सायकिल पर स्वयं से अधिक भार की बोरी लिए रंजीता आँगन में लगभग बोरी को धकेलते हुए रोष भरे शब्दों में बोली…
“अम्मा अब से इतना मुँह भर के गेंहूँ मत दिया करो, पता भी है चक्की पर सब की कितनी हुज्जत करनी पड़ती है उठाकर सायकिल पर चढ़ाने के लिए, लोग हंसी भी करते हैं के पूरे गांव का आटा बनवाने का इरादा है क्या? वो अलग…”
“अच्छा अच्छा अब नहीं दूंगी| ले पानी पी ले थोड़ा गुस्सा और थकान दोनों कम कर|”
अम्मा की बात पूरी भी नहीं हुई के पड़ोस की काकी आ गयी। रंजीता को देखते ही बोली, “अरे रंजो की अम्मा तू और तेरा मरद न जाने अपनी बिटिया को क्या बनाना चाहते हो| आखिर है तो लड़की जात इसे लड़कियों के रहन सहन सिखाओ| कल को ससुराल जाएगी तो क्या करेगी वहाँ? ऐसे मर्दाना कपड़े पहन कर पूरे मुहल्ले में घूमना शोभा देता है क्या | मर्दों का काम मर्दों को ही शोभा देता है। कल को कुछ ऊँच नीच हो गया तो बस माथा पीटते रह जाओगी|”
काकी बात को पूरी करती के रंजीता बीच में ही बोल पड़ी, “अरे काकी मैं बिना काम के मुहल्ले में नही घूमती, क्या गुनाह कर दिया जो बाबा की थोड़ी मदद कर दी और कौन से शास्त्र में लिखा है कि, महिलाएं सिर्फ चूल्हा चौका ही कर सकती हैं और मुझे घर के काम भी आते हैं| एक बात और मर्दों के कपड़े पहनने में क्या बुराई है, उसमें काँटे लगे होते हैं क्या जो लड़कियों के पहनने से चुभने लगे| हाँ ये बात अलग है कि कुछ लोगों को जरूर चुभने लगते हैं|”
रंजीता का इतना बोलना था के अम्मा की हँसी निकल गयी जो काकी को बर्दाश्त न हुई। बोली हम तो तेरा भला ही चाहते हैं बाकी बर्बाद करो अपनी बिटिया को। पर हाँ इसकी छीटें हमारे घर तक नहीं आनी चाहिए…
रंजीता तो अभी तक बात को मजाक में ले गई, पर अब उसे बर्दाश्त न हुआ वो गुस्से में बोली, “काकी आप जो बोली सब ठीक है, अब आप जब जाने लगो तो बाहर का किवाड़ लगाती जाना।”
अब तो काकी के तानो में और बढ़ोत्तरी होती गयी, “ये देखो बाप खेतिहर किसान और बेटी के ठाठ दरोगा वाले …” आपके मुंह मे घी शक्कर काकी,” रंजीता ने हँसते हुए कहा। काकी धम्म से किवाड़ बन्द करते हुए बाहर निकल गयीं।
अब तो माँ बेटी की हँसी थी के रुकने का नाम नहीं ले रही थी। तभी रंजो रंजो की आवाज ने दोनों की हँसी पर विराम लगाया। आयी बाबा कहकर रंजो बाहर की तरफ लपकी। घर में प्रवेश करते ही रंजो के बाबा – “क्या बात है रंजो की अम्मा, आज फिर कुछ हुआ क्या? माँ बेटी की हँसी की गूँज बाहर तक आ रही।”
“कुछ नहीं रंजो के बाबा, पड़ोस की जिज्जी आयी थी हिदायतों की गठरी भी थी साथ अपनी बिटिया के लिए।” बाबा ने रंजो की तरफ देखा और मुस्कुरा दिए।
