एक बार की बात है कि डेनमार्क में एक राजा और रानी अपनी बेटी के साथ रहते थे। उनकी बेटी अभी छोटी ही थी कि रानी बहुत बीमार पड़ गयी और उसी बीमारी में वह चल बसी।
*जब रानी को यह पता चला कि अब वह ज़्यादा दिन ज़िन्दा नहीं रहने वाली तो उसने राजा को बुलाया और उससे कहा — “प्रिये, ताकि मैं शान्ति से मर सकूँ इसके लिये तुम मुझसे एक वायदा करो। कि मेरी बेटी जो कुछ भी माँगेगी अगर वह तुम उसको दे सकते होगे तो वह चीज़ उसको जरूर दोगे। किसी चीज़ के लिये मना नहीं करोगे। ”
इस वायदे के लेने के कुछ समय बाद ही रानी चल बसी। रानी के जाने के बाद राजा का दिल टूट गया क्योंकि वह अपनी रानी को बहुत प्यार करता था। वह अपनी बेटी को भी बहुत प्यार करता था सो वह केवल अपनी बेटी को देख कर ही ज़िन्दा था।
राजकुमारी अपनी माँ के लिये हुए वायदे के साथ बड़ी होने लगी। राजा के लिये बेटी की माँ के साथ किये हुए वायदे को निभाना कोई मुश्किल काम नहीं था।
पर इस वायदे को निभाने ने उसकी बेटी को थोड़ा बिगाड़ दिया था नहीं तो वह एक बहुत अच्छी बच्ची थी जिसको एक माँ की जरूरत थी जो उसको प्यार कर सके। इस प्यार की कमी की वजह से वह कभी कभी उदास हो जाती और कभी बेकार में ही गुस्सा भी हो जाती।
उसको दूसरे बच्चों की तरह से खेलना अच्छा नहीं लगता बल्कि वह अकेली बागीचों और जंगलों में घूमती रहती। उसको फूलों और चिड़ियों से बहुत प्यार था और उसको कहानियाँ और कविताएँ पढ़ने का भी बहुत शौक था।
महल के पास ही एक काउन्ट की पत्नी रहती थी। काउन्ट तो मर गया था पर उसके एक बेटी थी जो राजकुमारी से थोड़ी सी बड़ी थी। वह अब उसी के साथ रहती थी।

काउन्टैस की वह नौजवान बेटी कोई बहुत अच्छी लड़की नहीं थी। वह एक बहुत ही बेकार, स्वार्थी और बहुत ही पत्थर दिल लड़की थी। पर अपनी माँ की तरह वह चतुर बहुत थी और जब भी वह देखती कि कहीं उसका कोई काम बनने वाला है तो वह अपने विचारों को छिपा भी लेती थी।
बड़ी काउन्टैस ने ऐसे ऐसे तरीके निकाल रखे थे जिससे कि उसकी अपनी बेटी राजकुमारी के साथ ही रहे इसलिये माँ और बेटी दोनों ही राजकुमारी को खुश रखने में लगी रहतीं।
उन दोनों के बस में जो कुछ भी होता वे उसको खुश रखने के लिये उसके लिये किसी भी तकलीफ को उठा कर करतीं। उसकी परेशानी को दूर करने के लिये उन दोनों में से जल्दी ही उसके पास कोई न कोई पहुँच जाता।
बड़ी काउन्टैस तो यही चाहती थी और इसके लिये वह मेहनत भी बहुत कर रही थी ताकि समय आने पर वह अपनी बात पर आ सके।
सो जब वह समय आ गया तो एक दिन बड़ी काउन्टैस ने अपनी बेटी से राजकुमारी से रोते हुए यह कहने के लिये कहा कि अब वे दोनों अलग हो जायेंगी क्योंकि वह अपनी माँ के साथ किसी दूसरे देश जा रही है।
यह सुनते ही छोटी राजकुमारी बड़ी काउन्टैस के पास भागी गयी और बोली कि उसको अपनी बेटी को साथ ले कर वहाँ से नहीं जाना चाहिये।

छोटी राजकुमारी की बात सुन कर काउन्टैस ने उसके साथ बहुत सहानुभूति का बहाना किया और उससे कहा कि उसके वहाँ उस देश में रुकने का अब केवल एक ही तरीका है और वह यह कि राजा उससे शादी कर ले। उसके बाद दोनों माँ बेटी उसके पास हमेशा के लिये रह सकती थीं।
फिर उन्होंने उसको सब्ज़ बाग दिखाये कि जब वे वहाँ रहेंगी तो वे उसी की हो कर रहेंगी।
यह सुन कर राजकुमारी अपने पिता के पास गयी और उनसे उसने बड़ी काउन्टैस से शादी करने की प्रार्थना की। क्योंकि अगर उसने उससे शादी नहीं की तो वह अपनी बेटी के साथ चली जायेगी और उसकी अपनी बेटी की अकेली दोस्त भी चली जायेगी और उस दोस्त के बिना वह तो मर ही जायेगी।
