पहले दरवेश के कारनामे

जब सुबह हुई और सूरज को निकले दो घड़ी हो गये तब मेरी आँख खुली। पर वहाँ तो मुझे कुछ दिखायी नहीं दिया – न लोग न दावत और न वह सुन्दर लड़की। वहाँ तो केवल खाली घर पड़ा था। पर बड़े कमरे के एक कोने में एक कम्बल में लिपटा कुछ रखा था।

मैंने उसे खोला तो मुझे उसमें उस नौजवान सौदागर की लाश मिली और साथ में उस काली स्त्री की भी। उन दोनों के सिर उनके शरीर से अलग हुए पड़े थे।

यह देख कर मैं फिर बेहोश हो गया। और मैं इस फैसला करने के होश में ही नहीं रहा कि यह सब क्या था और क्या हो गया। मैं अपने चारों तरफ देखे जा रहा था। और हर तरफ देख कर मुझे आश्चर्य होता था।

तभी मुझे वह खास नौकर[2] दिखायी दे गया जो हमारी पार्टी में काम कर रहा था। मैंने उससे इन सब अजीब घटनाओं की सफाई माँगी तो वह बोला — “इसको सुन कर आपका क्या भला होगा कि यहाँ क्या हुआ जो आप इसे जानना चाहते हैं। ”

मैंने मन में सोचा “यह कह तो यह ठीक ही रहा है। ” फिर भी मैंने कुछ पल रुक कर कहा — “ठीक है तुम मुझे यह सब मत बताओ पर यह तो बताओ कि वह सुन्दर लड़की कहाँ है। ”

वह बोला — “अवश्य अवश्य। मैं आपको वह सब बताऊँगा जो कुछ मुझे मालूम है। पर मुझे आश्चर्य है कि एक आप जैसा आदमी जो इतना समझदार हो बिना अपनी पत्नी की इजाज़त लिये बिना डर के बिना किसी रस्म के शराब पीने में उसके साथ लग गया जिससे आपकी केवल कुछ ही दिन की जान पहचान हो। इस सबका क्या मतलब है। ”

मैं अपनी इस बेवकूफी पर बहुत शरमिन्दा था। मुझे लगा कि वह नौकर ठीक ही कह रहा था। मैं उसे इस जवाब के अलावा और कोई जवाब नहीं दे सका — “सचमुच में मुझसे गलती हो गयी। इसके लिये मुझे माफ करो। ”

अब तो नौकर को अपने ऊपर घमंड हो गया उसने घमंड से उस सुन्दर स्त्री का घर मुझे दिखाया और वहाँ से चला गया। उसने खुद ही ने दोनों लाशों को दफ़न कर दिया।

अब उस अपराध को करने में मेरा कोई हिस्सा नहीं था। अब तो बस मैं अपनी उस सुन्दर स्त्री से मिलना चाहता था। बड़ी मुश्किल से ढूँढते ढूँढते शाम तक मैं उस सड़क पर पहुँचा जहाँ नौकर ने मुझे बताया था कि वह वहाँ रहती थी।

उसके घर के दरवाजे के पास एक कोने में बैठ कर मैंने सारी रात गुजारी। मैं सारी रात बहुत परेशान रहा। मुझे किसी दूसरे आदमी के कदमों की आहट भी सुनायी नहीं दी और न ही किसी ने मेरे मामलों के बारे में मुझसे कुछ पूछा।

इसी हालत में रात गुजर गयी और सुबह हो गयी। जब सूरज निकल आया तब घर के एक छज्जे की खिड़की से सुन्दर लड़की ने मेरी तरफ देखा। मेरा दिल ही जानता है कि उस समय मैं कितना खुश था। मैंने खुदा को दुआ दी।

इस बीच एक नौकर आया और बोला — “जाइये और इस मस्जिद में जा कर ठहर जाइयेे। हो सकता है कि वहाँ उस जगह में आपकी इच्छाएँ पूरी हो जायें।

उसकी सलाह के अनुसार मैं वहाँ से उठा और मस्जिद की तरफ चल दिया। पर मेरी आँखें उस घर के दरवाजे पर ही जमीं रहीं यह देखने के लिये कि पता नहीं भविष्य में मुझे उसके पीछे से जाने क्या दिखायी दे जाये।

मैं शाम को ऐसे लोगों का इन्तजार करता रहा जो रमज़ान के महीने में रोज़े रखते हैं। [3] आखिर शाम आयी। दिन का भारी बोझ मेरे दिल मे उतर गया।

मैं उस जगह से उठा जहाँ मेंने रात बितायी थी कि तभी कहीं से वही नौकर मस्जिद में आ गया जिसने मुझे सुन्दर स्त्री का पता बताया था। शाम की प्रार्थना खत्म करने के बाद वह मेरे पास तक आया। वह आदमी जो मेरे सब भेदों में मेरा साथी था उसने मुझे बहुत तसल्ली दी।

फिर उसने मुझे एक छोटे से बागीचे में बिठाया और कहा — “आप यहीं बैठिये जब तक आपकी मालकिन को देखने की इव्च्छा पूरी नहीं हो जाती। ”

फिर वह खुद मुझसे विदा ले कर चला गया – शायद मेरी इच्छा को सुन्दर स्त्री को बताने। मैं बागीचे के फूलों को देखते हुए और उनकी सराहना करते हुए और पूनम के चाँद को देखता हुआ वहीं बैठा रह गया। नहरों और फव्वारों के देखता रहा। ऐस लग रहा था जैसे सावन भादों के महीनों में लगता है।

पर जब मैंने खिले हुए गुलाबों की तरफ देखा तो मुझे सुन्दर गुलाब के फूल जैसे देवदूत की याद आयी। और जब मैंने चमकीले चाँद की तरफ देखा तो मुझे उसके चाँद जैसे चेहरे की याद आयी।

ये सब दृश्य मेरी आँखों में काँटों की तरह चुभ रहे थे।

आखिर खुदा ने उसका दिल मेरे लिये मुलायम बना दिया। कुछ देर बाद ही वह सुन्दर स्त्री बागीचे के दरवाजे से पूरे चाँद जैसी बागीचे के अन्दर घुसी। वह एक बहुत ही कीमती पोशाक पहने थी मोती पहने थी और सिर से पैर तक सफेद कढ़े परदे में ढकी थी।

वह बागीचे में बने हुए रास्तों पर चल कर आ रही थी और आ कर मुझसे कुछ दूरी पर आ कर खड़ी हो गयी। जैसे ही वह बागीचे में आयी तो मेरे दिल की खुशी और बागीचे की सुन्दरता दोनों बहुत बढ़ गयीं।

बागीचे में कुछ मिनट घूमने के बाद वह उस बागीचे के एक कुंज में एक बड़े कीमती कढ़े हुए मसनद के सहारे बैठ गयी। मैं दौड़ा और जैसे रोशनी के चारों तरफ मौथ घूमती रहती है और अपनी ज़िन्दगी को उसको दे दिया। मैं उसके सामन हाथ जोड़े खड़ा था।

उसी समय वह नौकर वहाँ आया और उसने मेरी तरफ से उस सुन्दर स्त्री से मेरे लिये माफी माँगी कि वह मुझे माफ कर दे। मैंने भी उसकी तरफ देखते हुए कहा — “मैं भी अपनी गलती मानता हूँ और सजा पाने के लायक हूँ जो भी सजा मेरे लिये बतायी जाये। वही सजा मुझे दी जाये। ”

वह स्त्री हालाँकि यह सुन कर कुछ नाराज सी हो गयी पर फिर भी उसने घमंड से कहा — “सबसे अच्छी बात जो इसके लिये की जा सकती है वह है कि इसको 100 थैले सोने के टुकड़ों के दिये जायें। और उसको उसकी सब चीज़ें मिल जाने के बाद इसको इसके देश वापस भेज दिया जाये। ”

इस बात को सुन कर तो मैं जैसे जम सा गया। उस समय अगर मेरा कोई हाथ काटता तो तो उसमें से कोई खून न निकलता। यह सुन कर यह सारी दुनिया मुझे मेरी आँखों के सामने अँधेरी दिखायी देने लगी। मेरा दिल बिल्कुल निराश हो गया। उससे निराशा की गहरी साँसें निकलने लगीं।

मैंने हिम्मत करके उससे कहा — “ओ बेदर्द सुन्दर स्त्री। एक पल के लिये ज़रा सोचो तो। कि अगर इस बदकिस्मत के दिल में दुनिया की दौलत की ऐसी कुछ इच्छा होती तो उसने अपनी ज़िन्दगी और अपना सब कुछ तुमको क्यों सौंप दिया होता।

क्या यही मेरी सेवाओं का फल है। और मेरा अपनी ज़िन्दगी को तुम्हें दे देना क्या सब कुछ इस दुनिया से एकदम ही उठ गया कि तुमने मुझ जैसे नीच की तरफ अपनी इतनी नफरत दिखायी।

वह सब ठीक है कि मेरी ज़िन्दगी अब मेरे लिये किसी काम की नहीं, किसी बेवफा प्रेमी के सामने किसी मजबूर अधमरे प्रेमी के पास कोई सहायता नहीं होती। ”

ये शब्द सुन कर तो वह बहुत बुरा मान गयी। गुस्से से काँपते हुए वह बोली — “बहुत अच्छे। क्या तुम मेरे प्रेमी हो। क्या अब मेंढकी को भी ज़ुकाम होने लगा है। ओ बेवकूफ। तुझ जैसे के लिये जैसी हालत में तू है ऐसी कल्पना की दुनियाओं में घूमना ठीक नहीं। छोटे मुँह बड़ी बात ठीक नहीं होती।

अब इससे आगे और कुछ नहीं। बस चुप रहो। ऐसी भाषा फिर नहीं बोलना। अगर किसी और ने इस तरीके से मुझसे बरताव किया होता तो खुदा कसम मैंने उसके शरीर के टुकड़े करके काइट चिड़िया को दे दिये होते। पर मैं क्या कर सकती हूँ। तुम्हारी सेवाएँ मुझे याद आ जाती हैं। बस अब सबसे अच्छा यही है कि तुम अपने घर चले जाओ। तुम्हारी किस्मत में मेरे घर का खाना पीना केवल अब तक लिखा था। ”

