने पर इनका उपयोग किया जा सके।
इसके बाद शेर को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने बंदर से कहा कि तुम सही थे बुद्धि बल से बड़ी ही होती है। बल हर परिस्थिति या हर समय एक जैसा नहीं रहता जब की बुद्धि हमेशा आपके साथ आपके पास रहती है।
फिर बंदर ने भी इसी का जवाब दिया और कहा देखिए शिकारी आपसे बल में कम था लेकिन फिर भी उसने अपनी बुद्धि के कारण आप को फंसा लिया। इसी प्रकार मैं भी शिकारी से बल में कम था पर मैंने भी शिकारी को अपनी बुद्धि के कारण हरा दिया।
एक दिन हाथियों ने अपने मुखिया हाथी से कहा कि अब इस जंगल में रहना खतरे से खाली नहीं है क्योंकि यहां का पानी बिल्कुल समाप्त होने की कगार पर पहुंच चुका है। अगर हमने यहां से जल्दी कहीं और अपना ठिकाना ना खोजा तो हम सब मारे जाएंगे।
मुखिया हाथी बहुत ही समझदार और बुद्धिमान था। वह जानता था कि अब वे इस जंगल में ज्यादा अधिक दिनों तक नहीं रह पाएंगे और उन्हें कहीं और सुरक्षित स्थान ढूंढना पड़ेगा इसलिए वह भी और हाथियों की बात से सहमत था।
हाथियों के मुखिया ने कुछ समय सोचने के पश्चात कहा कि वह एक जगह जानता है जहां एक बहुत विशाल तालाब है और अभी भी वह तालाब पानी से भरा हुआ है। हाथियों के मुखिया के द्वारा यह वाक्य सुनकर समस्त हाथी खुश हो गए और चलने की तैयारी करने लगे।
करीब पांच रात तक यात्रा करने के पश्चात वे उस तालाब के किनारे पहुंचे। जैसे ही हाथियों के झुंड ने उस पानी से भरे हुए तालाब को देखा, वैसे ही पूरा झुंड हर्षोउत्साहित हो गया।
तालाब के चारों ओर की नरम मिट्टी पर असंख्य छिद्र बने हुए थे जिसमें खरगोश बहुत पहले से रह रहे थे। इस तालाब को देखते ही सभी हाथियों ने बिना कुछ देखे झील में कूदना शुरू कर दिया।
हाथियों के अचानक तालाब की तरफ कूदने के कारण हाथियों और तालाब के बीच में आए हुए सभी छिद्र नष्ट हो गए और इसके साथ ही कुछ खरगोश घायल हो गए जबकि कुछ खरगोश मारे गए।
हाथियों के झुंड को शाम के वक्त चले जाने के बाद सभी खरगोश एकत्रित होकर इस विषय पर वार्तालाप करने लगे। वार्तालाप में वे सब एक दूसरे से दुख प्रकट करने लगे और कहने लगे कि अब यह हाथियों का झुंड प्रतिदिन यहां आया करेगा और ऐसे ही हम लोग मारे जाते रहेंगे।
कुछ खरगोशो ने यह सुझाव दिया कि हमें अब इस जगह को छोड़कर कहीं और सुरक्षित स्थान पर चले जाना चाहिए तो कुछ खरगोश कहने लगे नहीं यह हमारी पुश्तैनी जगह है और हम इस जगह को छोड़कर कहीं और नहीं जा सकते हैं।
इसी वार्तालाप के बीच में एक चलाक खरगोश ने कहा कि हमें हाथियों का मुकाबला बुद्धि से करना होगा और उसके पास एक उपाय भी है जो इस परेशानी से सभी खरगोशों को बचा सकता है।
योजना के अनुसार एक खरगोश हाथियों के जाने वाले रास्ते में एक ऊंचे टीले पर बैठ गया। जब हाथियों का झुंड वहां से गुजरा तो खरगोश चिल्लाकर बोला, मैं तुम हाथियों को तालाब में प्रवेश नहीं करने दे सकता क्योंकि यह तालाब भगवान चंद्रमा का है।
यह सुनकर हाथियों के झुंड का मुखिया थोड़ा घबरा गया और उस खरगोश से बोला कि तू कौन है?
खरगोश ने हाथियों के मुखिया से कहा, मैं चंद्रमा देवता के द्वारा भेजा गया दूत हूं और मैं चांद में ही रहता हूं। भगवान चंद्रमा ने मुझे आपको और आपके झुंड को यह सूचित करने के लिए भेजा है कि आप लोग इस तालाब में मत आया करो।
कल आपके तालाब में प्रवेश करने के कारण तालाब के आसपास बने खरगोशों के बिल नष्ट हो गए जिससे कई खरगोश गंभीर रूप से घायल हुए जबकि कई खरगोश मारे गए। इसके कारण भगवान चंद्रमा आप पर बहुत क्रोधित हैं।
हाथियों के झुंड के मुखिया ने थोड़ा समय लेने के पश्चात उस खरगोश से कहा कि इस वक्त भगवान चंद्रमा कहां है जिनका तुम संदेश हमारे पास लाए हो? हम उनसे माफी मांगना चाहते हैं।
चूंकि पहले से ही शाम हो चुकी थी, इसलिए खरगोश ने बड़ी ही विनम्रता से कहा, इस वक्त भगवान चंद्रमा इस तालाब में हैं। कल हुई घटना में मारे गए खरगोशों के परिवार को वे सांत्वना देने के लिए तालाब में प्रकट हुए हैं। यदि आप उन्हें देखना चाहते हैं तो आप मेरे साथ आइए। मैं आपको उनके दर्शन करा सकता हूं।
खरगोश हाथियों के मुखिया को तालाब के किनारे ले गया। रात्रि का समय होने के कारण चंद्रमा का प्रतिबिंब तालाब में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता था। किनारे पर पहुंचने के पश्चात खरगोश ने हाथियों के मुखिया से कहा कि भगवान चंद्रमा आज बहुत क्रोधित हैं और आपको उनसे नहीं मिलना चाहिए, नहीं तो वे आपके झुंड पर और भी ज्यादा क्रोधित हो जाएंगे।
हाथियों का मुखिया तलाब के पानी में चांद का प्रतिबिंब देखकर बहुत ही आश्चर्यचकित हुआ और उसे खरगोश की बातों पर विश्वास हो गया। उसके बाद हाथियों का झुंड वहां कभी भी नजर नहीं आया और खरगोश फिर से खुशी-खुशी रहने लगे।
एक दिन हाथियों का एक झुंड नदी के किनारे पानी पीने के लिए आया। चूहों के बहुत सारे घर अनजाने में हाथियों के पैर द्वारा कुचल दिए गए। इतना ही नहीं, इस घटना में कुछ चूहे भी मारे गए और कुछ घायल हो गए।
हाथियों के नदी के पास से चले जाने के बाद चूहों ने अपनी एक सभा बुलाई जिसमें वे इस पर संवाद करने लगे। संवाद ने कुछ चूहों ने अपने राजा से कहा कि वे हाथियों के राजा से आज हुई त्रासदी के विषय पर वार्तालाप करें और उन्हें यहां दोबारा ना आने के लिए भी बोले।
अगले दिन चूहों के राजा हाथियों के राजा के पास पहुंचे और उनसे विनम्रता से कहा कि कल उनके समूह के द्वारा नदी में पानी पीने के कारण नदी के आसपास बने चूहों के बहुत सारे घर तबाह हो गए और इसके साथ कुछ चूहे मारे भी गए।
हाथियों का राजा बहुत दयालु और शील स्वभाव का था इसलिए उसने इतना सुनते ही अनजाने में हुई गलती के लिए चूहों के राजा से माफी मांग ली। इसके बाद उसने चूहों के राजा को प्रण दिया कि आज के बाद उनके समूह का कोई भी हाथी उस नदी में पानी पीने नहीं जाएगा।
हाथियों के राजा द्वारा यह कथन सुनकर चूहों के राजा अति प्रसन्न हुए और हाथियों के राजा से कहा कि भविष्य में जब भी आपको हमारी मदद की आवश्यकता हो तो आप हमें जरूर याद करना, हम आपकी मदद करने के लिए आ जाएंगे।
इतना कहते ही चूहों का राजा अपने राज्य में वापस आ गया और अन्य चूहों को आश्वासन दिया कि अब सब कुछ ठीक हो चुका है। अपने राजा के मुख से यह वचन सुनकर सारे चूहे खुश हो गए।
कुछ दिन बीत जाने के बाद एक दिन जब हाथियों का राजा अपने साथियों के साथ पानी पीने जा रहा था, तभी वह शिकारियों द्वारा बिछाई गई जाल में फंस जाता है। हाथी का राजा जाल से निकलने का खूब प्रयास करता है परंतु हर बार वह जान से निकलने में नाकामयाब होता है।
कुछ देर प्रयास करने के बाद हाथियों के राजा की हिम्मत टूटने लगती है और वह प्रयास करना छोड़ देता है। थोड़ी देर बाद उसे अपने मित्र चूहे के राजा की याद आती है और वह अपने साथियों से कहता है कि वे चूहों के राजा को यहां उसकी मदद करने के लिए लेकर आए।
इतना सुनते ही अन्य हाथी चूहों के राजा के पास चले जाते हैं और चूहों के राजा को पूरी घटना का विवरण देते हैं। अपने मित्र हाथी को मुसीबत में देख चूहों के राजा अपने अन्य साथियों के साथ हाथी की पीठ पर बैठकर हाथी की मदद के लिए निकल पड़ते हैं।
वहां पहुंचकर वे और उनके साथी जाल को तेजी से कुतरना शुरू कर देते हैं और कुछ ही समय बाद वे जाल से हाथियों के राजा को सुरक्षित बाहर निकाल लेते हैं। चूहों द्वारा मुसीबत के समय में की गई मदद से हाथियों के राजा और उनके अन्य साथियों ने चूहों का आभार व्यक्त किया।
एक दिन जब वह जा रहा था तब उसे रास्ते में एक चिटी मिली, जिसे देखते ही वह उस पर हंसने लगा, और कहने लगा कि तुम कितनी छोटी हो तुम्हारा तो जीवन जीना ही व्यर्थ है। अगर मैं चाहूं तो तुम्हें अपने पैरों से मसल सकता हूं, तुम मेरा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती हो।
इतना सुनते ही चींटी ने हाथी से कहा, “आप अपनी ताकत पर इतना घमंड मत दिखाइए। अपनी ताकत पर घमंड करना गलत है। आप अपनी ताकत का उपयोग दूसरों की मदद करने के लिए भी कर सकते हैं।
इतना सुनते ही हाथी चींटी पर भड़क उठा, और कहने लगा कि अब तुम मुझे बताओगी कि मुझे अपनी ताकत का इस्तेमाल कैसे करना है।
हाथी के इतना कहते ही वर्षा शुरू हो जाती है और चींटी हाथी से कहती है चलो किसी सुरक्षित स्थान पर चलते हैं जहां हम इस वर्षा से बच सकें। वे दोनों वर्षा से बचने के लिए एक गुफा के अंदर चले जाते हैं।
गुफा के अंदर पहुंचने के बाद हाथी चींटी से कहता है कि मैं तुम्हें अपनी ताकत दिखाता हूं। वह अपना पाऊं जोर से जमीन पर पटकता है। जमीन में तेजी से पांव पटकने से एक बड़ा सा पत्थर गुफा से बाहर निकलने वाले रास्ते में आ जाता है और गुफा बंद हो जाती है।
चींटी हाथी से कहती है कि तुमने यह क्या किया? अब बाहर कैसे निकलोगे? गुफा से बाहर जाने वाला मार्ग तो बड़े से पत्थर के कारण बंद हो चुका है।
तभी हाथी चींटी से कहता है तुम मेरे साथ हो, घबराओ मत। मैं अभी इस पत्थर को हटा कर बाहर फेंक देता हूं। हाथी पत्थर को हटाने का प्रयास करता है परंतु असफल रहता है। वह कुछ समय तक भरसक प्रयास करता रहता है परंतु पत्थर टस से मस नहीं होता है।
अब हाथी भी चिंतित हो जाता है कि बाहर कैसे निकला जाए। वह चींटी से कहता है कि यह पत्थर तुम मैं भी नहीं हटा सकता, अब हम दोनों बाहर कैसे निकलेंगे?
इसके जवाब में चींटी कहती है, मैं नहीं तुम। मेरा आकार तो बहुत छोटा है, मैं तो छोटे से छिद्र से भी बाहर निकल सकती हूं परंतु तुम नहीं।
इतना सुनते ही हाथी को अपनी गलती का एहसास हो जाता है और वह चींटी से कहता है कि मुझे माफ कर दो। मैं अपने ताकतवर होने पर घमंडी हो चुका था और हर किसी को अपने बल से परेशान करता था। आज मुझे अपनी गलती का एहसास हो चुका है।
हाथी के मुख से यह बात सुनकर चींटी बहुत प्रसन्न हो जाती है और वह हाथी से कहती है कि उसके पास एक उपाय है, जिससे वह भी बाहर निकल सकता है।
चींटी एक छोटे से छिद्र से गुफा से बाहर आ जाती हैं और तुरंत हाथी के अन्य साथियों के पास जाती है। हाथी के साथियों के पास जाने के बाद वे उन्हें सारी बात बता देती है और उसकी मदद करने के लिए उन्हें गुफा की ओर ले जाती है।
गुफा के पास पहुंचने के बाद हाथी के साथी पूरी ताकत से उस पत्थर को खींचते हैं और सबके एक साथ जोर लगाने के कारण वह पत्थर वहां से खिसक जाता है। पत्थर के खिसक जाने के कारण गुफा का रास्ता भी खुल जाता है और हाथी बाहर आ जाता है।
हाथी के बाहर आने के बाद वह चींटी को धन्यवाद देता है और कहता है कि अब से वह किसी भी जानवर को अपने बल से नहीं डराएगा और हमेशा हर किसी की मदद करेगा।
किसी जंगल में एक पेड़ पर चिड़िया और चिड़े का एक घोंसला था जिसमें वे दोनों प्रेमपूर्वक रहा करते थे। उसी घोंसले में चिड़िया के अंडे भी थे जिसकी चिड़िया दिन भर रखवाली करती जबकि चिड़े का काम भोजन लाना था। चिड़िया और चिड़ा अंडो में से चूजों के निकलने के इंतजार के सपने देख रहे थे।
वहीं दूसरी ओर, उसी जंगल में एक दुष्ट हाथी भी रहता था जो हमेशा तोड़फोड़ मचाते रहता। एक दिन यह हाथी चिड़िया और चिड़ा के पेड़ के पास आकर तोड़फोड़ करने लगा, ऐसा करने से पेड़ तो न टूटा मगर चिड़िया का घोंसला पेड़ के जोर से हिलने के कारण नीचे गिर गया।
इसका नतीजा यह हुआ कि चिड़िया के सभी अंडे टूट गए और हाथी यह सब देख कर हंसता हुआ चला गया। चिड़िया टूटे हुए अंडों के पास जाकर रोने लगी और चिड़िया वह पल याद करने लगी जब वह इनकी देखभाल कर रही थी और इन अंडे में से चूजे निकलने का स्वप्न देख रही थी।
कुछ समय पश्चात चिड़ा भी वहां आ गया और यह दृश्य देखकर वह भी बहुत दुखी हुआ। उसने चिड़िया से पूछा यह सब कैसे हुआ?
