अचानक खबर सुनकर गोविंदन सकते में आ गया। वह विश्वास नहीं कर पा रहा था कि उसके जीवन में ऐसा भी हो सकता है। उसने अपने बड़े पुत्र को ढूँढ़ा, वह भी नहीं मिला। मालूम पड़ा अस्पताल गया है।
‘अस्पताल गया है, तब जरूर दुर्घटना हुई होगी। लेकिन उसके साथ ऐसा कैसा हो सकता है ?’ यह प्रश्न उसके मस्तिष्क में बवंडर पैदा कर रहा था।
गोविंदन के सबसे छोटे पुत्र का एक्सीडेंट हो गया। अस्पताल में डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। इस सदमे को गोविंदन सहन नहीं कर पा रहा था।
घटना घटित हुए तीन महीने बीत चले। गोविंदन फिर भी विक्षिप्तावस्था में था। उसकी आँखों के सामने उसके प्रिय पुत्र का मुसकराता चेहरा सदैव घूमता रहता था। परिजनों के समझाने पर वह इस दुःख से उबरने की कोशिश तो करता, पर उसका मासूम पोता, जिसकी उम्र मात्र तीन वर्ष थी, उससे यह पूछकर कि दादाजी, पापाजी कहाँ गए हैं? कब आएँगे? उसकी आँखों की गंगा को पुनः प्रवाहित कर देता था।
आखिर चेन्नईराम ने एक दिन उसे सांत्वना देते हुए समझाया, ‘गोविंदन, सच्चाई को झुठलाया नहीं जा सकता और न ही उससे मुख मोड़ा जा सकता है। सच्चाई यह है कि तुम्हारा प्रिय पुत्र अब इस दुनिया में नहीं है। तुम्हें इसे स्वीकारना होगा। देखो, यह सब भाग्य का खेल है। इससे बचना मुश्किल है। बड़ेबड़े ज्योतिषी, राजा-महाराजा भी अपना भाग्य नहीं बदल पाते। पर वे सच्चाई स्वीकारते हैं।’
ज्योतिषी की बात सुनकर गोविंदन के मन में उत्सुकता जाग्रत् हुई। उसने पूछा, ‘ज्योतिषी तो अपना भाग्य पढ़ लेते होंगे।’
‘हाँ, किंतु पढ़कर भी वे उसे बदल नहीं पाते।’
‘क्यों?’ गोविंदन ने पूछा।
‘क्योंकि भाग्य मनुष्य के अर्पित कर्मों से बनता है।’
‘फिर…।
‘फिर क्या? भाग्य की सच्चाई को स्वीकार कर मनुष्य अपने आपको दुःखों से बचा सकता है।’ चेन्नईराम ने कहा, फिर रुककर बोले, ‘मैं तुम्हें एक लोककथा सुनाता हूँ। शायद उससे तुम कुछ ग्रहण कर सको।’
पुराने समय की बात है। एक राजा के राज्य में ज्योतिष विधा में पारंगत एक विद्वान् पंडित था। उसके अंकों की एक तालिका मोटे कपड़े पर बना रखी थी। वह उसे बिछाकर दोनों हाथों में कुछ कौड़ियाँ ले, उस पर उन्हें फेंकता। कौड़ियाँ जिस अंक-वर्ग पर जाकर गिरती, उसमें वह कुछ जमा, घटा करता और लोगों की भविष्यवाणियाँ करता। उसकी भविष्यवाणी हमेशा सच निकलती थी। यह लोगों का अनुभव था।
पंडित सरल स्वभाव के व्यक्ति थे, वे सभी जाति तथा वर्ग के लोगों से समान व्यवहार कर उनका भविष्य बताते थे। लेकिन भविष्य की जानकारी देने से पहले वह स्पष्ट रूप से कहते थे कि मैं ईश्वर का अवतार या कोई सिद्धपुरुष नहीं हूँ। मैं मात्र गणित के आधार पर आपको भविष्य सुनाता हूँ। अत: उस पर संपूर्ण रूप से विश्वास न करके आप अपने कर्म में संलग्न रहें। भाग्य में जो है, सो है, फिर उस पर कैसी चिंता, कैसा सुख?
