हमसब पहले भाग में बाते कर रहें थे।कंप्यूटर की प्रारंभिक भेंट की।अब आगे कोशिस करूँगा की इसी भाग में इतिश्री कर दु।मगर वक़्त ज्यादा लगा तो पार्ट्स में पाठको तक पहुचाने की कोशिस करूँगा।पिछले भाग में जो मैंने एक्सटर्नल कमांड का ज़िक्र किया था।वो कुछ ऐसा होता था कि बूटेबल डिस्क के साथ जो कमांड हमे मिल जाते थे उन्हें इंटरनल कमांड कह देते थे।जिनमें मुख्यतः cd,md,rd,copy,copy con, dir, del इत्यादि होते थे।एक्सटरनल कमांड इन थोड़े कमांड्स को छोड़कर जो भी अलग से फ्लॉपी के द्वारा चलाना पड़ता था उसे एक्सटरनल कमांड बोलते थे।
बाद में हमे जाके समझ आया कि ये कॉपी और कॉपी कॉन एक ही कमांड है।जिसमे हम मॉनिटर को पहली फ़ाइल के जगह पर रखते है और दूसरे फ़ाइल का कोई और नाम दे देते है।कॉन मॉनिटर को ही बोलते है।इसके साथ ही एक और रहस्यमय बात पता चली विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम में कॉन नाम का फोल्डर भी नहीं बना सकते क्योंकि कॉन तो मोनिटर का नाम है।
जैसे हम उसे लिखते है।copy filenamefrom filenameto इसकी जगह copy con filenameto इसके बाद हम जो भी टाइप करते व्व उस फ़ाइल में सेव हो जाती।लास्ट में F7 या कन्ट्रोल Z से बाहर आ जाते।
खैर ये सब तो बेसिक सुरूवाती दौर था।ये सब उस समय इस्तेमाल करके खुराफात करने का मज़ा ही कुछ और था।
वाइल्डकार्ड नामक प्राणी से भी हमारी मुलाकात यहीं हुई।सिंपल से ही था ये।जैसे * का मतलब इस जगह और इसके अगल बगल कुछ भी हो और ? का मतलब था इस जगह कुछ भी हो।
ब्लैकहोल को आप * मान सकते हो वहाँ कुछ भी हो इग्नोर कर दिया जाता है बस की एक खाली सीट को ?वहां कोई या कुछ भी हो सकता है पर अगल बगल जो है वही रहेगा।
शायद अच्छा उदाहरण ये न हो।यहीं पर हमें दुनिया की एक सबसे बेसिक चीज़ का पता चला।हुआ यूं कि एक दिन हमे format कमांड की जानकारी दी जा रही थी।कुछ बताया जा रहा था कि इस कमांड से सारा डेटा डिलीट हो जाएगा और फ्लॉपी बिल्कुल नयी हो जाएगी।हमने पूछ लिया जब डिलीट से भी ये हो जाएगा तो फॉरमेट की जरूरत क्या है।
तब हमसे पूछा गया बताओ अपने घर का पता कैसे देते हो।हमने कहा दिया फ्लैट no 567 ,ट्विन टावर,b टाइप,लोकेशन जिला, स्टेट etc। फिर उन्होंने हमें बताना सुरु किया। “बिलकुल ऐसे ही डिस्क को फॉरमेट मतलब साफ सुथरा करकर उसमे गलियां और फ्लैट्स बनाते हैं जिसे ट्रैक और सेक्टर कहते है।जैसे हम अपने address पे रहते है।वैसे ही हर डेटा का अपना पता होता है।वह डेटा वहीं रहता है।
कोई भी डेटा जब हम कंप्यूटर से मांगते हैं तो वह अपनी डिक्शनरी देखता है।जहाँ हर डेटा का पता होता है।पता देखकर कंप्यूटर वो डेटा हमे दे देता है।
इस डिक्शनरी को इंडेक्स टेबल कहते है।
एक और खास बात हमे पता चली।ये डिलीट और format को undelete और unformat किया जा सकता है।कुछ शर्त है उसकी की कोई नया फ़ाइल या डेटा न लिखा गया हो।
होता कुछ यूं है कि जब भी हम कोई फ़ाइल डिलीट करते है तो फ़ाइल डिलीट होने के बजाय उसे डिलीट मार्क बस कर दिया जाता है और उसके नाम का फर्स्ट कैरेक्टर ग्रीक सिग्मा बन जाता है।जब undelete उसे करना होता है तो फ़ाइल की मार्किंग हटा कर उसको पूरा नाम दे देते है।
अब बात करे दूसरे शर्त की तो होता यूं है जब हम नई फ़ाइल कॉपी करते है तो ऑपरेटिंग सिस्टम सर्वप्रथम डिलीट मार्क स्पेस को इस्तेमाल करते हैं।इसलिए डिलीट किये हुए डेटा की रिकवरी के चांस कम हो जाते है।