चिड़िया ने चिडे को पूरी घटना का विवरण बताया और दुष्ट हाथी को सबक सिखाने के लिए कहा।
चीडे ने भी चिड़िया से हाथी को सबक सिखाने का वादा किया और चिड़िया के साथ अपने मित्र कठफोड़वा के पास गया। उसने अपने मित्र कठफोड़वा को पूरी बात बताई और हाथी को सबक सिखाने के लिए मदद मांगी।
कठफोड़वा भी हाथी द्वारा किए गए अपराध पर क्रोधित हुआ और उसे सबक सिखाने के लिए तैयार हो गया। कठफोड़वा उन्हें सबसे पहले अपने मित्र भंवरे के पास ले गया। कठफोड़वा ने भंवरे को पूरी बात बताई और हाथी को सबक सिखाने में मदद मांगी।
भंवरा भी हाथी द्वारा किए गए अपराध पर क्रोधित हुआ और वह भी हाथी को सबक सिखाने के लिए सहमत हो गया।
फिर कठफोड़वा चिड़िया और चिडे को अपने दूसरे मित्र मेंढक के पास ले गया और मेंढक को भी उसने पूरी बात बताई और हाथी को सबक सिखाने के लिए सहमत कर लिया।
एक दिन जब हाथी बहुत अधिक तोड़फोड़ मचाने के बाद जंगल में एक स्थान पर विश्राम करने लगा, तभी भंवरा उसके कान के पास आकर मधुर आवाज निकालने लगा। भंवरे की मधुर आवाज सुनकर हाथी को नींद आने लगी और वह सो गया।
उसके बाद कठफोड़वा ने मौका पाकर हाथी की दोनों आंख पर अपनी चोंच से तगड़ा प्रहार किया जिससे हाथी की दोनों आंखें फूट गई। हाथी दर्द से करहाने लगा और इधर उधर भागने लगा।
इधर-उधर भागते वक्त उसे थोड़ी दूरी पर मेंढकों के टर्राने की आवाज सुनाई देने लगी, मेंढकों के टर्राने की आवाज सुनकर हाथी को लगा कि जल का स्रोत आस पास ही है। वह मेंढक के टर्राने की आवाज सुनकर मेंढकों के समीप आने लगा।
मेंढकों के समीप पहुंचकर उसने मेंढकों से पूछा कि जल का स्रोत कहां है? तभी सभी मेंढकों ने एक साथ उत्तर दिया कि आपके थोड़ा सा आगे। हाथी जैसे ही भागते हुए आगे बढ़ा वह एक गड्ढे में तेजी से नीचे गिरा और कुछ समय बाद वहीं उसकी मृत्यु भी हो गई।
वह उस हाथी को प्रतिदिन खाने के लिए कुछ ना कुछ जरूर देता था। जबकि हाथी उसे इसके बदले कभी-कभी अपनी पीठ पर बैठाकर सैर कराने ले जाता था।
कुछ समय बाद दर्जी को एक दिन किसी दूसरे शहर जाना पड़ा। उसने अगले दिन अपनी दुकान पर अपने पुत्र को बैठने के लिए कहा। दर्जी के पुत्र ने इसके लिए हां कर दी और अगले दिन वह दुकान संभालने के लिए गया।
अगले दिन, प्रतिदिन की तरह इस बार भी हाथी दर्जी की दुकान पर आया। दर्जी का पुत्र बहुत ही शरारती प्रवृत्ति का था इसलिए उसने हाथी की सूंड में सुई चुभा दी। सुई चुभने के कारण हाथी को बहुत दर्द हुआ और वह वहां से भागकर तालाब की ओर चले गया।
तालाब में कुछ समय बिताने के बाद उसने दर्जी के पुत्र को सबक सिखाने के लिए तालाब का गंदा पानी अपनी सूंड में भर लिया और दर्जी की दुकान की ओर चल पड़ा।
दर्जी के पुत्र ने फिर से हाथी को अपनी दुकान की ओर आते देखा उसने अपने हाथ में फिर से सुई पकड़ ली और हाथी से फिर से शरारत करने की सोचने लगा।
जैसे ही हाथी दर्जी के पुत्र के निकट पहुंचा उसने तलाब का गंदा पानी दर्जी के पुत्र पर फेंक दिया जिससे दर्जी के पुत्र के कपड़े तो गंदे हुए ही और साथ में दुकान पर सिले हुए अन्य कपड़े भी गंदे हो गए।
दर्जी के पुत्र को सबक मिल चुका था और उसने अपने पिता के आने के बाद उनको सारी बात सच सच बता दी और फिर कभी ऐसा ना करने की कसम भी खाई।
इतनी दूर आने के बाद वह थोड़ा और आगे तक चलने लगी और उसे बेल पर लटके हुए अंगूर दिखाई दिए। अंगूर के गुच्छे को देखते ही उसके मुंह में पानी की बाढ़ सी आ गई। वह अंगूर के गुच्छों को देखते ही कहने लगी कि अब इन्हें मेरे अलावा कोई और नहीं खा पाएगा।
वह तेजी से अंगूर की बेल की ओर पहुंची और अंगूर के गुच्छों तक पहुंचने के लिए उछलने लगी। वह बहुत देर तक कोशिश करती रही मगर अंगूर का एक गुच्छा तो क्या उसके हाथ एक अंगूर तक ना आया।
वह कभी किसी और तरीके से कूदती तो कभी किसी और तरीके से, मगर हमेशा ही वह नाकामयाब रही।
अंत में वह अपने मन में कहने लगी कि यह अंगूर तो खट्टे होंगे। इन्हें कौन खाएगा? कोई पागल ही होगा जो इन्हें खाने की सोचेगा? मैं तो एक चालाक लोमड़ी हूं और मुझे इन्हें खाना शोभा भी नहीं देता है। इन्हें खाना तो मेरी शान के खिलाफ है।
इतना कहते ही वह लोमड़ी वहां से चली गई।
शिक्षा – जब हम कोई कार्य करने में असमर्थ रहते हैं तो हमें उस कार्य को किसी अन्य तरीके से करना चाहिए न कि उस कार्य को व्यर्थ समझकर उसका त्याग कर देना चाहिए।
लोमड़ी की मित्रता एक सारस से थी। लोमड़ी तो बहुत ही चतुर थी परंतु उसका मित्र सारस अत्यंत ही सीधा था। वह लोमड़ी की तरह चतुराई नहीं जानता था और हमेशा हर किसी के साथ अच्छे से रहता था।
एक दिन लोमड़ी के मन में विचार आया कि क्यों ना वह अपने मित्र सारस को भी बेवकूफ बनाए? इसलिए उसने अपने मित्र सारस को खाने का न्योता दिया और कहने लगी, सारस तुम मेरे सबसे घनिष्ठ मित्र हो। मैं तुम्हें अपने घर पर खाने का न्योता देती हूं।
चूंकि, सारस बेहद ही सीधा था इसलिए वह लोमड़ी की चतुराई को न भांप सका और न्योते मैं शामिल होने के लिए हामी भर दी।
सारस ने लोमड़ी से कहा, “तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद। तुम्हारे जैसा मित्र मेरा और कोई नहीं हो सकता। बहुत ही कम मित्र होते हैं तुम्हारे जैसे जो मुझ जैसे सीधे व्यक्तित्व वाले जीव के मित्र हैं।”
इसके बाद लोमड़ी ने सारस को एक निश्चित दिन बताकर नियुक्ति के लिए अपने घर पर बुलाया। घर पर लोमड़ी ने स्वादिष्ट खीर बनाई।
जब सारस लोमड़ी के घर में पहुंचा तो लोमड़ी ने उसका बहुत अच्छे से स्वागत किया और उसे बैठने के लिए कहने लगी।
सारस वहां कुछ समय प्रतीक्षा करने लगा और थोड़ी देर बाद लोमड़ी ने उसे बुलाया और खाना परोसने लगी। लोमड़ी ने खीर को बहुत ही चौड़े बर्तन में परोसा जिसके कारण लोमड़ी ने तो बहुत आनंद से खाने का स्वाद लिया परंतु सारस अपनी चोंच से लोमड़ी द्वारा परोसे गई चौड़े बर्तन में खीर नहीं खा सकता था। अतः वह कुछ भी ना खा सका और भूखा पेट ही रह गया।
लोमड़ी ने अपना खाना पूर्ण रूप से खाने के पश्चात सारस को चिढ़ाने के लिए कहा, “क्यों भाई सारस तुमने तो कुछ भी नहीं खाया?”
सारस लोमड़ी द्वारा किए गए मजाक को समझ चुका था और स्वयं को अपमानित भी महसूस कर रहा था। वह इस समय कुछ भी नहीं कर सकता था इसलिए उसने लोमड़ी से कहा, “नहीं बहन, आज मुझे भूख नहीं है।”
यह सब कहकर सारस वहां से चला गया और अपने घर पहुंच कर लोमड़ी से स्वयं के अपमान का प्रतिशोध लेने का विचार करने लगा। थोड़े समय तक उसे कुछ भी समझ ना आया परंतु फिर उसके मन में एक उपाय सूझा।
सारस ने अगले दिन लोमड़ी को अपने यहां दावत पर आमंत्रित किया और कहने लगा, “मेरी प्रिय बहन लोमड़ी, तुमने मुझे अपने घर पर भोजन का निमंत्रण दिया था, परंतु इस बार मेरी बारी है।”
मैं तुम्हें अपने घर पर भोजन के लिए आमंत्रित करता हूं।
लोमड़ी ने सारस द्वारा आमंत्रण तुरंत स्वीकार कर लिया और लोमड़ी अगले दिन सारस के घर पर दावत के लिए पहुंच गई।
दावत पर पहुंचने के पश्चात सारस ने लोमड़ी को भी थोड़ी समय प्रतीक्षा करने के लिए। कुछ देर बाद सारस भी पतले मुंह वाले बर्तन में खीर परोसकर लोमड़ी के समक्ष लाया। यह बर्तन इस प्रकार का था कि इसमें सारस की चोंच तो खीर तक पहुंच सकती थी परंतु लोमड़ी का मुंह खीर तक नहीं पहुंच सकता था।
परिणाम स्वरूप, सारस ने तो खीर बड़े आनंद से खाई परंतु लोमड़ी को खीर का एक अंश तक प्राप्त ना हुआ। सारस ने पूरी तरह अपना पेट भरने के बाद लोमड़ी से कहा, “क्यों बहन तुम्हें आज भूख नहीं है क्या”?
सारस के मुख से यह बात सुनकर लोमड़ी को अपनी गलती का एहसास हो गया और वह वहां से बिना कुछ कहे चली गई।
परंतु इसके साथ ही कछुआ उत्तम स्वभाव वाला था और एक अच्छा मित्र भी। इसलिए दोनों हंस उसकी इस आदत को सहन कर लेते थे और कभी भी उस पर गुस्सा नहीं होते थे।
एक बार अत्यंत सूखा पड़ने लगा जिसके कारण झील का पानी भी सूखने लगा और धीरे-धीरे एक समय ऐसा भी आया जब झील में थोड़ा पानी ही बचा।
कछुआ समझ चुका था कि अब वह इस झील में अधिक दिन नहीं रह पाएगा और उसे कोई अन्य जगह ढूंढनी होगी।
इसलिए उसने यह बात दोनों हंसो को बहुत पहले से बता रखी थी और उन्हें कोई अन्य जगह ढूंढने के लिए भी कहा था। हंस भी कछुए की इस परेशानी से परेशान थे और उसके लिए एक अच्छा स्थान बहुत दिनों से ढूंढ रहे थे।
फिर एक दिन हंस का जोड़ा कछुए के पास आया और कहा कि मित्र हमें एक अन्य झील मिल चुकी है जहां तुम बड़े आराम से रह सकते हो मगर वह झील यहां से 50 कोस की दूरी पर है।
कछुए ने 50 कोस की दूरी सुनते ही कहा कि यदि मैं 50 कोस तय करने गया तो मेरी मृत्यु तो बीच में ही हो जाएगी और कभी भी मैं उस झील के दर्शन नहीं कर पाऊंगा।
कछुए की बात भी सही थी और यही कारण था कि हंस कछुए को उस झील तक पहुंचाने का उपाय सोचने लगे। थोड़े समय सोचने के पश्चात दोनों हंस लकड़ी का एक छड़ी लेकर कछुए के समक्ष प्रस्तुत हुए।
उन्होंने कछुए से कहा कि तुम इस छड़ी के मध्य भाग को अपने जबड़े से पकड़ लेना जबकि हम दोनों हंस छड़ी के दोनों कोनों को अपनी चोंच में फंसाकर उड़ेंगे। इससे तुम हमारे साथ हवा में उड़ते हुए उस झील तक बड़ी आसानी से पहुंच जाओगे परंतु याद रखना कुछ भी हो जाए अपना मुंह मत खोलना। यदि तुमने अपना मुंह खोला तो तुम्हारी पकड़ छड़ी से छूट जाएगी और तुम सीधा नीचे गिरोगे जिससे वही तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी।
कछुए ने दोनों सारस की बात मान ली और उनके साथ चलने के लिए तैयार हो गया। दोनों हंसो ने छड़ी के दोनों कोनों को पकड़कर उड़ना शुरू किया और उनका कछुए को ले जाने का यह तरीका सफल रहा।
कछुआ आसमान से धरती की तरफ देखकर बहुत खुश हुआ क्योंकि उसने यह दृश्य आज से पहले कभी नहीं देखा था। वह दोनों हंस मित्रों को यह बात बताना चाहता था परंतु उसे उनकी दी हुई चेतावनी याद आ जाती और वह अपने आप को बोलने से बड़ी मुश्किल से रोक पाता।
थोड़े समय पश्चात दोनों हंस और कछुआ एक कस्बे से होकर गुजर रहे थे। दोनों हंसो को कछुआ संग उड़ता देख सभी हैरान थे। यह दृश्य आज से पहले कस्बे के किसी भी व्यक्ति ने नहीं देखा था इसलिए थोड़े ही समय में कस्बे के अधिकतर लोग इकट्ठे हो गए और दोनों हंसो और कछुआ को उड़ते देख आपस में इस विषय पर बात करने लगे।
यह देख कछुआ आश्चर्यचकित हो गया और उसके मन में यह विचार आया कि यह लोग हमें इस तरह क्यों देख रहे हैं और हमारे बारे में क्या बात कर रहे हैं? उसने आज से पहले लोगों का उसके प्रति इतना आकर्षण नहीं देखा था इसलिए वह अपने आप को बोलने से नहीं रोक पाया।
जैसे ही कछुए ने बोलने के लिए अपना मुंह खोला, तभी उसकी पकड़ छड़ी से छूट गई और वह सीधा नीचे आ गिरा। बाद में, दोनों हंसो को उसके शरीर का पता तक नहीं लग पाया।
कुछ दिनों के बाद, एक दिन मगरमच्छ ने बंदर द्वारा दिए गए मीठे जामुन अपनी पत्नी को भी खिलाएं। मीठे जामुन का स्वाद चखते ही मगरमच्छ की पत्नी ने मगरमच्छ से कहा कि इतने मीठे जामुन तुम कहां से लाए हो?