पंडितजी की साफ-सुथरी यह सच्चाई लोगों को प्रभावित करती। पंडितजी की सही भविष्यवाणी और इन उक्तियों ने उन्हें ख्याति के शिखर पर पहुँचा दिया था।
उस राज्य के राजा ने पंडितजी की ख्याति तथा भविष्यवाणी की सच्चाई सुनी। उसने उन्हें अपने दरबार में राज्य-ज्योतिषि का पद देकर सम्मानित किया। राजा उनसे संकट की घड़ियों में अथवा समस्याओं के समय सलाह लेता था।
एक दिन पंडितजी सवेरे-सवेरे पूजा करके उससे निवृत्त हो, बाहर जाने की तैयारी कर रहे थे कि उनका चमार उनके जूते लेकर आया। पंडितजी ने कहा, ‘मैं राजदरबार जा रहा हूँ और सोच रहा था कि क्या पहनूँ? तुम आ गए, आओ यह नया जूता ही पहनकर जाऊँगा।’
चमार ने चमचमाता हुआ जूता एक ओर रखते हुए कहा, ‘पंडितजी, मेरी पत्नी ने सवेरे एक पुत्र को जन्म दिया है। यदि आप उसका भविष्य बता देते तो…’
“ठीक है, बैठ जा।’ कहकर पंडितजी ने अपनी चटाई फैलाई और उस पर कौड़ियाँ फेंकी। कुछ देर हिसाब लगाकर पंडितजी ने कहा, उसका भाग्य तो ठीक-ठाक है, परंतु हाँ, कुछ समय के लिए वह राजा बनेगा।’
‘राजा!’
‘हाँ, लेकिन कुछ समय के लिए, एक या डेढ़ घंटा।’
चमार पंडितजी की भविष्यवाणी से खुश हो घर लौट गया। तभी राजदरबार का सेवक आया और उसने पंडितजी से कहा कि वे तुरंत चलें, राजाजी उन्हें याद कर रहे हैं।
पंडितजी राजदरबार पहुँचे और राजा से अभिवादन कर बोले, ‘मैं आ ही रहा था कि आपका सेवक भी आ गया। कहिए, क्या समाचार है?’
‘रानी ने प्रातः एक सुंदर से राजकुमार को जन्म दिया है। कृपया उसका भविष्य देखकर बताए।’ राजा ने कहा।
पंडितजी ने अपनी चटाई फैलाई। कौड़ियाँ फेंकी, और कुछ हिसाब-किताब लगाकर कहा, ‘भाग्यशाली पुत्र है, सभी गुण उत्तम हैं। लेकिन उसके भाग्य में कुछ समय के लिए भिक्षा माँगना लिखा है।’
‘यह कैसे हो सकता है, पंडितजी?’ जरा क्रोध में राजा ने कहा, ‘अपना गुणा-भाग दोबारा करके देखिए, कुछ गलती हो गई होगी।’
‘नहीं महाराज, मेरे हिसाब से कोई भेद नहीं है। इसके भाग्य में कम-से-कम एक घंटे भिक्षा माँगना लिखा है।’ पंडितजी ने दृढ़ता से सच्चाई प्रकट की।
राजा को बहुत क्रोध आया। उसने अपने सिपाहियों से कहा, इस पंडित को पकड़कर जेल में डाल दो। सिपाही जब ज्योतिषी को ले जाने लगे, उसने कहा, ‘उसके भाग्य में कुछ वर्ष जेल में बिताना लिखा है, यह उसे मालूम है।’
राजकुमार का भविष्य जानने के बाद राजा आस-पास के छोटे राज्यों को जीतकर उनकी दौलत लूटने लगा। इतना ही नहीं, अपने अधीन राज्यों पर उसने कर की राशि दो गुनी कर दी। राजा के मन में अब यही था कि वह दौलत का अंबार लगा दे, ताकि उसके पुत्र को भिक्षा न माँगनी पड़े।
