गर्मी की छुट्टिया चल रही थी तो मैं लगभग पूरा दिन घर पर ही होता हूँ। हमारे घर के ठीक सामने एक बैरी का पैड था। उसी के बारे में यह कहानी है
करीब कुछ दिनों पहले की बात है, सुबह-सुबह हमारी पड़ोसन रेहाना दादी किसी बकरी चराने वाले से जगड़ रही थी। वह बिचारा बेर की मुलायम डालियाँ और पत्तीयाँ काट काट कर अपनी भूखी बकरियों को खिला रहा था। रेहाना दादी को मैंने बोला की खिलाने दो, वैसे भी यह बेर का पैड कहाँ आप के या हमारे बाप-दादा की जागीर है।
रेहाना दादी को मेरी बात इतनी बुरी लग गयी की वह बकरी वाले को छोड़ कर मुझ से झगड़नें लगी। बात यहाँ तक आ पहुंची की उसनें मेरे घर आ कर मेरा गिरेबान पकड़ लिया, और मुझे धमकाने लगी। अब भी दिमाग ख़राब हो चूका था ।
मैंने उसको कहा की अब देख लेना तीन दिनों में ना तो यह बेरी का पेड़ रहेगा ना इसका नामो-निशान दिखेगा।
कुछ ही देर में सारे पड़ोसी आ गए और उन्होने हमको अलग कर दिया। मैंने सब के सामने तभी अपनें घर के अंदर जा कर संडास में पड़ा तेज़ाब ले आ कर बेर के पेड़ के तनें में डाल दिया। और रेहाना दादी को बोला की अब करना है वह कर लो,,, नहीं रहेगा यहाँ कोई पेड़ ।
रेहाना दादी जंगली सांढ की तरह गुर्राती हुई अपनें घर चली गयी,,, तभी मेरी माँ भी बाज़ार से आ गयी। माँ नें मुझे खूब डांटा। पर जब माँ को ये पता चला की रेहाना दादी नें घर आ कर मेरा गिरेबान पकड़ा था तो,,, मेरी माँ रण-चंडी बन गयी,,, और रेहाना दादी के घर में घुस गयी,,,
अब मेरी माँ के हाथों में रेहाना दादी के बाल थे,,, और वह मेरी माँ के द्वारा ज़मीन पर घसीटी जा रही थी। उस दिन मुझे पता चला की मेरी माँ मुझसे कितना प्यार करती है। इस बार मैंने और अन्य पड़ोसियों नें उन दोनों को अलग करवाया।
रात के करीब बारह बझे मुझे बैचेनी होने लगी। अचानक घर का माहौल गरम हो गया। थोड़ी देर मै अपनें बिस्तर पर जागता पड़ा रहा,,, तभी अचानक मुझे एक ज़ोरदार खून की उल्टी हुई और मै वहीं चक्कर खा कर धड़ाम से गिर पड़ा।
मेरे गिरनें की आवाज़ सुन कर मेरी माँ झट से मेरे कमरे में आ गयी। उसनें मुझे पानी मार कर हौश में लाया। माँ नें कहा की तेरी आंखे क्यूँ लाल है,,, और तेरे बाल तो देख पूरे अकड़ गए हैं। तुझे क्या हुआ?
मैंने काँपती आवाज़ में उस जगह पर इशारा किया जहां मैंने खून की उल्टी की थी। माँ नें जैसे ही वह सब देखा वह पागलों की तरह चिल्लाने लगी। माँ नें उसी वक्त पूरे मोहल्ले को हमारे घर बुला लिया,,, जब रेखा भाभी को पता चला की मैंने खून की उल्टी की है तो वह भी हमारे घर के बाहर आ कर खड़ी हो गयी,
कुछ ही देर में पड़ोसियों नें डॉक्टर बुला लिया। डॉक्टर को भी मेरी प्रोब्लेम समझ नहीं आई। उसनें कहा की कुछ पता नहीं चल रहा है,,, स्ट्रैस ना लें,,, और फिलहाल आराम करें।
कुछ देर बाद सब घर लौट गए, पर रेहाना दादी वहीं बाहर खड़ी रही, माँ नें भी गुस्सा थूक कर रेहाना दादी को कहा की आप घर जाइए मेरा बेटा ठीक हो जायेगा। तभी रेहाना दादी नें कहा की,,,
दो मिनट बात करनी है आप बहार आएगे। माँ नें उन्हे घर के अंदर ही बुला लिया, और पूछा की कहिए क्या बात है?
तब रेहाना दादी नें बेर के पेड़ का रहस्य बताया, उन्होने कहा की,
जिस विस्तार में जो इन्सान अकाल मृत्यु पाते हैं वह भूत प्रेत बन कर घूमते है, उन्हे थकान होने पर वहाँ आस पास लगे किसी बेर के पेड़ के काँटों पर, उन्हे थोड़ी देर बैठने की इजाज़त होती है। इसी लिए में इस पेड़ को काटने पर मना कर रही थी।
बेर के पेड़ को काटने से, उसे नुकसान पाहुचने से वहाँ रहने वाले या बैठने वाले भूत-प्रेत क्रोध में आ कर जान-लेवा हमला कर सकते हैं। आप के बेटे पर भी शायद ऐसा ही कुछ हुआ है।
थोड़ी देर तो मुझे और माँ को लगा की रेखा भाभी हमें बेकार में डरा रही है, लेकिन जब उसनें अपनें घर से एक वास्तु शास्त्र और पुनर्जन्म से जुड़ी किताब में वह बात लिखी हुई बताई और मेरी हालत बढ़ से बदतर होती जा रही थी तब हमें उसकी बात माननी ही पड़ी।
अलगे ही दिन जब सुबह हुई तो सबकी नज़र उस बेर के पेड़ पर गयी, उसके सारे पत्ते झड़ गए थे, और मेरे डाले हुए तेज़ाब से उसका तना (जड़) जल कर काला पड़ चुका थी। अब मुझे काफी डर लग रहा था, मुझे ऐसा लग रहा था की कहीं दादी की बात सही ना निकले।
उसी दिन मेरी माँ मुझे एक महात्मा के पास ले गईं। उन्होने हमें समझाया की पैड कोइ भी हो उसे काटना या जलाना बहुत बड़ा पाप है। उन्होने यह भी कहा की खून की उल्टियाँ भूत प्रेत करवा सकते हैं। और वह बेर के पेड़ पर बैठते हैं। यह बात ग्रंथों में भी लिखी है।
फिर उन्होने कहा की,,, तुम आज ही उस बेर के पेड़ के पास जाओ हाथ जोड़ कर उस से माफी मांगो और उस जले हुए पेड़ को जड़ से कटवा दो,,, और उस जगह कोई अन्य दूसरा अच्छा बेर के पेड़ बो देना।
उसी दिन मैने उस बेर के पेड़ से हाथ जोड़ कर, अपनी गलत हरकत की, दिल से माफी मांगी। फिर माँ नें उसी दिन उस बकरी वाले को कुछ पैसे दे कर वह पूरा बेर के पेड़ जड़ से कटवा लिया और माँ नें मेरे हाथ से वहीं एक नया पौधा लगवा दिया।
“इस घटना से मुझे सीख मिली की गलती किसी की भी हों,,, ज़बान पर काबू रखना चाहिए और कभी भी पेड़ को नुकसान नहीं पाहुचना चाहिए,,,, चूँकि क्या पता, किस बेर के पेड़ पर किस जीव का वास हों,,,”
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