थोड़ा जलपान करने के बाद रंजो को पास बैठा के बोले – “बिटिया अभी तू दसवीं किताब (10वीं कक्षा) पढ़ रही है ये निकल जाए तो बस करना आगे क्या कैसे करना है मुझे भी नहीं पता और फिर पाँच कोस दूर सायकिल चला के जाना होता है, आते आते अंधियारा भी हो जाता है जो कि ठीक नहीं है| बिटिया जमाना बहुत खराब है और आगे पढ़ के करेगी भी क्या तू| इतनी तो होनहार है सब कुछ तो आता है तुझे।”
रंजीता आत्मविश्वास के साथ बोली, “क्या हुआ बाबा, आप ज्यादा पढ़े नहीं तो। मैं सब सम्भाल लूँगी, शाम हो जाती है तो क्या करें बाबा जैसे अभी तक गयी आगे भी जाऊँगी। जब कदम नहीं बढ़ाऊंगी आगे कैसे निकलूंगी और आप भरोसा रखो बाबा जहाँ चाह होती है वहीं राह भी मिलती है, बस आप सबकी बातों में मत आना|” रंजो मुस्कुराती हुई गलबहियाँ बाबा के गले मे डाल दी। मेरे मर्दों वाले कपड़े पे सबको ऐतराज है न बाबा देखना एक दिन मर्दों वाले कपड़े पे ही अपना नाम लिखवाऊंगी|
“अच्छा बस बस बहुत हो गया समझना समझाना| चल अब तुझे पढ़ाई भी करनी है, इम्तहान भी करीब ही है,” कहकर अभी अपने काम मे लग गए अगली सुबह ४ बजे से नई शुरुआत चूँकि विद्यालय दूर था इसलिए रंजीता जल्दी ही निकलती थी| आस-पास के इलाके में शायद यही इकलौती लड़की थी जो इतनी दूर जाके पढ़ाई करने का जज्बा रखती थी। उसके इस जज्बे का रंग उसकी दसवीं के परिणाम ने दिखा दिया जो आज तक उस इलाके के लड़कों ने नहीं किया उसने कर दिखाया। अब तो मानो रंजो को अपने सपनों के लिए पंख मिल गए थे। उसकी इस सफलता से कुछ लड़को में रोष भी था शायद वो ये कभी न कर पाए इसलिए।
एक दिन रंजीता की किसी बात पे गांव के ही एक लड़के से बहस हो गई और रंजीता ने उसे जोर का थप्पड़ रसीद कर दिया| उसे भी पता था कि ये थप्पड़ उसपे भारी पड़ सकता है पर अब तो आग में घी पड़ ही चुका था।
अब तिलमिलाया लड़का और उसका मित्र रोज रंजीता को सबक सिखाने की फिराक में रहने लगे। रंजीता भी सतर्क रहने लगी थी पर अनहोनी को सतर्कता कहाँ टाल पाती है।
एक दिन स्कूल से आते वक्त पहले ही घात लगाए दोनों लड़कों ने उसे दबोच लिया और खींच कर जंगल की तरफ ले गए। साली आज तुझे मजा चखाता हूँ। बहुत झाँसी की रानी बनी फिरती है न तू, दरोगा बनना है न तुझे, आज ऐसी दुर्गति होगी तेरी कहीं मुँह दिखाने लायक नहीं रहेगी सारी हेकड़ी धरी की धरी रह जाएगी| रंजीता ने भरसक प्रयत्न किया खुद को बचाने की पर दो लड़कों के सामने उसकी हिम्मत परास्त सी हो रही थी, शारीरिक बल भले ही कम हो गया हो पर उसने हार नहीं मानी| मस्तिष्क तो अभी भी उसका किसी वीर योद्धा की तरह नीति बना रहा था| अवसर पाते ही उसने पैरों से जोर का प्रहार एक लड़के के नाजुक अंग पर किया वो दर्द से कराह कर दूर छिटक गया| अपने हाथ को जैसे ही उसने मुक्त पाया जेब में रखी मिर्ची की पुड़िया दूसरे की आँख में दे मारी और हिरनी की तीव्रता से वहाँ से भाग निकली पर उसने इतने हाथ पैर चलाये के उसमें चलने की हिम्मत न थी| तभी मवेशी ले जाते चरवाहों ने उसे देखा और घर तक ले गए।
