श्रीराम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न राजा दशरथ के पुत्र थे । इनके साथ ही राजा दशरथ और रानी कौशल्या की शांता नाम की एक कन्या भी थी । शांता उनकी पहली संतान थी । अर्थात वह प्रभु श्रीराम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न इनकी बहन थी । शांति और सद्भाव का प्रतीक थी ।
रानी कौशल्या की एक बडी बहन थी, उनका नाम वर्शिनी था । शांता को रानी वर्शिनी और उनके पति अंगदेश के राजा रोमपाद इन्होंने गोद लिया था । एक दिन राजा रोमपाद अपनी कन्या शांता के साथ बातचीत करने में व्यस्त थे । उस समय एक ब्राह्मण वर्षा के दिनों में खेती के लिए सहायता मांगने राजा के पास आया । रोमपाद ने ब्राह्मण की दुर्दशा पर ध्यान नहीं दिया । इससे ब्राह्मण नाराज हो गया और उसने राज्य छोड दिया । वह ब्राह्मण देवराज इंद्र का भक्त था । देवराज इंद्र अपने भक्त का अपमान सहन नहीं कर पाए । इसका दंड देने के लिए वर्षाऋतु में अत्यंत कम वर्षा हुई । जिसके कारण राज्य में सूखा पडा ।
राजा दशरथ चाहते थे कि उनको एक बेटा हो, जो उनके राज्य को संभाले और अपने वंश को समृद्ध बनाए । उन्हें एक सद्गृहस्थ ने बताया कि दोनों राज्यों पर आए इस संकट को केवल किसी ब्राह्मण की शक्तियों से ही समाप्त किया जा सकता है । उस ब्राह्मण ने नियमों का पूर्ण शुद्धता के साथ पालन करना आवश्यक है । ऐसा एकमात्र व्यक्ति पृथ्वीपर जो थे, उनका नाम था ऋष्यश्रृंग ।
विभांडक ऋषिने ऋष्यश्रृंग का पालन किया था । दोनो राज्यों के हित के लिए ऋष्यश्रृंग को लाना और यज्ञ के लिए मनाना आवश्यक था ।
विभांडक ऋषि की शक्ति अधिक थी और वे बहुत क्रोधी थे । ऋष्यश्रुंग को लाने से पहले ऋषि विभांडक को मनाना आवश्यक था । इस कार्य को कौन पूरा करेगा ?, यह प्रश्न था । इस समय यह कार्य पूर्ण करने के लिए शांता सामने आई । वह ऋष्यश्रृंग को मनाने के लिए ऋषि विभांडक के आश्रम गई । अपने सद्भाव और गुणों से शांता ने दोनों का मन जीत लिया । उसके बाद दोनों अंगदेश के लिए यज्ञ करने के लिए सहमत हो गए । उसके बाद ऋष्यश्रृंग ने शांता से विवाह किया ।
ऋष्यश्रृंग और शांता ने धार्मिकता का पालन करते हुए यज्ञ किया । यज्ञ के मंत्र के उच्चारण से भारी बारिश हुई । जनता आनन्दित हो गई और अंगराज्य में उत्सव हुए । दशरथ को संतान प्राप्त हो इसलिए ऋष्यश्रृंग ने पुत्रकामेष्टी यज्ञ किया । इस यज्ञ के परिणामस्वरूप राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का जन्म हुआ ।
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