राजा उसको समझाते हुए बोला — “अगर मैंने ऐसा किया तो बेटी यह करके तुम बहुत पछताओगी। और साथ में मैं भी। क्योंकि मेरी शादी करने की कोई इच्छा नहीं है और मुझे उस धोखेबाज काउन्टैस और उसकी धोखेबाज बेटी का कोई भरोसा भी नहीं है। ”
पर राजकुमारी का रोना नहीं रुका। वह उससे जिद करती ही रही जब तक कि वह काउन्टैस से शादी करने पर राजी नहीं हो गया और उसने राजकुमारी की इच्छा पूरी नहीं की।
राजा ने काउन्टैस से शादी करने के लिये पूछा तो काउन्टैस तो पहले से ही तैयार बैठी थी वह तुरन्त ही राजी हो गयी। जल्दी ही उन दोनों की शादी हो गयी। अब काउन्टैस रानी बन गयी और छोटी राजकुमारी की सौतेली माँ बन गयी।
पर जैसे ही काउन्टैस रानी बन कर महल में आयी सब कुछ बदल गया। रानी ने अपनी सौतेली बेटी यानी राजकुमारी को बजाय प्यार से रखने के उसको चिढ़ाना और तंग करना शुरू कर दिया। उसकी ज़िन्दगी दूभर करने के लिये वह जो कुछ कर सकती थी अब वह उसने सब करना शुरू कर दिया था।
राजा ने भी यह सब देखा। वह इस सबसे बहुत दुखी हुआ क्योंकि वह अपनी बेटी को बहुत प्यार करता था।
एक दिन उसने अपनी बेटी से कहा — “ओह मेरी प्यारी बेटी, तुम्हारी ज़िन्दगी तो बहुत ही खराब हो गयी। तुम भी यह सोच कर पछताती तो होगी कि तुमने मुझसे क्या माँगा। देखो जैसा मैंने तुमसे पहले कहा था वैसा ही हुआ। पर अब तो हम दोनों की बदकिस्मती से बहुत देर हो चुकी है।
मुझे लगता है कि तुमको अब हमको कुछ दिनों के लिये छोड़ देना चाहिये। तुम ऐसा करो कि टापू पर बने मेरे गरमी वाले महल में चली जाओ। वहाँ तुम कम से कम शान्ति से तो रह सकोगी। ”
हालाँकि उन दोनों के लिये अलग होना बहुत मुश्किल था फिर भी राजकुमारी पिता की बात मान गयी।
यह बहुत जरूरी भी था क्योंकि वह अपनी नीच सौतेली माँ और अपनी नीच सौतेली बहिन के बुरे व्यवहार को और ज़्यादा नहीं सह सकती थी।

उसने अपने साथ अपनी दो दासियाँ लीं और अपने पिता के गरमी वाले महल में टापू पर रहने चली गयी। उसका पिता कभी कभी उससे मिलने के लिये वहाँ आ जाता था।
वहाँ आ कर वह देखता कि उसकी बेटी सौतेली माँ के साथ घर में रहने की बजाय इस महल में रह कर ज़्यादा खुश थी।
इस तरह से वह एक बहुत सुन्दर, दयावान, भोलीभाली और दूसरों के बारे में सोचने वाली लड़की की तरह बड़ी होती रही। वह आदमियों और जानवरों सब पर दया करती।
पर वह सचमुच में खुश नहीं थी। वह हमेशा ही उदास रहती। उसके दिल में हमेशा ही यह इच्छा रहती कि उसके पास जो कुछ भी इस समय है उसको इससे कुछ ज़्यादा अच्छा मिल सकता है।
एक दिन उसका पिता उससे विदा लेने के लिये आया क्योंकि उसको किसी लम्बी यात्र पर जाना था।
वहाँ उसको राजाओं और कुलीन लोगों की एक मीटिंग में हिस्सा लेना था जो कई देशों से आने वाले थे और वह मीटिंग काफी दिनों तक चलने वाली थी सो वह काफी दिनों तक लौटने वाला नहीं था।
राजा अपनी बेटी को खुश करने के लिये बोला कि वहाँ वह उसके लिये अगर कोई अच्छा राजकुमार मिलेगा तो ढूँढेगा जिससे वह उसकी शादी कर सके।
तो राजकुमारी ने जवाब दिया — “पिता जी, इसके लिये बहुत बहुत धन्यवाद। पर अगर आपको कहीं हरा नाइट मिल जाये तो उसको मेरी तरफ से नमस्ते कहियेगा और उससे कहियेगा कि मैं उसको बहुत चाहती हूँ और उसका इन्तजार कर रही हूँ। क्योंकि केवल वही मुझे मेरे इस दुख से छुटकारा दिला सकता है और दूसरा कोई नहीं। ”
जब राजकुमारी ने यह कहा तो वह चर्च के हरे आँगन के बारे में सोच रही थी जिसमें बहुत सारे हरे हरे मिट्टी के ढेर खड़े हुए थे क्योंकि उस समय वह मौत के बारे में सोच रही थी।
पर राजा यह बात नहीं समझ सका। उसको अपनी बेटी का इस अजीब से नाइट के लिये अजीब सा सन्देश सुन कर बड़ा ताज्जुब हुआ क्योंकि उसने तो ऐसे नाइट का नाम पहले कभी नहीं सुना था।