मैं यह सुन कर रो पड़ा और बोला — “अगर मेरी किस्मत में यही लिखा था कि मुझे मेरे दिल की चीज़ न मिले और मैं जंगलों और पहाड़ों में मारा मारा घूमता फिरूँ तब तो मेरे पास इसका कोई इलाज ही नहीं है। ”

यह सुन कर वह थोड़ी सी दुखी हो गयी। वह बोली — “यह चापलूसी मुझे अच्छी नहीं लगती। यह सब तुम उसी को कहना जिनको यह अच्छी लगती हो। ”

फिर वह उसी गुस्से के मूड में उठ गयी और अपने घर वापस चली गयी। मैंने उससे बहुत विनती की वह मेरी बात सुन कर तो जाये पर जो कुछ भी मैंने कहा वह उसने नहीं माना। और कोई चारा न देख कर दुखी हो कर और निराश हो कर मैंने भी वह जगह छोड़ दी।

थोड़े में कहो तो फिर मैं 40 दिन तक उसी हालत में घूमता रहा। जब मैं शहर की सड़कें नापता नापता थक गया तो फिर मैं जंगल चला गया। और जब मेरा मन वहाँ भी नहीं लगा तो मैं पागलों की तरह से शहर लौट आया। मैं दिन में अपने खाने के बारे में नहीं सोचता और रात में सोने बारे में नहीं सोचता। मैं तो बस धोबी का कुत्ता बन कर रह गया जो घर का होता है न घाट का। [4]

इन्सान तो खाने और पीने के ऊपर ही ज़िन्दा रहता है। वह तो अनाज का कीड़ा है। मेरे शरीर के अन्दर अब ज़रा सी भी ताकत नहीं रह गयी थी। मैं बहुत कमजोर हो गया था।

मैं उसी मस्जिद की दीवार के सहारे जा कर लेट गया। कि एक दिन फिर वही नौकर वहाँ अपनी शुक्रवार की नमाज पढ़ने के लिये आया तो मेरे पास से गुजरा। मैं उस समय अपनी कमजोर आवाज में यह कविता गाये जा रहा था –

मेरे दिमाग को ताकत दे ताकि मैं अपने दिल की इच्छाओं को जीत सकूँ

जो कुछ भी मेरी किस्मत में लिखा है ए खुदा वह सब मेरे साथ जल्दी ही हो जाये

हालाँकि मेरी शक्ल सूरत देखने में बहुत बदल गयी थी। जिन्होंने मुझे बहुत पहले देखा था वे तो शायद अब मुझे पहचान भी नहीं सकते थे कि क्या मैं वही आदमी था। फिर भी नौकर ने मेरी आहें सुन कर मेरी तरफ देखा तो मुझे सलाम करके मेरा ध्यान अपनी तरफ खींचा। मेरे ऊपर दया दिखायी।

और बहुत ही नरमी से मुझसे बोला — “आखिर इस हालत तक पहुँचने के लिये तुम खुद ही जिम्मेदार हो। ”

मैं बोला — “जो होना था सो हो गया है। मैंने अपना सब कुछ उसके नाम कर दिया है। यहाँ तक कि अपनी ज़िन्दगी भी। उसकी यही खुशी थी। अब मैं क्या करूँ। ”

यह सुन कर उसने अपना एक नौकर मेरे पास छोड़ा और मस्जिद में चला गया। जब वहाँ उसने अपनी प्रार्थना खत्म कर ली और खुतबा[5] सुन लिया तो मेरे पास आया और एक पालकी में बिठा कर मुझे उस सुन्दर स्त्री के घर ले गया और बाहर चिक के पास बिठा दिया।

हाालँकि अब मेरे अन्दर पहले जैसा तो कुछ बचा नहीं था पर क्योंकि मैं सुन्दरी के साथ बहुत दिनों तक रहा था इसलिये शायद उसने मुझे पहचान लिया होगा। पर फिर भी मुझे अच्छी तरह जानते हुए भी उसने मुझसे एक अजनबी की तरह बात की।

उसने नौकर से पूछा कि मैं कौन था। उस बढ़िया आदमी ने जवाब दिया — “यह वही अभागा बदकिस्मत नीच आदमी है जो योर हाइनैस के गुस्से का शिकार हो गया है। इसी लिये इस बेचारे की यह हालत हो गयी है।

यह प्रेम की आग में जल रहा है। इस आग को बुझाने के लिये इस बेचारे को और कितने आँसुओं का पानी बहाना पड़ेगा। फिर भी तो वह और दुगुने ज़ोर से जल रहा है।

कोई चीज़ उसको कोई फायदा नहीं पहुँचा रही। इसके अलावा वह अपनी गलती करने की ग्लानि से मरा जा रहा है। ”

सुन्दर स्त्री ने कहा — “तू झूठ क्यों बोल रहा है। कई दिन पहले मुझे अपने खबरदारों[6] से पता चला है कि वह अपने देश में आ गया है। खुदा जाने यह कौन है जिसके बारे में तुम बोल रहे हो। ”

तब नौकर ने हाथ जोड़ते हुए कहा — “अगर मेरी जान बख्श दी जाये तो मेैं हिम्मत से कुछ कहूँ। ”

सुन्दर स्त्री बोली — “तुम्हारी ज़िन्दगी सुरक्षित है बोलो। ”

नौकर बोला — “योर हाइनैस तो बहुत बढ़िया जज हैं। खुदा के लिये अपने सामने से परदा उठाइये और पहचानिये इसको। तरस खाइये इसकी दुखभरी ज़िन्दगी पर। किसी का ऐहसान न माना कोई अच्छी बात नहीं है।

जितनी भी दया तुम इसकी इस हालत के लिये महसूस करो उसका सबका स्वागत है। इससे ज़्यादा कहना योर हाइनैस की इज़्ज़त के खिलाफ होगा। जो कुछ भी योर हाइनैस इसको देंगी वही इसके लिये सबसे अच्छा होगा। ”

नौकर की यह बात सुन कर वह स्त्री मुस्कुरायी और बोली — “ठीक है। यह जो कुछ भी है इसे वही रहने दो। इसे अस्पताल में ले जाओ और जब यह वहाँ ठीक हो जायेगा तब इसकी हालत फिर से पूछी जायेगी। ”

नौकर बोला — “अगर आप अपने शाही हाथों से इसके ऊपर गुलाबजल छिड़क दें और इससे दो शब्द दया के बोल दें तो इसको अपनी ज़िन्दगी की थोड़ी बहुत आशा हो जायेगी। क्योंकि निराशा बहुत खराब चीज़ है। दुनिया आशा पर ही जीती है। ”

इतना कहने के बाद भी सुन्दर स्त्री ने मुझसे तसल्ली के लिये कुछ नहीं कहा।

यह सुन कर अब मैं ज़िन्दगी से ऊब चुका था। मैंने निडर हो कर कहा — “मैं इन शर्तों पर और जीना नहीं चाहता। मेरे पाँव कब्र में लटक रहे हैं और मैं बहुत जल्दी मरने वाला हो रहा हूँ। मेरा इलाज तो योर हाइनैस बस अब आपके ही हाथों में है। अब आप चाहे तो मेरा इलाज करें या नहीं यह आप ही जानती हैं। ”

आखिर अल्लाह ने उस पत्थर दिल का दिल कुछ मुलायम किया। उसके चहरे पर कुछ चमक आयी और वह बोली — “जाओ जल्दी से शाही डाक्टरों को बुलाओ। ”

जल्दी ही वे सब वहाँ आ गये। उन्होंने मेरी नाड़ी देखी मेरा पेशाब टैस्ट किया और काफी देत तक सोचने विचारने के बाद इस फैसले पर पहुँचा गया कि इस आदमी को किसी से प्यार हो गया है और इसका कोई और इलाज नहीं है कि इसको इसके प्रेमी से मिलवा दिया जाये। जब इसका प्रेमी इसको मिल जायेगा तब यह ठीक जायेगा।

डाक्टरों का यह कहना मेरे कहने से मेल खाता था सो सुन्दर स्त्री ने कहा — “इसको ले जा कर गरम पानी से नहलाओ। नहला धुला कर इसको बढ़िया कपड़े पहनाओ और फिर मेरे पास लाओ। ”

वे तुरन्त ही मुझे नहलाने के लिये ले गये। मुझे ठीक से नहलाया धुलाया अच्छे कपड़े पहनाये और फिर वे मुझे उस सुन्दर स्त्री के सामने ले गये।

तब सुन्दरी ने दया से कहा — “तुमने मुझे बराबर और बेकार में ही बेइज़्ज़त किया है। अब बताओ तुम मुझसे इससे ज़्यादा और क्या चाहते हो। जो भी तुम्हारे दिल में है मुझसे साफ साफ बताओ। ”

सो ओ दरवेशों। उस समय मेरे मन में ऐसी भावनाएँ उठ रही थीं कि मुझे लगा कि मैं तो खुशी के मारे मर ही जाऊँगा। मैं तो अपनी पोशाक में से बाहर ही निकला पड़ रहा था। मेरी तो शक्ल ही बदल गयी थी।

मैंने खुदा को धन्यवाद दिया और उस स्त्री से कहा — “इस समय तुम्हारे ही हाथों में सारी कला रखी है जो तुमने मुझ जैसे मरे हुए आदमी के शरीर में केवल एक शब्द से ज़िन्दगी डाल कर उसको जिला लिया। तुम्हारी मेहरबानी दिखाने से देखो न मेरे हालात कितने बदल गये हैं। ”

कह कर मैंने उसके तीन चक्कर काटे और फिर उसके सामने खड़े हो कर मैंने उससे कहा — “तुम्हारा हुकुम है कि मैं तुमसे वह कहूँ जो मेरे दिल में है यह तो तुम्हारे गुलाम के लिये सात राज्यों से भी ज़्यादा कीमती है।

तो मेरे ऊपर मेहरबान हो और मुझ नीच को अपनी सेवा में रख लो। मुझे अपने कदमों में जगह दे कर मुझे ऊपर उठा लो। ”

