सौतेली मां

बहुत दिनों की बात है, एक शहर में एक आदमी रहता था। कुछ समय बाद उसकी पत्नी की मृत्यु हो गयी। उसकी एक बेटी थी जिसका नाम टाम था। बाप-बेटी दोनों आराम से रहते थे।

एक दिन उस आदमी ने दूसरा विवाह करने का फैसला कर लिया। उसका विवाह तो हो गया परन्तु उसकी दूसरी पत्नी बहुत चालाक निकली | कुछ ही दिनों में सौतेली मां ने टाम के साथ बुरा बर्ताव करना शुरू कर दिय। वह टाम से सारा-सारा दिन काम करवाती और एक पल के लिए भी उसे खाली नहीं बैठने देती थी। इस पर भी कई बार वह टाम को भोजन न देती और वह बेचारी बिना कुछ बोले भूखी सो जाती।.

इधर टाम की सौतेली मां के यहां एक कन्या ने जन्म लिया। उसका नाम “काम” रखा गया। टाम अपनी छोटी बहन से बहुत प्रेम करती थी। पर उसकी मां को यह भी अच्छा नहीं लगता था। वह जब टाम को अपनी लाडली बेटी काम के साथ बैठे देखती, तभी गुस्से में आकर कहने लगती, “जाओ यहां से, सुबह से यहां बैठी क्‍या कर रही हो?”

कुछ दिनों बाद टाम के पिता की मृत्यु हो गयी। अब तो उसकी मां का व्यवहार और खराब हो गया।

टाम को इतने बड़े मकान में रसोईघर के साथ वाला एक गन्दा-सा स्टोर मिला हुआ था। वह वहीं उठती-बैठती और वहीं सोती। उस मकान के दूसरे कमरों में जाने की उसे मनाही थी। बस सफाई करने के लिए वह वहां जा सकती थी।

टाम को बहुत काम करना पड़ता था। सारे घर की सफाई करती, कपड़े साफ करती, फर्श रगड़-रगड़कर धोती और सारे घर का भोजन बनाती । भैंस को नहलाना, चारा डालना, लकड़ी काटना, कुएं से पानी लाना-बहुत-से काम उस सुकुमार कन्या को करने पड़ते। काम करते-करते कई बार तो वह बहुत थक जाती, परन्तु किसी से शिकायत न करती।

एक दिन सौतेली मां ने टाम और काम से कहा, “जाओ आज मछली पकड़ कर लाओ, जो टोकरी भर कर मछली नहीं लाएगी उसको मार पड़ेगी और रात को उसे भोजन भी नहीं मिलेगा।”

टाम जानती थी कि यह चेतावनी केवल उसी के लिए है। काम को न तो मार ही पड़ सकती थी और न भोजन के बिना वह रह ही सकती थी।

टाम सुबह से शाम तक तालाब के किनारे बैठी रही। उसने मछलियों से अपनी टोकरी भर ली। परन्तु काम सारा दिन इधर से उधर घूमती रही। उसने सारा समय नाच-गाने और फूल तोड़ने में खो दिया।

सूर्य के अस्त होने तक काम ने मछली पकड़ना शुरू ही नहीं किया था। काम ने ज्यों ही अपनी बहन टाम की टोकरी मछलियों से भरी हुई देखी, तो उसे एक तरकीब सूझी । वह कहने लगी, “देखो बहन, तुम्हारा चेहरा धूल से भर गया है, तुम इस निर्मल जल में स्नान क्यों नहीं कर लेतीं। मां तुम्हारा चेहरा इतना गंदा देखेगी, तो क्या कहेगी?”

टाम को यह सलाह अच्छी लगी। वह उधर स्नान करने के लिए तालाब में घुसी और इधर काम ने उसकी मछलियां अपनी टोकरी में डाल लीं और टोकरी उठाकर जल्दी से घर भाग गयी।

जब टाम ने यह देखा कि उसकी मछलियां काम उठाकर ले गयी है तो वह बेचारी वहीं ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी।

थोड़ी ही देर में उस तालाब में से एक जलपरी निकली और टाम से कहने लगी, “क्या बात है, बेटी? इतनी ज़ोर-ज़ोर से क्यों रो रही हो?’