पर क्योंकि वह अपनी बेटी की हर इच्छा पूरी करने का आदी था इसलिये उसने अपनी बेटी से कहा कि अगर उसको हरा नाइट कहीं मिल गया तो वह उसका सन्देश उसको जरूर दे देगा।
फिर उसने अपनी बेटी को विदा कहा और राजाओं की मीटिंग मे हिस्सा लेने के लिये अपनी यात्र पर चल दिया।
उस मीटिंग में उसको बहुत सारे राजकुमार मिले, नौजवान कुलीन लोग और नाइट मिले पर हरा नाइट उसे कहीं नहीं मिला। इसलिये राजा अपनी बेटी का सन्देश भी उसको नहीं दे सका।
मीटिंग खत्म हो गयी थी सो राजा घर लौटने लगा। उसको ऊँचे ऊँचे पहाड़ पार करने थे, चौड़ी चौड़ी नदियाँ पार करनी थीं और घने जंगल पार करने थे।

एक दिन जब राजा अपने लोगों के साथ एक घने जंगल से गुजर रहा था तो वे सब एक बड़ी सी खुली जगह में आ गये जहाँ हजारों सूअर चर रहे थे। ये सूअर जंगली नहीं थे बल्कि पालतू थे। उनके साथ उनका चराने वाला भी था।
वह सूअर चराने वाला एक शिकारी की पोशाक पहने अपने कुत्तों से घिरा हुआ एक छोटे से टीले पर बैठा हुआ था। उसके हाथ में एक पाइप था जिसको वह बजा रहा था। सारे जानवर उसके संगीत को सुन रहे थे और उसका कहना मान रहे थे।
राजा को पालतू सूअरों के इस झुंड पर बड़ा आश्चर्य हुआ तो उसने अपना एक आदमी उस सूअरों के रखवाले के पास यह जानने के लिये भेजा कि वे सारे सूअर किसके थे।
उस रखवाले ने जवाब दिया कि वे सारे सूअर हरे नाइट के थे। यह सुन कर राजा को अपनी बेटी की बात याद आ गयी सो वह खुद उस आदमी के पास गया और उससे पूछा कि क्या वह हरा नाइट कहीं पास में ही रहता था।
उस सूअर चराने वाले ने जवाब दिया “नहीं, वह पास में तो नहीं रहता। वह तो वहाँ से बहुत दूर पूर्व की तरफ रहता था। ”
अगर राजा उस दिशा की तरफ चला जाये तो उसको जानवरों के दूसरे झुंड चराने वाले मिलेंगे वे उसको उस हरे नाइट के किले का रास्ता बता देंगे।
राजा यह सुन कर अपने आदमियों के साथ पूर्व की तरफ चल दिया। वह उधर की तरफ जंगल में हो कर तीन दिन तक चलता रहा। वह फिर से एक मैदान में आ निकला जिसके चारों तरफ जंगल ही जंगल था।
वहाँ मूज़ और जंगली बैलों के बहुत बड़े बड़े झुंड चर रहे थे। यहाँ भी उन जानवरों को चराने वाला शिकारी की पोशाक पहने था और उसके साथ भी कुत्ते थे।
राजा अपने घोड़े पर सवार उस रखवाले के पास गया और उससे पूछा कि वे जानवर किसके थे। उसने जवाब दिया कि वे हरे नाइट के थे जो पूर्व की तरफ और आगे की तरफ रहता था।
राजा फिर से पूर्व की तरफ तीन दिनों तक चला और फिर से एक मैदान में निकल आया जहाँ उसको बहुत सारे नर और मादा बारहसिंगा चरते नजर आये। उनका रखवाला भी उनके साथ था।
जब राजा ने उससे पूछा कि वे जानवर किसके हैं तो उसने भी यही कहा कि वे जानवर हरे नाइट के हैं।
राजा ने पूछा कि हरे नाइट का किला कहाँ है तो उसने बताया कि वह वहाँ से पूर्व की तरफ ही एक दिन की दूरी पर है।

राजा वहाँ से हरे हरे जंगलों में से हो कर जा रहे हरे हरे रास्तों पर फिर पूर्व की तरफ चला तो एक दिन में ही एक बड़े से किले तक आ पहुँचा। वह किला भी हरा था क्योंकि वह सारा किला बहुत सारी बेलों से ढका हुआ था।
जब राजा और उसके आदमी सब उस किले के पास तक पहुँचे तो उस किले में से बहुत सारे आदमी शिकारियों की हरे रंग की पोशाक पहने बाहर आये और उनको किले के अन्दर ले गये। अन्दर जा कर उन्होंने घोषणा की कि फलाँ फलाँ राज्य के राजा आये हैं और वह वहाँ के राजा से मिलना चाहते हैं।
यह सुन कर उस किले का मालिक बाहर आया – एक लम्बा सुन्दर नौजवान हरे कपड़े पहने हुए। उसने अपने मेहमान का स्वागत किया औैर उसकी शाही तरीके से आवभगत की।
