एंडी और मैंडी बहुत पक्के मित्र थे । वे बचपन से ही स्कूल में साथ पढ़े थे । जब वे युवा हुए तो उन्होंने तय किया कि वे दोनों अपना व्यापार भी एक साथ करेंगे ।
दोनों ने मिलकर कपड़े का व्यापार शुरू किया और उनका व्यापार खूब अच्छा चल निकला । वे दोनों विवाह करके घर बसाने की सोचने लगे, लेकिन तभी उनके व्यापार को किसी की नजर लग गई । किस्मत ने उनका साथ छोड़ दिया और व्यापार धीरे-धीरे ठप होने लगा ।
एक दिन एंडी बोला – “दोस्त, क्यों न हम कहीं और चल कर किस्मत आजमाएं ? हमारा व्यापार मंदा होता जा रहा है । यदि यही हाल रहा तो हमें भोजन के भी लाले पड़ जाएंगे । इससे तो अच्छा है कि हम किसी दूसरे देश जाकर नया व्यापार शुरू कर दें ।”
मैंडी बोला – “एंडी तुम ठीक कहते हो । हमें धीरे-धीरे यहां का काम बंद कर देना चाहिए । ताकि पैसा इकट्ठा करके कहीं और व्यापार कर सकें ।”
दो महीने के भीतर दोनों मित्रों ने मिलकर अपना व्यापार बंद कर दिया । अपने धन को अशर्फियों के रूप में लेकर वे अपने घोड़ों पर सवार होकर चल दिए । दो दिन में वे दूसरे देश पहुंच गए ।
दोनों ने वहां जाकर एक सराय में अपना समान रख दिया । रात्रि में मैंडी बोला – “एंडी, मैं हजार अशर्फी और घोड़ा लेकर जाता हूं और देखता हूं कि व्यापार का कोई इंतजाम हो जाए । तब तक तुम यहीं मेरा इंतजार करो ।”
एंडी बोला – “मित्र, जरा संभल कर जाना, न जाने यहां के लोग कैसे हों ?”
मैंडी को व्यापार का अच्छा तजुर्बा था, वह बोला – “फिक्र न करो मित्र । अच्छा मैं चलता हूं । शाम तक लौट आऊंगा ।”
थोड़ी ही दूर जाने पर एक व्यक्ति ने पूछा – “क्यों भैया, क्या घोड़ा बेचने जा रहे हो ?”
मैंडी बोला – “कोई खास इरादा तो नहीं है । पर कोई अच्छा खरीदार मिल जाए तो बेच भी सकता हूं ।”
वह व्यक्ति बोला – “मैं तुम्हारा घोड़ा खरीदने को तैयार हूं । बताओ, तुम्हारे घोड़े की कीमत क्या है ?”
मैंडी ने सोचा मुझे घोड़ा बेचना तो है नहीं, पर यदि इसकी अच्छी कीमत मिल जाए तो बेचने में कोई हर्ज भी नहीं है । वैसे भी यह घोड़ा बूढ़ा हो गया है । इसके दाम ठीक मिल गए तो इसके बदले दूसरा अच्छा घोड़ा खरीद लूंगा । मैंडी बोला – “मेरे घोड़े की कीमत तो पांच सौ अशर्फी है ।”
वह व्यक्ति बोला – “मैं यहीं का दुकानदार हूं । तुम कोई अजनबी जान पड़ते हो । यहां तो घोड़ा सौ अशर्फी में मिल जाता है ।”
मैंडी बोला – “लेना हो तो लो, इसकी कीमत कम नहीं होगी । क्या नाम है तुम्हारा ?”
