एक गांव में करैलची नाम का एक किसान रहता था । उसकी आमदनी इतनी अच्छी थी कि अपनी पत्नी और बेटी का पेट आसानी से पाल सके । करैलची ने अपनी बेटी किराली को बहुत लाड़-प्यार से पाला था । किराली अपने पिता को बहुत प्यार करती थी ।
करैलची की पत्नी प्रतिदिन दोपहर को खाना तैयार करती और किराली भोजन लेकर अपने पिता के पास खेत पर जाती थी । पिता को अपने हाथ से भोजन खिलाकर ही वह घर वापस आती थी ।
एक दिन किराली भोजन लेकर चली तो बहुत तेज धूप थी । रास्ते में एक पेड़ के नीचे बैठकर वह सुस्ताने लगी । तभी उसने देखा कि पेड़ पर एक बंदर बैठा है । बंदर ने अपने बच्चे को अपने सीने से लगा रखा था । किराली सोचने लगी कि एक दिन उसका भी प्यारा-सा बच्चा होगा, वह अपने बच्चे का नाम ललगालनो रखेगी । वह अपने ललगालनो को खूब प्यार करेगी ।
तभी उसके मन में बुरे-बुरे खयाल आने लगे । वह सोचने लगी कि जब वह शैतानियां करेगा तो मुझे उस पर बहुत क्रोध आएगा । वह शैतानी करके इधर-उधर भागता फिरेगा । यदि किसी दिन वह सीढ़ियों में भागने लगेगा तो सीढ़ियों से गिर जाएगा । फिर मेरे ललगालनो को चोट लग जाएगी । अगर चोट ज्यादा लग गई तो वह मर जाएगा । ओह ! मेरे ललगालनो का क्या होगा, यही सोचते-सोचते वह रोने लगी और बार-बार कहने लगी – “मेरा ललगालनो मेरा ललगालनो ।” वह घंटों बैठी रोती रही और अपने पिता का भोजन ले जाना भूल गई ।
जब किराली बहुत देर तक घर वापस नहीं पहुंची तो उसकी मां ने सोचा कि अपने पिता को जाकर बताना चाहिए कि किराली घर वापस नहीं लौटी है । वह खेत की ओर चल दी ।
रास्ते में उसने किराली को एक पेड़ के नीचे बैठकर रोते हुए देखा तो उसने अपनी बेटी के पास जाकर पूछा – “बेटी, तुम रो क्यों रही हो ?”
किराली ‘मेरा ललगालनो’ कहकर रोती रही और अपने रोने का कारण मां को बताया । उसकी मां पूरी बात सुनकर बिना सोचे-समझे ‘मेरा ललगालनो’ कहकर रोने लगी । मां-बेटी दोनों बैठकर आंसू बहाने लगीं ।
करैलची को दोपहर का भोजन नहीं मिला था । इस कारण उसे क्रोध आ रहा था । शाम होते ही वह घर के लिए वापस चल दिया । रास्ते में अपनी पत्नी व बेटी को रोता देखकर उसने सोचा कि जरूर कोई अनहोनी दुर्घटना घटित हो गई है, जिसके कारण दोनों रो रही हैं ।
उसने धड़कते दिल से दोनों से रोने का कारण पूछा । कारण सुनकर वह क्रोध से पागल हो उठा । उसे समझ में नहीं आ रहा था कि अपनी पत्नी और बेटी की मूर्खता पर वह हंसे या क्रोध में अपने बाल नोचे । वह चीखकर बोला – “इस दुनिया में तुम लोगों से बड़ा मुर्ख और पागल कोई और नहीं मिल सकता । मैं जा रहा हूं और तभी घर लौटूंगा जब तुम से भी बड़े मुर्ख से मिल लूं ।”
करैलची की पत्नी और बेटी किराली उसके पीछे-पीछे खुशामद करने दौड़ीं, परंतु करैलची तब तक दूर निकल चूका था । चलते-चलते करैलची पास के एक गांव में पहुंचा । उसने देखा कि एक जगह भीड़ लगी थी । उसने भीतर घुसकर कारण जानने का प्रयास किया तो पता लगा कि लोग एक तालाब के चारों ओर जमा थे । पानी में चांद दिखाई दे रहा था । अनेक व्यक्ति इस बात का दावा कर रहे थे कि वे चांद को पकड़ कर दिखाएंगे ।
हर व्यक्ति चांद पकड़ने की फीस देकर आगे आता, फिर पानी में चांद पकड़ने की कोशिश करता था । बाकी लोग दर्शक बनकर तालियां बजा रहा था और चांद पकड़ने की बाजी का मजा ले रहे थे ।
करैलची लोगों की मूर्खता देखकर आगे बढ़ गया । वहां उसने देखा कि एक बूढ़ी औरत का एक टिन के डिब्बे में हाथ फंस गया है । कई लोग उसका हाथ खींचकर निकालने का प्रयास कर रहे हैं ।
बुढ़िया दर्द के मारे चीख रही थी परंतु हाथ बाहर नहीं निकल रहा था । करैलची ने पूछा कि माजरा क्या है ? उसे बताया गया कि डिब्बे में गेहूं भरे हैं और बुढ़िया मुट्ठी में गेहूं भरकर निकालने का प्रयास कर रही थी । तभी उसका हाथ डिब्बे में फंस गया और वह अब निकल नहीं रहा है ।
इतने में एक व्यक्ति बोला – “मुझे हाथ बाहर निकालने की एक आसान तरकीब समझ में आ गई है । इससे बूढ़ी मां को थोड़ा दर्द तो होगा परंतु कम से कम हाथ तो बाहर आ जाएगा ।”
सबने पूछा – “ऐसी कौन-सी तरकीब है ।”
“हम बूढ़ी मां का हाथ काट देंगे । वरना उसे डिब्बे में हाथ फंसाए हुए ही पूरा जीवन बिताना पड़ेगा । मैं सोचता हूं हाथ काटना आसान है, डिब्बे में हाथ डालकर जिन्दगी बिताना कठिन है ।”
इतने में दूसरा व्यक्ति बोला – “तुम तो कमाल करते हो भाई । इससे बेहतर तरकीब यह है कि डिब्बे को नीचे से काट दिया जाए ।”
करैलची ने लोगों की बात सुनकर माथा पीट लिया, वह बोला – “दादी मां, अपनी मुट्ठी को खोलो और गेहूं डिब्बे में छोड़ दो ।”
करैलची का इतना कहना था कि बुढ़िया ने मुट्ठी से गेहूं छोड़ दिए और उसका हाथ बाहर निकल गया । लोग करैलची को धन्यवाद व इनाम देने लगे ।
करैलची बहुत दुखी मन से घर की ओर यह सोचते हुए वापस चल दिया कि शायद इस दुनिया में मूर्खों की कमी नहीं है । जैसे अनेक लोग बड़े अक्लमंद होते हैं, ऐसे ही दुनिया में एक से एक बढ़कर मुर्ख भरे पड़े हैं ।
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