नदी के किनारे सोनपुर नामक एक गांव था । उस गांव में रामू नामक एक मछुआरा रहता था । रामू सीधा – सादा तथा ईमानदार व्यक्ति था , किन्तु उसकी पत्नी एक चालाक तथा लालची स्त्री थी । रामू की आयु लगभग पचास साल की थी , किन्तु दारिद्रय तथा चिन्ता ने उसे समय से पहले ही बूढ़ा कर दिया था ।
रामू सुबह मुंह अंधेरे उठकर जाल लेकर नदी की ओर निकल जाता और शाम ढले वापस आता । वह सारा दिन नदी में जाल डाले बैठा रहता । उसके पास शाम होने तक कुछ मछलियां इकट्ठी हो जातीं , जिन्हें बेचकर वह अपनी गृहस्थी की गाड़ी खींचता रहता । किन्तु रामू फिर भी प्रसन्न रहता और दो वक्त की रूखी -सूखी मिल जाने के लिये ईश्वर का धन्यवाद अदा करता । उसकी स्त्री लच्छो लालची प्रवृत्ति की होने के कारण रात दिन उसको ताने ही देती रहती थी और रामू चाहे जितनी मछलियां ले आये वह कभी प्रसन्न नहीं होती थी । एक दिन रामू को हल्का – सा बुखार था फिर भी वह दो बार नदी पर हो किन्तु उसके हाथ एक भी मछली नहीं लगी थी । इसलिए आया था , उसकी स्त्री ने नाक में दम कर रखा था । रामू उसे समझाता रहा , परन्तु वह मानने को तैयार नहीं थी और उससे फिर से नदी पर मछली पकड़ने जाने को कह रही थी , अन्ततः उसे फिर से नदी पर जाना पड़ा ।
वह बहुत देर तक नदी में जाल डाले बैठा रहा किन्तु इस बार . भी कोई मछली नहीं फंसी निराश होकर वह जाल खींचने ही वाला था ,कि उसे अपना जाल कुछ भारी – सा प्रतीत हुआ , उसने जल्दी जल्दी उसे खीच लिया । उसने देखा कि उसके जाल में एक छोटी – सी सुन्दर मछली फंसी है । उसका रंग चांदी के समान चमक रहा था ।
मछुआरे को उस मछली पर बड़ा प्यार आया और उसे जाल में से निकालकर प्रेमपूर्वक निकालकर उसकी पीठ पर हाथ फेरने लगा । छोटी – सी मछली रामू से बोली – “ हे मछुआरे मुझ पर दया करो और मुझे छोड़ दो । मैं इस नदी की रानी , अगर तुम मुझे छोड़ दोगे तो मैं तुम्हारी प्रत्येक इच्छा पूरी करूंगी।
बूढ़े रामू को मछली पर दया आ गयी । उसने उसे फिर से नदी में डाल दिया और चुपचाप अपनी खाली टोकरी लिये घर वापस लौट आया । लच्छों ने जब टोकरी को खाली देखा तो उसका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया और वह बूढे पर चिल्लाने लगी । बूढ़े ने उसे धीरज बंधाते हुए सारी घटना कह सुनाई । लच्छो ने जब सारी बात सुनी तो वह अपने पति को कोसते हए बोली – “ तुमने उस मछली से कुछ मांगा क्यों नहीं जाओ , अभी फौरन जाकर मछली से कुछ खाने – पीने का सामान मांगकर ले आओ । “
बूढ़ा ना – नुकर करने लगा तो वह खूब जोर से चिल्लाने लगी । हार कर मछेरा उल्टे पांव लौट गया । नदी पर पहुंचकर वह तेज आवाज में बोला “ हे नदी की रानी मछली ! तनिक बाहर आकर मेरी विनती सुन लो । तुरन्त ही नदी की लहरों में बलखाती छोटी – सी सुन्दर मछली नदी तट पर आ पहुंची । दूढ़ा मछेरा उसे प्रणाम करके बोला – “ हे मछली रानी ! मेरे घर खाने को कुछ नहीं है । कृपया मुझे खाने के लिये कुछ सामान दे दो ।
अभी तुम घर जाओ । मैं वहीं भिजवा ढूंगी । ” इतना कहकर मछली फिर से नदी की लहरों में ओझल हो गयी । मछेरा जब घर पहुंचा तो घर के बाहर खाने -पीने की ढेरों चीजें रखी हुई थीं ।
उसने अन्दर से अपनी पत्नी को बुलाया । दोनों ने मिलकर सारी चीजें घर के अन्दर रखीं । बूढ़ा इस काम को अभी खत्म भी न कर पाया था कि लच्छो फिर से बोली – “ सुनो जी ! केवल खाने पीने की वस्तुओं से क्या होता है , जाओ जाकर मछली से बढ़िया – बढ़िया कपड़े तथा जेवर मांगकर ले आओ । मछुआरा उसे समझाते हुए बोला – देखो , अभी-अभी तो मैं इतनी सारी चीजें मांगकर लाया हूं । बार – बार मांगना अच्छी बात नहीं है । बाकी चीजें कल जाकर मांग यूंगा । “