वह व्यक्ति बोला – “मेरा नाम रशैल है । मुझे तुम्हारा घोड़ा पसंद है । यह लो पांच सौ अशर्फी, अब घोड़ा मेरा हुआ ।”
मैंडी ने खुश होकर पांच सौ अशर्फी ले लीं और घोड़े से उतरकर घोड़े की जीन खोलने लगा ताकि अपनी अशर्फियां निकाल सके । लेकिन रशैल मैंडी से बोला – “अब यह घोड़ा मेरा हुआ तो इस पर से तुम कुछ नहीं ले सकते । हम यहां के व्यापारी हैं और जुबान के बड़े पक्के होते हैं । सौदा तय करते समय यह कतई तय नहीं हुआ था कि तुम इसकी जीन या कोई सामान उतार लोगे । अत: तुम घोड़े को हाथ भी नहीं लगा सकते ।”
मैंडी बहुत परेशान था कि अब क्या करे ? इतने में रशैल घोड़े पर बैठ कर उसे तेज दौड़ाता हुआ शहर की तरफ चला गया । मैंडी बहुत दुखी होता हुआ सराय लौट आया और अपने मित्र एंडी को सारी बात विस्तार से बताई । एंडी को रशैल की चालाकी पर बहुत क्रोध आया और उसने मन ही मन उससे बदला लेने का निश्चय किया ।
अगले दिन सुबह एंडी तैयार होकर बोला – “मैंडी, मैं शहर जा रहा हूं व्यापार के लिए कुछ न कुछ इंतजाम करके लौटूंगा । तब तक तुम यहीं आराम करो ।”
मैंडी बोला – “ये पांच सौ अशर्फियां साथ लेते जाओ ।”
एंडी ने हंसते हुए जवाब दिया कि उसके लिए पच्चीस अशर्फियां ही काफी हैं । फिर वह पच्चीस अशर्फियां लेकर चल दिया । शहर में जाकर उसने रशैल की दुकान के बारे में पता किया तो पता लगा कि रशैल कसाई है और मीट बेचने का धंधा करता है ।
एंडी सीधा रशैल की दुकान पर पहुंचा । उसने देखा कि रशैल की दुकान काफी बड़ी थी । ऊपर छत पर उसके बच्चे खेल रहे थे । छज्जे पर स्त्रियां बैठी काम कर रही थीं । एंडी ने दुकान में प्रवेश किया तो देखा कि बकरे के सिर और मुर्गे की टांगे लटक रही थीं । दुकान के पिछवाड़े के आंगन में घोड़ा बंधा था । रुक-रुक कर घोड़े के हिनहिनाने की आवाज आ रही थी । एंडी ने पूछा – “भैया, ये सिर और टांगे कितने की हैं ?”
रशैल बोला – “यह सिर एक अशर्फी का एक है और एक जोड़ी टांगें भी एक अशर्फी की ही हैं ।”
एंडी ने पूछा – “क्या यहां सारे सिर और टांगों की कीमत एक अशर्फी ही है ?”
रशैल ने नम्रता से जवाब दिया – “हां, सभी सिर और टांग की जोड़ी की कीमत एक अशर्फी है ।”
इस पर एंडी ने कुछ सोचा और पूछा – “पक्की बात है न कि हर सिर की कीमत एक अशर्फी है ?”
रशैल झुंझलाकर बोला – “कह तो दिया कि हर सिर की कीमत एक अशर्फी है, क्या लिख कर दूं ?”
एंडी ने पच्चीस अशर्फी निकाल कर रशैल के हाथ में रखी और बोला – “मुझे पच्चीस सिर चाहिए ।”
रशैल बोला – “पर मेरे पास तो सिर्फ पांच तो सिर ही हैं, बाकी कल ले लेना ।”
एंडी ने सख्ती दिखाते हुए कहा – “कोई नए व्यापारी हो क्या ? हम व्यापारी जुबान के बड़े पक्के होते हैं, सौदा हो गया तो हो गया । दुकान के ऊपर भी बहुत सारे सिर हैं, मुझे अभी पच्चीस सिर चाहिए ।”
रशैल गिड़गिड़ाने लगा और खुशामद करने लगा । वह बोला – “भैया, मैंने तो बकरे के सिर की कीमत बताई थी, तुम्हें दावत के लिए ज्यादा मीट चाहिए तो टांगें ले लो ।”
एंडी बोला – “नहीं, मुझे तो सिर ही चाहिए, वह भी बिल्कुल अभी ।”
रशैल समझ गया कि यह कल वाली घटना जानता है । तुरंत खुशामद करने लगा कि मेरे बीवी – बच्चों को छोड़ दो । वह बोला – “भैया, आप मैंडी के ही कोई परिचित जान पड़ते हो । लो भइया, आप अपना घोड़ा भी ले जाओ और हजार अशर्फी भी ले जाओ । पर मेरे बीवी-बच्चों की जान बक्श दो ।”
एंडी ने अपनी एक हजार अशर्फियां और घोड़ा लिया और सराय के लिए चल दिया ।
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