राजा बोला — “आप बहुत दूर रहते हैं और आपका राज्य भी बहुत बड़ा है। मुझको अपनी बेटी की इच्छा पूरी करने के लिये बहुत दूर तक चलना पड़ा।
जब मैं राजाओं की मीटिंग में हिस्सा लेने के लिये चला था तो मेरी बेटी ने मुझसे कहा था कि मैं उसकी तरफ से हरे नाइट को नमस्ते करूँ।
और यह भी कहा था कि मैं उसको कहूँ कि वह उसको कितना चाहती है और वह उसका इन्तजार कर रही है क्योंकि केवल वही एक उसको उसके दुखों से छुटकारा दिला सकता है।
मैं अपनी बेटी का यह एक बहुत ही अजीब सा काम ले कर चला था, क्योंकि मुझे तो यह काम कम से कम अजीब सा ही लगा पर मेरी बेटी जानती है कि वह क्या कह रही थी।
इसके अलावा जब उसकी माँ मर रही थी तब मैंने उसकी माँ से यह वायदा किया था कि मैं उसकी बेटी की हर इच्छा पूरी करूँगा। इसलिये भी मैं अपनी रानी से किया गया अपना वायदा निभाने के लिये और उसका सन्देश देने के लिये यहाँ आया हूँ। ”
यह सुन कर हरा नाइट बोला — “आपकी बेटी ने जब आपसे यह सब कहा तब वह बहुत दुखी थी और यह मैं निश्चित रूप से कह सकता हूँ कि जिस समय उसने आपको यह सन्देश दिया वह मेरे बारे में नहीं सोच रही थी। क्योंकि मेरे बारे में तो वह सोच ही नहीं सकती थी।
शायद वह चर्च के आँगन में जो मिट्टी के हरे ढेर बने रहते हैं उनके बारे में सोच रही थी जहाँ वह खुद अकेले आराम करना चाहती थी। पर शायद मैं उसको उसके दुख को कम करने के लिये उसके लिये आपको कुछ दे सकता हूँ।
आप यह छोटी सी किताब ले जाइये और जा कर राजकुमारी को दे दीजियेगा। और उससे कहियेगा कि जब भी वह दुखी हो या उसका दिल भारी हो तो वह अपनी पूर्व की तरफ की खिड़की खोले और यह किताब पढ़े। मुझे यकीन है कि इस किताब को पढ़ कर उसका दिल जरूर खुश होगा। ”
यह कह कर उस हरे नाइट ने राजा को एक छोटी सी हरी किताब थमा दी। राजा ने उस किताब को खोल कर देखा तो वह उसको पढ़ नहीं सका क्योंकि वह उसमें इस्तेमाल किये गये अक्षरों को ही नहीं पहचान सका जिसमें उसमें लिखे शब्द लिखे गये थे।
फिर भी उसने हरे नाइट से वह किताब ले ली और उसको उसके स्वागत और उसकी आवभगत के लिये धन्यवाद दिया। उसने नाइट को विश्वास दिलाया कि उसको वाकई बहुत अफसोस था कि उसने इस तरह आ कर उसको परेशान किया। राजकुमारी का ऐसी कोई इरादा नहीं था। ”
हरे नाइट ने राजा से किले में रात भर ठहरने के लिये प्रार्थना की कि वह सुबह होते ही अपने राज्य चला जाये। असल में तो वह राजा को और ज़्यादा समय के लिये भी रखना चाहता था पर राजा ने उससे कहा कि वह और ज़्यादा नहीं रुक सकता था क्योंकि अगले दिन तो उसको जाना ही था।
सो अगले दिन सुबह राजा ने अपने मेज़बान को विदा कहा और उसी रास्ते से वापस चल दिया जिससे वह आया था। वह वहाँ तक आ गया जहाँ उसने सबसे पहले सूअर देखे था फिर वहाँ से वह सीधे अपने घर आ गया।
घर आ कर सबसे पहले वह उस टापू पर गया जिस पर उसकी बेटी रहती थी। वह वहाँ गया और जा कर राजकुमारी को वह हरी किताब दी।

जब राजा ने राजकुमारी को हरे नाइट के बारे में बताया और उसकी नमस्ते और हरी किताब दी तो उसका मुँह तो आश्चर्य से खुला का खुला रह गया क्योंकि उसने तो कभी यह सोचा ही नहीं था कि हरा नाइट नाम का कोई आदमी भी होगा। और आदमी होना तो दूर वह इस धरती पर भी कहीं होगा।
उसी शाम जब उसके पिता चले गये तो उसने पूर्व की तरफ की खिड़की खोली और वह किताब पढ़नी शुरू की हालाँकि वह किताब उसकी अपनी भाषा में नहीं लिखी थी। उस किताब में बहुत सारी कविताएँ थीं और उनकी भाषा बहुत सुन्दर थी। सबसे पहले जो उसने पढ़ा वह यह था —

समुद्र पर हवा चल निकली है,
वह खेतों पर और मैदानों पर बहती है,
और जब धरती पर शान्त रात छाती है,
नाइट के साथ कौन उसका विश्वास बाँधेगा?