तभी मगरमच्छ ने उत्तर दिया,”यह जामुन उसे उसके मित्र बंदर प्रतिदिन देता है।”
फिर मगरमच्छ की पत्नी ने कहा कि यह जामुन इतने मीठे हैं, फिर जो बंदर इन्हें हर वक्त खाता है उसका कलेजा कितना मीठा होगा।
मगरमच्छ ने कहा,”मैं कुछ समझा नहीं, तुम क्या कहना चाहती हो?”
मगरमच्छ की पत्नी ने कहा कि उसे उसके मित्र बंदर का कलेजा चाहिए।
इसके बाद मगरमच्छ ने अपनी पत्नी को बहुत समझाने की कोशिश की परंतु मगरमच्छ की पत्नी न मानी। उसे उस बंदर के कलेजे को खाने की जिद्ध थी, जिसके आगे मगरमच्छ की हर कोशिश बेकार थी।
आखिर में, मगरमच्छ अपनी पत्नी की बात को मानने के लिए तैयार हो गया और बंदर को फंसाने का उपाय सोचने लगा।
अगले दिन वह जामुन के पेड़ के पास अपने मित्र बंदर से मिलने गया और कहने लगा मेरे प्रिय मित्र, तुम हमें प्रतिदिन इतने मीठे जामुन देते हो। कल मैंने यह जामुन अपनी पत्नी को खिलाए थे, जिसे खाकर मेरी पत्नी अत्यंत प्रसन्न हुई और वह तुमसे मिलना चाहती है।
बंदर को यह सुनकर अत्यंत खुशी हुई और उसने मगरमच्छ से कहा कि मैं पानी में जाऊंगा कैसे? मुझे तैरना नहीं आता।
इसके जवाब में मगरमच्छ ने कहा कि बस इतनी सी बात। तुम मेरी पीठ पर बैठकर हमारे घर आ सकते हो।
मगरमच्छ की यह बात सुनकर बंदर भी खुश हो गया और मगरमच्छ की पत्नी से मिलने के लिए मगरमच्छ की पीठ पर बैठ गया।
नदी में थोड़ा सफर तय करने के बाद मगरमच्छ के मन में विचार आया कि क्यों ना अब बंदर को सारी बात बता दी जाए। अब तो बंदर नदी में भाग भी नहीं सकता है।
उसने अपने मित्र बंदर को सारी बात बता दी। सच्चाई जानते ही बंदर को बहुत अधिक दुख हुआ, उसने अपने मन में विचार किया कि जिसे वह अपना सबसे घनिष्ठ मित्र समझता है वही मित्र उसे मारने के लिए ले जा रहा है परंतु उसने मगरमच्छ के आगे बड़ी समझदारी से अपने दुख को नहीं जताने दिया।
वह मगरमच्छ से बड़ी खुशी के साथ बोला, अरे मित्र, बस इतनी सी बात थी, तुम मुझे यह बात पहले ही बता देते। मैं तो अपना कलेजा जामुन के पेड़ पर संभाल के रखता हूं। यदि मैं अपने साथ अपना कलेजा ऐसे ही लेकर घूमता रहा तो कोई भी इसे छीन सकता है। चलो, मुझे मेरे घर जामुन के पेड़ के पास ले चलो, मैं तुम्हें अपना कलेजा दे देता हूं।
बंदर की यह बात सुनकर मगरमच्छ प्रसन्न हुआ और मगरमच्छ बंदर के घर की ओर के लिए मुड़ गया।
मगरमच्छ के जामुन के पेड़ के पास पहुंचते ही बंदर ने मगरमच्छ की पीठ से तेजी से पेड़ की ओर छलांग मारी और पेड़ पर पहुंचते ही कहने लगा कि मूर्ख! कोई कलेजा संभाल कर रखता है क्या? कलेजे के बिना कोई भी जीवित नहीं रह सकता। आज से हम दोनों की मित्रता यहीं समाप्त हुई।
वह बहुत दिनों से भूखा था इसलिए रोटी के टुकड़ों को प्राप्त करके किसी सुरक्षित स्थान पर खाना चाहता था जहां कोई अन्य कुत्ता ना हो। उसे यह भय सता रहा था कि कोई अन्य कुत्ता उससे यह रोटी का टुकड़ा ना छीन ले। यदि कोई उससे आज यह रोटी का टुकड़ा छीन लेता है तो उसे कल की तरह रात्रि में भूखा सोना पड़ेगा।
उसके मन में विचार आया कि वह रोटी के टुकड़े को थोड़ी दूरी पर नदी के किनारे खाएगा जहां अन्य कोई कुत्ता भी नहीं होगा और वह बड़े शांत मन से रोटी को ग्रहण कर पाएगा।
वह नदी की ओर चल दिया और नदी के पास पहुंचते ही उसे नदी में किसी अन्य कुत्ते का प्रतिबिंब दिखाई दिया। असल में यह प्रतिबिंब तो उसका खुद का था परंतु वह इसे ना पहचान सका।
प्रतिबिंब को देखते ही उसने सोचा कि यदि मैं इस कुत्ते से रोटी का टुकड़ा छीन लूं तो मेरे पास दो रोटी हो जाएंगी और भूख भी पूरी तरीके से खत्म हो जाएगी।
इसके बाद वह अपने ही प्रतिबिंब को डराने के लिए जोर से भौंकने लगा। जैसे ही वह भौंका, उसके मुंह से रोटी का टुकड़ा नदी में गिर गया। नदी का तेज बहाव होने की वजह से वह टुकड़ा पल भर में उसकी पहुंच से बहुत दूर चला गया।
रोटी के टुकड़े के गिरते ही उसे समझ आ चुका था की नदी में कोई अन्य कुत्ता नहीं था बल्कि उसका ही प्रतिबिंब उसने देखा था। उसे यह भी समझ आ गया कि लालच के कारण ही उसके द्वारा प्राप्त किया गया रोटी का टुकड़ा उसे ना मिल पाया और उसे उस रात भूखे पेट ही सोना पड़ा।
शिक्षा – जितना मिले उसी में संतोष करना चाहिए वरना लालच के कारण मिला हुआ भी चला जाता है।
कौवा और कव्वी को समझ नहीं आता था कि जब भी भोजन की खोज में, वे दोनों घोंसले से बाहर जाते हैं तो उनके अंडे कौन ले जाता है और वे इसे अपनी नियति समझकर हताश हो जाते थे।
एक बार जब कव्वी ने घोसले में अंडे दे रखे थे तो वे दोनों उन अंडों का ख्याल बड़े ध्यान से रख रहे थे। यही कारण था कि वे अंडे अभी तक सांप का भोजन नहीं बन पाए थे।
परंतु एक दिन जब कौवा और कव्वी भोजन ढूंढने निकले थे अर्थात वे दोनों घोसले में उपस्थित नहीं थी तो सांप मौका पाकर उनके घोसले में आ गया और वहां से अंडों को अपने बिल में ले जाने लगा।
चूंकि कौवा और कव्वी को भोजन बड़ी जल्दी मिल चुका था इसलिए वे अपने घोंसले की तरफ बहुत जल्दी पहुंच गए और उन्होंने सांप को उनके अंडे उसके बिल में ले जाते हुए देख लिया। इससे पहले कि वे दोनों कुछ भी कर पाते तब तक सांप अपने बिल में सभी अंडे ले जा चुका था।
सांप के द्वारा अंडे ले जाने के बाद कव्वी बहुत दुखी हुई और फूट-फूटकर रोने लगी। उसे कौवे ने बहुत प्रयत्न करने के बाद समझाया कि अब हमें अपने शत्रु का पता लग चुका है और भविष्य में हम सतर्क रहेंगे और सांप के लिए कोई उपाय भी सोचेंगे।
कुछ दिनों बाद सब कुछ पहले जैसा हो गया और इस बार कौवे ने बरगद के पेड़ में ही ऊपर की टहनी में अपना घोंसला बनाया और कव्वी से कहा की इस बार सांप हमारे घोंसले में नहीं आएगा क्योंकि यह घोंसला सबसे ऊपर की टहनी पर बना है जिसके कारण आसमान से साफ-साफ घोंसले को देखा जा सकता है।
यदि सांप हमारे घोंसले में प्रवेश करने की कोशिश करता है तो उसे ऊपर उड़ती हुई चील देख लेंगी और तुम तो जानती हो कि चील सांप की बैरी होती है। अतः सांप यहां नहीं आएगा और हमारे अंडे सुरक्षित रहेंगे।
कव्वी ने कौवे की बात मानकर नए वाले घोसले में अंडे दिए और वे अंडे न सिर्फ सुरक्षित रहे बल्कि उसमें से बच्चे भी निकले।
वहीं सांप कौवा और कव्वी के पुराने वाले घोसले में जाता तो उसे घोंसला हमेशा खाली मिलता और बरगद का पेड़ विशाल होने के कारण ऊपर वाला घोसला नहीं दिखता जिसमें कौवा, कव्वी और उनके बच्चे रहते थे। उसे लगा कि कौवा और कव्वी उसके आतंक से भयभीत होकर कहीं दूसरी जगह चले गए हैं और वे अब यहां कभी नहीं आएंगे।
कुछ दिन बाद सांप ने देखा कि कौवा और कव्वी बरगद के पेड़ से ही अपनी उड़ान भरते हैं और शाम के समय भी उसी बरगद के पेड़ पर आ जाते हैं। वह समझ गया कि कौवा और कव्वी ने अपना घोंसला उसी पेड़ पर किसी और शाखा पर बना रखा है।
अगले दिन कौवा और कव्वी की उड़ान भरने के बाद सांप पेड़ पर कौवा और कव्वी द्वारा बनाया गया नया घोंसला ढूंढने निकल पड़ा और उसने कौवा और कव्वी का नया घोंसला ढूंढ निकाला। घोंसले में उसने कौवा और कव्वी के तीन बच्चों को देख लिया। सांप ने देखते ही एक-एक करके तीनों बच्चों को निगल लिया और उसके पश्चात वह तुरंत अपने बिल की ओर लौट गया।
जब कौवा और कव्वी अपने घोंसले में लौटे तो उन्हें घोंसला खाली मिला। वे घोंसले में अपने बच्चों के बिखरे हुए पंखों को देखते ही समझ गए कि सांप ने उनका यह घोंसला ढूंढ निकाला है और उसने उनके बच्चों को मार भी दिया है।
यह सब देखते ही कव्वी को अत्यधिक दुख हुआ और वह कौवे से रोते हुए कहने लगी कि क्या हर बार हमारे बच्चे सांप का भोजन बनते रहेंगे? क्या हम सांप को रोकने के लिए कुछ नहीं कर सकते और क्या इस समस्या से हम कभी नहीं निकल पाएंगे?