format की भी यही कहानी है।
एक और मुख्य चीज़ है बैच फ़ाइल।आज भी इसका बहुत प्रयोग होता है।इसमें एक फ़ाइल बना कर उसे .bat एक्सटेंशन से सेव कर दिया जाता है उसके बाद जब भी इसे रन करते है इसमें लिखा हर command बारी बारी से जिस क्रम में लिखा है उसी क्रम में एक्सीक्यूट होता है।इसी को अगर autoexec. bat के नाम से सेव कर दे तो बूट होने के साथ ये खुदी execute हो जाता है।autoexec का प्रयोग अब कम हो गया है इसकी जगह स्टार्टअप ने ले ली है।
क्योंकि इसका दुष्प्रयोग बहुत से वायरस करने लगे थे।
अब वायरस आया तो ये क्या है।इसका जन्म कहाँ हुआ ये भी बता दे।जन्म इसलिए महत्वपूर्ण है क्यूंकि इस तरह के डिस्ट्रुक्टिव चीज़ की ईजाद पाकिस्तान ने की है।
फारूक अल्वी ब्रदर्स ने ये वायरस बनाया था।
वायरस एक प्रोग्राम ही होते है जिनके काम डेटा चोरी से लेकर आपके कंप्यूटर को खराब करने का होता है।ये ऐसे प्रोग्राम होते है जो अलग अलग तरीके से फैलते है और अपना काम करते रहते है।
सामान्य लोगो को कुछ लालच देकर पढ़े लिखो को चूक फ्री में देकर बहुत टेक्नोलॉजी वाले को किसी जंक एप्लीकेशन द्वारा फैलकर परेसान करना ही इनका मुख्य कार्य है।
बाकी फिर आगे महीनों तक एडिटर पे काम करना सिखाया गया।जो इतना मजेदार नहीं थे कि उनका जिक्र किया जाए।
मनोज सर की मुझपर बड़ी कृपा थी।दूसरे शिराज सर अपने चेले अभिषेक पर गर्व किया करते थे जो उनका पड़ोसी भी था।मनोज सिर मुझे एक्स्ट्रा एक घण्टे प्रोग्रामिंग के बारे में बताया करते थे कभी कभी ।मुझे वो सब समझ मे बिल्कुल नहीं आता।क्योंकि वो केवल थेओरी बताते,उसको कैसे ,कहा,क्यों करना है ये नहीं बताते।मुझे वो सब सिर के ऊपर से गुजरता महसूस होता।
खैर कुछ दिनों बाद वो दिन भी आया जब हमें प्रोग्रामिंग लैंग्वेज सीखने थे। जैसे कि मैंने पहले ही बताया था हमारी ताकझांक कर सीखने की आदत ।हमने सिंपल सिंटेक्स और सिंगल लाइन प्रोग्राम का ज्ञान इसी विद्या की मदद से पहले ही प्राप्त कर ली थी।
अगले भाग में थोड़ी जानकारी प्रोग्रामिंग की।ना ना डरिये मत की क्लास चल रही है।बस कुछ रियल लाइफ और कंप्यूटर वर्ल्ड की कहानी होगी।
सबसे पहले मै ये बतादूँ की आइंस्टाइन ने कहा था “सारे ब्रम्हांड का रहस्य उसके कण कण में है” ।गीता में भी ऐसा ही सन्दर्भ है।जब अर्जुन को कृष्ण कहते है “हे पार्थ, भूत भी मैं,भविष्य भी मैं,अंतरिक्ष भी मै और कण भी मैं।कौरव भी मैं पांडव भी मैं। समस्त प्राणियों में भी मैं और अप्राण में भी मैं।
बम्हाण्ड को ही ले लेते हैं एक सूर्य के चारो ओर चक्कर लगाते कितने ग्रह है।ग्रहों पर आने पर ग्रहों के चक्कर लगाने वाले उपग्रह है।एक कण पर भी प्रोटॉन और न्यूट्रॉन से बने नाभिक के चक्कर लगाने वाले इलेक्ट्रोन है।
प्रोटॉन धनात्मक शक्ति है जैसे सूर्य।धरती और हम उसकी ऊर्जा का उपयोग कर अपने सारे काम निबटाते है।सूर्य स्थिर है।आज के संदर्भ में वरना स्थिरता तो विनाश की निशानी है।
सूर्य भी चलायमान है।
वैसे ही प्रोटॉन धनावेशित शक्ति है।जिसके चारों तरफ ग्रह रूपी इलेक्ट्रान उसके चक्कर लगाते रहते है।इसके आगे का भी रहस्य विज्ञान ने ढूंढ लिया है।जिनकी व्याख्या करते हुए यहाँ हम मुद्दे से भटक कर अध्यात्म की ओर चले जाएँगे।
इस विषय को यही छोड़ते हुए।अगले भाग में हम थोड़ी जानकारी प्रोग्रामिंग की लेंगे और अपने मुद्दे की ओर प्रस्थान करेंगे।
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