यह कहानी उस दस वर्षीय लड़के की है जो मरिच देश सोनापाने की लालसा में गया था । माता-पिता के देहान्त के बाद वह भाई-भाभी के साथ रहता था । किन्तु माता-पिता जैसा लाड़-प्यार नहीं मिलता था । एक दिन वह अपना घर छोड़ दूसरे गाँव पहुँचा । उसे बेड़ के एक पेड़ के नीचे एक पंडित मिला जो महाभारत की कथा सुना रहा था । पूरी बात तो रमन के मन में न समायीं । उसने यही समझा कि अर्जुन ने देश-विदेश की यात्रा की थीं ।
रमन ने पंडित से पूछा – जो यात्रा अर्जुन ने द्वापर युग में की थी, क्या आज भी की जा सकती है ? पंडित तो यही चाहता था कि लोग उस की बात में आ जाये । उसने झट आश्वासन दिया कि वह रमन को ऐसी यात्रा करने में मदद करेगा । जहाज़ द्वारा पंडित ने रमन को कुछ और लोगों के साथ मरिच देश भेज दिया । रमन फुलियार पहुँच गया । वहाँ उतरते ही कौतुहलवश रमन ने एक पत्थर को उलटा । सोने का एक कण भी न पा कर वह आश्चर्यचकित रह गया । सभी को डेरे में ठहराया गया । दूसरे दिन सभी को खेत में काम करने जाना था । वहाँ रमन सब के साथ खेत पहुँचा । किसी भी पत्थर तले सोना नहीं मिला । वे थक गये । सुस्ताने के लिए अगर कोई रुकता तो कोड़े की मार पड़ती । कोड़े की मार इतनी दर्दनाक थी मानो शरीर पर लाल-लाल मिरच रगड़ दिये हों । तभी तो लोगों का कहना है कि यहाँ सोने के बदले मरिच मिलता है क्योंकि यह मरिच देश है ।
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