इसके जवाब में कौवे ने कहा कि सांप को सबक सिखाना अत्यंत जरूरी है। हमें इस विपत्ति में अपना विवेक नहीं खोना चाहिए। सांप जैसे दुष्ट से निपटने के लिए हमें अपने मित्रों की आवश्यकता होगी इसलिए हम अभी अपने मित्र लोमड़ी के पास चलते हैं जो हमें इस विकट परिस्थिति से निकलने का उपाय बताएगी।
वे दोनों तुरंत लोमड़ी के पास पहुंचने के लिए निकल पड़े और वहां पहुंचते ही उन्होंने लोमड़ी को अपनी दुख भरी कहानी सुनाई। लोमड़ी ने उन दोनों को सांत्वना दी और उसने उन्हें दुष्ट सांप को सबक सिखाने का उपाय भी बताया।
लोमड़ी ने कौवे को उपाय दिया कि इस राज्य की राजकुमारी अपनी सखियों के साथ पास के सरोवर में जल क्रीड़ा करने आती है। उनकी सखियों के अलावा कुछ सैनिक भी उनकी रक्षा के लिए वहां होते हैं। तुम वहां जाकर राजकुमारी की किसी भी कीमती वस्तु को चुराकर उनके सैनिकों को दिखाते दिखाते पेड़ के पास ले आना और पेड़ के पास पहुंचते ही उस कीमती वस्तु को सांप के बिल में डाल देना।
उपाय सुनते ही कौवा और कव्वी खुश हुए और लोमड़ी को धन्यवाद देते हुए वहां से अपने घोंसले की ओर लौट गए।
अगले दिन कौवे ने ऐसा ही किया और वह सरोवर के लिए निकल पड़ा। पास के सरोवर में पहुंचते ही वह वहां एक पेड़ की शाखा पर बैठ गया और जैसे ही राज्य की राजकुमारी स्नान करने सरोवर में उतरी तो उसने सर्वप्रथम राजकुमारी और उनकी सखियों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए कांव कांव करना शुरू किया।
अपनी ओर ध्यान आकर्षित करने के पश्चात कौवा मौका पाकर राजकुमारी का सबसे कीमती हार (जो उनके वस्त्रों के साथ सरोवर के तट पर रखा था) अपनी चोंच में दबाकर आसमान में उड़ने लगा।
कौवे के इतना करते ही राजकुमारी की सहेलियां चिल्लाने लगी,”देखो वो कौवा राजकुमारी का हार चुराकर ले जा रहा है।”
जब सैनिकों ने आसमान में कौवे के मुंह में हार देखा तो वे भी आश्चर्यचकित रह गए और कौवे का पीछा करने लगे। कौवे ने अपनी गति कम रखी जिससे राजकुमारी के सैनिक उसका पीछा तब तक करते रहे जब तक वह अपने घोंसले के पास ना पहुंच जाए।
जैसे ही कौवा बरगद के पेड़ के पास पहुंचा तो उसने सांप के बिल में वह हार डाल दिया और खुद अपने घोंसले में चले गया। जैसे ही राजकुमारी के सैनिकों ने बिल में झांका तो उन्हें सांप दिखा और उसके बगल में ही राजकुमारी का हार भी था।
सैनिक अपने भाले से राजकुमारी के हार को सांप के बिल से निकालने की कोशिश करने लगे वैसे ही सांप की नींद खुल गई। सांप भाले को देख डर गया और बात को जानने के लिए जैसे ही बाहर निकला वैसे ही सैनिकों ने उस पर अपने अपने भालों से प्रहार करने प्रारंभ कर दिए। सैनिकों द्वारा भालों से प्रहार करने के कुछ समय उपरांत सांप की वही मृत्यु हो गई।
उसने सोचा कि यदि वह इस बरगद के पेड़ के आसपास जाल बिछा दे तो एक ही बार में अनेक पक्षी फंस जाएंगे और उसे कुछ दिनों तक शिकार करने की आवश्यकता भी नहीं पड़ेगी।
उसने योजना के अनुसार ऐसा ही किया और बरगद के पेड़ के पास चावल के कुछ दाने गिरा दिए और उसके पश्चात वहां जाल भी बिछा दिया। चावल के दाने गिराने और जाल बिछाने के पश्चात वह थोड़ी दूरी पर छुप कर बैठ गया और पक्षियों के फंसने का इंतजार करने लगा।
कुछ देर प्रतीक्षा करने के पश्चात वहां कबूतरों का एक झुंड (जो खाने की तलाश कर रहा था) बरगद के पेड़ पर आकर बैठ गया। कबूतरों के झुंड ने देखा कि कुछ ही दूरी पर चावल के बहुत सारे दाने पड़े हुए हैं।
इतने सारे चावल के दाने एक जगह पर एक साथ पड़े देखकर कबूतरों के राजा को हैरानी हुई और उन्हें इसमें कुछ संदेह भी हुआ। परंतु कबूतर बहुत समय पहले से भोजन की तलाश में निकले थे और उन्हें दाने का एक अंश भी प्राप्त नहीं हुआ था।
इसी कारण कबूतरों के राजा ने भी उन्हें चावल के दाने खाने की स्वीकृति दे दी और सभी एक साथ चावल के दानों की ओर चल पड़े। जैसे ही वे चावल के दाने खाने के लिए जमीन पर आए वैसे ही वे शिकारी द्वारा बिछाए गए जाल में फंस गए।
जाल में फंसने के पश्चात सभी कबूतर अलग-अलग दिशाओं में जोर लगाकर अपने अपने हिसाब से निकलने की कोशिश करने लगे परंतु उनमें से कोई भी जाल से ना निकल पाया और वे शिकारी द्वारा बिछाए गए जाल में और ज्यादा फंसते जा रहे थे।
कबूतरों का राजा अत्यंत ही बुद्धिमान था और वह जानता था कि यदि सभी कबूतर अलग-अलग दिशाओं में सिर्फ खुद को बचाने के लिए जोर लगाएंगे तो वह कभी भी इस जाल से नहीं निकल सकते।
उसने सबको रुकने के लिए कहा और सभी राजा की बात मानकर शांत हो गए। सभी कबूतरों के शांत होने के पश्चात उनके राजा ने उनसे कहा कि यदि तुम अलग-अलग दिशा में जोर लगाओगे तो कभी भी इस जाल से नहीं निकल सकते और इसके अलावा तुम इस जाल में उतना फंसते जाओगे।
यदि तुम्हें जोर लगाना है तो सभी कबूतर एक साथ एक दिशा में जोर लगाओ और जाल समेत उड़ चलो। राजा की बुद्धिमत्ता का पता सभी कबूतरों को पहले से था इसलिए वह अपनी राजा की बात मानकर एक ही दिशा में आसमान की ओर जोर लगाने लगे।
सभी कबूतरों के एक ही दिशा में जोर लगाने की वजह से वे सभी एक साथ जाल समेत ही उड़ गए। जैसे ही वे उड़ने लगे तो शिकारी देखता ही रह गया और उनका पीछा करने लगा। थोड़ी दूरी तक पीछा करने के पश्चात सभी कबूतर शिकारी की पहुंच से बहुत ज्यादा दूर चले गए।
शिकारी की पहुंच से दूर जाने के पश्चात वे सभी एक सुरक्षित स्थान पर पहुंचे जहां उनके राजा ने उन्हें अपने मित्र चूहे के घर की ओर चलने को कहा और सभी कबूतरों ने ऐसा ही किया।
चूहे के घर पहुंचने के पश्चात राजा ने अपने मित्र को सारी बताई। राजा की बात सुनने के बाद चूहे ने अपने अन्य साथियों को बुलाया जिसके बाद चूहा और उसके मित्र कबूतरों का जाल काटने में लग गए।
कुछ ही समय में चूहे और उसके अन्य साथियों ने मिलकर जाल को पूरी तरह काट दिया और अब सभी कबूतर पूर्ण रूप से आजाद थे। आजाद होने के पश्चात सभी कबूतरों ने चूहों का आभार व्यक्त किया और वे भोजन की तलाश में फिर से निकल पड़े।
बगुला हर समय यह सोचता कि कैसे बिना परिश्रम किए उसे प्रतिदिन भोजन मिल जाए। वह हर दिन इस चीज के बारे में विचार करता और उपाय ढूंढने में अपना समय व्यर्थ भी करता परंतु कभी भी उसे ऐसा उपाय ना मिल पाया कि जिससे वह बिना मेहनत किए भोजन प्राप्त कर सके।
फिर एक दिन बगुले ने एक ऐसा उपाय ढूंढ लिया जिससे प्रतिदिन उसे बिना मेहनत किए भोजन की प्राप्ति हो जाएगी और वह अपना जीवन बड़े सुखमय तरीके से यापन कर सकेगा।
बगुले उपाय को अमल में लाया और तालाब के किनारे खड़े होकर जोर-जोर से आंसू बहाने लगा।
बगुले के ऐसा करने के कुछ समय पश्चात वहां एक केकड़ा आया और बगुले से कहने लगा कि क्या हुआ बगुले भाई, तुम इतने उदास क्यों हो? तुम्हारा काम तो मछलियों को पकड़ना है फिर तुम अपना काम छोड़कर यहां आंसू क्यों बहा रहे हो?
बगुले ने रोते हुए उत्तर दिया कि क्या बताऊं तुम्हें भाई केकड़े। मैंने अपनी जिंदगी में मछलियों का बहुत शिकार कर लिया और अब इससे अधिक पाप मैं नहीं कर सकता। मुझे अब ज्ञान की प्राप्ति हो चुकी है इसलिए मैं पास आई हुई मछलियों को भी नहीं पकड़ रहा और उन्हें ऐसे ही जाने दे रहा हूं।
केकड़े ने बगुले से कहा की यदि आप शिकार नहीं करेंगे तो भोजन कैसे मिलेगा और यदि भोजन नहीं मिलेगा तो जीवित कैसे रहोगे?
इस पर बगुले ने उत्तर दिया कि ऐसा जीवन जीकर करना भी क्या है और वैसे भी कुछ दिनों बाद तो हम सब मरने ही वाले हैं। मुझे एक बहुत बड़े महात्मा ने बताया है कि यहां 12 साल का अत्यंत लंबा अकाल पड़ने वाला है। उन महात्मा के मुख से निकली हुई वाणी कभी भी गलत नहीं होती है और उन्होंने आज तक जो भी भविष्यवाणी की है, वह हमेशा सत्य ही निकली है।
बाद में, केकड़ा तलाब के अन्य जीवो को बगुले के हृदय परिवर्तन के बारे में बताता है और साथ में उस 12 साल के अकाल की भी बात उनके समक्ष रखता है।
थोड़े समय पश्चात तलाब के सभी जीव बगुले के पास जाते हैं और उससे इस समस्या से निकलने का उपाय ढूंढने को कहते हैं।
बगुला उनसे कुछ समय मांगता है और फिर थोड़े समय पश्चात उनके समक्ष उपस्थित होकर कहता है कि उसे एक ऐसे तालाब के बारे में पता है जिसमें पहाड़ से एक झरना बहकर गिरता है और वह तालाब भी कभी नहीं सूखता।
बगुले की यह बात सुन सभी जीव अत्यंत प्रसन्न हो जाते हैं और बगुले की जय-जयकार करने लगते हैं।
फिर उनमें से कुछ जीव बगुले से कहते हैं कि हम उस तलाब तक कैसे पहुंच पाएंगे? इस विकट समस्या का भी कोई उपाय बता दीजिए।
इसके जवाब में बगुला उनसे कहता है कि तुम लोग चिंता मत करो, मैं हूं ना। मैं प्रतिदिन एक-एक करके तुम लोगों को अपनी पीठ पर बैठाकर, उस तालाब तक पहुंचाता रहूंगा। मैं अपना बचा हुआ शेष जीवन सबकी मदद करने में लगाना चाहता हूं और अब यही मेरे जीवन का उद्देश्य भी है।
बगुले द्वारा इस समस्या का हल देते ही तलाब के सभी जीव खुश हो गए और वे बगुले की जय जयकार का नारा और ऊंचे स्वर में लगाने लगे।
अगले दिन से बगुले द्वारा तालाब के जीवों को दूसरे तलाक तक ले जाने काम प्रारंभ हुआ। बगुला प्रतिदिन तलाब के किसी भी एक जीव को अपने पीठ पर बैठा कर ले जाता और थोड़ी दूरी पर एक चट्टान के पास ले जाकर उन्हें मारकर खा जाता। कभी-कभी जब बगुले को भूख अत्यधिक लगती तो वह तलाब के दो जीवों को ले जाता और उस दिन दो बार मांस को ग्रहण करता परंतु इसके लिए उसे दो बार चक्कर लगाना पड़ता था।
यह सिलसिला कई दिनों तक चलता रहा जिसके कारण तालाब में जीवों की संख्या लगातार कम होने लगी और चट्टान के पास मरे हुए जीवों की हड्डियों की भरमार होने लगी।
कुछ दिनों बाद ही बगुले भगत की सेहत में भी सुधार होने लगा और वह पहले से अत्यधिक मोटा हो गया। इसके साथ ही उसके मुख पर लाली भी आने लगी जिसे देखकर तालाब के अन्य जीव कहने लगे,”यह देखो पुण्य कार्य को करने का फल। बगुले द्वारा पुण्य कार्य का फल उसके शरीर में साफ दिख रहा है।”
बगुला भगत तलाब में रहने वाले जीवों की यह बात सुनकर मन ही मन प्रसन्न होता और सोचता कि इस तलाब में कितने मूर्ख जीव रहते हैं जो उसके द्वारा कही हुई बातों को सच मान बैठे वो भी बिना किसी प्रमाण के।
कुछ दिनों तक इसी प्रकार बगुले द्वारा दूसरे तलाब तक ले जाने का ढोंग चलता रहा और फिर एक दिन केकड़े ने बगुले से आकर कहा कि बगुले भाई, मेरा उस तालाब तक जाने का समय कब आएगा।
केकड़े के सवाल का जवाब देते हुए बगुले ने कहा कि केकड़े भाई आज आपकी ही बारी है जिन्हें में उस तालाब तक ले जाऊंगा।
यह सुनते ही केकड़ा अत्यंत खुश हुआ और बगुले की पीठ पर बैठकर बगुले से चलने के लिए कहने लगा। बगुले को भी उस समय भूख लग रही थी इसलिए वह भी चलने के लिए निकल पड़ा।
केकड़ा बगुले की पीठ पर बैठकर उस तालाब के सपने देखने लगा और मन ही मन बहुत अधिक प्रसन्न होने लगा। थोड़ा सफर तय करने के पश्चात वे उस चट्टान के पास पहुंचे जहां कंकालों का ढेर लगा था।
कंकाल का ढेर देखकर केकड़े ने बगुले से पूछा कि बगुले भाई, वह तलाब यहां से कितनी दूरी पर है और हमें वहां पहुंचने तक कितना समय लगेगा?