यह सुन कर वह कुछ पलों के लिये विचार में पड़ गयी फिर बोली — “नीचे बैठ जाओ। तुम्हारी सेवाएँ और तुम्हारी वफा इतनी ज़्यादा है कि जो कुछ भी तुम कहते हो वही होगा। वह सब मेरे दिल पर खुदा हुआ है। मैं तुम्हारी बात मानती हूँ। ”

उसी दिन उस खुश घड़ी में शुभ तारे में काज़ी ने बिना किसी शोर शराबे के हमारी शादी करा दी। इतने दुखों और तकलीफों के बाद अल्लाह ने मुझे यह खुशी का दिन दिखाया जब मेरे दिल की इच्छा पूरी हुई।

पर उसी उत्साह में जब मेरे दिल ने उस देवदूत को अपना बनाना चाहा तो उसने महसूस किया कि वह भी उसी तरह से यह जानने के लिये बेचैन था कि उस दिन जो ये सब अजीब घटनाएँ हुईं उनका क्या असर होगा।

क्योंकि उस समय तक मुझे भी यह पता नहीं था कि वह कौन थी उसके साथ वाला वह कत्थई नीग्रो कौन था जिसने केवल एक कागज का एक टुकड़ा देख कर सोने से भरे इतने सारे थैले दे दिये थे। और कैसे उस शाही दावत और आनन्द का इन्तजाम केवल एक प्रहर समय में ही हो गया था।

और वे दो भोले भाले लोग आनन्द करने के बाद क्यों मार दिये गये। फिर उसने मेरी सेवाओं और भला करने के बदले में मेरे ऊपर गुस्सा क्यों किया और इस सबके बाद फिर इस नीच को खुशी की इतनी ऊँचाई पर क्यों उठा दिया। थोड़े में कहो तो यह सब मेरी समझ में नहीं आ रहा था बल्कि उलटे शक पैदा कर रहा था।

शादी की रस्मों के आठ दिन बाद तक उसको बहुत प्यार करने के बावजूद मैं उसको छू भी नहीं सका। मैं बस रात को उसके पास सोता और सुबह को उठ जाता जैसे कुछ हुआ ही न हो।

एक सुबह मैंने एक नौकर से चाहा कि वह मेरे नहाने के लिये पानी गरम कर दे। राजकुमारी मुस्कुरायी और बोली — “गरम पानी कराने की क्या जरूरत है। ”

मैंने उसकी इस बात का कोई जवाब नहीं दिया चुप ही रहा। पर वह मेरे इस व्यवहार से परेशान हो गयी। इसके अलावा उसकी आँखों में उसका गुस्सा साफ झलक रहा था।

वह इतना ज़्यादा गुस्सा थी कि एक दिन उसने मुझसे कहा — “तुम तो वास्तव में बड़े ही अजीब आदमी निकले। एक तरफ तो तुम बड़े प्यार से व्यवहार करते हो दूसरी तरफ बोलते भी नहीं। ऐसे व्यवहार को लोग क्या कह कर पुकारेंगे। अगर तुम्हारे अन्दर आदमी जैसा व्यवहार नहीं है तो फिर तुमने मुझसे ऐसी बेवकूफी भरी इच्छा ही प्रगट क्यों की। ”

मैंने निडर हो कर जवाब दिया — “मेरी प्यारी। किसी भी आदमी के लिये न्याय एक धर्म है। किसी को भी न्याय के धर्म से डिगना नहीं चाहिये। ”

वह बोली — “अब और कौन सा न्याय रह गया है। जो कुछ होना था वह तो सब हो ही गया है। ”

मैंने उसको सच ही कहा जो मेरे दिल के अन्दर से इच्छा थी पर मेरा दिल शक और बेचैनी से भरा हुआ था और जिस आदमी के दिमाग में शक और चिन्ताएँ भरी रहती हैं वह कुछ कर नहीं सकता और दूसरे प्राणियों से अलग हो जाता है।

इसलिये मैंने अपने मन में पक्का इरादा कर लिया था कि इस शादी के बाद जो कि मेरी बहुत ज़्यादा इच्छा थी मैं योर हाइनैस से इन छोटी मोटी चीज़ों के बारे में जो मेरी समझ में नहीं आ रही थीं और जिनकी मैं कोई वजह नहीं ढूँढ पा रहा था उनकी वजह शायद मैं तुम्हारे होठों से साफ साफ समझ सकूँ। और तब मेरे दिल को कुछ तसल्ली मिल सके। ”

सुन्दर स्त्री ने गुस्से में भर कर कहा — “यह कैसे ठीक हो सकता है कि राीति रिवाज के खिलाफ तुम मेरी प्राइवेट बातों में दखल दो। ”

मैंने हँसते हुए कहा — “अब जब तुमने मेरी और बड़ी बड़ी गलतियों को माफ कर दिया है तो मेरी इस गलती को भी माफ कर दो। ”

उस सुन्दरी ने अपने चेहरे के प्यार के भाव बदलते हुए और उस पर अंगार लाते हुए कहा — “तुम अपने आप ही बहुत कुछ सोच लेते हो। जाओ तुम अपना काम देखो। तुम्हें इसकी सफाई सुन कर क्या मिलेगा। ”

मैंने कहा — “सबसे ज़्यादा शरमिन्दगी की बात तो इस दुनिया में यह है कि जब लोग अपना स्वभाव दिखा देते हैं जबकि हम उसी बारे में एक दूसरे से बात करते रहते हैं। इसलिये जैसा कि तुमने सोचा कि कुछ घटनाएँ तुमने मेरे साथ साझा बाँटी तो फिर ये दूसरी घटनाएँ मुझसे क्यों छिपा रही हो। ”

उसकी समझ अच्छी थी। उसने मेरा इशारा समझ लिया। वह बोली — “यह सच है। पर मुझे डर है कि अगर मैंने तुम्हें अपने भेद बता दिये तो बहुत बड़ी मुसीबत आ सकती है। ”

मैं बोला — “ऐसे तुम्हारे पास कौन से भेद हैं। मेरे बारे में तुम ऐसा मत सोचो। तुम जो कुछ भी मुझे बताओगी मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ कि वे बातें मेरे दिल में से निकल कर मेरे होठों पर कभी नहीं आयेंगी। और जब मैं उनको कभी कहूँगा ही नहीं तो फिर दूसरे के कानों तक पहुँचेंगी कैसे। तुम बेधड़क हो कर मुझसे अपनी सब बातें मुझसे कह सकती हो। ”

जब उसको यह लगा कि जब तक वह मेरी उत्सुकता को शान्त नहीं कर देगी तब तक उसको चैन नहीं पड़ेगा और उसके पास कोई ओर चारा न बचा तो वह बोली —

“बहुत सारी बुराइयाँ इन मामलों की सफाई जानने में लगी रहती हैं पर तुमने तो जिद पकड़ रखी है। ठीक है मुझे तुम्हें खुश करना ही चाहिये इसी लिये मैं तुम्हें अपनी पुरानी ज़िन्दगी के बारे में बता रही हूँ। ख्याल रखना। इनको दुनिया से छिपा कर रखना तुम्हारे लिये भी उतना ही जरूरी है। मैं इसी शर्त पर में तुम्हें यह बताने जा रही हूँ। ”

थोड़े में कहो तो काफी कहने सुनने के बाद उसने अपनी ज़िन्दगी के बारे में बताना शुरू किया — “यह अभागी नीच जो तुम्हारे सामने बैठी है यह दमिश्क के राजा की बेटी है। वह कई राजाओं के राजा हैं। उनके मेरे सिवा और कोई बच्चा नहीं था। जिस दिन से मैं पैदा हुई तो मुझे बड़े लाड़ प्यार से पाला गया। मैं हमेशा हँसी खुशी में पली। मेरे माता पिता मुझे बहुत प्यार करते थे।

जब मैं बड़ी हुई तो मैं बहुत सुन्दर स्त्रियों से आकर्षित हो गयी। सो मैं अपने साथ अमीर और कुलीन घराने की सुन्दर सुन्दर लड़कियों को रखने लगी। अपनी नौकरानियों को भी मैंने अपनी ही उम्र वाली सुन्दर लड़कियों को रखा। मैं हमेशा नाच गाने में लगी रहती। दुनिया की अच्छाइयों और बुराइयों से मेरा कोई मतलब नहीं था। मैं बस अल्लाह की प्रार्थना करती और किसी की भी परवाह नहीं करती।

अब ऐसा हुआ कि एक बार मेरे विचार अचानक ही कुछ ऐसे बदले कि अब मुझे किसी दूसरे का साथ अच्छा नहीं लगता था। यहाँ तक कि वे लड़कियाँ भी अब मुझे वह खुशी नहीं देतीं जो वे मुझे पहले दिया करती थीं। अब मेरी किसी से बात करने की भी इच्छा नहीं होती।

मेरी यह हालत देख कर मेरी साथिनें बहुत दुखी हुईं और मेरे कदमों पर गिर पड़ीं और मेरे इस दुख की वजह जानने की जिद करने लगीं।

मेरा यह नौकर जो बहुत पहले से मेरे सारे भेदों को जानता है और जिससे मेरा कोई भी काम छिपा नहीं है बोला — “अगर राजकुमारी जी इसमें से थोड़ा सा लैमनेड[7] पी लेंगी तो शायद राजकुमारी जी का यह खराब मूड ठीक हो जाये और उनका दिल खुश हो जाये। ”

उसने उसकी इतनी तारीफ की कि मेरे दिल में उसे पीने की इच्छा हो आयी और मैंने उसको बनाने का तुरन्त ही हुकुम दे दिया। वह नौकर उसको बनाने के लिये बाहर चला गया और कुछ देर बाद एक नौजवान लड़के को साथ ले कर लौटा।

मैंने उसे पी लिया और देखा कि जैसा उसने कहा था वह वैसा ही ताजा कर देने वाला निकला। उसकी इस सेवा पर मैंने उस नौकर को एक खिलात[8] दी और उससे कहा कि वह वैसा ही एक गिलास मुझे रोज शाम को दे जाया करे। सो उस दिन से वह उसके रोजमर्रा के काम में शामिल हो गया।