तब टाम ने जलपरी से सारी कथा कह सुनायी और बोली, “मेरी रक्षा करो। आज जब मैं घर पहुंचूंगी तो मेरी सौतेली मां मुझे बहुत मारेगी।”

जलपरी ने उसे हौसला दिया और कहा, “चिन्ता मत करो, बेटी, तुम्हारे कष्ट के दिन दूर होने वाले हैं। तुम्हारी टोकरी में मैंने एक सुनहरी आंखों वाली मछली रख दी है, इस मछली को अपने घर के पास वाले कुएं में डाल देना। बस, फिर इससे तुम जो मांगोगी, वही मिलेगा।”

टाम ने जलपरी को धन्यवाद दिया और घर जाकर उस मछली को अपने कुएं में छोड़ दिया। उस रात उसकी सौतेली मां ने उससे कुछ नहीं कहा।

जब टाम उस कुएं पर पानी भरने जाती, तो वह मछली उसे दिखायी देती और उससे बातें भी करती। परन्तु जब कोई और जाता, तो वह मछली पानी में छिप जाती।

टाम की सौतेली मां को थोड़ा-धोड़ा शक होने लगा कि इस कुएं में जरूर कोई है, जिससे टाम एकान्त में बातें किया करती है। इसी से उसने एक दिन टाम को किसी काम से दूर भेज दिया।

टाम की अनुपस्थिति से लाभ उठाकर, उसकी मां ने कुएं से उस मछली को निकाल लिया। टाम के लौटने से पहले ही उसकी मां ने उस मछली को पकाकर खा भी लिया।

जब टाम काम से लौटी तो वह कुएं पर गयी। वहां पहुंचकर वह मछली को बुलाने लगी। पर मछली ने कोई जवाब नहीं दिया। वहां मछली होती, तो कोई जवाब आता भी। टाम वहीं कुएं की दीवार से सिर पटक-पटककर रोने लगी।

फिर वहां जलपरी आयी और कहने लगी, “बेटी, चुप हो जाओ, रोने से काम नहीं चलेगा। उस मछली को तुम्हारी सौतेली मां खा गयी है। उसने मछली की हड्डियां सामने के मैदान में फेंक दी हैं। तुम उन हड्डियों को उठाकर अपने कमरे में दफना दो। बस, फिर तुम्हें किसी प्रकार का कष्ट नहीं होगा।”

टाम ने वैसा ही किया। मछली की हड्डियों को दफनाने के तुरन्त बाद ही टाम को सलमे-सितारों से जड़ी एक साड़ी और सैंडल मिले।

दूसरे दिन एक त्योहार था। त्योहार में लाखों लोग इकट्ठे होकर झूला झूलते और खुशियां मनाते थे। परन्तु उस दिन सुबह ही टाम को घर बैठने का हुक्म हो गया। उसकी सौतेली मां ने चने और चावल से भरी दो बड़ी-बड़ी टोकरियों को जान-बूझकर आपस में मिला दिया। वह टाम को मेले में नहीं ले जाना चाहती थी। उसे विश्वास था कि न यह काम समाप्त होगा और न यह मेले में जा सकेगी। उसने टाम से कहा, “टाम, तुम घर बैठकर इन चनों और चावलों के दानों को अलग-अलग करो। घबराने की कोई बात नहीं। थोड़ी देर का काम है, जल्दी से खत्म करके मेले में आ जाना।”
इतना कहकर दोनों मां-बेटी सुन्दर-सुन्दर कपड़े पहनकर मेले में चली गयीं ।

उनके जाने के बाद टाम की आँखों में आंसू आ गये। उस मेले में वह भी सज-धजकर जाना चाहती थी। वह मन-ही-मन कई बार सोचती कि जब हम दोनों ही एक बाप की बेटी हैं, तो उसमें और मुझमें इतना अन्तर क्‍यों?
टाम ने सिसकियां लेते हुए कहा, “हे जलपरी, मेरी सहायता करो।”

उसी क्षण वहां सैकड़ों चिड़ियां इकट्ठी हो गयीं। सब चिड़ियों ने थोड़ी ही देर में चनों और चावलों को अलग-अलग कर दिया। टाम झट मेले में जाने के लिए तैयार हो गयी। उसने वही सलमे-सितारों वाली साड़ी और सेंडल पहने, जो उसे कल मछली की हड्डियों को दफनाने के बाद मिले थे। उस साड़ी में टाम राजकुमारी-सी लगती थी।

ज्यों ही टाम मेले में पहुंची, काम उसे देखकर बड़ी हैरान हुई। वह अपनी मां के कानों में कहने लगी, “देखो मां, कितनी खूबसूरत लड़की है। ऐसा लगता है जैसे कोई राजकुमारी हो। इसकी शक्ल बहुत-कुछ हमारी बहन टाम से मिलती-जुलती है।”

उधर जब टाम ने देखा कि उसकी सौतेली मां और काम उसकी ओर आंखें फाड़-फाड़कर देख रही हैं, तो वह वहां से भागने लगी। जल्दी में उसका एक सेंडल वहीं रह गया। उस सेंडल को वहां घूमते हुए सिपाहियों ने उठा लिया और जाकर अपने राजा को दे दिया।

राजा ने उस सेंडल को बड़े ध्यान से देखा। सेंडल बहुत खूबसूरत था। राजा ने उससे पहले कभी उतना सुन्दर सेंडल नहीं देखा था। राजा ने उसी वक्‍त घोषणा कर दी कि जिस लड़की ने ऐसा सेंडल पहना हो, उसे पकड़कर राज-दरबार में लाया जाये। सिपाही अपने घोड़ों पर चढ़कर मेले में पहुंचे और टाम को पकड़कर राजा के पास ले आये।