जब वह इस पहली कविता की पहली लाइन पढ़ रही थी तो उसको साफ साफ लगा कि समुद्र पर हवा चलने लगी थी। जब उसने उस कविता की दूसरी लाइन पढ़ी तो उसने पेड़ों की पत्तियों के हिलने की आवाज सुनी।
जब उसने उस कविता की तीसरी लाइन पढ़ी तो उसकी जो दासियाँ थीं और जो भी किले के आस पास थे सब गहरी नींद में सो गये। और जब उसने कविता की चौथी लाइन पढ़ी तो वह हरा नाइट खुद चिड़िया का रूप रख कर खिड़की में से अन्दर आ गया।
अन्दर आ कर वह आदमी के रूप में आ गया और राजकुमारी को बहुत ही नम्रता से नमस्ते की। उसने राजकुमारी से कहा कि वह डरे नहीं।
उसने उससे यह भी कहा कि वह वही हरा नाइट था जिसके पास उसके पिता मिलने के लिये आये थे और जिसकी दी हुई किताब वह पढ़ रही थी।
उस कविता को पढ़ कर उसने उसको खुद ही वहाँ बुलाया था। बह उससे बेहिचक बात कर सकती थी। उससे बात करने से उसका दुख कुछ कम होगा।
यह सुन कर राजकुमारी को हरे नाइट के ऊपर कुछ विश्वास पैदा हुआ तो उसने उस हरे नाइट से अपने मन की सब बातें कह दीं।
उधर उस हरे नाइट ने भी उसके साथ इतनी सहानुभूति और प्यार से बातें कीं कि वह उसकी बातें सुन कर बहुत खुश हो गयी। इससे पहले वह इतनी खुश कभी नहीं थी।
बाद में हरा नाइट बोला कि जब भी वह किताब खोलेगी और वह पहली कविता पढ़ेगी तो वैसा ही होगा जैसा कि आज शाम को हुआ है।
राजकुमारी के सिवा टापू पर सारे लोग सो जायेंगे और वह वहाँ तुरन्त ही आ जायेगा जबकि वह वहाँ से बहुत दूर रहता था। राजकुमार ने कहा कि अगर वह उससे वाकई मिलना चाहेगी वह उसके पास खुशी से आयेगा। अब वह उस किताब को बन्द करके रख दे और जा कर आराम करे।
उसी समय राजकुमारी ने किताब बन्द कर दी। किताब बन्द करते ही वह हरा नाइट भी वहाँ से गायब हो गया और टापू वाले सारे लोग जो सो गये थे वे सभी जाग गये। फिर राजकुमारी भी सोने चली गयी।
रात को सपने में भी वह हरे नाइट को ही देखती रही और जो कुछ उसने उससे कहा था वही उसके सपने में भी आता रहा। जब वह सुबह को उठी तो उसका दिल बहुत हल्का था और वह बहुत खुश थी। इतनी खुश वह पहले कभी नहीं हुई थी।
अब वह पहले से ज़्यादा तन्दुरुस्त रहने लगी थी। उसके गालों का रंग गुलाबी हो गया था और अब वह बात बात पर हँसती और मजाक करती थी।
उसमें यह बदलाव देख कर उसके आस पास के लोगों को बहुत आश्चर्य हुआ कि राजकुमारी को यह क्या हो गया है। राजा ने कहा कि शाम की हवा और उस छोटी सी हरी किताब ने उसकी ज़िन्दगी में यह बदलाव ला दिया है। राजकुमारी ने कहा कि वह ठीक कह रहा है।
पर यह बात कोई नहीं जानता था कि हर शाम राजकुमारी वह छोटी हरी किताब पढ़ती और हर शाम वह हरा नाइट उसके पास आता और फिर वे दोनों बहुत देर तक बातें करते रहते और यही उसकी खुशी का भेद था।
तीसरे दिन हरे नाइट ने उसको एक सोने की अँगूठी दी और उन दोनों ने अपनी शादी पक्की कर ली पर तीन महीने से पहले वह उसका हाथ माँगने के लिये उसके पिता के पास नहीं जा सका। उसके बाद ही वह अपनी प्रिय पत्नी को अपने घर ले जा सकता था।
इस बीच राजकुमारी की सौतेली माँ को पता चला कि राजकुमारी की तन्दुरुस्ती तो बहुत अच्छी हो रही है और वह बहुत सुन्दर भी होती जा रही है। वह पहले से कहीं ज़्यादा खुश है।