केकड़े की यह बात सुनकर बगुला जोर जोर से हंसने लगा और कहने लगा कि ऐसा कोई तालाब है ही नहीं और यह कंकाल के ढेर तालाब में रहने वाले जीवो के ही हैं।
यह सुनते ही केकड़ा बहुत ज्यादा घबरा गया परंतु उसने अपने विवेक को नहीं खोया और तुरंत ही अपने पंजों से बगुले की गर्दन को पूरी जान से दबा दिया। उसने बगुले की गर्दन को तब तक दबाए रखा जब तक बगुला अपनी जान से हाथ ना धो बैठा।
बाद में, वह वहां से बगुले का कटा हुआ सिर लेकर तलाब की तरफ निकल पड़ा और तालाब में पहुंचकर सभी जीवों को बगुले की सच्चाई से अवगत कराया।
उसने हाथी के मांस को खाने के लिए हाथी के मृत शरीर पर दांत गड़ाया, पर वह हाथी की मोटी चमड़ी को अपने दांतों से चीरने में नाकाम रहा। उसने हाथी के मांस को चीरने की कई बार कोशिश करें परंतु हर बार वह सफल रहा।
बार बार विफल होने के बाद वह हाथी की मोटी चमड़ी को चीरने का उपाय सोचने लगा। जैसे ही वह कुछ उपाय सोच पाता कि इतने में वहां एक शेर आ गया।
शेर को देखते ही सियार ने शेर से कहा कि आइए राजा जी! मैं आपका ही इंतजार कर रहा था। देखिए, मैंने आपके लिए इस हाथी को मारकर यहां रखा है ताकि आप इसका मांस ग्रहण कर सकें।
सियार के इतना कहते ही शेर ने उससे कहा कि मैं किसी और के द्वारा मारे गए जीव को नहीं खाता हूं, इस हाथी का मांस तुम खुद ही खाओ। इतना कहते ही शेर वहां से चला गया।
शेर के द्वारा हाथी का मांस ना खाने के कारण सियार मन ही मन अत्यंत प्रसन्न हुआ परंतु उसकी समस्या का समाधान अभी तक नहीं हो पाया था इसलिए वह फिर से हाथी की मोटी चमड़ी को चीरने का उपाय सोचने लगा।
वह फिर से कुछ उपाय सोच पाता कि तभी उसने वहां एक बाघ को तेजी से आते हुए देखा। वह समझ चुका था कि बाघ भी हाथी को खाने की मंशा से आ रहा है।
बाघ के वहां पहुंचते ही उसने बाघ से कहा कि आप यहां कैसे? यदि आपको अपना जीवन प्यारा है तो यहां से तुरंत चले जाओ। अन्यथा यदि आपको यहां शेर ने देख लिया तो आपकी मृत्यु निश्चित है। शेर ने ही इस विशाल हाथी का शिकार किया है और मुझे इस मरे हुए हाथी की रखवाली करने को कहा है और किसी को भी इस मरे हुए हाथी के पास आने की अनुमति नहीं है।
सियार के इतना कहते ही बाघ भयभीत हो गया और अपनी जान बचाने के लिए तेजी से किसी दूसरी जगह की ओर भागने लगा। बाघ के भागने के कुछ समय पश्चात ही सियार को वहां एक चीता दिखाई दिया जिसे देख उसे एक उपाय सूझा।
चीता के वहां पहुंचते ही सियार ने उससे कहा कि मित्र तुम यहां कैसे? तुम तो बड़े किस्मत वाले हो जो बड़े आराम से घूम रहे हो पर मुझे देखो, मुझे शेर ने इस मरे हुए हाथी की रखवाली करने के लिए बोला है और तब से मैं यहां पहरा दे रहा हूं।
खैर छोड़ो इन बातों को, तुम मुझे भूखे प्रतीत हो रहे हो और ऐसा लग रहा है कि भोजन की तलाश में ही तुम इधर से उधर घूम रहे हो। यदि तुम चाहो तो इस मरे हुए हाथी का मांस खा सकते हो। मैं थोड़ी दूरी पर पहरा दे देता हूं, यदि शेर आएगा तो मैं तुम्हें तुरंत सूचित कर दूंगा और तुम यहां से भाग जाना।
सियार के इतना कहते ही चीते ने सर्वप्रथम शेर के डर से मना कर दिया परंतु सियार के बार-बार विश्वास दिलाने के पश्चात वह मान गया।
चीते ने जैसे ही हाथी का मांस खाने के लिए हाथी की मोटी चमड़ी फाड़ दी, वैसे ही सियार ने भागो! शेर आया, शेर आया कहना शुरू कर दिया।
चीते ने जैसे ही सियार द्वारा यह बात सुनी, वह तुरंत बिना कुछ देखें वहां से भाग गया। चीते के जाने के बाद सियार अत्यंत प्रसन्न हुआ और उसे कई दिनों तक भोजन की तलाश नहीं करनी पड़ी।
नदी के पास पहुंचने के पश्चात वह सोचने लगी कि पानी किस तरह पिया जाए क्योंकि चींटी सीधे नदी में पानी पीने के लिए नहीं जा सकती थी। चींटी को एक उपाय सूझा और वह एक छोटे पत्थर पर चढ़ गई और नदी में पानी पीने के लिए कोशिश करने लगी परंतु उसकी यह योजना विफल रही और वह सीधा नदी में गिर गई।
उसी नदी के किनारे पर एक पेड़ था जिसमें एक कबूतर रहता था। वह कबूतर बहुत ही दयालु और अच्छे स्वभाव वाला था इसीलिए उसने जैसे ही चींटी को नदी में बहते हुए देखा तो तुरंत ही पेड़ से एक पत्ता तोड़कर चींटी के पास फेंक दिया।
चींटी कबूतर द्वारा फेंके गए पत्ते पर चढ़ गई और थोड़े ही समय बाद वह पत्ता थोड़ी दूर जाकर नदी के किनारे पर पहुंच गया जिससे चींटी भी जमीन पर आ गई और उसकी जान बच गई।
कुछ दिनों पश्चात एक शिकारी ने कबूतर को पकड़ने के लिए उसके पेड़ के निकट दाने डाल कर जाल बिछा दिया और खुद थोड़ी दूरी पर जाकर दूसरे पेड़ के पीछे छुप गया।
जैसे ही कबूतर की दृष्टि दानों पर पड़ी, वह दाना चुगने के लिए नीचे आया और शिकारी द्वारा बिछाए गए जाल में आकर फंस गया।
जिस चींटी की कबूतर ने जान बचाई थी, वह भी यह दृश्य देख रही थी और कबूतर को फंसा देख उसे बचाने के लिए उपाय सोचने लगी। चींटी को एक उपाय सूझा और जैसे ही शिकारी कबूतर का जाल पकड़कर आगे चलने लगा वैसे ही चींटी ने वहां तेजी से पहुंचकर शिकारी के पैर पर जोर से काटा।
चींटी द्वारा जोर से काटने के कारण शिकारी ने अपना हाथ से जाल को छोड़ दिया और अपने पांव की तरफ देखने लगा। हाथ से जाल के छूटते ही कबूतर को भागने का मौका मिल गया और वह इस मौके का फायदा उठाते हुए तेजी से आसमान की ओर उड़ गया।
एक बार गंगाधर को व्यापार में बहुत अधिक हानि हुई जिसके कारण उसकी कमाई हुई संपत्ति भी व्यापार में हानि होने के कारण चली गई। हानि इतनी हुई कि उसका घर भी चला गया और अब वह पूरी तरह से गरीब हो चुका था।
उसने निर्णय लिया कि अब वह इस गांव में और अधिक नहीं रहेगा और शहर जाकर कोई दूसरा व्यापार शुरू करेगा और बाद में जब उसके पास धन हो जाएगा तो वह यहां वापस आकर रहेगा।
उसके पास जो था वह पहले ही सब कुछ व्यापार में हानि होने के कारण जा चुका था, मगर उसके पास अपने पुरखों की विरासत में दी गई एक लोहे की कुल्हाड़ी बची थी, जिसका शहर में कोई उपयोग नहीं था।
उसने अपने मन में विचार किया कि मैं इस लोहे की कुल्हाड़ी का क्या करूं, इसे तो मैं बेच भी नहीं सकता क्योंकि यह तो मेरे पुरखों की विरासत में दी गई अनमोल वस्तु है और शहर में भी नहीं ले जा सकता क्योंकि शहर में इसका कोई भी उपयोग नहीं है।
बहुत सोचने के बाद उसने यह लोहे की कुल्हाड़ी उसी गांव में रहने वाले अपने मित्र को दे दी और अपने मित्र से कहा कि मित्र, मैं इस कुल्हाड़ी को नहीं बेच सकता क्योंकि यह मेरे पुरखों की विरासत है और शहर में इसका कोई उपयोग भी नहीं है इसलिए जब तक मैं गांव में नहीं लौटता तब तक तुम इस कुल्हाड़ी को संभाल कर रखना। जब मैं गांव में लौटूंगा तब वह यह कुल्हाड़ी मांग लेगा।
इतना कहते ही उसके मित्र ने उसे आश्वासन दिया कि वह इस कुल्हाड़ी को संभाल कर रखेगा और उसके गांव लौटने पर उसे यह कुल्हाड़ी सौंप देगा।
गंगाधर के शहर जाने के पश्चात उसका व्यापार वहां फलने फूलने लगा और उसे काफी फायदा हुआ जिससे वह पहले की तरह धनवान हो गया। शहर से काफी ज्यादा धन कमाने के बाद वह अपने गांव लौटने की सोचने लगा और कुछ दिनों बाद शहर से अपने गांव लौट गया।
गांव में लौटते ही वह सर्वप्रथम अपने मित्र से मिलने गया और शहर में उसके अनुभव के बारे में बताने लगा। उसने अपने मित्र को उसके द्वारा शहर में व्यापार करके कमाए हुए धन के बारे में भी बताया जिसे सुनकर उसका मित्र अत्यंत ही प्रसन्न हुआ।
गंगाधर को अपनी विरासत में मिली कुल्हाड़ी शहर जाने के बाद भी अच्छे से याद थी इसलिए उसने अपने मित्र से उस कुल्हाड़ी को देने का आग्रह किया।
उसका मित्र बहुत अधिक लालची था और उसे वह कुल्हाड़ी भी पसंद आ गई थी इसलिए उसने उस कुल्हाड़ी को ना देने का मन ही मन निश्चय किया और अपने मित्र से कहा,”तुम्हें कैसे बताऊं मित्र मैं, तुमने मुझे जो कुल्हाड़ी दी थी, उसे तो एक चूहा खा गया।”
मित्र के इतना कहते ही गंगाधर समझ गया कि उसका मित्र कुल्हाड़ी ना देने के लिए बहाना बना रहा है और उसने भी बिल्कुल शांत तरीके से अपने मित्र से कहा,”कोई बात नहीं मित्र, कुल्हाड़ी तो चूहे ने खाई है इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है। तुमने तो कुल्हाड़ी को संभाल ही कर रखा था परंतु चूहे की दृष्टि उस पर पड़ गई और उसने वह कुल्हाड़ी खा ली।
उसके बाद गंगाधर ने अपने मित्र से कहा कि मैं थोड़ी देर बाद नदी में स्नान करने जा रहा हूं, तुम चाहो तो अपने पुत्र को भी मेरे साथ नदी में स्नान करने के लिए भेज दो, वह भी वहां नहा आएगा।
गंगाधर का मित्र गंगाधर के स्वभाव को अच्छे से जानता था इसलिए उसने बिना कुछ बोले अपने पुत्र को गंगाधर के साथ नदी में स्नान करने के लिए भेज दिया।
गंगाधर के जाने के बाद उसका मित्र मन ही मन अत्यंत खुश हुआ और अपने मन में विचार करने लगा कि कितना मूर्ख है ये गंगाधर, जो उसकी कही हुई बातों को सच मान बैठा और यहां से बिना कुछ कहे ही चले गया। साथ में उसके पुत्र को भी नदी में स्नान कराने ले जा रहा है।
इतना कहते ही गंगाधर का मित्र अपने काम में लग गया। वहीं दूसरी ओर, गंगाधर ने अपने मित्र के पुत्र को नदी में स्नान कराने के पश्चात उसे नदी के किनारे वाली गुफा में ही छिपा दिया और वह वहां से बाहर न निकल पाए, इसके लिए उसने गुफा से बाहर निकलने वाले पथ पर एक बड़ा सा पत्थर भी रख दिया।
बच्चे को गुफा में बंद करने के पश्चात वह तुरंत अपने मित्र के घर लौट गया। जैसे ही उसके मित्र ने गंगाधर को अकेले आते देखा तो उसने गंगाधर से पूछा कि मेरा पुत्र भी तो तुम्हारे साथ गया था, इस समय वह कहां है?
तब गंगाधर ने बड़े दुख और नीचे स्वरों में उत्तर दिया कि तुम्हारे लड़के को नदी में नहाते वक्त बाज उठाकर ले गया है। इससे पहले कि मैं कुछ कर पाता, बाज तुम्हारे पुत्र को बहुत अधिक दूर ले जा चुका था।
इस पर गंगाधर के मित्र ने क्रोधित स्वरों में कहा,”मेरे पुत्र को बाज कैसे उड़ा के ले जा सकता है? बाज इतनी भारी चीज को उड़ाके ले जा ही नहीं सकता। तुम झूठ बोल रहे हो, तुमने मेरे पुत्र को कहीं छुपा दिया है और अब मुझसे बाज का बहाना बना रहे हो।”
इतना कहते ही गंगाधर ने फिर से नीचे स्वरों में उत्तर दिया कि मित्र मैं सच कह रहा हूं नदी में नहाते समय कहीं से उड़ता हुआ बाज आया और देखते ही देखते तुम्हारे पुत्र को उड़ाके ले गया।
दोनों की वार्तालाप सुनकर आसपास के अन्य लोग भी वहां एकत्रित होने लगे उन लोगों को एकत्रित हुआ देखकर गंगाधर के मित्र ने लोगों से कहा कि मैंने अपने पुत्र को इसके साथ नहाने भेजा था परंतु यह यहां अकेले आया है और जब मैं इससे अपने पुत्र के बारे में पूछ रहा हूं तो यह कह रहा है कि उसे तो बाज उड़ाके ले गया। अब आप लोग बताओ कि एक बच्चे को बाज कैसे उड़ा के ले जा सकता है।
इतने में फिर से गंगाधर ने यही उत्तर दिया कि मैं सच बोल रहा हूं। जब मैं और इसका पुत्र नदी में स्नान कर रहे थे, तभी कहीं से बाज आया और उसके पुत्र को उड़ाकर ले गया।
गंगाधर के मित्र ने गंगाधर से बार-बार अपने लड़के के बारे में पूछा मगर गंगाधर ने हर बार एक ही उत्तर दिया कि नदी में नहाते वक्त बाद आया और उसके लड़के को उड़ाके ले गया।
गंगाधर के बार-बार अपनी बात पर अड़े रहने के कारण बात राजमहल तक पहुंची और दोनों धर्म अधिकारियों के सामने राजमहल में उपस्थित हुए। सबसे पहले गंगाधर के मित्र ने राज महल के धर्म अधिकारियों से कहा कि इस गंगाधर ने उसके पुत्र को कहीं छुपा रखा है और जब उसने अपने पुत्र के बारे में पूछा तो यह बार-बार कह रहा है कि नदी में स्नान करते समय उसे बाज उड़ाके ले गया। अब आप बताइए कि बाज एक लड़के को कैसे उड़ा के ले जा सकती है?
इसके बाद गंगाधर ने अपना पक्ष रखा और कहा कि जब लोहे की कुल्हाड़ी को चूहा खा सकता है तो एक बच्चे को बाज क्यों नहीं उड़ा के ले जा सकता?
इसके बाद धर्म अधिकारियों ने गंगाधर से पूरी बात को स्पष्ट रूप से बताने को कहा, तब गंगाधर ने उन्हें शुरू से सभी बातों का स्पष्टीकरण दिया और उन्हें पूरी कहानी बता दी। उसके पश्चात सभी धर्म अधिकारी हंसने लगे और वे दोनों मित्रों को समझाने लगे। धर्म अधिकारियों के समझाने के बाद दोनों मित्र समझ गए, गंगाधर ने उसके मित्र को उसका पुत्र एवं उसके मित्र ने गंगाधर को उसकी विरासती कुल्हाड़ी दे दी।
वह हताश होकर धीरे धीरे आगे बढ़ने लगी और अपने मन में विचार करने लगी कि शायद उसे आज का भोजन नहीं मिल पाएगा। वह यह सब सोच ही रही थी कि उतने में उसे थोड़ी दूरी पर पेड़ के ऊपर एक कौवा बैठा दिखाई दिया, जिसकी चोंच में एक रोटी का टुकड़ा था।
Panchtantra ki Kahaniya
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लोमड़ी रोटी के टुकड़े को देखते ही अत्यंत खुश हो गई और रोटी के टुकड़े को प्राप्त करने के लिए योजना बनाने लगी। वह विचार करने लगी कि यदि वह किसी तरह से कौवे के मुंह से रोटी का टुकड़ा नीचे जमीन पर गिरवा देती है तो वह उस रोटी के टुकड़े को बड़ी आसानी से प्राप्त कर सकती हैं और आज अपना पेट भर सकती है।
कुछ समय लोमड़ी के विचार करने के पश्चात, लोमड़ी को एक उपाय सूझा और वह कौवे के पास गई। कौवे के पास जाते ही उसने कौवे से कहा कि कौवे भाई! तुम कितने सुंदर हो। तुम्हारी आवाज कितनी मीठी है, जिसे सुनने का मन हमेशा करता रहता है। अगर तुम मुझे अपनी थोड़ी मीठी आवाज सुना देते हो तो मेरा आज का दिन और अच्छा हो जाएगा।
मूर्ख कौवा अपनी प्रशंसा सुनकर अत्यंत प्रसन्न हुआ और अपने मन में विचार करने लगा कि वह कितना सौंदर्यवान है और साथ में उसकी आवाज भी कितनी अच्छी है जिसे हर कोई सुनना चाहता है।
कौवे के इतना सोचते ही लोमड़ी ने कौवे से कहा कि क्या आप मुझे अपनी आवाज नहीं सुनाएंगे? क्या मुझे आपकी आवाज सुने बिना ही आज का दिन गुजारना पड़ेगा?