अब वह नौकर रोज उस लड़के के साथ आता। वह लड़का मेरे लिये उसका एक गिलास लाता और मैं उसको पी लेती। जब उसका नशा मुझ पर चढ़ जाता तो मैं उसको उस लड़के के साथ हँसी मजाक में इस्तेमाल करती। और इस तरह से समय बरबाद करती।

जब उसकी झिझक खत्म हो गयी तब वह मुझसे बहुत अच्छी अच्छी बातें करने लगा। उसने मुझे बहुत सारे मजेदार किस्से सुनाये। इसके अलावा वह आहें भी भरता। उसका चेहरा बहुत सुन्दर और देखने लायक था। मैं उसे हद से कहीं ज़्यादा प्यार करने लगी।

मैं अपने दिल से उसका मजाक और हँसी पसन्द करती और उसको रोज ही कुछ न कुछ इनाम देती। पर वह नीच मेरे सामने रोज वही कपड़े पहन कर आता जिनको पहनने का वह आदी था। यहाँ तक कि वे गन्दे और मैले भी हो गये थे।

एक दिन मैंने उससे कहा — “तुमको तो खजाने से बहुत सारे पैसे मिल चुके हैं पर तुम बहुत ही गरीब आदमी की तरह से यहाँ आते हो। इसकी क्या वजह है। तुमने यह सारा पैसा खर्च कर दिया है या फिर इकठ्ठा कर रहे हो। ”

जब लड़के ने ये उत्साह भरे शब्द सुने तो उसने सोचा कि मैं उससे उसके हालात जानने की कोशिश कर रही हूँ तो वह रोते हुए बोला — “जो कुछ आपने इस गुलाम को दिया है मेरे गुरू ने मुझसे वह सब ले लिया है। उसने मुझको मेरे लिये उनमें से एक पैसा भी नहीं दिया है। तो मैं कपड़े कहाँ से बनवाऊँ और आपके सामने अच्छी पोशाक पहन कर कैसे आऊँ। इसमें मेरी कोई गलती नहीं है और न इसमें मैं कुछ कर सकता हूँ। ”

उसकी यह विनम्रता भरी बात सुन कर मुझे उस पर बहुत दया आयी। मैंने तुरन्त ही अपने नौकर से कहा कि वह उस लड़के की जिम्मेदारी ले ले। वह देखे कि वह लड़का ठीक से पढ़ रहा है और उसको अच्छे कपड़े दे। वह उसको दूसरे बच्चों के साथ न खेलने दे और न पढ़ाई से बचने दे। ”

मेरी इच्छा यह थी कि उसको अच्छे ढंग की शिक्षा दिलवायी जाये और उसको अच्छे ढंग का व्यवहार सिखवाया जाये तााकि वह मेरे यहाँ शाही नौकरी में काम कर सके और मेरे लिये रहे।

मेरे नौकर ने मेरा हुकुम माना और यह देखते हुए कि मैं उसके लिये क्या चाहती थी उसकी देखभाल की।

कुछ ही समय में आराम से और अच्छे ढंग से रहने की वजह से उसका रंग ऐसे खिल गया जैसे किसी साँप ने अपनी पुरानी केंचुली उतार फेंकी हो।

मैंने उसकी तरफ से अपना रुझान बहुत रोकने की कोशिश की पर उस सुन्दर रोग ने मेरे ऊपर न जाने कौन सा ऐसा जादू डाल दिया था कि वह मेरे दिल पर खुद गया था कि मुझे उसे अपने सीने से लगा कर रखना बहुत अच्छा लगता था। मैं एक पल को भी अपनी आँखें उससे हटाना नहीं चाहती थी।

आखिर मैंने उसको अपने साथ ही रख लिया। मैं उसको बहुत तरीकों के कीमती कपड़े पहनने को देती बहुत तरीकों के गहने पहनने को देती मैं उसको बहुत देर तक घूरती रहती।

थोड़े में कहो तो जब तक वह मेरे साथ रहता तब तक मेरी सब इच्छाएँ पूरी रहतीं। मेरे दिल को आराम रहता। मैं उसका हर कहा मानती। पर आखीर में मेरी हालत इतनी खराब हो गयी कि पर अगर किसी भी जरूरत के समय वह एक पल को भी मेरे साथ नहीं होता या मेरी नजर से दूर होता तो मैं बहुत बेचैन हो जाती।

कुछ साल बाद वह जवान हो गया। उसके दाढ़ी मूँछ आने लगे। उसका शरीर भरने लगा तब हमारे दरबारी लोग हमारे बारे में बात करने लगे। सब तरह के चौकीदार अब उसको अन्दर आने जाने से मना करने लगे। आखिरकार उसके महल में आने जाने के सब दरवाजे बन्द हो गये।

उसके बिना मैं बहुत बेचैन रहने लगी। उसका एक पल के लिये भी मुझसे अलग रहना मुझे ऐसा लगता जैसे बरसों बीत गये हों। जब मुझे यह निराशा बहुत सताने लगी तो मुझे ऐसा लगा जैसे “न्याय का दिन”[9] आ पहुँचा हो।

मेरी हालत ऐसी हो गयी कि मैं अपनी बात कहने के लिये एक शब्द भी नहीं बोल सकी और न ही उसके बिना रह सकी। मुझे किसी तरह भी आराम नहीं था। ऐसी हालत में मैंने अपने उसी नौकर को बुलाया जो मेरे सारे भेदों को जानता था।

मैंने उससे कहा — “इस नौजवान को मैं अपने पास रखना चाहती हूँ। असल में मेरा यह प्लान है कि तुम इसको 1000 सोने के सिक्के दे कर इसको चौक में एक जौहरी की दूकान खुलवा दो ताकि वह इस काम की कमाई पर ठीक से जी सके।

वह मेरे घर के पास अपने लिये एक बड़ा सा घर बनवा ले। फिर अपने लिये कुछ गुलाम खरीद ले। बँधी हुई तनख्वाह पर कुछ नौकर रख ले। इस तरह से वह हर तरीके से आराम से रह सके। ”

मेरे नौकर ने उसके लिये ऐसा ही कर दिया। उसने उसके लिये एक घर बनवा दिया उसके लिये एक जौहरी की दूकान खोल दी ताकि लोग उसके पास आते जाते रहें। और उसके लिये उसने वह सब कुछ तैयार कर दिया जो कुछ भी उसे चाहिये था।

बहुत जल्दी ही उसकी दूकान इतनी चल निकली कि जो भी कीमती खिलात और बढ़िया वाले जवाहरात किसी राजा को चाहिये थे वे केवल उसी की दूकान पर मिलते थे।

धीरे धीरे उसकी दूकान इतनी बढ़ने लगी कि हर देश का वेशकीमती सामान उसकी दूकान पर मिलने लगा। उसकी दूकान पर आने जाने वालों की स्ांख्या बढ़ने लगी। यहाँ तक कि दूसरे जौहरी अब दूकानों पर खाली बैठे नजर आते।

थोड़े में कहो तो अब कोई भी उसके साथ अपना मुकाबला नहीं कर सकता था – न तो अपने शहर में और न दुनिया में।

उसने इस दूकान से बहुत पैसा[10] बनाया पर उसका न होना मुझे बहत खलता रहा। मेरी दिमागी और शारीरिक हालत बहुत खराब होती जा रही थी। कोई भी चीज़ मेरा दिल नहीं बहला पा रही थी।

मुझे कोई ऐसा तरीका नहीं दिखायी दे रहा था जिससे मैं उससे मिल सकती। मेरे पास कोई ऐसा प्लान नहीं था जो मैं उस नौजवान को एक पल को भी देख सकती या मेरे धीरज को बाँधे रखता।

अब केवल यही एक तरीका रह गया था कि मैं उसके घर से अपने महल तक एक सुरंग खुदवा दूँ और उसकी सहायता से उससे जब चाहे मिल सकूँ। मैंने फिर अपने भरोसे वाले नौकर को बुलाया और अपनी यह इच्छा उसे बतायी।

कुछ ही दिनों में सुरंग बन कर तैयार हो गयी। अब मेरा नौकर हर शाम को उसको उसी सुरंग से चुपचाप छिपा कर मेरे पास ले कर आता। हम सारी रात खाते पीते आनन्द करते। मैं उससे मिल कर बहुत खुश थी। वह भी मेरे साथ बहुत खुश था।

जब सुबह का तारा निकलता मुवाज़ीन[11] सुबह की प्रार्थना की आवाज लगाता तब मेरा नौकर उसको उसी रास्ते से उसके घर वापस छोड़ आता। किसी चौथे आदमी को इस बात का पता नहीं था सिवाय मेरे नौकर के और दो आयाओं के जिन्होंने मुझे दूध पिलाया था और मुझे पाला पोसा था।

इस तरह भी काफी समय निकल गया। पर एक दिन ऐसा हुआ कि जब मेरा नौकर उसको उसके घर से लाने के लिये जा रहा था तो जैसा कि वह रोज करता था उसने देखा कि नौजवान कुछ दुखी और उदास बैठा है।

नौकर ने उससे पूछा — “क्या बात है आज सब ठीक है न। तुम इतने दुखी क्यों हो। चलो राजकुमारी के पास चलो उन्होंने तुम्हें बुला भेजा है। ”

नौजवान ने इस बात का न तो कोई जवाब दिया और न अपनी जबान ही हिलायी। नौकर वैसा ही चेहरा ले कर वापस आ गया और मुझे उस नौजवान की हालत बतायी।

अब लगता था जैसे कि शैतान मुझे बरबाद करने के लिये मेरे ऊपर चढ़ने को था तो मैं उसका यह व्यवहार जानते हुए भी अपने दिल से न निकाल सकी। अगर मैं जानती कि मेरा प्यार एक ऐसे नीच के लिये है तो मैं शायद बदनाम हो जाना ज़्यादा पसन्द करती। मैं अपने आपको बदनाम कर लेती और अपनी इज़्ज़त खो देती।