रानी को इस बात पर बड़ा आश्चर्य हुआ और वह उदास हो गयी क्योंकि वह तो हमेशा से ही यह उम्मीद करती थी कि वह धीरे धीरे दुबली हो जायेगी और फिर मर जायेगी। उसके बाद उसकी अपनी बेटी राजकुमारी बन जायेगी और राज्य की वारिस बन जायेगी।
सो एक दिन उसने अपने दरबार की एक दासी को उस टापू पर राजकुमारी के पास भेजा और उसको कहा कि वह राजकुमारी की इस तन्दुरुस्ती और खुश रहने का भेद पता लगा कर लाये।
अगले दिन वह दासी लौट आयी और उसने आ कर रानी को बताया कि यह सब इसलिये हो रहा था कि राजकुमारी रोज शाम को अपनी खिड़की खोल कर बैठ जाती थी और एक किताब पढ़ती थी जो उसको किसी अजीब से राजकुमार ने दी थी।
फिर शाम की हवा ने उसको गहरी नींद में सुला दिया और यह हर शाम उसके दरबार की सब स्त्रियों के साथ होता था कि वे सब शाम को इसी तरीके से सो जाती थीं।
उन्होंने उससे यह शिकायत भी की कि यह सब हालात उनको बीमार बना रहे थे जबकि वे ही हालात राजकुमारी की हालत अच्छी कर रहे थे।
अगले दिन रानी ने अपनी बेटी को राजकुमारी के ऊपर जासूसी करने के लिये भेजा और उसको कहा कि वह उसकी सारी हरकतों पर नजर रखे और आ कर उसे बताये।
उसने यह भी कहा कि “इस खिड़की में ही शायद कोई भेद छिपा है। शायद कोई आदमी इसमें से आता है। सो उस खिड़की पर ध्यान रखना। ”
उसकी बेटी भी अगले दिन लौट आयी पर वह भी रानी को उससे ज़्यादा कुछ नहीं बता सकी जो उसकी दासी ने उसको बताया था। क्योंकि जैसे ही राजकुमारी ने अपनी खिड़की खोली और अपनी वह छोटी किताब पढ़नी शुरू की तो वह सो गयी।
यह सुन कर तीसरे दिन रानी खुद उससे मिलने के लिये गयी। वह राजकुमारी से बहुत ही मीठा व्यवहार कर रही थी। उसने उसको दिखाया कि वह उसकी तन्दुरुस्ती अच्छी देख कर कितनी खुश थी।
रानी ने उससे उतने सवाल पूछे जितने वह उससे पूछने की हिम्मत कर सकती थी। पर वह भी जितना उसको मालूम था उससे ज़्यादा और कुछ मालूम नहीं कर सकी।
उसके बाद वह उसकी पूर्व की खिड़की के पास गयी जहाँ वह राजकुमारी हर शाम बैठती थी और अपनी किताब पढ़ती थी। उस खिड़की की अच्छी तरह से जाँच की पर वहाँ भी उसको कोई ऐसी खास चीज़ नहीं मिली जिससे उसकी गुत्थी कुछ सुलझती।
वह खिड़की जमीन से काफी ऊपर थी और उसके आस पास बहुत सारी बेलें लगी हुई थीं जिससे उस पर किसी भी आदमी का चढ़ना नामुमकिन था।
सो रानी ने एक कैंची ली, उसकी नोकों में जहर लगाया और उसको उसकी नोकों को ऊपर करके खिड़की में अटका दिया पर उसने उसको ऐसे अटकाया कि वह वहाँ किसी को दिखायी न दे।
जब शाम हुई तो रोज की तरह से राजकुमारी अपने हाथ में वह हरी किताब ले कर उस खिड़की के पास बैठी तो रानी ने सोचा कि वह ध्यान रखेगी कि वह किसी तरह भी सोने न पाये जैसा कि पहले दूसरे लोग कर चुके थे पर जब राजकुमारी ने वह किताब पढ़नी शुरू की तो उसके इरादे ने उसकी कोई सहायता नहीं की।
जैसे ही राजकुमारी ने वह किताब पढ़ना शुरू किया तो रानी की पलकें अपने आप ही झुकने लगीं और सबके साथ साथ वह भी गहरी नींद सो गयी।
उसी समय हरा नाइट एक चिड़िया के रूप में वहाँ आया। उस के आने का किसी को पता नहीं चला सिवाय राजकुमारी के। फिर दोनों ने इस बारे में खूब बातें कीं कि बस अब हरे नाइट के राजा के पास जाने का केवल एक हफ्ता ही बचा था।