लोमड़ी के द्वारा इतना कहते ही कौवा पहले से और ज्यादा प्रसन्न हो गया। जैसे ही उसने कुछ कहना शुरू किया, वैसे ही उसके मुंह से रोटी का टुकड़ा नीचे गिर गया और लोमड़ी तुरंत मौका पाकर रोटी का टुकड़ा लेकर चली गई।
मूर्ख कौवा केवल यह दृश्य देखता ही रह गया और इसके अलावा कुछ ना कर पाया। उसे अपनी मूर्खता पर बहुत पछतावा हुआ, परंतु वह अब अपनी मूर्खता पर पछताने के अलावा कुछ भी नहीं कर सकता था।
इसके अलावा चिड़िया बहुत मेहनती भी थी और हमेशा दूसरों से बिना मदद मांगे ही अपना कार्य करती थी। ठंड का मौसम शुरू होने वाला था इसलिए चिड़िया ने ठंड से निपटने का इंतजाम पहले ही कर लिया था और वह बड़े आराम से अपने घोंसले में रह रही थी।
ठंड का मौसम आने पर जैसे ही ठंडा होने लगा तो एक दिन चिड़िया के पेड़ के पास चार बंदरों की एक टोली आई जो ठंड के कारण कांप रही थी। उन चारों बंदरों को देखकर चिड़िया बड़ी उदास हुई और उनकी मदद करने की सोचने लगी।
चारों बंदरों की टोली में एक बंदर ने कहा कि यदि हमें यहां आग तापने को मिल जाए तो ठंड दूर हो जाएगी और हम पहले की तरह उछल कूद सकेंगे।
उन्हीं चारों बंदरों में से दूसरे बंदर ने कहा कि यहां नीचे बहुत सारी सूखी पत्तियां गिरी हुई हैं। यदि हम इन्हें एकत्रित कर ले और जलाएं तो आग की बढ़िया व्यवस्था हो जाएगी।
चारों बंदरों ने मिलकर सूखी हुई पत्तियों को एकत्रित किया और आग कैसे जलाएं इसके बारे में सोचने लगे। जब वे आग जलाने के बारे में सोच ही रहे थे कि तभी उनमें से एक बंदर की दृष्टि थोड़ी दूरी पर उड़ रहे एक जुगनू पर पड़ी।
उस बंदर ने उड़ते हुए जुगनू की ओर संकेत करके अपने अन्य साथी बंदरों से कहा कि देखो उड़ती हुई चिंगारी। यदि हम इस चिंगारी को सूखे पत्तों के ढेर के नीचे रखकर जोर-जोर से फूंक मारेंगे तो आग अवश्य जलेगी।
उस बंदर की बात सुनकर उसके अन्य साथी भी उसकी हां में हां मिलाने लगे और जुगनू को पकड़ने के लिए इधर उधर दौड़ने लगे। इस दृश्य को चिड़िया शुरुआत से देख रही थी और अब उससे उनकी मदद किए बिना न रहा गया।
चिड़िया बंदरों से बोली के बंदर भाइयों, यह जुगनू है ना की कोई चिंगारी। इसके द्वारा आग नहीं जलाई जा सकती।
चिड़िया के इतना कहते ही उनमें से एक बंदर क्रोधित स्वरों में बोला,”अब एक छोटी सी चिड़िया हमें बताएगी कि आग कैसे जलानी है। अगर तुझे अपना जीवन प्यारा है तो चुप हो जा।”
इसके बाद चारों बंदर फिर से जुगनू को पकड़ने का प्रयास करने लगे और अंत में उनमें से किसी एक बंदर ने जुगनू को अपनी हथेलियों का उपयोग करके कैद कर लिया।
जुगनू को पकड़ने के पश्चात बंदरों ने उसे सूखे पत्तों के ढेर के नीचे रख दिया और जोर जोर से भूख मारने लगे। सभी बंदरों द्वारा एक साथ फूंक मारने के पश्चात भी आग नहीं जली।
यह सब देख चिड़िया फिर से बंदरों की मदद करने की सोचने लगी और उसने कहा,”आग ऐसे नहीं जलेगी, यदि आप आग जलाना चाहते हैं तो आप दो पत्थरों को आपस में टकराकर चिंगारियां पैदा कर सकते हैं जिससे सूखे पत्तों पर लग जाएगी।”
चिड़िया के इतना कहते ही बंदर फिर से भड़क उठे और चिड़िया को थोड़ी देर तक घूरने लगे। उसके बाद वे फिर से आग जलाने के लिए जोर जोर से फूंक मारने लगे। इस बार भी पिछली बार की तरह आग नहीं लगी।
चिड़िया ने फिर से एक बार उनकी मदद करने की सोची और उसने कहा कि यदि आप आग जलाना ही चाहते हैं तो आप दो सूखी लकड़ियों को आपस में रगड़ के देखिए, आग निश्चित रूप से लग जाएगी।
बंदर पहले से ही चिड़िया पर बहुत अधिक क्रोधित हो चुके थे और अब की बार चिड़िया द्वारा फिर से वही हरकत करने के पश्चात वे और भी ज्यादा भड़क गए और उनमें से एक बंदर इतना क्रोधित हो गया कि वह चिड़िया के घोंसले पर आ पहुंचा।
चिड़िया के घोंसले पर पहुंचने के बाद उसने चिड़िया को उठाया और पेड़ के तने पर जोर से पटक दिया जिससे चिड़िया की वहीं मृत्यु हो गई।
कुएं में पानी की मात्रा भी ज्यादा अधिक नहीं थी परंतु पानी की मात्रा इतनी तो थी कि जिससे उसके जैसे बहुत सारे अन्य जीव बड़े आराम से पानी पी सकते थे इसलिए लोमड़ी बिना सोचे समझे कुएं में कूद गई।
कुएं में कूदने के पश्चात उसने जी भर कर पानी पिया और उसके बाद वह कुएं से बाहर जाने के लिए उछलने लगी। वह कुएं से बाहर निकलने के लिए बड़ी बड़ी छलांगे मारती परंतु हर बार वह विफल हो जाती। बहुत ज्यादा छलांगे मारने के पश्चात अंत में वह थक गई और कुएं से ही मदद की पुकार करने लगी।
थोड़े समय तक मदद की पुकार करने के बाद भी वहां कोई नहीं आया लेकिन थोड़ी देर बाद वहां एक बकरी आई जो कुएं वाले रास्ते से ही गुजर रही थी। उसने लोमड़ी को कुएं में देखकर लोमड़ी से कहा,”लोमड़ी बहन तुम यहां कैसे? तुम इस कुएं में क्या कर रही हो?”
लोमड़ी ने उसके पश्चात बड़ी ही चालाकी से उत्तर दिया,”मैं तो इस कुएं में आराम कर रही हूं। इस कुएं का पानी इतना अच्छा है कि इसे बार-बार पीने का मन करता रहता है, इसलिए मैं यहां बहुत अधिक देर से बैठी हूं ताकि जब भी प्यास लगे यहां से पानी तुरंत पी लूं।”
इतना कहते ही बकरी के मन में पानी पीने की जिज्ञासा जग गई और वह भी कुएं में कूद गई। कुएं में कूदने के पश्चात जैसे ही बकरी पानी पीने लगी वैसे ही लोमड़ी तेजी से बकरी की पीठ पर चढ़ी और वहां से ऊपर की ओर छलांग लगाई।
इसका नतीजा यह हुआ कि जो लोमड़ी बार-बार प्रयास करने के बाद भी कुएं से बाहर नहीं निकल पा रही थी, वह लोमड़ी बकरी की पीठ पर चढ़ते ही वहां से बड़ी आसानी से छलांग लगाकर कुएं से बाहर निकल गई।
कुएं से बाहर निकलने के पश्चात लोमड़ी ने बकरी से कहा कि बहन, तुम इस अमृत समान पानी को ग्रहण करो, मैं तो अब चलती हूं।
इस प्रकार से लोमड़ी ने बड़ी चालाकी से खुद को कुएं से बाहर निकाल लिया और बेचारी बकरी को कुएं के अंदर ही छोड़ दिया।
उसने उस गुफा को देखते ही अपने मन में विचार किया कि यदि मैं इस गुफा के अंदर अभी चले जाऊं, तो निश्चित रूप से रात्रि के समय में यहां कोई ना कोई जानवर अवश्य आएगा और मैं उसका शिकार बड़े आसानी से कर सकूंगा।
वास्तव में यह गुफा एक सियार की थी, जो बहुत ही चतुर था और वह रात्रि के समय प्रतिदिन उस गुफा में आया करता था और सुबह होने पर चले जाया करता था।
जैसे ही रात्रि हुई, सियार प्रतिदिन की तरह उस गुफा के पास आया और उसने शेर के पैरों के निशान देखे जो गुफा के भीतर जाने के थे परंतु शेर के गुफा से बाहर आने के पैरों के निशान जमीन पर नहीं दिख रहे थे।
इसके कारण सियार तुरंत समझ गया कि शेर अभी भी गुफा के अंदर है और अपने शिकार के आने की प्रतीक्षा कर रहा है।
गुफा के अंदर शेर है या नहीं, यह बात जानने के लिए उसे एक उपाय सूझा। उसने गुफा के बाहर से ही आवाज लगाई कि गुफा तुम्हें आज क्या हो गया है? प्रतिदिन जब भी मैं यहां आता हूं, तुम मुझे अंदर बुलाने के लिए आवाज लगाती हो परंतु आज तो तुम बिलकुल चुप हो। ऐसी, क्या बात हो गई है जो तुम आज मुझे नहीं बुला रही हो?
गुफा के भीतर बैठे हुए शेर ने सोचा कि यह बोलने वाली गुफा हो, जो सियार को प्रतिदिन अपने भीतर आने के लिए बुलाती हो, परंतु आज मेरे यहां होने के कारण वह मुझसे भयभीत हो गई हो और सियार को कुछ भी नहीं बोल पा रही हो।
चलो कोई बात नहीं, आज गुफा ना सही तो मैं ही सियार को गुफा के भीतर आने के लिए बोल देता हूं।
इतना सोचने के बाद शेर ने जोर से आवाज लगाई कि आ जाओ सियार, गुफा के अंदर आ जाओ, मैं तो तुम्हारी ही प्रतीक्षा कर रही थी।
शेर के इतना कहते ही सियार समझ गया कि गुफा के भीतर शेर बैठा है, जो उसके गुफा के अंदर पहुंचते ही उसे मार डालेगा। सियार वहां से तुरंत तेजी से नौ दो ग्यारह हो गया और इस प्रकार सियार ने अपनी बुद्धि का प्रयोग करके शेर से अपनी जान बचा ली।
धोबी भी इस बात से भली-भांति परिचित था और उसे भी गधे की इस हालत पर तरस आता था, परंतु धोबी इतना निर्धन था कि वह गधे को थोड़ा ही भोजन करा पाता था।
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एक दिन धोबी को एक मरा हुआ शेर मिला, जिसे देखकर उसे एक उपाय सूझा। उसने सोचा कि यदि मैं इस शेर की खाल को निकाल लूं और इसे अपने गधे को पहना दूं और गधे को किसी भी खेत में घास खाने के लिए छोड़ दूं, तो सब उसे गधा ना समझ कर शेर समझेंगे और उसे कोई मारने या भगाने का प्रयास भी नहीं करेगा। इसके कारण गधे को पर्याप्त घास भी मिल जाएगी और वह दुबला पतला भी नहीं रहेगा।
धोबी ने ऐसा ही किया और उसने मरे हुए शेर की खाल निकालकर अपने गधे को पहना दी और रात्रि के समय में उसे खेतों में घास खाने के लिए छोड़ दिया।
जैसे ही गधा शेर की खाल पहन कर खेतों में घुसा तो उसे सब ने शेर समझा और कभी भी किसी ने उस पर हमला या उसे भगाने का प्रयास नहीं किया।
ऐसा कई दिनों तक चलता रहा, जिसके कारण गधा अब पहले की तरह दुबला पतला ना रहकर, मोटा हो चुका था। वह हर रात्रि खेतों में घुसता और पेट भर कर घास खाता और सुबह होने से पहले अपने मालिक के घर वापस आ जाता। गधे की ये मौजन अनेक दिनों तक चलती रही।
फिर एक दिन, जब गधा खेतों में घास खा रहा था, तभी कहीं से उसे किसी अन्य गधे की रेंकने की आवाज आई, जिसे सुनकर वह भी जोर से रेंकने लगा। गधी ने जैसे ही जोर से रेंकना शुरू किया, वैसे ही लोगों को यह पता लग गया कि यह कोई शेर नहीं बल्कि शेर की खाल ओढ़े एक गधा है।
सच्चाई जानने के पश्चात, लोगों ने एकत्रित होकर गधे की खूब पिटाई करी और उसे मार मारकर अदमरा कर दिया।
एक दिन जब वह पक्षी भोजन की खोज में नदी के किनारे आया, तभी उसके पहले सिर को एक फल दिखाई दिया, जो कुछ देर पहले ही पेड़ से गिरा था। फल को देखते ही तुरंत पहला सिर उस फल को थोड़ा सा चखने लगा।
जैसे ही पहले सिर ने उस फल का स्वाद चखा, वैसे ही वह बड़े आनंदित स्वर में बोला, “वाह! कितना मीठा फल है, लगता है प्रकृति ने सभी फलों की मिठास इसी फल में डाल दी हो।”
पहले सिर द्वारा इतना कहते ही दूसरे सिर के मन में भी उस फल को चखने की लालसा जगी और वह पहले सिर से कहने लगा, “मुझे भी चखाओ यह फल, मैं भी यह फल चखना चाहता हूं और इसकी मिठास का आनंद लेना चाहता हूं।”
इतना कहते ही, जैसे ही दूसरे सिर ने फल को चखने के लिए अपनी चोंच बढ़ाई, वैसे ही पहले सिर ने तेजी से दूसरे सिर को झटकाकर फल से दूर किया और कहने लगा, “यह फल मुझे पहले दिखा है और मुझे ही पहले मिला भी है, इसलिए यह फल मैं ही खाऊंगा। दूर रह तू इस फल से, यह मेरा फल है और इस पर सिर्फ और सिर्फ मेरा ही हक है।”