राजा ने ज्यों ही टाम को देखा, उसी क्षण उसने टाम को अपनी महारानी बनाने का निश्चय कर लिया।

दोनों का विवाह हो गया। टाम आराम से राजमहल में रहने लगी। अब उसे किसी बात की चिन्ता नहीं थी।
परन्तु उसकी सौतेली मां और काम को इस घटना से बहुत दुख हुआ। वे दोनों टाम को मार देना चाहती थीं, परन्तु उन्हें राजा से डर लगता था।

कुछ दिनों बाद ही टाम के पिता का मृत्यु-दिवस मनाया गया। टाम को अपने घर जाना पड़ा।

टाम को घर में पाकर, पहले तो उसकी सौतेली मां बनावटी हँसी हँसती रही और कहती रही, “मेरी बेटी बहुत अच्छी जगह पहुंच गयी है। भगवान तुम दोनों की उमर लम्बी करे।”

फिर थोड़ी देर बाद चेहरे पर गम्भीर भाव लाकर कहने लगी, “आज के दिन मैं भिखारियों को नारियल देना चाहती हूं। कितना अच्छा हो कि तुम खुद ही नारियल तोड़कर भिखारियों को दे दो ।”

टाम बड़ी खुश होकर नारियल के पेड़ पर चढ़ गयी। जैसे ही टाम ऊपर पहुंचकर नारियल तोड़ने लगी सौतेली मां ने नीचे से वृक्ष काट दिया।

सौतेली मां अन्दर-ही-अन्दर बहुत खुश थी, पर बाहर आंखों से बनावटी आंसू भी गिर रहे थे। वह रोती-रोती राजा के पास पहुंची। वहां जाकर वह ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगी, “महाराज, मैं लुट गयी! मेरी बेटी नारियल वृक्ष से गिरकर मर गयी। हे भगवान, तुमने मुझे क्‍यों न उठा लिया?”
राजा को टाम के मर जाने का बहुत दुख हुआ।

“विनाश काले विपरीत बुद्धि’ वाली कहावत टाम की सौतेली मां पर भी चरितार्थ होती है। टाम उस वृक्ष से गिरकर बेहोश हो गयी थी, उसकी मृत्यु नहीं हुई थी।

टाम को एक बूढ़ी स्त्री उठाकर अपने घर ले गयी। उस बूढ़ी स्त्री के कोई सन्‍तान नहीं थी। उसने अपनी सारी पूंजी लगाकर टाम का इलाज करवाया । टाम कुछ ही दिन में ठीक हो गयी।

दूसरी ओर, सौतेली मां चाहती थी कि किसी तरह राजा उसकी बेटी काम के साथ विवाह करवा ले और उसकी बेटी महारानी बन जाये। राजा ने इस पर कोई आपत्ति नहीं की और काम से विवाह कर लिया।

एक दिन राजा जंगल में शिकार खेलने गया। शिकार खेलते-खेलते रात हो गई राजा रास्ता भूल गया और उसने जंगल में ही रात बिताने का निश्चय किया। आस-पास कोई मकान या सराय भी नहीं थी। राजा को दूर एक दीपक जलता दिखायी दिया। वह उसी ओर चल दिया । वहां पहुंचकर उसने दरवाजा खटखटाया। बूढ़ी स्त्री ने दरवाज़ा खोल दिया।

राजा ने कहा, “मैं राजा हूं, शिकार खेलते-खेलते रात हो गयी। यदि तुम आज रात यहां ठहरने दो, तो तुम्हारी बड़ी मेहरबानी होगी। मैं सुबह होते ही यहां से चला जाऊंगा।”
उस स्त्री ने राजा को अन्दर बिठा लिया। यह वही घर था, जहां टाम रहती थी।

उस स्त्री ने राजा को भोजन खिलाया। भोजन बड़ा स्वादिष्ट था और उसमें भी केवल वही पदार्थ बनाये गये थे, जो राजा को बहुत अच्छे लगते थे।
राजा ने उस स्त्री से पूछा, “माता जी, यह भोजन किसने बनाया है?”
“मेरी बेटी ने।” उस स्त्री ने जवाब दिया।
“कहां है तुम्हारी बेटी?” राजा ने पूछा।
बूढ़ी स्त्री ने टाम को राजा के सामने खड़ा कर दिया और कहा, “यह रही मेरी बेटी।”
राजा टाम को दुबारा पाकर बहुत खुश हुआ। टाम ने सारी बात राजा से कह सुनायी।
राजा ने काम और उसकी मां को जेलखाने में डाल दिया।

अब उसकी सौतेली मां और काम को मालूम हो गया कि भगवान के घर देर हो सकती है, अंधेर नहीं।

Ravi KUMAR

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