घर आकर रंजीता बिना कुछ बोले अपने बिस्तर पर पड़ गयी| उसका शरीर दर्द से टूट रहा था| उसके माँ बाबा भी कुछ बोले बिना बस बेटी को निहारते रहे।
सुबह तक ये खबर गाँव में आग की तरह फैल गयी। उसके घर लोगों का आना जाना बढ़ गया, सहानुभूति कम; हिदायतें व शिकायतें अधिक थीं। “अरे मैंने तो पहले ही कहा था, लड़की जात सफेद कपड़े जैसी होती है; जरा सा भी लापरवाही की मैल झलक जाता है, माना के आज ये बच गयी फिर भी कितनी बड़ी बात है दो लोग झाड़ी में ले गए। लो अब पूरा हो गया पढ़ाई का शौक,अब बैठो घर…”
ऐसी ही न जाने कितनी ही बातें और ताने रंजीता सुने जा रही थी कि अचानक उसके स्कूल के लिए तैयार होकर निकलते देख सबका मुँह खुला रह गया। बाबा ने प्रश्नवाचक नजरों से रंजो को देखा पर उसकी नजरों में चमकते उस आत्मविश्वास ने उन्हें कुछ न बोलने पर विवश कर दिया।
जाते जाते उसने इतना जरूर कहा, “आप लोग हमारे घर आये बहुत आभार, और कृपा करके उन दोनों के घर भी जाईयेगा ये देखने के उनको जख्म तो नहीं हुआ और हाँ मुझे घर बैठने की जरूरत नहीं| मेरी इज्जत पे हाथ डालने की कोशिश जिसने की है उसकी मुझसे ज्यादा बदनामी होनी चाहिए,” कहकर वह निकल गयी अपनी मंज़िल की तरफ।
रंजीता ने हिम्मत तो दिखाई थी आगे बढ़ने की पर उसे भी पता था कि वो शारिरिक रूप से सच में उन लड़कों का सामना नहीं कर सकती थी पर उसे अभी दो साल काटने थे| कुछ भी हो सकता था, यही सोचते सोचते वह चली जा रही थी कि कुछ लड़कों का समूह आता हुआ दिखाई दिया जो कि पड़ोस के ही गांव के थे। उसे एक युक्ति सूझी| हालाँकि उसे खुद को नहीं पता था कि वह सही कर रही या गलत पर एक बार प्रयत्न करने में क्या जाता है…
वह उन लड़कों को रोक के बोली, “भैया, मुझे आप लोगों से मदद चाहिए| अगर आप लोग मेरी मदद कर दो तो शायद मैं आगे की पढ़ाई कर सकूँगी| मुझे पता है सारे लड़के एक से नहीं होते हैं, आपलोग अगर अपनी बहन मानकर रोज अपने साथ मुझे भी ले आएं तो शायद अच्छा होगा| आखिर आप लोगों का भी इधर का रोज का आना जाना है। उनमें से एक ने रंजीता को आश्वस्त किया कि तुम आ सकती हो हमारे साथ| हमने तुम्हारे बारे में सुना है| तुम परेशान मत हो हमारे साथ आ जाना।
रंजीता को पता नहीं था कि वह सही कर रही या गलत पर किसी पे तो उसे भरोसा करना ही था। जैसे तैसे वह आगे बढ़ती गयी लोगों की बातें और उस दिन के हादसा उसे और मजबूत बनाती गयीं।