इसके जवाब में दूसरे सिर ने कहा, “हम दोनों का एक ही शरीर है, इसलिए हम दोनों को हर चीज मिल बांटकर खानी चाहिए। जो भी हम खाएंगे वह बराबर ही हम दोनों को लगेगा।”
दूसरे सिर द्वारा इतना कहते ही पहला सिर कहने लगा, “यदि ऐसा ही है तो मैं पूरा फल खा लेता हूं क्योंकि बाद में तो यह पेट में ही जाएगा। चूंकि, तेरा और मेरा पेट एक ही है, इसलिए तुझे भी भोजन मिल जाएगा और तेरा पेट भी भर जाएगा।”
दूसरा सिर इस बार क्रोधित स्वर में बोला, “पेट तो भर ही जाएगा, परंतु जीभ का क्या? खाते समय सबसे आनंदित पल वही होता है, जब जीभ उस खाने का स्वाद लेती है और उससे मन भी खुश हो जाता है।”
फिर पहले सिर ने भी क्रोधित स्वरों में ही जवाब देते हुए कहा, “तू चुप रह। यह सब कहने से तुझे फल नहीं मिल जाएगा। इस फल पर सर्वप्रथम दृष्टि मेरी पड़ी थी और मैंने ही इसे सर्वप्रथम चखा भी था, इसलिए अपना मुंह बंद कर और मुझे फल खाने दे।
इसके बाद पहला सिर बड़े आनंद से फल खाने लगा और दूसरे सिर को चिढ़ाने के लिए बार-बार उस फल की प्रशंसा की व्याख्या करने लगा। वहीं दूसरा सिर मन ही मन क्रोधित हो रहा था और अपने अपमान का प्रतिशोध लेने का उपाय सोच रहा था।
इस घटना के कुछ दिनों पश्चात वह पक्षी एक दिन जब भोजन की खोज में घूम रहा था, तभी उस समय दूसरे सिर की दृष्टि एक फल पर पड़ी और उस फल को देखते ही दूसरे सिर को अपना अपमान याद आ गया।
जैसे ही दूसरा सिर अपनी चोंच से उस फल का स्वाद चख ही रहा था, वैसे ही पहले सिर ने उसे चेतावनी दी और कहने लगा, “यह एक विषैला फल है, इसे मत खा। यदि तूने इस फल को खाया, तो यह इतना जहरीला फल है कि इससे हम दोनों की मृत्यु यहीं हो जाएगी।”
इसके जवाब में दूसरे सिर ने पहले सिर से कहा, “मेरी इच्छा, मैं जो भी खाऊं, तू अपने काम से काम रख।”
पहले सिर ने दूसरे सिर को अनेकों बार समझाने का प्रयास किया परंतु हर बार दूसरा सिर उसे डांट देता और फल को खाने लग जाता। अंत में, दूसरे सिर ने पूरा फल खा लिया और थोड़े समय पश्चात ही उस पक्षी की वहीं मृत्यु हो गई।
शिक्षा – आपस की फूट हमेशा नुकसानदायक ही होती है।
भक्तों द्वारा दिए गए वस्त्रों को साधु ने बेचकर बहुत अधिक धन इकट्ठा कर लिया था, जिससे वे हमेशा धन की सुरक्षा की चिंता में रहते थे। साधु की एक खास बात यह थी कि वे किसी पर भी भरोसा नहीं करते थे और धन की रक्षा स्वयं ही करते थे। वे जहां भी जाते धन की पोटली अपने साथ ही संभाल कर रखते थे।
जिस गांव में साधु को इतना मान सम्मान मिलता था, उसी गांव में एक ठग भी रहता था, जिसे साधु के धन के बारे में जानकारी थी और वह किसी भी प्रकार से साधु का धन लुटना चाहता था।
उसने साधु का पीछा अनेक दिनों तक किया परंतु साधु हमेशा धन की पोटली अपने साथ रखते थे जिसके कारण उसे कभी भी धन चुराने का अवसर नहीं मिल पाया।
ठग के द्वारा अनेकों बार प्रयास करने के पश्चात भी वह साधु का धन चुराने में हर बार असफल रहा इसलिए अबकी बार वह धन चुराने का कोई और उपाय सोचने लगा। सोचते सोचते उसे एक युक्ति सूझी और उस युक्ति को सार्थक करने के लिए उसने कार्य शुरू किया।
उसने सर्वप्रथम एक शिष्य का भेष बनाया और साधु के पास जाकर बोला कि वे उसे अपना शिष्य बना ले ताकि वह साधु के साथ रहकर ज्ञान अर्जित करेगा और एक ज्ञानी मनुष्य बनेगा।
उसके अनुरोध के बाद साधु ने उसे अपना शिष्य बना लिया और अब वह उसी मंदिर में रहने लगा जिस मंदिर में साधु रहते थे। वह मंदिर के सभी कार्य भली-भांति करता था, इसके साथ ही वह साधु की सेवा भी बड़े अच्छे से करता था, जिसके कारण कुछ ही समय पश्चात वह साधु का करीबी बन गया।
कुछ समय बीतने के पश्चात, एक दिन साधु को दूसरे अन्य किसी गांव में अनुष्ठान के लिए आमंत्रित किया गया और साधु ने उस आमंत्रण को बड़ी सहजता से स्वीकार भी कर लिया।
जब अनुष्ठान का दिन आया तो साधु अपने शिष्य के साथ दूसरे गांव के लिए निकल पड़े। दूसरे गांव जाते समय बीच में एक नदी पड़ती थी, जैसे ही साधु और ठग जब नदी के पास पहुंचे तो साधु ने नदी में स्नान करने की इच्छा जताई और अपने धन की पोटली ठग को पकड़ा दी और खुद नहाने चले गए।
जब साधु नहाने चले गए, तब ठग को यह साधु के धन को लूटने का सबसे उत्तम अवसर दिखा और वह साधु की पोटली लेकर नौ दो ग्यारह हो गया।
शिक्षा – किसी भी अजनबी द्वारा कही गई बातों पर आंख मूंदकर विश्वास नहीं करना चाहिए।
बहुत खोजने के बाद भी उसे भोजन का एक दाना तक ना मिल पाया परंतु रणभूमि से जाते समय उसे एक आवाज बहुत पहले से सुनाई दे रही थी, जो वास्तव में एक ढोल के बजने की आवाज थी। यह ढोल अपने आप ही नहीं बज रहा था, बल्कि वह ढोल जिस पेड़ के करीब था, उसी पेड़ की टहनियां बार-बार उससे टकरा रही थी और उसके कारण ही ध्वनि प्रकट हो रही थी।
सियार ध्वनि की आहट को सुनकर ढोल के करीब पहुंचा और छुपकर उसे देखने लगा। उसे देखते ही सियार ने अपने मन में विचार किया कि शायद यह कोई विचित्र प्रकार का जानवर है, जो बार-बार अपनी ध्वनि प्रकट कर रहा है।
सियार सर्वप्रथम उसे देखते ही डर गया था और वहां से चुपचाप निकलने की सोच रहा था परंतु उसने थोड़ा संयम रखा और आवाज की वास्तविकता को जानने के लिए उत्सुकता दिखाई।
सियार धीरे-धीरे ढोल के निकट जाने लगा और एक समय वह इतना निकट आ गया कि जहां से वह ढोल को बड़ी आसानी से छू सकता था। उसने अपने कांपते हुए हाथों से धीरे धीरे ढोल को छूने का प्रयास किया और जैसे ही उसके हाथों द्वारा ढोल पर स्पर्श हुआ उसने अपने हाथों को तुरंत पीछे खींच लिया।
उसने महसूस किया कि जिसे वह विचित्र एवं खतरनाक जानवर समझ रहा था, वह वास्तविकता में इतना खतरनाक भी नहीं है, जितना उसने सोचा था। इसके कारण उसे थोड़ा और साहस मिला और वह बार-बार ढोल को छूने लगा। बार-बार ढोल को छूने के कारण, अब उसका ढोल के प्रति डर पूर्णतः खत्म हो चुका था।
अब उसे लगने लगा कि यह तो उस विचित्र जानवर का ऊपरी खोल है और इस खोल के अंदर ही वह विचित्र जानवर छुपा हुआ है। इसके साथ ही उसके मन में यह भी विचार आया कि जिस जानवर का खोल इतनी मोटी चमड़ी का है, उसमें कितना अधिक मांस और खून होगा जिसे खाने का आनंद ही अलग होगा।
इसके बाद सियार बड़े उत्साह से ढोल की चमड़ी के खोल को दांतों से काटने लगा जिसके कारण उसके तीन दांत भी टूट गए, परंतु अति उत्साह होने के कारण उसने इन बातों की चिंता न करके, केवल ढोल की चमड़ी के खोल को फाड़ने पर अधिक ध्यान केंद्रित किया। बहुत मेहनत करने के पश्चात वह ढोल की चमड़ी के खोल को अपने दांतों द्वारा फाड़ने में सफल हुआ।
जैसे ही उसने खोल को फाड़ने के पश्चात, ढोल के भीतर झांका तो उसने देखा कि ढोल अंदर से पूरी तरह खाली है और उसके अंदर कुछ भी नहीं है। अतः आखिर में वह हताश होकर वहां से चला गया परंतु उसके मन में इस बात का संतोष था कि उसने उस विचित्र आवाज के भय को अपने अंदर से निकाल फेंका था।
खटमल बहुत बुद्धिमान था इसलिए उसने जूं से बड़े प्रेम से कहा,”मैं तो तुम्हारा मेहमान हूं और मैं तो यहां आज पहली बार ही आया हूं। क्या तुम मुझे सिर्फ आज रात तक के लिए यहां शरण नहीं दे सकती हो?
खटमल द्वारा इतने प्रेम के साथ बोलने के कारण जूं ने खटमल की बात मान ली और उसे रात भर शयनकक्ष में रुकने की इजाजत दे दी, परंतु उसने खटमल को राजा के खून को ना चूसने के लिए अनुरोध किया।
इसके जवाब में खटमल ने जूं से कहा,”फिर मैं यहां खाऊंगा क्या? इसके अलावा तो मेरे पास कोई विकल्प भी नहीं है और वैसे भी राजा का खून पीने से बढ़िया भोजन इस कक्ष में दूसरा कोई और नहीं हो सकता।”
इस पर जूं ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा,”ठीक है, तुम राजा का खून पी सकते हो परंतु इस बात का आभास रहे कि राजा का खून पीते समय राजा को तनिक भी पीड़ा नहीं होनी चाहिए।”
राजा के शयन कक्ष में आने और सोने के पश्चात खटमल ने राजा का खून पीना प्रारंभ किया। जैसे ही खटमल ने राजा का खून सर्वप्रथम चखा, उसकी राजा के खून को पीने की चाहत और बढ़ गई क्योंकि उसने आज से पहले कभी भी इतना स्वादिष्ट खून नहीं चखा था। अतः वह बार-बार जोर जोर से राजा को डंक मारने लगा और बड़ी तेजी से उसका खून चूसने लगा।
परिणास्वरूप, राजा की निंद्रा टूट गई और उसने खटमल को भागते हुए भी देख लिया। खटमल को भागता देख राजा तुरंत समझ गया कि उसे खटमल ने ही काटा है और उसने बिना देरी करें अपने सैनिकों को शयन कक्ष में बुलाया और उस खटमल को ढूंढ कर मारने का आदेश दिया।
खटमल भी समझ चुका था कि ये सभी सैनिक उसे ढूंढ रहे हैं और यदि वह इनके हाथ लग गया, तो ये तुरंत ही उसे मार डालेंगे इसलिए वह राजा की पलंग के पाए के नीचे शांति से छुप गया।
वहीं दूसरी ओर, बेचारी जूं की किस्मत इतनी अच्छी नहीं थी कि वह सैनिकों की आंखों से बच सकें। सैनिक शयन कक्ष में खटमल को ढूंढते ढूंढते जूं के छिपने वाली जगह पर पहुंच गए और उन्होंने जूं को देखते ही मार डाला।
शिक्षा – हमें किसी भी अनजान व्यक्ति की बातों में नहीं आना चाहिए बल्कि हमेशा उनसे सावधान ही रहना चाहिए।
भूख से व्याकुल सियार को कुछ समझ नहीं आ रहा था और वह कुत्तों से अपनी जान बचाने के लिए तेजी से भागने लगा। सियार भागते भागते एक रंगरेज के घर में आ गया और रंगरेज के घर में पहुंचते ही उसे सामने एक बड़ा सा नील के रंग से भरा हुआ वरतन दिखाई दिया।
इससे पहले कि वह बचने का कोई और उपाय सोच पाता कि तभी वहां आसपास से कुत्तों के भौंकने की आवाज आई। जैसे ही सियार ने वह आवाज सुनी तो वह तुरंत उस बड़े से वरतन मे घुस गया।
थोड़े समय तक नील से भरे हुए वरतन के अंदर रहने के बाद जब सब कुछ शांत हो गया तब सियार बड़ी सतर्कता के साथ उस वरतन से बाहर आया। नील के वरतन से बाहर आने के बाद वह तुरंत जंगल की ओर भूखे पेट ही लौट गया।
जंगल की तरफ लौटते समय उसका ध्यान अपने शरीर पर गया और उसने देखा कि उसका रंग पूर्णतः नीला हो चुका है। अपने शरीर का रंग देखकर उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था और वह आगे के सफर में भी इसी बारे में सोचते सोचते आगे बड़ता गया।
सियार के जंगल में पहुंचते ही कोई भी जानवर जो भी सियार को देखता वह डर जाता और सोचता कि यह विचित्र प्राणी कौन सा है और कहां से आया है?