वह पल मुझे कम से कम यहाँ तक तो न पहुँचाता। मैं शायद प्रायश्चित ही पर लेती। मुझे अब यह नाम न तो अपने मुँह से निकालना चाहिये और ना ही ऐसे बेशरम आदमी को अपना दिल देना चाहिये। लेकिन ऐसा तो होना ही था।

क्योंकि मैंने उसके खराब व्यवहार और उसके न आने की तरफ ध्यान ही नहीं दिया। मैंने सोचा कि वह उसका प्यार है और उसका गर्व महसूस करने का ढंग है जो अक्सर उन लोगों में हो जाता है जो प्यार करने के लायक होते हैं और जो अपने आपको ऐसा समझते भी हैं।

उसका नतीजा अफसोस कि मैं अब भुगत रही हूँ और अब तुमको बता रही हूँ जिसने कभी उनको देखा नहीं कभी सुना नहीं। नहीं तो कहाँ तुम होते और कहाँ मैं होती। खैर अब तो जो होना था वह हो गया ये सब तो पुरानी बातें हैं।

उस गधे की बातों पर विचार न करते हुए मैंने एक बार फिर अपने नौकर को उसके पास यह कहते हुए भेजा कि “अगर तुम अभी मेरे पास नहीं आओगे तो फिर किसी तरह मैं तुम्हारे पास आऊँगी। पर मेरे वहाँ आने में बहुत गड़बड़ है। क्योंकि अगर यह भेद किसी पर खुल गया तो उसकी वजह तुम होगे।

इसलिये किसी तरह से ऐसा कोई व्यवहार न करना जिसका बदनामी के अलावा और कोई रास्ता न हो। इसलिये सबसे अच्छा तो यही है कि तुम मेरे पास जल्दी से जल्दी आ जाओ नहीं तो मैं तुम्हारे पास आती हूँ। ”

जब उसे यह सन्देश मिला तो उसे पता चला कि मेरा प्यार उसके लिये कितना ज़्यादा है। वह तुरन्त ही उदास चेहरा लिये मेरे पास चला आया।

जब वह मेरे पास बैठ गया तो मैंने उससे पूछा — “आज तुम्हारे इस ठंडेपन और नाराजी की वजह क्या है। तुम इससे पहले तो मेरा इस तरह से कभी अपमान नहीं किया। तुम तो मेरे बुलाने पर हमेशा ही चले आया करते थे। ”

वह बोला — “मैं तो बिना नाम का एक नीच आदमी हूँ। आपकी कृपा से और आपकी सहायता से आज मैं इतना ऊँचा पहुँच सका हूँ। और इस अमीरी में दिन काट रहा हूँ। मैं हमेशा आपकी ज़िन्दगी और खुशहाली की दुआ करता हूँ।

मैंने जो यह गलती की है वह अपनी पूरी समझ से की है और योर हाइनैस इस भरोसे पर की है कि वह मुझे माफ कर देंगी। मैं आपसे माफी की आशा रखता हूँ। ”

अब क्योंकि मैं उसको अपने पूरे दिल और जान से चाहती थी सो मैंने उसको माफ कर दिया। मैंने उसकी माफी भी स्वीकार कर ली। और बल्कि न उसकी इस गलती को माफ किया बल्कि उससे बड़े प्यार से फिर से यह भी पूछा कि उसको क्या परेशानी है जो वह खुद इतना परेशान हो गया है। वह बताये तो सही उसकी सारी परेशानी दूर कर दी जायेगी।

थोड़े में बड़ी नम्रता से उसने बताया — “मेरे लिये हर चीज़ मुश्किल हो गयी है। आपके लिये ओ हर हाइनैस सब कुछ आसान हो सकता है पर मेरे ल्यिे नहीं। ”

आखीर में उसके बताने से मुझे पता चला कि एक शानदार बागीचा बागीचे में एक शानदार घर जिसमें पानी के तालाब फव्वारे और कुँए भी थे और जिसकीे बिल्डिंगें बहुत ही होशियारी से बनायी गयी थीं यह सब बिकाऊ था। यह जगह उसके घर के पास शहर में थी। इसके साथ साथ एक दासी भी उसको बेची जा रही थी। यह दासी बहुत सुरीला गाती थी और बहुत अच्छी गायिका मानी जाती थी।

पर उसको दोनों एक साथ खरीदने पड़ रहे थे न कि बागीचा अकेला ही खरीदा जाये जैसे कोई बिल्ली ऊँट की गरदन से बँधी हो। [12]

सो जो कोई भी बागीचा खरीदेगा उसको वह दासी भी खरीदनी पड़ेगी। और उसकी सबसे अच्छी बात यह थी कि वह बागीचा तो 5000 रुपयों का ही था जबकि वह दासी 500 हजार रुपयों की थी।

सो बात थोड़े में कहो, तो वह बोला — “आपके इस वफादार गुलाम के पास तो इतना पैसा है नहीं। ”

मैंने देखा कि वह उनको खरीदने के लिये बिल्कुल तैयार था पर क्योंकि उसको पास पैसे नहीं थे इसलिये वह उदास था। हालाँकि वह मेरे पास ही बैठा था पर वह बहुत ही उदास और दुखी था।

क्योंकि मुझे उसकी खुशी बहुत प्यारी थी तो मैंने अपने नौकर को अगले दिन ही उस बागीचे और दासी की कीमत तय करने के लिये कह दिया। उसके बेचने के कागज आति सब देखभाल कर उसको पैसे देने को कह दिया।

यह हुकुम सुन कर उस नौजवान ने मुझे धन्यवाद दिया। उसकी आँखों में खुशी के आँसू आ गये थे। उसके बाद हमने वह रात पहले की तरह से हँसी खुशी बितायी। सुबह को वह चला गया।

मेरे नौकर मेरे हुकुम के अनुसार उस बागीचे का सौदा करके वह बागीचा और दासी खरीद ली और शाही खजाने से उनका पैसा दे दिया गया।

नौजवान ने पहले की तरह से अपना महल आना जारी रखा।

एक दिन जब वसन्त का मौसम था और सारी जगह बहुत खुश नजर आ रही थी बादल नीचे तैर रहे थे कभी कभार रिमझिम हो जाती थी बिजली भी चमक जाती थी ठंडी हवा पेड़ों में से हो कर बह जाती थी। सब कुछ बहुत अच्छा लग रहा था।

कि मेरी निगाह ताक[13] पर पड़ी तो मैंने वहाँ कई रंगों की शराब शानदार बोतलों में सजी रखी देखीं। उन्हें देख कर मेरे दिल में पीने की इच्छा जाग उठी। मैंने उनमें से 2–3 प्याले शराब पी ली। उसको पीने के बाद में मेरे दिमाग में आया कि जो नया वाला बागीचा खरीदा गया है थोड़ी देर उसमें घूम कर आया जाये।

जब दुर्भाग्य आने को होता है तो वह वैसी ही इच्छा जगा देता है और फिर उसको दबाना भी अपने काबू में नहीं होता। बस मैंने अपनी एक नौकरानी को साथ लिया और मैं नौजवान के बागीचे की तरफ अपने रास्ते से चल दी। और फिर वहाँ से मैं बागीचे की तरफ चल दी।

वहाँ जा कर मैंने देखा कि वह बागीचा तो वाकई ऐलीशियन के मैदान[14] जैसा सुन्दर है। तभी तभी बारिश हो कर चुकी थी सो उसकी ताजा बूँदें पेड़ों के ताजा पत्तों पर पड़ी हुई थीं। वे ऐसी लग रही थीं जैसे पन्ने में जड़े मोती लगते हैं। उस बारिश के दिन लाल कार्नेशन के फूल ऐसे लग रहे थे जैसे सूरज छिपने के बाद लाल आसमान। वहाँ की नदियों तालाबों आदि का पानी ऐसा लग रहा था जैसे कि साफ शीशा जिसके ऊपर छोटी छोटी लहरें उठ रही हों।

थोड़े में कहो तो मैं उस बागीचे में चारों तरफ को घूम रही थी कि तभी मुझे लगा कि दिन खत्म हो गया है और रात उतर आयी है। उसी समय नौजवान भी अपने बागीचे में घूमने के लिये उस बागीचे में आ गया।

उसने मुझे वहाँ देखा तो वह बड़ी इज़्ज़त और प्रेम के साथ मेरे पास आया और मेरा हाथ पकड़ कर अपने घर ले गया। जब मैं उसके घर में घुसी तो वहाँ का शानदार दृश्य देख कर तो मैं उसके बागीचे की सुन्दरता ही भूल गयी।

उसके कमरे की चमक धमक और शान शौकत चारों तरफ दिखायी दे रही थी झाड़फानूस की शक्लों में कई तरह के लैम्पशेड की शक्लों में। यह सब इतनी रोशनी फैला रहे थे कि शबरात[15] की चाँदनी भी इसके सामने अँधेरी लगने लगती। एक ओर हर तरह की आतिशबाजी हो रही थी।

इस बीच बादल छँट गये और चमकीला चाँद निकल आया जैसे कोई शानदार स्त्री गुलाबी कपड़ों में सजी बजी अचानक निकल आये।

यह तो बहुत ही अच्छा मनलुभावना दृश्य था। जैसे ही चाँद निकला नौजवान ने कहा — “चलो बाहर छज्जे पर चल कर बैठते हैं। वहाँ से बागीचा अच्छा दिखायी देता है। ”

मैं उसमें इतनी खो गयी थी कि उस नीच ने जो कुछ कहा मैंने वहीं मान लिया। वह इस तरह से नाचा कि वह मुझे घसीटते हुए ले कर छज्जे तक चलता चला गया।

बिल्डिंग बहुत ऊँची थी कि वहाँ से शहर का बाज़ार बागीचा सड़कें आदि सब उस बिल्डिंग की तली में दिखायी दे रहे थे। मुझे वहाँ से सारा दृश्य बहुत अच्छा लग रहा था। मेरी बाँहें उसके गले में पड़ी हुई थीं।

इसी बीच एक बहुत ही बदसूरत काली स्त्री जिसकी कोई शक्ल दिखायी नहीं दे रही थी वहाँ आयी जैसे वह किसी चिमनी में से निकल कर आ रही हो। उसके हाथ में वाइन की एक बोतल थी। उस समय उसके अचानक वहाँ आ जाने से मैं बहुत नाखुश हुई। जब मैंने उसकी तरफ देखा तो मैं डर गयी।