फिर वह नाइट राजा के दरबार में जा कर उससे राजकुमारी से शादी के लिये उसका हाथ माँग लेगा। शादी करके वह उसे अपने घर ले जायेगा और फिर वह उसके हरे किले में हमेशा उसके पास रहेगी।
उसका यह हरा किला भी हरे हरे जंगलों के बीच में बना हुआ था जहाँ से उसका सारा राज्य दिखायी देता था और जिसके बारे में उसने राजकुमारी से कई बार बात की है। बात करने के बाद में हरे नाइट ने उस विदा ली, चिड़िया बना और खिड़की के बाहर उड़ गया।
पर उस समय वह इत्तफाक से उस खिड़की के ऊपर से इतना नीचे उड़ा कि रानी ने जो कैंची खिड़की में लगायी थी उसकी नोक से उससे उसकी एक टाँग में खरोंच आ गयी। उसके मुँह से एक चीख निकली पर फिर वह जल्दी ही वहाँ से उड़ गया।
राजकुमारी ने जब हरे नाइट की चीख सुनी तो वह कूद कर वहाँ गयी। इस कूदने में उसके हाथ से वह किताब नीचे फर्श पर गिर गयी और बन्द हो गयी। उसके मुँह से भी एक चीख निकली और रानी और सबकी आँख खुल गयी।
राजकुमारी की चीख की आवाज सुन कर सब राजकुमारी की तरफ दौड़े गये कि उसको क्या हुआ। उसने उनको बताया कि उसको कुछ नहीं हुआ था और वह ठीक थी। बस उसकी जरा सी आँख लग गयी थी तो उसी में उसने एक बुरा सपना देख लिया।
पर उसी समय से हरे नाइट को बुखार आ गया और उसको बिस्तर पर लिटा दिया गया।
इसी बीच रानी खिड़की में से अपनी कैंची निकालने के लिये खिड़की तरफ खिसक गयी। वहाँ जा कर उसने देखा कि उसकी कैंची की नोक पर तो खून लगा है। उसने उसको तुरन्त ही वहाँ से निकाल कर अपने कपड़ों में छिपा लिया और अपने घर ले गयी।
उधर राजकुमारी सारी रात सो नहीं पायी और दूसरे दिन भी बहुत परेशान रही। फिर भी वह कुछ ताजा हवा लेने के लिये खिड़की के पास जा बैठी।
उसने अपनी पूर्व वाली खिड़की खोली अपनी किताब खोली और रोज की तरह से उसमें से पढ़ने लगी।

समुद्र पर हवा चल निकली है,
वह खेतों पर और मैदानों पर बहती है,
और जब धरती पर शान्त रात छाती है,
नाइट के साथ कौन उसका विश्वास बाँधेगा?

और हवा पेड़ों के बीच से बह निकली, पेड़ों की पत्तियाँ की सरसराहट भी सुनायी दी, राजकुमारी के सिवा उस टापू के सभी लोग सो गये पर हरा नाइट नहीं आया।
इस तरह कई दिन निकल गये। राजकुमारी रोज उस खिड़की को खोल कर बैठती, रोज अपनी किताब पढ़ती, रोज हवा की आवाज सुनती, रोज हवा से होती पत्तों की सरसराहट सुनती पर हरा नाइट नहीं आता।
उसके लाल गाल फिर से पीले पड़ने लगे और उसका दिल फिर से दुखी और नाखुश हो गया। वह फिर से दुबली होने लगी। उसके पिता को यह देख कर बहुत चिन्ता हो गयी कि उसकी हँसती खेलती बेटी को क्या हो गया पर उसकी सौतेली माँ को इस बात से बहुत खुशी हुई।

एक दिन राजकुमारी अपने टापू के किले के बागीचे में उदास घूम रही थी। घूमते घूमते वह थक गयी सो थक कर वह एक बहुत ऊँचे पेड़ के नीचे पड़ी बैन्च पर बैठ गयी।
वहाँ वह बैठी बैठी बहुत देर तक अपने उदास विचारों में खोयी रही कि वहाँ दो रैवन आये और उसके सिर के ऊपर की एक शाख पर आ कर बैठ गये और आपस में बात करने लगे।
एक बोला — “यह कितने दुख की बात है कि हमारी राजकुमारी अपने प्रेमी के दुख में जान देने को भी तैयार है। ”
दूसरा रैवन बोला — “और जबकि केवल वह ही उसका वह घाव ठीक कर सकती है जो हरे नाइट को रानी की जहरीली कैंची से हुआ है। ”
पहले रैवन ने पूछा — “वह कैसे?”