बूढ़ी ने उसकी एक न सुनी और वह चीखने चिल्लाने लगी । अन्त में हार मानकर मछुआरे को जाना ही पड़ा । वह नदी किनारे पहुंचकर पुन बोला – “ हे सागर की रानी मछली ! तनिक बाहर आओ और मेरी विनती पहले की तरह मछली नदी किनारे आ गयी । मछेरे ने झिझकते हुए फिर से अपनी पत्नी की इच्छा उसके सामने रखी । मछली बोली – उसकी इच्छा पूरी हो जायेगी ।
मछेरा जब अपने घर वापस लौटा तो उसने देखा कि उसकी बूढ़ी पत्नी सुन्दर वस्त्राभूषण पहने सजी धजी बैठी हुई थी । बूढ़े को देखते ही वह बोली – ” सुनो जी ! ये कपड़े तथा जेवर पहनकर मैं इस झोंपड़ी में रहती हुई अच्छी नहीं लगती । तुम कल सुबह जाकर मछली से रहने के लिये एक महल मांग लेना बूढ़ा चुपचाप उसकी बात सुनता रहा ।
सुबह होते ही बूढ़ी ने मछेरे को बिना कुछ खिलाये- पिलाये नदी पर भेज दिया । मछेरे ने फिर से मछली को याद किया । जब वह आयी तो बूढ़ा बोला “ हे नदी की रानी ! मेरी पत्नी झोंपड़ी में रहते हुए बहुत दुःख झेल रही है , इसलिये उसके रहने के लिये एक महल की जरूरत है । ” ‘ उसकी यह इच्छा भी पूरी हो जायेगी । ” इतना कहकर मछली नदी की लहरों में ओझल हो गयी । बूढ़ा जब घर लौटा तो उसने देखा कि उसकी झोंपड़ी के स्थान पर वहां एक महल खड़ा है और बूढ़ी उसके अन्दर सजी -धजी बैठी है । वह बहुत खुश दिखाई दे रही थी । कुछ दिन इसी प्रकार बीत गये । अब लालची बुढ़िया का लालच फिर सिर उठाने लगा । एक दिन वह सुबह सुबह मछेरे से बोली – मैंने दिन- रात काम करते हुए अपना सारा जीवन बिता दिया । तुम उस जादुई मछली से नौकर- चाकर तथा सुख -सुविधा का दूसरा सामान देने को कहो । बूढ़े ने उसे समझाने का प्रयत्न किया किन्तु बूढ़ी तो लालच में अंधी हो गयी थी , उसने मछुआरे की एक न सुनी ।
मजबूर होकर मछेरा पुनः नदी की ओर चल दिया । वहां पहुंचकर उसने जादुई मछली के सामने अपनी इच्छा रखी । मछली मुस्कुराकर उसकी दृष्टि से ओझल हो गई । मछेरा जब लौटकर वापस आया तो उसने देखा कि उसकी पत्नी सजी -धजी बैठी हुई है और उसके चारों ओर नौकर चाकर दास – दासियां हाथ बांधे खड़े हैं । एक दिन बुढ़िया सुबह सुबह बूढ़े से लड़ने- झगड़ने लगी । वह चाह रही थी कि मछेरा मछली से उसे पूरी पृथ्वी की महारानी बनाने को कहे जब वह किसी तरह नहीं माना तो बूढ़ी क्रोध में अपना आपा खो बैठी और नौकरों द्वारा बूढ़े को मार – पीटकर घर से निकाल दिया ।
बेचारा बूढा किसी प्रकार रोता -कांपता नदी के किनारे पहुंचा । उसने जादुई मछली को फिर से याद किया किनारे पर आते ही जादुई मछली ने पूछा – “कहो बूढ़े मछेरे , अब तुम्हारी स्त्री को किस चीज की इच्छा है । ” मछेरा बोला – “ हे मछली रानी : आज से पहले मैं अपनी पत्नी के कहने पर ही सब कुछ मांगता रहा , किन्तु अब मेरी एक इच्छा है । ‘ मछली मुस्कूकर बोली कहो वह भी पूर्ण हो जायेगी । बूढ़ा मछेरा बोला – मेरी तो बस इतनी सी ही इच्छा है कि तुम अपना धन -दौलत ,नौकर -चाकर ,महल सब वापस ले लो । मुझे तो बस मेरी पहले वाली झोंपड़ी तथा जाल चाहिये । धन ने मेरे जीवन का सारा सुख – चैन छीन लिया है।
मछली बोली – ” ठीक , यदि तुम्हारी यही इच्छा है तो ऐसा ही होगा । ‘ वह अपने घर लौट आया । उसने देखा कि महल के स्थान पर टूटा – फूटा सामान पड़ा है तथा झोंपड़ी के अन्दर ढ़िया सोई पड़ी है । मछेरे ने उसे जगाया , तो वह आंखें मलती हुई उठ बैठी । वह आश्चर्यचकित होकर अपने चारों ओर देखने लगी बूढ़ा उसे समझाते हुए बोला – जिस व्यक्ति को जीवन में सन्तुष्टि नहीं होती वह कभी सुखी नहीं रह सकता । ” बूढ़े की बात सुनकर बूढ़ी मछेरिन की आंखों से लोभ का पर्दा हट गया । उसे अपनी भूल का अहसास हो गया । उसने अपने पति से क्षमा मांगी ।
इसके बाद दोनों पति – पत्नी सुखपूर्वक रहने लगे।
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