प्राचीन काल में मायापुरी नामक एक नगर व्यापार के लिए बहुत प्रसिद्ध था। दूर -दूर से लोग व्यापार के सिलसिले में इस नगर में आया करते थे। एक बार दक्षिण भारत के एक व्यक्ति ने व्यापार में हाथ आजमाने का मन बनाया । श्रीनिवास नामक वह व्यक्ति अपने साथ पाँच सौ रुपये की पूंजी लेकर मायापुरी में माल खरीदने के लिए आया।
व्यापारिक केन्द्रों में ठगों और चोरों की भी बहुतायत होती ही है। एक दिन जब श्रीनिवास अपने व्यापार के लिए माल खोजता हुआ बाज़ार में घूम रहा था तभी एक हट्टी-कट्टी औरत आई और उसने उसका हाथ पकड़ लिया। बोली – “मेरे रुपये लूटकर व्यापार करने चले हो ?”
श्रीनिवास यह सुनकर हक्का-बक्का रह गया। अपनेआप को संभालता हुआ बोला – “मैंने तुम्हारा धन कब चुराया ? मैं तो कुछ भी नहीं जानता !”
औरत उसके ऊपर चीखने – चिल्लाने लगी। लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गई, परंतु किसी की समझ में यह नहीं आया कि दोनों में से झूठ कौन बोल रहा है। तब एक ने कहा – “इस तरह झगड़ा करने से कोई फायदा नहीं। कोतवाल के पास जाओ।”
औरत ने श्रीनिवास का हाथ कसकर पकड़ लिया और उसे कोतवाल के पास खींचकर ले गई। उसने कोतवाल से कहा – “श्रीमान, इस आदमी ने बाज़ार में जबर्दस्ती मुझसे पाँच सौ रुपये छीन लिए। मेरे रुपये मुझे दिलवाकर न्याय कीजिये।”
कोतवाल ने पूछा – “क्या कोई सबूत है ?”
इस सवाल पर औरत ने “न” में सिर हिलाया।
कोतवाल ने श्रीनिवास से पूछा – “तुम्हें कुछ कहना है ?”
श्रीनिवास बोला – “महोदय, मैं व्यापार के लिए सामान खरीदने कल ही इस नगर में आया हूँ। मैं यहाँ किसी को भी नहीं जानता। मेरे पास पाँच सौ रुपये हैं, जिसका पता किसी तरह इस औरत ने लगा लिया है। किन्तु वे रुपये सचमुच मेरे हैं।”
कोतवाल को लगा कि औरत सच नहीं बोल रही है। सच का पता लगाने के लिए उसने एक युक्ति सोची। उसने श्रीनिवास से कहा – “तुम्हारी बात पर मुझे विश्वास नहीं होता। तुम इस औरत का धन लौटा दो, वरना तुम्हें जेल में बंद कर दूंगा।”
कोई और चारा न देखकर श्रीनिवास ने अपने पाँच सौ रुपये उस औरत को दे दिये। जैसे ही वह औरत रुपये लेकर वहाँ से निकली, कोतवाल ने श्रीनिवास को बुलाकर धीमे स्वर में कहा – उसके पीछे पीछे जाओ और वह धन उससे छीन लो।”
कोतवाल की बात सुनकर श्रीनिवास सकपकाया किन्तु कोतवाल ने कहा – “जैसा कहता हूँ वैसा करो, मैं तुम्हारी मदद करूंगा।”
कोतवाल के कहे अनुसार श्रीनिवास उस औरत के पीछे पीछे गया। कुछ दूर जाकर उसने उस औरत से धन छीनने की कोशिश की किन्तु औरत ने उसे धक्का देकर जमीन पर गिरा दिया। दूसरी बार वह फिर उठा परंतु औरत ने उसे फिर धक्का दे दिया। एक तो वह औरत हट्टी-कट्टी थी, दूसरे श्रीनिवास सीधा-सादा और मामूली कद-काठी का आदमी था। उसे छीना-झपटी का कोई अनुभव नहीं था। धन छीनने की उसकी सारी कोशिशें बेकार हो गईं। एक बार फिर उनके आसपास भारी भीड़ जमा हो गई।
वह औरत श्रीनिवास का हाथ पकड़कर उसे खींचती हुई फिर कोतवाल के पास ले आई और कहने लगी – “श्रीमान जी, थोड़ी देर पहले आपने इस आदमी से जो धन मुझे दिलवाया, उसे यह आदमी मुझसे फिर छीन लेना चाहता है। कृपा करके मुझे बचाइए।”
“क्या तुम सच कह रही हो ? क्या किसी ने यह घटना देखी ?” कोतवाल ने पूछा।
“इन सभी लोगों ने यह घटना देखी। आप खुद इनसे पूछ लीजिये।” औरत ने पीछे पीछे आई भीड़ की ओर इशारा करते हुये कहा।
“इन सबसे पूछने की जरूरत नहीं है। तुम मुझे बताओ कि क्या इस आदमी ने तुमसे रुपये छीन लिए ?” कोतवाल ने पूछा।
“नहीं छीन पाये श्रीमान। मैंने इसे ऐसा करने नहीं दिया। मैंने इसकी सारी कोशिशें विफल कर दीं !” औरत गर्व-मिश्रित स्वर में बोली।
“मैंने भी यही सोचा था। तुमसे धन छीनने की शक्ति इस आदमी में नहीं है। यह इन सब लोगों ने देखा है …” कहते हुये कोतवाल ने सवालिया नजरों से भीड़ की ओर देखा।
“सच कह रहे हैं श्रीमान …” भीड़ में से एक – दो लोग बोले।
कोतवाल औरत से आगे बोला – “पहली बार तो तुमने कहा था कि इस आदमी ने तुमसे रुपये छीन लिए। उस समय किसी ने भी नहीं देखा था। अगर यह आदमी तुमसे धन छीन सकता तो दूसरी बार भी छीन लेता। इसलिए साबित होता है कि वे रुपये इस आदमी के ही हैं। तुरंत वे रुपये इसे लौटा दो। दोबारा अगर किसी को ठगने की कोशिश करोगी तो तुम्हें जेल भिजवा दूंगा।”
जेल का नाम सुनते ही औरत डर गई और उसने चुपचाप श्रीनिवास के रुपये लौटा दिये।
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