उन लड़कों के सहयोग से वह बारहवीं की परीक्षा में भी अव्वल आयी| अब समस्या ये थी के आगे की पढ़ाई के लिए पांच कोस जाने पर भी सुविधा न थी। पर उसके हौसले और साहस ने उसके लिए हर रास्ते खोल रखे थे। स्कूल के अध्यापकों ने उसके जज्बे को देखते हुए उसकी मदद की| शहर जाकर आगे की पढ़ाई करने के लिए और उसे शहर के बड़े महाविद्यालय में दाखिला भी मिल गया। जहाँ विद्यार्थियों को बड़ी मुश्किल से ही दाखिला मिलता था। शीघ्र ही उसके छात्रावास की भी व्यवस्था हो गयी।
अब तो रंजीता को अपने सपनों को हकीकत में बदलने का जरिया मिल गया था। पर सब कुछ इतना आसान कहाँ था। कभी बड़े शहर की चमकदमक उसे आकर्षित करती तो कभी उसे छोटे से गाँव की होने की हीनता को झेलनी पड़ती पर उसने अपने संयम को बनाये रखा और अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित किया। इसी बीच उसे यूपीएससी की परीक्षा के बारे में पता चला| अब तो उसके ऊपर धुन-सी सवार हो गयी के कैसे भी कर के उसे यह निकालना ही है। स्नातक पूरा करते करते ही उसने तैयारी शुरू कर दी थी और इस बीच उसने घर जाना भी कम कर दिया था। उसने अपना सोना जागना उठना बैठना बस एक ही ध्येय को समर्पित कर दिया।
दिन कैसे गुजरे पता नहीं चला| स्नातक उत्तीर्ण करके वह यूपीएससी की तैयारी में जुट गई| प्रथम प्रयास में असफल होने पर भी उसे बड़ी प्रसन्नता थी कि उसे बहुत कुछ सीखने को मिला| उसमें जैसे नई ऊर्जा का संचार हो गया कि सम्भवतः वह अग्रिम परीक्षा में सफल हो के ही रहेगी।
और हुआ भी वही| द्वितीय प्रयास में वह हुआ, किसी कल्पित स्वप्न-सा था । छोटे-से गाँव की लड़की, जहां के लड़के भी दसवीं बमुश्किल ही निकाल पाते हैं; वहाँ की बेटी रंजीता ने आज प्रदेश में टॉप किया था| उसने अपने माँ बाबा के साथ उन समस्त स्त्रियों का सम्मान बढ़ाया था जिन्हें लोग अबला समझते हैं…
रंजीता का बड़ा मन था माँ बाबा को मिल के आये पर वो अभी घर नहीं जाना चाहती थी| वो अपने बदन पर पड़े मर्दों वाले कपड़ों पर आईपीएस रंजीता सजवा के ही जाना चाहती थी।
आखिरकार वो दिन भी आ गया, जब रंजीता गाँव पहुँची। गाँव में तो जैसे मेला लगा हुआ था। हो भी क्यूँ न प्रेरणा बन के आईपीएस रंजीता जो आ रही थी। इतनी भीड़ में बड़ी मुश्किल से वह घर तक पहुँची। एक बार नजर उठा के देखा तो सामने खड़े उसके अधयापक थे जिसके साथ माँ बाबा के चरणस्पर्श कर उसने आशीर्वाद लिया। और सामने उनके मुँह बोले भाईयों ने जिन्होंने उसे दो साल सुरक्षित स्कूल पहुँचाया, को मुस्कुरा के आभार व्यक्त किया। वो लड़के जो उसे कहीं का नहीं छोड़ने वाले थे, उससे नजरें नहीं मिला पा रहे थे।
आज वही लोग जो उसपे तानों की बौछार करते थे, उनकी प्रशंसा में जुबान नहीं थक रही थी।
रंजीता पड़ोस वाली काकी को देख कर मुस्कुरा उठी| मानो कहना चाह रही हो काकी देखो आज एक खेतिहर किसान की बेटी के ठाठ दरोगा से भी कहीं ऊपर हैं…||
Ankita Singh Rini
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