मैंने नौजवान से पूछा — “यह कीमती बुढ़िया कौन है। इसे तुम कहाँ से उठा लाये हो। ”

हाथ जोड़ कर वह बोला — “यही तो वह दासी है जो इस बागीचे के साथ आयी थी जो मैंने तुम्हारी सहायता से खरीदा था। ”

मैंने जान लिया था कि नौजवान उसको बड़ी उत्सुकता से खरीद कर ले कर आया था। शायद उसका दिल उस पर आया हुआ था।

इस वजह से मैं अपना गुस्सा अपने दिल में ही रोक कर चुप हो गयी। पर मेरा दिमाग उसी पल से बहुत परेशान हो गया और इस नाखुशी ने मेरे स्वभाव पर बहुत असर डाला। केवल इतना ही नहीं उस नीच ने इस वेश्या को हमारा साकी[16] बनाने की भी सोचा।

मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं अपना ही खून पी रही होऊँ। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे एक तोता एक कौए के साथ उसी पिंजरे में बन्द कर दिया गया हो। मेरे पास वहाँ से भागने का कोई मौका नहीं था और मैं वहाँ ठहरना नहीं भी चाहती थी।

कहानी लम्बी न हो इसलिये थोड़े में, उसकी शराब भी बहुत तेज़ थी इतनी कि उसको पी कर कोई भी आदमी जानवर बन जाये। उसने नौजवान को 2–3 प्याले जल्दी जल्दी पिला दिये। मैंने भी बड़ी मुश्किल से आधा प्याला उस जलती हुई शराब का पी लिया।

आखिरकार वह वेश्या खुद भी वह शराब पी कर धुत हो गयी और उस नौजवान के साथ बेशरमी का व्यवहार करने लगी। वह नीच बेशरम नौजवान भी शराब के नशे में बिना किसी की परवाह किये हुए बिना किसी की इज़्ज़त का ख्याल किये हुए गन्दे तरीके से व्यवहार करने लगा।

उनको उस तरीके से तो केवल व्यवहार करते देख कर ही मुझे अपने आप पर इतनी शर्म आ रही थी कि मैंने सोचा कि “यह धरती अगर फट जाये तो मैं इसमें समा जाऊँ। ” पर उसको प्यार करने की वजह से मैं वहाँ से आने के बाद भी उसी की रौ में बह गयी।

वह एक बहुत ही नीच नौजवान था। उसने मेरे प्यार को नहीं समझा। नशे में धुत होने के कारण वह दो प्याले शराब और पी गया। इससे उसके अन्दर जो कुछ बचा खुचा होश था वह भी चला गया।

बिना किसी शर्म के उसने मेरे सामने ही उस स्त्री के साथ अपनी इच्छा पूर्ति की और अशिष्ट व्यवहार की सीमा लाँघ गया। और वह स्त्री भी मेरे सामने उससे कुछ ज़रा ज़्यादा ही अशिष्ट व्यवहार करती रही। दोनों की आँखों में कोई शर्म नहीं थी किसी की कोई इज़्ज़त नहीं थी।

जैसे आत्माएँ देवदूत की तरह होती हैं। [17] मेरा दिमाग उस समय इस तरह का हो रहा था जैसे संगीत ने अपनी लय स्वर और ताल बिल्कुल छोड़ दिये हों और वह बिना स्वर और ताल के गा रहा हो।

मैं हर पल अपने आपको कोस रही थी जब मैंने वहाँ आने के लिये सोचा था। मुझे अपनी बेवकूफी का यह अच्छा नतीजा भुगतना पड़ रहा था। आखिर मैं उसको कब तक सहती। मेरे सारे शरीर में सिर से ले कर पैर तक आग लगी हुई थी।

मूझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं जलते हुए कोयलों पर लोट रही हूँ। अपने गुस्से में मुझे वह कहावत याद आयी कि “वह बैल नहीं है जो कूदता है वह तो उसका थैला कूदता है। ” ऐसा दृश्य किसने देखा होगा और उसे कौन बरदाश्त कर सकता है। ऐसा सोच कर मैं वहाँ से चली आयी।

उस नशे में धुत पियक्कड़ ने सोचा कि अगर अब इसको यह सब अच्छा नहीं लग रहा होगा तो पता नहीं कल यह मेरे साथ क्या व्यवहार करेगी और क्या क्या सवाल उठायेगी। सो जब तक मैं उसके कब्जे में थी उसने मुझे खत्म कर देने की सोची।

उस बदसूरत स्त्री की सलाह पर अपने दिमाग में ऐसा सोच कर उसने अपना पटका[18] अपने गले में डाला और आ कर मेरे पैरों में पड़ गया। फिर उसने अपनी पगड़ी अपने सिर से उतारी और उसको मेर कदमों में रख कर मुझसे बहुत विनम्रता से माफी माँगने लगा।

मेरा दिल अभी भी उसी से लगा हुआ था। वह जिधर घूमता मैं भी उधर ही घूम जाती। हाथ की चक्की की तरह से मैं पूरी तरह से उसके कब्जे में थी। मैं उसकी हर इच्छा को मन से पूरी करती।

खैर किसी न किसी तरीके से उसने मुझे शान्त कर दिया। मुझसे जिद की कि मैं अभी वहीं बैठूँ। उसने फिर से उसी जलती शराब के 2–3 प्याले पिये। साथ में उसने मुझसे भी पीने के लिये कहा।

गुस्से में तो मैं पहले से ही भरी थी दूसरे उसमें इतनी ज़्यादा तेज़ शराब पीने के बाद तो बहुत जल्दी ही अपने होश खो बैठी। मुझे कुछ याद नहीं रहा। तब उस बेदर्द बेवफा नीच ने अपनी तलवार से मुझे कोंचा। वह तब तक इस तरह से मुझे कोंचता रहा जब तक उसको यह नहीं लगा कि मैं मर गयी हूँ।

उस समय मेरी आँख खुलीं और मैं बोली — “मैंने तो जो किया उसका फल पाया पर तू भी बिना किसी वजह के मेरा खून बहाने के लिये बच नहीं पायेगा। ”

तुम कभी ऐसा मत होने देना कि कोई मुसीबत तुम पर आ जाये

तुम अपने दामन से मेरा खून धो लेना जो हो गया सो हो गया

यह भेद भी किसी को बताना भी नहीं। मैंने यह कभी नहीं चाहा कि तुम मर जाओ। ”

इस तरह उसको मैं खुदा की देखभाल में सौंप कर काफी खून बह जाने की वजह से फिर बेहोश हो गयी। उसके बाद मुझे पता नहीं फिर क्या हुआ।

शायद यह सोच कर कि मैं मर गयी हूँ उस कसाई ने मुझे एक बक्से में बन्द कर दिया और उसे किले की दीवार से नीचे उतार दिया। और वही तुमने देखा।

मैंने किसी का बुरा नहीं चाहा पर शायद ये सब बदकिस्मती मेरी किस्मत में लिखी थी और किस्मत की लकीरों को कोई नहीं मिटा सकता। इसी लिये मेरी आँखों को ये सब मुसीबतें देखनी पड़ीं।

अगर मुझे सुन्दर लोगों को देखने की इच्छा नहीं होती तो वह मेरी गरदन पर बैलों के जूए[19] की तरह से न रखा होता। पर खुदा ने कुछ इस तरह से मेरी जान बचायी कि उस समय तुम वहाँ आ गये और तुम मेरी ज़िन्दगी की वजह बने।

इतना अपमान होने के बाद भी और इतनी शरमिन्दगी के साथ भी मैं आज यह कह सकती हूँ कि मुझे अभी भी जीने की इच्छा है। मैं किसी को मुँह नहीं दिखा सकती पर मैं क्या करूँ मरना भी तो अपने हाथ में नहीं है।

खुदा ने ही मुझे मारा और फिर खुदा ने ही तुम्हें मेरे पास भेज कर मुझे ज़िन्दगी दी। अब देखना यह कि उसने मेरी किस्मत में भविष्य में क्या लिखा हुआ है। तुम्हारी मेहनत और उत्साह हर तरीके से मेरे काम आया। इसी से मेरे घाव ठीक हो सके।

तुम मेरी इच्छाओं को पूरा करने के लिये अपनी ज़िन्दगी और सम्पत्ति सब देने को तैयार हो। इसके अलावा और जो कुछ भी तुम्हारे पास है उसको भी तुम मुझे देने का तैयार हो।

उन दिनों तुमको इतना गरीब और दुखी देख कर मैंने एक नोट अपने खजांची सिद्दी बहार को लिखा। उस नोट में मैंने उसे लिखा कि “मैं एक ऐसी जगह हूँ जहाँ मैं तन्दुरुस्त और सुरक्षित हूँ। यह बात मुझ बदकिस्मत की बहुत अच्छी माँ को बता देना। ” बस सिद्दी बहार ने तुम्हारे हाथों मेरे लिये इतना सारा सोना भिजवा दिया।

और जब मैंने तुमको खिलात और गहने खरीदने लिये यूसुफ़ की दूकान पर भेजा तो मुझे पूरा विश्वास था कि वह नीच जो हर एक से दोस्ती करने के लिये हमेशा तैयार रहता था तुमको एक अजनबी समझ कर तुमसे भी दोस्ती बढ़ाना चाहेगा। अपने घमंड की वजह से तुमको खाने पर मौज मस्ती करने के लिये बुलाना चाहेगा।

मेरा यह सोचना ठीक ही रहा। उसने उसी तरह किया जैसा मैंने उसके बारे में सोचा था। और जब तुमने उससे यह वायदा किया कि तुम वापस जाओगे और तुम मुझसे उसकी जिद के बारे में पूछने आये तो मैं इस बात से बहुत खुश हुई।

क्योंकि मैं जानती थी कि अगर तुम उसके घर खाना खाने जाओगे तो बदले में तुम उसको अपने घर भी बुलाओगे। वह भी तुम्हारे घर आने के लिये बहुत इच्छुक होगा इसलिये मैंने तुमको बहुत जल्दी ही भेज दिया।