सियार ने जब अन्य जानवरों को डरते देखा तो उसके मन में एक उपाय सूझा और उसने डरकर भागते हुए जानवरों से कहा,”तुम लोग मुझे देख कर भागो मत। मैं तुम लोगों कुछ कहना चाहता हूं।”
सियार के इतना कहते ही जो जानवर भाग रहे थे, वे सभी रुक गए। उनके रुकने के बाद सियार ने उनसे कहा,”मैं तुम्हें अपने बारे में सब कुछ बताऊंगा परंतु उससे पहले तुम जंगल के अन्य सभी जानवरों को यहां मेरे समक्ष उपस्थित करो। उसके बाद ही मैं तुम सभी को अपना परिचय दूंगा।”
सियार की बात मानकर वे जानवर अन्य सभी जानवरों को वहां एकत्रित करने में जुट गए और थोड़े समय बाद ही वहां जंगल के सभी जानवर एकत्रित हो गए।
सभी के वहां एकत्रित होने के बाद सियार ने सभी जानवरों से कहा,”जैसा कि तुम सभी जानवर जानते हो कि तुम्हारा कोई भी राजा नहीं है, इसलिए भगवान ने मुझे तुम्हारा राजा घोषित करके यहां भेजा है। मैं अन्य जानवरों से थोड़ा भिन्न दिखाई दूं इसलिए मुझे नीले रंग का बनाया है और आज से पूर्व तुमने मेरे जैसा जानवर भी कभी नहीं देखा होगा।
सियार द्वारा इतना कहते ही किसी भी जानवर में उसका विरोध करने की हिम्मत ना हुई और सभी जानवरों ने उसकी बात को बिल्कुल स्पष्ट रूप से सत्य मान लिया। सभी जानवर उसकी जय-जयकार करने लगे और सियार उस जंगल का राजा बन गया।
राजा बनने के बाद सियार जो कुछ भी आदेश देता, अन्य जानवर उसका वह आदेश पूरा करते। उसके आदेश को कोई भी मना नहीं करता और हमेशा उसकी सेवा में ही सभी जानवर लगे रहते। इस प्रकार से सियार की मौज आ गई और उसका जीवन भी पहले की तरह ना रहकर बल्कि सचमुच एक राजा के जैसा हो गया।
कुछ दिनों बाद जब वह रात को विश्राम कर रहा था, तभी उसे अन्य सियारों के चिल्लाने की आवाज सुनाई दी। जैसे ही वह अन्य सियारों के चिल्लाने की आवाज को सुनता है, तो वह खुद को भी चिल्लाने से नहीं रोक पाता है। वह तुरंत चांद की तरफ अपना मुंह ऊपर करके अन्य सियारों की तरह चिल्लाने लगता है। उसे चिल्लाता देख जंगल के सभी जानवर समझ जाते हैं कि यह तो सियार है, जो हम सभी को मूर्ख बना रहा है।
उसकी सच्चाई पता लगने के बाद सभी जानवर गुस्से से उसकी तरफ देखते हैं और सियार भी उन्हें देखकर समझ जाता है कि उसका भेद अब खुल चुका है। वह जैसे ही भागने का प्रयास करता है, वैसे ही तुरंत शेर उसके पास पीछे से आ जाता है और उसे वहीं खत्म कर देता है।
राजा के व्यापारी की कुशलता से प्रभावित होने के कारण राजा ने उसे राज्य प्रशासक के पद पर नियुक्त किया था, जिस पद को व्यापारी ने काफी अच्छे से संभाल लिया था। उसके प्रशासक पद पर रहकर वहां की जनता अत्यंत खुश थी एवं राज्य भी विकास की ओर था।
कुछ दिनों बाद व्यापारी की लड़की का विवाह होने वाला थी। लड़की के विवाह पर व्यापारी ने एक बहुत बड़े भोज का आयोजन आयोजित किया। इस भोज में राज्य के राज परिवारों से लेकर महल में काम करने वाले सेवक भी सम्मिलित हुए।
इसी भोज में महल में झाड़ू लगाने वाला एक सेवक भी आया था, जो गलती से राज परिवारों के लिए नियुक्त कुर्सी पर बैठ गया। यह देखकर व्यापारी अत्यंत ही क्रोधित हुआ और उसने उस सेवक को भोज से धक्के मार कर बाहर निकाल दिया।
इस प्रकार अपमान होने के बाद सेवक को बहुत क्रोध आया और उसने अपने अपमान का बदला लेने का प्रण भी लिया।
इस घटना के कुछ दिनों बाद, जब सेवक एक दिन राजा के कक्ष में झाड़ू लगा रहा होता है, तब वह राजा को अर्ध निंद्रा में पाता है। राजा को अर्ध निंद्रा की स्थिति में देखकर उसे एक उपाय सूझता है, जिससे वह व्यापारी से अपने अपमान का बदला ले सके।
वह तुरंत बड़बड़ाना शुरू कर देता है,”इस मामूली से व्यापारी में इतनी हिम्मत कहां से आ गई कि ये राज्य की रानी के साथ दुर्व्यवहार करे।”
सेवक द्वारा यह बात सुनकर राजा तुरंत खड़ा हो जाता है और सेवक के पास जाकर उससे कहता है,”बताओ मुझे, क्या तुमने सच में व्यापारी को महारानी के साथ दुर्व्यवहार करते देखा है। यदि देखा है, तो मुझे सब कुछ साफ-साफ बताओ।”
सेवक तुरंत ही राजा के चरणों में गिर जाता है और कहता है,”मुझे माफ कर दीजिए, मैं कल पूरी रात नहीं सो पाया। यही कारण है कि मुझे आज निंद्रा आ रही है, जिसके कारण मैं अभी नींद में बड़बड़ाने लगा।”
सेवक की बात सुनकर राजा ने कुछ भी ना कहा और एकांत में जाकर इस विषय पर सोचने लगा। उसे व्यापारी पर शक होने लगा और इसके कारण ही उसने व्यापारी के महल में इधर से उधर घूमने पर पाबंदी का आदेश दे दिया और महल में उसके अधिकारों को भी सीमित कर दिया।
अगले दिन व्यापारी के महल में पहुंचने पर उसे सैनिकों ने रोक दिया जिसे देखकर व्यापारी काफी आश्चर्यचकित रह गया। इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता, तभी उसी सेवक ने सैनिकों से कहा,”इन्हें मना मत करो, ये महल के प्रभावशाली व्यक्तियों में गिने जाते हैं। यदि ये चाहें तो तुम सभी को महल से धक्के मार कर निकाल सकते हैं, जैसे इन्होंने मुझे अपने भोज से निकाला था।”
सेवक द्वारा यह बात सुनकर व्यापारी सब कुछ समझ गया और उसने कुछ दिनों बाद ही सेवक को अपने घर पर भोजन का आमंत्रण दिया। भोजन के आमंत्रण पर आए सेवक की व्यापारी ने खूब सेवा करी और उससे पिछली बार के आमंत्रण पर हुई गलती की माफी भी मांगी। उसके बाद व्यापारी ने सेवक को भोजन करने के पश्चात उपहार भी प्रदान किए।
व्यापारी के द्वारा सेवक के लिए इतना कुछ करने के बाद अब सेवक के मन में व्यापारी के लिए कोई भी द्वेष नहीं रहा और उसने व्यापारी से कहा,”आपने मेरी इतनी सेवा करी, मुझे इतने अच्छे-अच्छे व्यंजन खिलाएं, उपहार भी दिए और सबसे बड़ी बात आपने अपनी गलती की माफी भी मांगी। मैं आपको वचन देता हूं कि मैं राजा की दृष्टि में आपका खोया हुआ सम्मान फिर से वापस लाऊंगा और सब कुछ फिर से पुनः पहले के जैसा हो जाएगा।”
अगले दिन जब वह राजा के कक्ष में झाड़ू लगा रहा था, तभी उसने फिर से बड़बड़ाना शुरू किया कि हमारा राजा कितना बड़ा मूर्ख है, जो रात में गाना गाने लगता है।
यह सुनकर राजा पहले की तरह फिर से उठकर उस सेवक के पास आया और क्रोध में कहने लगा,”तुमने मुझे कब रात में गाना गाते देख लिया? क्या तुम्हारा भूत यहां मुझे गाना गाते देखकर गया है? यदि तुम मेरे वफादार सेवकों में से एक ना होते, तो मैं तुम्हें इसी समय महल से निकाल देता।
सेवक पिछली बार की तरह इस बार भी राजा के चरणों में गिर पड़ा और उनसे कहने लगा,”मुझे कल रात भी ठीक तरीके से नींद नहीं आई और आज नींद में मैं फिर बड़बड़ाने लगा। मुझे माफ कर दीजिए, मैं आपको वचन देता हूं कि आज के बाद मुझसे ऐसी गलती कभी नहीं होगी।”
राजा बहुत दयालु था और उसका स्वभाव भी बहुत अच्छा था इसलिए उसने सेवक को माफ कर दिया और उसे वहां से जाने के लिए कहा। सेवक के जाने के बाद, राजा कक्ष में एकांत में बैठकर यह सोचने लगा कि यदि यह मेरे बारे में इस तरह से बड़बड़ा सकता है तो व्यापारी के बारे में क्यों नहीं? मैंने बेकार ही बिना कुछ सोचे समझे व्यापारी पर शक किया।
अगली सुबह राजा ने व्यापारी को फिर से सभी अधिकार दे दिए और महल में इधर उधर ना घूमने की पाबंदी को भी हटा दिया। इस प्रकार से सब कुछ पुनः पहले की तरह सामान्य हो गया।
पहली मछली का स्वभाव यह था कि वह संकट आने से पहले ही योजना बनाकर उस संकट का समाधान ढूंढ लेती थी। दूसरी मछली का स्वभाव था कि वह संकट के समय उसका समाधान बड़ी आसानी से निकाल लेती थी और उस संकट से बच जाती थी। तीसरी मछली का स्वभाव यह था कि वह हमेशा भाग्य के भरोसे रहती थी और उसे लगता था भाग्य में जो लिखा है, वही होगा। यदि संकट आना होगा, तो आकर रहेगा उसे कोई नहीं रोक सकेगा।
एक दिन उस नदी पर मछुआरों की नजर पड़ी, जो बहुत दिनों से पर्याप्त मछली नहीं पकड़ पा रहे थे। उन्होंने देखा कि नदी में मछलियों की मात्रा बहुत अधिक है, इसलिए उन सभी ने अगले दिन मछलियों को पकड़ने का फैसला लिया और नदी के किनारे ही वे सभी उसी समय योजना भी बनाने लगे।
उनकी इस योजना को पहली मछली ने सुन लिया था, जो संकट आने से पहले ही उसका समाधान खोज लेती थी और उससे बच जाती थी। उसने यह बात अपने झुंड की अन्य दोनों मछलियों को बताई, जिसे सुनकर दोनों मछलियों का जवाब उनकी प्रवृत्ति अनुसार ही रहा।
दूसरी मछली ने कहा कि जब संकट आएगा, तब की तब देखी जाएगी। यूं, अभी से चिंता करने का कोई लाभ नहीं है। तीसरी मछली ने कहा कि यदि मछुआरों को आना होगा, तो वे कल आएंगे और यदि हमारे भाग्य में उनके द्वारा हमारी मृत्यु लिखी होगी, तो वह होकर रहेगी।
अपने झुंड की अन्य दोनों मछलियों द्वारा यह उत्तर सुनकर पहली मछली बोली कि तुम लोग संकट आने की प्रतीक्षा करते रहो, मैं तो आज ही यहां से प्रस्थान करूंगी और किसी दूसरी सुरक्षित जगह चले जाऊंगी और इतना कहते ही वह वहां से किसी दूसरे सुरक्षित स्थान को चली गई।
अगले दिन मछुआरे वहां मछली पकड़ने के लिए आए और उन्हें देखते ही दूसरी मछली बचने का उपाय सोचने लगी। वह हमेशा संकट के समय कोई भी उपाय बड़ी आसानी से खोज लेती थी, यही कारण था कि उसे उसी समय एक उपाय सूझा।
उसे पता था कि कई दिनों से नदी में एक ऊदबिलाव की लाश तैर रही है जिसमें से बड़ी दुर्गंध आ रही है। वह तुरंत उस मरे हुए ऊदबिलाव के पेट में घुसती है और उसकी सड़ांध को अपने पूरे शरीर पर लगा लेती है।
जैसे ही मछुआरे मछली पकड़ना शुरू करते हैं तो उसमें दूसरी मछली भी फंस जाती है। दूसरी मछली ने अन्य मछलियों की तरह फड़फड़ाने की बजाए बिल्कुल मूर्छित वाली अवस्था मछुआरों के सामने प्रकट करी। मछुआरों ने इस बार एक बात पर ध्यान दिया कि इन मछलियों में से बड़ी ही दुर्गंध आ रही है।
जाल में फंसी हुई मछलियों पर अधिक ध्यान केंद्रित करने पर उन्होंने देखा कि सभी मछलियां फड़फड़ा रही है, परंतु एक मछली है जो बिल्कुल मूर्छित अवस्था में है और यह दुर्गंध भी उसी मछली में से आ रही है।
वे सभी यह सोचने लगे कि यह मछली तो बहुत पहले से मरी पड़ी है और सिर्फ इसी के शरीर में से दुर्गंध भी आ रही है। अतः उन्होंने उसे मरा हुआ समझकर नदी में ही फेंक दिया। जैसे ही दूसरी मछली नदी के भीतर आई, उसने चैन की सांस ली और मन ही मन खुश होने लगी।
वहीं तीसरी मछली जो भाग्य के भरोसे रहती थी, वह मछुआरों द्वारा फेंके गए जाल में फंस गई और अन्य मछलियों की तरह फड़फड़ाते हुए उसने अपनी जान गवां दी।
शिक्षा – भाग्य भी उनका ही साथ देता हैं, जो कर्म करने पर विश्वास रखते हैं।
सांप के बिल बनाने के बाद वह बगुले बहुत अधिक परेशान रहने लगे क्योंकि सांप छोटे छोटे बगुलों को अपना शिकार बना लेता था और उनसे ही अपना भोजन यापन करता था।
एक बगुला सांप के कारण इतना परेशान हो गया की बहन नदी के किनारे दुखी होकर बैठ गया। उसे बड़े समय से दुखी देख वहां एक केकड़ा आया और उससे कहने लगा,”क्या हुआ बगुले भाई बड़े उदास दिख रहे हो? आज से पहले मैंने तुम्हें इतना उदास कभी नहीं देखा। क्या बात है मुझे बताओ? शायद मैं तुम्हें उसका कोई समाधान बता दूं।”
इतने में उस बगुले ने केकड़े को सारी बात बता दी जिसे सुनकर केकड़ा मन ही मन अत्यंत खुश हुआ क्योंकि बगुले उसके बैरी थे परंतु उसने अपनी यह खुशी बगुले के सामने प्रकट नहीं करी और मन ही मन सोचने लगा कि ऐसा क्या करूं जिससे सांप के साथ इस पेड़ पर रहने वाले सभी बगुले भी निपट जाए।
उसके मन में एक उपाय सूझा और उस उपाय को सार्थक करने के लिए उसने बगुले से कहा कि तुम ऐसा करो, कुछ मांस के टुकड़े नेवले के बिल में डाल दो और कुछ मांस के टुकड़े नेवले के बिल से सांप के बिल तक बिखेर दो। नेवला मांस के टुकड़ों का पीछा करते-करते सांप के बिल तक आ पहुंचेगा और उसे वहीं मार देगा।
मूर्ख बगुला केकड़े की बातों में आ गया और उसने अन्य बगुलों के साथ मिलकर ऐसा ही किया। योजना के अनुसार नेवला मांस के टुकड़ों का पीछा करते-करते सांप के बिल में आ पहुंचा और उसने सांप को मारकर खा डाला।
सांप को खाने के बाद नेवले की दृष्टि पेड़ पर बैठे बगुलों पर भी गई और उसने बिना समय गवाएं उन्हें भी वहीं मार डाला। सभी बगुले केकड़े की बातों में तो आ गए परंतु उन्होंने एक बार भी केकड़े की इस योजना के दुष्परिणामों पर ध्यान केंद्रित ही नहीं किया जिसका परिणाम बाद में उन्हें भोगना भी पड़ा।
एक दिन जब राजा अपने शयनकक्ष में सो रहे थे, तब वह बंदर उन्हें पंखे से हवा कर रहा था। बंदर राजा के प्रति अत्यधिक वफादार था, इसलिए वह राजा को पंखे से हवा करते हुए मन ही मन अत्यंत प्रसन्न भी हो रहा था।
परंतु उसका ध्यान वहां पर भंग करने के लिए कहीं से एक मक्खी आ गई और वह मक्खी भिनभिनाते हुए राजा के शरीर पर बैठ गई। जैसे ही बंदर ने मक्खी को राजा के शरीर पर बैठकर भिनभिनाते हुए देखा, तो उसने उसे वहां से भगाने का प्रयास किया। पर मक्खी अपने स्वभाव के कारण बार-बार वहीं आती और बैठ जाती और फिर से बंदर उसे बार-बार भगाता।
बंदर द्वारा मक्खी को वहां से भगाने के अनेक प्रयास करने के पश्चात भी जब मक्खी वहां से नहीं गई, तो बंदर के सब्र का बांध टूट गया और वह अत्यंत ही क्रोधित हो गया। अब वह मक्खी को भगाने की बजाए, उसे मारने के लिए उतारू हो गया। वह अपने आसपास कोई ऐसी वस्तु खोजने लगा, जिससे मक्खी को मारा जा सके परंतु वह ऐसी वस्तु ढूंढने में असफल रहा, जिससे वह मक्खी को मार पाता।
अंत में उसे राजा के बगल में रखी राजा की तलवार दिखी और उसने राजा की तलवार मक्खी को मारने के लिए उठाई। इस समय मक्खी राजा की छाती पर बैठी थी और उसने बिना सोचे समझे मक्खी पर सीधा प्रहार कर दिया। मक्खी तो समय रहते राजा की छाती से उड़ गई परंतु बंदर की तलवार राजा की छाती पर लगी, जिसके कारण राजा की वहीं मृत्यु भी हो गई।
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