राजा ने अपने पुत्र को एक ऐसे स्कूल में भरती कराया, जहाँ सभी जाति, धर्म तथा वर्ग के बालक शिक्षा प्राप्त करने आते थे। राजा का उद्देश्य था कि उसका पुत्र सभी के संग घुल-मिल जाए, ताकि उसका कोई दुश्मन न हो।
समय की गति के साथ राजकुमार बड़ा होता गया। अब वह किशोरावस्था में था, स्कूल में चमार का लड़का उसका अतरंग मित्र था।
एक बार स्कूल की ओर से नाटक खेला गया। इसमें सभी साधारण जन तथा दरबारी आमंत्रित थे। राजा और रानी भी इस नाटक को देखने आए, क्योंकि रानी ने राजा को बताया था कि उनका पुत्र भी इस नाटक में अभिनय कर रहा है। राजा ने जब यह पूछा कि कौन सा पात्र, रानी ने अनभिज्ञता प्रकट की।
नाटक के आरंभ में सूत्रधार ने नाटक की कहानी तथा उसका उद्देश्य बताया और कहा, ‘इस नाटक में एक राज्य पर पड़ी विपदा की कहानी है और उस विपदा को एक भिखारी किस प्रकार अपनी भिक्षा द्वारा दूर करता है, यह आप नाटक में देखेंगे।’
सूत्रधार ने एक और घोषणा की। इस नाटक में सभी वर्ग के बालक अभिनय कर रहे हैं। यदि आप उनमें से अपने बालकों को पहचान लें तो तुरंत आवाज देकर घोषणा करें।
नाटक शुरू हुआ। नाटक के सभी पात्र पहचान लिये सिवाय भिखारी पात्र के। भिखारी का अभिनय इतना प्रभावशाली था कि अब पात्रों का परिचय कराया जाने लगा तो दर्शकों से आवाज आई-पहले भिखारी का अभिनय करने वाले पात्र का परिचय कराओ। हम उसे नहीं पहचान पा रहे हैं।
राजा और रानी भी उत्सुक थे उसे पहचानने के लिए। साथ ही वे परेशान भी थे, यह सोचकर कि कहीं राजकुमार ने उनसे झूठ तो नहीं बोला था।
स्कूल के नाटक-आयोजकों ने कहा, ‘भाइयो! भिखारी का सर्वोत्तम अभिनय, आप सुनकर आश्चर्य करेंगे, उस बालक ने अदा किया है, जो जीवन में कभी भिखारी नहीं बन सकता। जानते हो वह कौन है?’
‘नहीं, नहीं।’ दर्शक चिल्लाए।
‘हमारे राज्य का राजकुमार।’
इतना सुनते ही लोगों ने आश्चर्य और हर्ष के साथ करतल ध्वनि की। राजा और रानी भी हर्षातिरेक में काफी देर तक यह करतल ध्वनि सुनते रहे। तभी राजा के मस्तिष्क में अचानक एक वाक्य गूंजा -‘तुम्हारा पुत्र कुछ समय के लिए भिक्षा माँगेगा।’
‘ओह, मैंने यह क्या किया। राज ज्योतिषी की भविष्यवाणी कितनी सही निकली है।’
राजा तुरंत राज-दरबार पहुँचे और राज-ज्योतिषी को कारावास से मुक्त करने का आदेश दिया। राजा ने पश्चात्ताप और शर्मिंदगी से राज-ज्योतिषी की ओर देखा तो वे बोले, ‘महाराज, भाग्य और सच्चाई को स्वीकारने में ही मनुष्य की भलाई है।’
कथा समाप्त कर चेन्नईराम ने गोविंदन को निहारा। गोविंदन ने अपने आँसू पोंछते हुए कहा, ‘मैं भटक गया था, चेन्नईराम। भाग्य की इस विडंबना में मैं अपने पोते को ही भूल गया।’
और ऐसा कहकर उसने अपने पोते को वक्ष से लगा लिया, मानो वह अपने छोटे पुत्र का आलिंगन कर रहा हो।
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