तीन दिन के बाद जब तुम उसके यहाँ आनन्द मना कर और बहुत आश्चर्य में लौटे और इतने समय घर से बाहर रहने के लिये मुझसे बहुत देर तक माफी माँगते रहे।

तो तुम्हारे दिमाग को शान्त करने के लिये मैंने तुमसे कहा — “कि यह कोई तरीका नहीं है कि जब उसने तुम्हें विदा किया तो तुम बिना किसी तौर तरीके के वहाँ से वापस लौट आओ। तुमको किसी का कर्जा इस तरह से बिना वापस दिये नहीं रखना चाहिये।

तुम जाओ और ऐसी ही दावत के लिये उसको भी अपने घर बुला कर लाओ। और उसको केवल बुला कर ही नहीं बल्कि अपने साथ ले कर आओ।

जब तुम उसको बुलाने के लिये चले गये तो मैंने देखा कि इतनी कम देर में तो हमारे घर में एक मेहमान के लायक कोई भी तैयारी नहीं हो सकती थी। और अगर वह तुरन्त ही आ जाता तो मैं क्या कर सकती थी।

लेकिन खुशकिस्मती से क्या हुआ कि, पता नहीं कब से, इस देश में यह रिवाज चला आ रहा था राजा लोग साल में आठ महीने बाहर रहा करते थे। इस समय में वे अपने देश के प्रान्तों के मामले देखा भाला करते थे और साथ में आमदनी इकठ्ठी करते थे।

बचे हुए बारिश के चार महीने वे अपने शानदार महलों में गुजारते थे। सो इत्तफाक से इस बदकिस्मत के पिता राजा अपने प्रान्तों की देख भाल करने के लिये बाहर गये हुए थे।

जब तुम उस नौजवान व्यापारी को लाने के लिये उसके घर गये हुए थे तो सिद्दी बहार ने मेरे हालात रानी को बता दिये। दोबारा अपनी गलती पर शरमिन्दा होते हुए मैं रानी जी के पास गयी और जो कुछ मेरे साथ हुआ था वह सब उनको बताया।

हालाँकि माँ के प्यार से और बात को बना कर रखने के लिये उन्होंने मेरी इतने दिनों की गैरहाजिरी को यह कहते हुए छिपा लिया — “खुदा जानता है इसका क्या नतीजा निकलेगा। उस समय उन्होंने इस खबर को मेरी बदनामी की वजह से सबको बताना ठीक नहीं समझा और मेरे लिये उन्होंने मेरे सारे राज़ अपने अन्दर ही छिपा कर रख लिये। पर वह सारा समय मुझे ढूँढती ही रहीं।

जब उन्होंने मुझे इस हाल में देखा और मेरी बदकिस्मती का सारा हाल सुना तो उनकी आँखों में आँसू भर आये। वह बोलीं — “ओ बदकिस्मत नीच। तूने शाही गद्दी की इज़्ज़त और शान में जान बूझ कर बट्टा लगाया है। तेरे ऊपर खुदा की लाख लाख कृपा है कि तू अभी तक मर नहीं गयी है।

अगर तेरी जगह मैं एक पत्थरों का बिस्तर खरीद लाती तो शायद ज़्यादा अच्छी रहती। हालाँकि पछताने के लिये अभी भी कोई देर नहीं हो गयी है। जो कुछ भी तेरी बदकिस्मती से हो गया है वह हो गया है। अब यह बता कि इसके आगे तू क्या करेगी। तू ज़िन्दा रहेगी या फिर मर जायेगी। ”

मैं बहुत ही शरमिन्दगी से बोली कि इस बेकार की नीच की किस्मत में यही लिखा हुआ है कि यह इतनी शरमिन्दगी में भी इतने खतरों में से निकल कर भी जिये।

वह तो खैर ज़्यादा ही अच्छा होता अगर मैं मर गयी होती क्योंकि मेरे माथे पर कलंक का टीका तो लग ही गया है पर फिर भी मैं किसी ऐसे काम के लिये अपराधी नहीं हूँ जिससे मेरे माता पिता की बदनामी हो।

मेरा प्लान यह है जैसा कि मैं समझती हूँ कि वे दोनों नीच मेरी आँखों के सामने से दूर हो जायें। अपने अपराधों की सजा का आनन्द दोनों एक दूसरे के साथ मिल कर ही भोगें जैसे मैंने उनके हाथों सहा है। यह बड़े दुख की बात है कि मैं उन्हें सजा देने के लिये कुछ नहीं कर सकती।

पर एक बात की तो मैं आपसे आशा कर ही सकती हूँ कि आप आज की शाम अपने एक नौकर के हाथों मेरे घर में मेरे मेहमान के लिये एक दावत और आनन्द का इन्तजाम कर दें। ताकि मैं उन नीचों को आनन्द के बहाने उनके कामों की सजा दे सकूँ और खुद खुश हो सकूँ।

उसी तरह से जिस तरह से उसने अपना हाथ मेरे ऊपर उठाया था और मुझे घायल किया था। मैं भी उनके शरीरों के टुकड़े टुकड़े काट सकूँ तभी मेरे मन को शान्ति मिलेगी। नहीं तो मैं इस आग में जलती ही रहूँगी और आखीर में जल कर राख हो जाऊँगी। ”

बेटी की यह बात सुन कर माँ अपने ममता भरे स्वभाव से कोमल बन गयी और मेरी सब गलतियाँ अपने दिल में छिपा लीं। मेरे उसी नौकर के हाथों जो मेरे सारे भेद जानता था उन्होंने दावत की सारी चीज़ें भेज दीं। जितने और नौकरों की जरूरत थी वे भी सब आये। सब अपने अपने काम में होशियार थे।

शाम को जब तुम हमारे उन नीच मेहमानों को ले कर आये तो मेरी इच्छा हुई उसके साथ वह वेश्या भी आये। इसी वजह से मैंने तुमसे कहा कि तुम उसको भी बुला भेजो। जब वह आ गयी तब और मेहमान भी आने शुरू हुए।

सब लोग वाइन पी पी कर नशे में धुत हो गये। तुम भी उनके साथ ही नशे में बेहोश से हो गये और मरे हुए के समान लेट गये। तब मैंने एक किल्माकिनी[20] से कहा कि वह अपनी तलवार से उन दोनों के सिर काट दे और उनके शरीरों पर उन्हीं का खून मल दे। उसने तुरन्त ही अपनी तलवार निकाली और दोनों के सिर काट दिये और उनके शरीरों पर उन्हीं का खून मल दिया।

तुम पर मेरे गुस्सा होने की वजह यह थी कि मैंने तुम्हें आनन्द करने की इजाज़त दी थी उनके साथ वाइन पीने की नहीं जिनको तुम केवल कुछ ही दिनों से जानते थे।

तुम्हारी यह बेवकूफी कुछ भी थी पर मुझे खुशी नहीं दे सकी क्योंकि जब तुमने जब तक पिया जब तक तुम धुत नहीं हो गये तो मैं तुमसे क्या सहायता लेती। बल्कि तुम्हारी सेवाओं ने मेरी गरदन को ऐसे जकड़ रखा था कि तुम्हारे इस व्यवहार के बाद भी मैंने तुमको माफ कर दिया।

देखो अब मैंने तुम्हें अपनी सारी कहानी शुरू से आखीर तक सुना दी है। क्या तुम्हारे दिल में कुछ और जानने की इच्छा है।

अपने उसी पुराने तरीके से जो मेरा है मैंने तुम्हारी सब इच्छाओं को पूरा कर दिया है। अब क्या तुम भी इसी तरीके से मेरी इच्छाओं को पूरा करोगे। इस मौके पर मेरी सलाह यह है कि इस समय हम दोनों का इस शहर में रहना ठीक नहीं है। आगे तुम्हारी इच्छा। ”

इतना कहने के बाद पहले दरवेश ने दूसरे तीनों दरवेशों से कहा — “ओ खुदा की सेवा में रहने वालो। राजकुमारी केवल इतना कह कर चुप हो गयी। जैसा कि मेरा स्वभाव था मैंने भी उसकी सलाह को सबसे ऊँचा दरजा दिया और उसके प्यार के धागे में बँध कर बोला — “जैसा तुम ठीक समझो मेरे लिये वही सबसे अच्छा है और मैं बिना किसी हिचक के वैसा ही करूँगा। ”

जब राजकुमारी ने देखा कि मैं उसकी हर बात मानूँगा और उसका नौकर बन कर रहूँगा तब उसने मुझे हुकुम दिया कि मैं शाही घुड़साल से बहुत बढ़िया जीन कसे हुए दो घोड़े अपनेे घर पर ला कर तैयार रखूँ।

जब रात कुछ घंटे ही बाकी रह गयी तो राजकुमारी ने आदमियों वाले कपड़े पहने पाँचों हथियार[21] अपने साथ लिये एक बढ़िया से घोड़े पर चढ़ी मैं भी अपने हथियार लिये दूसरे घोड़े पर सवार हुआ। हम दोनों एक ही दिशा में चल दिये।

जब रात बीत गयी दिन निकलने लगा तो हम लोग एक झील के किनारे पहुँच गये। वहाँ पहुँच कर हम अपने अपने घोड़ों से उतरे। हाथ मुँह धोये जल्दी जल्दी नाश्ता किया फिर अपने अपने घोड़ों पर चढ़े और आगे चल दिये।

कभी कभी राजकुमारी बोलती — “मैंने केवल तुम्हारे लिये ही अपना नाम सम्पत्ति इज़्ज़त देश अपने माँ बाप छोड़े अब तुम ऐसा मत होने देना कि कहीं तुम भी मेरे साथ उस जंगली बेवफा की तरह से व्यवहार करो। ”

कभी यात्रा को आरामदेय बनाने के लिये मैं कुछ और विषयों पर या फिर उसकी बात का जवाब देने के लिये भी कुछ बात करता। मैं उससे कहता — “राजकुमारी जी सारे आदमी एक से नहीं होते। वैसे लोगों के माता पिताओं में ही कुछ गड़बड़ी होती होगी तभी तो वे ऐसे काम करते हैं।

पर मैंने अपनी सारी धन दौलत और ज़िन्दगी तो आपको दे दी है और आपने भी मेरी बहुत अच्छे से इज़्ज़त की है। मैं तो आपका अब बेदाम का गुलाम हूँ। अगर आप मेरी खाल का जूता बनवा कर भी अपने पैर में पहनना चाहें तो पहन सकती हैं। मैं कोई शिकायत नहीं करूँगा। ”

इस तरह से हम लोगों के बीच इसी तरह की बातें होती चली जा रही थीं। दिन रात आगे बढ़ते रहना ही हमारा काम हो गया था। अगर कभी हम थकान की वजह से कहीं रुकते भी थे तो उस समय में जंगली जानवरों का शिकार कर लेते थे।

हम उनको कानून के अनुसार ही मारते थे। फिर उनको नमक लगाते थे उसके बाद चकमक पत्थर से आग जला कर उनको भूनते थे तब खाते थे। घोड़ों को हम घास खाने के लिये खुला छोड़ देते थे जो उनको वहाँ उनको पेट भर कर मिल जाती थी।

एक दिन हम लोग एक बहुत बड़े सपाट मैदान में पहुँचे जहाँ कोई नहीं रहता था। किसी आदमी का चेहरा देखने के लिये नहीं था।

अब क्योंकि राजकुमारी मेरे साथ थी तो मुझे सब कुछ बहुत अच्छा लग रहा था। दिन त्यौहार जैसे थे और रातें खुशी से कट जाती थीं। आगे बढ़ने पर हम एक बहुत बड़ी नदी पर आ गये जिसको देख कर पत्थर का दिल भी पिघल जाता।

हम लोग उसके किनारे खड़े इधर उधर चारों तरफ देख रहे थे तो दूसरे पार की जमीन कहीं दिखायी नहीं दी रही थी और न कहीं उसे पार करने का कोई रास्ता ही दिखायी दे रहा था।

उसको देखते ही मेरे मुँह से निकला — “ए खुदा। अब हम पानी के इस अथाह सागर को कैसे पार करेंगे। ”

हम वहाँ उसके किनारे पर खड़े हुए इस बारे में सोच ही रहे थे कि मेरे दिमाग में एक विचार आया कि मैं राजकुमारी को वहीं छोड़ दूँ और कहीं से एक नाव ढूँढ कर ले कर आऊँ। जब तक मैं कोई नाव ढूँढ कर ले कर आता हूँ राजकुमारी को भी आराम मिल जायेगा।

ऐसा सोच कर मैंने यह बात राजकुमारी से कही। मैं बोला — “अगर राजकुमारी जी मुझे इजाज़त दें तो मैं इधर उधर जा कर कहीं से कोई नाव ढूँढ कर लाता हूँ। ”

राजकुमारी बोली — “मैं बहुत थक गयी हूँ और मुझे भूख और प्यास भी लगी है। मैं यहाँ तब तक थोड़ी देर आराम करती हूँ जब तक तुम इस पानी को पार करने का कोई तरीका ढूँढ कर लाते हो। ”

उस नदी के पास ही एक बहुत बड़ा घना छायादार पीपल का पेड़ खड़ा था। वह इतना बड़ा घना और छायादार पेड़ था कि अगर उसके नीचे 1000 घुड़सवार भी खड़े हो जाते तो वे धूप और बारिश से बच जाते।

सो राजकुमारी को वहाँ छोड़ कर मैं चारों तरफ कुछ ऐसी चीज़ ढूँढता रहा जिससे हम वह नदी पार कर जायें या फिर कोई आदमी। मैंने काफी कुछ इधर उधर ढूँढा पर कुछ नहीं मिला।

आखिर निराश हो कर मैं वापस लौट आया पर उस पेड़ के नीचे मुझे वह राजकुमारी नहीं मिली। मैं अपने दिमाग की हालत आप सबको बता नहीं सकता कि मैं कितना परेशान था। मेरी सारी इन्द्रियों ने काम करना बन्द कर दिया था और मैं परेशान हो गया था।

कभी कभी तो मैं पेड़ पर चढ़ कर उसके हर पत्ते में हर शाख में राजकुमारी को ढूँढता। ऐसा करते करते मैं कभी कभी पेड़ से गिर भी जाता। और फिर उसको मैं जड़ों में ढूँढता। मुझे लगता जैसे उन्हीं ने उसको कहीं छिपा दिया है। कभी कभी मैं रोता और चीखता।

थोड़े में कहो तो मैंने उसको हर जगह छान मारा पर मुझे अपना वह कीमती जवाहरात नहीं मिला। आखिर मुझे लगा कि मैं अब उसे और नहीं ढूँढ सकता तो मैं फिर से रोने और अपने सिर पर धूल फेंकने लगा।

फिर मेरे दिमाग में यह विचार आया कि शायद कोई जिन्न उसको ले गया हो और उसी ने मुझे यह घाव दिया हो। या फिर किसी ने उसका उसके देश से पीछा किया हो और यहाँ उसको अकेले पा कर उसको दमिश्क जाने के लिये जिद की हो या फिर उसे जबरदस्ती वहाँ ले गया हो।

यह सब इधर उधर का सोचते हुए मैंने अपने कपड़े उतार कर फेंक दिये और एक नंगा फकीर बन गया।

मैं सुबह से शाम तक सीरिया राज्य में इधर उधर घूमता रहता और रात को किसी पेड़ के नीचे लेट जाता। इस तरह से मैं सारे राज्य में घूमा पर अपनी राजकुमारी के बारे में कुछ पता नहीं चला सका। न उसके बारे में किसी से कुछ सुन ही सका और न उसके गायब हो जाने की वजह ही जान सका।

तब मेरे दिमाग में यह विचार आया कि क्योंकि मैं अपनी प्यारी को सब जगह ढूँढ चुका था और मुझे उसका कोई पता नहीं चला था तो मैं अपनी ज़िन्दगी से भी थक चुका था। कि एक दिन मुझे एक अकेली जगह में एक पहाड़ दिखायी दे गया।

बस मैं उस पहाड़ पर चढ़ गया और उसकी चोटी से नीचे कूदने ही वाला था ताकि मैं अपनी इस बदकिस्मत ज़िन्दगी को खत्म कर दूँ। मैं इन पत्थरों पर अपने सिर के बल गिर कर अपनी जान दे दूँ ताकि यह इन सब दुखों से आजाद हो जाये।

यह इरादा करके मैं पहाड़ से कूदने के लिये नीचे की तरफ झुका ही था और अपना एक पैर भी उठा लिया था कि किसी ने मेरी बाँह पकड़ ली।

इस बीच मुझे कुछ होश आया तो मैंने अपने चारों तरफ देखा तो एक घुड़सवार को देखा जो हरे कपड़े पहने हुआ था और उसके चेहरे पर परदा पड़ा हुआ था।

वह बोला — “अरे तुम अपनी ज़िन्दगी दे देने पर क्यों उतारू हो। खुदा की दुआ से निराश होना पाप है। जब तक इन्सान के अन्दर साँस तब तक आस है। आने वाले समय में तीन दरवेश तुमसे रम[22] के राज्य में आ कर मिलेंगे जो सब तुम्हारी तरह से ही दुखी हैं। तुम्हारी तरह की ही मुसीबत में फँसे हुए हैं। वे तुम्हारे से थोड़ी सी ही छोटी परेशानी में उलझ गये थे।

उस देश के राजा का नाम आजाद बख्त है। वह भी बड़ी मुसीबत में है। जब वह तुमसे मिलेगा और बाकी के तीन दरवेश भी तुम्हारे साथ होंगे तब तुम सबके दिलों की सब इच्छाएँ पूरी हो जायेंगी। ”

मैंने इस देवदूत के पैर पकड़ लिये और बोला — “ओ खुदा का सन्देश लाने वाले। तुम कौन हो और तुम्हारा नाम क्या है। ”

उसने कहा — “मेरा नाम मुरतज़ा अली[23] है। और मेरा काम यह है कि जो लोग किसी परेशानी या खतरे में फँस जाते हैं मैं उनकी सहायता करने के लिये तुरन्त ही हाजिर रहता हूँ। ” इतना कह कर वह वहाँ से गायब हो गया।

थोड़े में कहो तो मेरे आध्यात्मिक गुरू यानी परेशानियों में से निकालने वाले ने मेरी उदासी को खुशी में बदल दिया। उसके बाद मैंने कौन्सटैनटिनोपिल[24] जाने का प्रोग्राम बना लिया। रास्ते भर मैंने इस आशा में कि मेरी राजकुमारी मुझे मिल जायेगी वे सब दुख सहे जो मेरी किस्मत में लिखे हुए थे।

अल्लाह की दुआ से अब मैं यहाँ हूँ और अपनी खुशकिस्मती से आप लोगों से आ कर मिल गया हूँ। जो मीटिंग मुरतज़ा अली ने बतायी थी वह मीटिंग तो अब हो ही चुकी है। हमने एक दूसरे के साथ आनन्द भी किया है।

अब बस यही बाकी रह गया है कि राजा आजाद बख्त यहाँ आ कर हमको देखें। हमें पूरा यकीन है कि उसके बाद हमारे सबके दिलों की इच्छाएँ पूरी हो जायेंगी।

क्या तुम लोगों को भी अल्लाह की कृपा में विश्वास है तो तुम लोग “आमीन” कहो। ओ पवित्र रास्ता दिखाने वालो। इस तरह की आफतें मुझ घूमने वाले पर आ कर पड़ी थीं जो मैंने तुम सब लोगों को सुनायीं।

अब हमको उस पल का इन्तजार करना चाहिये जब मेरी परेशानियाँ और दुख सब दूर हो कर खुशी और सन्तोष में बदल जायेंगे। मेरी राजकुमारी मुझे मिल जायेगी।

आजाद बख्त जो चुपचाप खड़ा हुआ पहले दरवेश की कहानी बड़े ध्यान से सुन रहा था पहले दरवेश की कहानी सुन कर बड़ा खुश हुआ। तब वह दूसरे दरवेश की कहानी सुनने के लिये तैयार हो गया।

Ravi KUMAR

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