दूसरे रैवन ने जवाब दिया — “एक सी चीज़ें एक दूसरे को ठीक करती हैं। राजकुमारी के पिता राजा के आँगन में, उसकी घुड़साल के पश्चिम की तरफ एक पत्थर के नीचे एक छेद में एक ज़हरीली साँपिन अपने नौ बच्चों के साथ रहती है।
अगर राजकुमारी को उसके ये नौ बच्चे मिल जायें तो वह उनको पका ले और उसके तीन बच्चे रोज राजकुमार को खिलाये तो वह ठीक हो जायेगा नहीं तो उसका कोई और इलाज नहीं है। ”
इतना कह कर वे वहाँ से उड़ गये। जैसे ही रात हुई तो राजकुमारी अपने किले से छिप कर निकल ली और समुद्र के किनारे जा पहुँची। वहाँ उसको एक नाव मिल गयी। उस नाव को खे कर वह अपने पिता के महल जा पहुँची।
वहाँ वह सीधी महल के आँगन में पत्थर के पास पहुँची। वह पत्थर बहुत भारी था फिर भी उसने उसको हटाया। वहाँ उसको नौ साँप के बच्चे मिल गये।
उसने उन बच्चों को अपने ऐप्रन में बाँध लिया और उसी रास्ते पर चल दी जो उसके पिता ने जब वह राजाओं की मीटिंग में गया था लिया था।
सो वह महीनों तक पैदल चलती हुई ऊँचे पहाड़ों पर और घने जंगलों में होती हुई वहीं आ गयी जहाँ उसके पिता को सूअरों को झुंड मिला था।
उसने राजकुमारी को जंगलों में से हो कर उस तरफ जाने के लिये इशारा कर दिया जिधर दूसरा चराने वाला था। दूसरे चराने वाले के पास पहुँचने पर उस दूसरे चराने वाले ने उसको तीसरे चराने वाले के पास भेज दिया।
आखिर वह हरे नाइट के महल तक आ पहुँची। वहाँ हरा नाइट जहर से बीमार और बुखार में पड़ा हुआ था। वह इतना बीमार था कि वह किसी को पहचान भी नहीं रहा था। उसको उस घाव की वजह से इतना दर्द था कि वह बिस्तर में भी बहुत बेचैन था।
दुनिया के कोने कोने से डाक्टर बुलाये गये थे पर किसी भी डाक्टर का कोई इलाज उसको ज़रा सा भी आराम नहीं दे पाया था।
राजकुमारी हरे नाइट के रसोईघर में गयी और वहाँ रसोइये से पूछा अगर वह उसको शाही रसोई में कुछ काम दे सकता। वह बरतन धो सकती थी या फिर कुछ और जो काम भी वह उसको देना चाहता हो। बस उसको रहने की जगह चाहिये थी। रसोइये ने उसको वहाँ रहने की इजाज़त दे दी।
क्योंकि वह बहुत साफ रहती थी, काम बहुत जल्दी करती थी और कोई भी काम करने के लिये तैयार रहती थी रसोइये को वह राजकुमारी बहुत अच्छी लगी। उसने उसको वहाँ का काम करने में उसको काफी आजादी दे दी।
रसोइये का यह विश्वास जीतने के बाद राजकुमारी ने रसोइये से कहा — “आज मुझे राजा के लिये सूप तैयार करने दो। मुझे अच्छी तरह से मालूम है कि उनके लिये सूप कैसे तैयार करना है। मैं उस सूप को अकेले ही तैयार करना चाहती हूँ। कोई भी मेरे बरतन में झाँके नहीं। ”
रसोइया मान गया सो उसने नाइट के लिये उन नौ साँपों के बच्चों में से तीन साँप के बच्चों का सूप बना दिया। वह उस सूप को लेकर हरे नाइट के पास ले गयी और वह सूप उसको पिला दिया।
सूप पी कर उसका बुखार इतना उतर गया कि वह अब अपने होश में आ गया, अपने चारों तरफ के सब लोगों को पहचानने लगा और ठीक से बातें करने लगा।
उसने अपने रसोइये को बुलाया और उससे पूछा — “यह सूप क्या तुमने पकाया था जिसने मुझे इतना फायदा किया?”
रसोइये ने जवाब दिया — “जी हाँ मैंने ही बनाया था क्योंकि कोई और दूसरा तो आपके लिये सूप बना ही नहीं सकता था। ” तब हरे नाइट ने उसको अगले दिन वैसा ही सूप और बनाने के लिये कहा।
अब रसोइये की बारी थी राजकुमारी के पास जाने की और उससे कहने की कि वह नाइट के लिये कल जैसा ही सूप बना दे।
सो उसने उस दिन भी तीन साँप के बच्चे लिये, उनका सूप बनाया और उनका सूप बना कर हरे नाइट के पास ले गयी और उसको पिलाया। अबकी बार उस सूप को पी कर हरे नाइट को इतना अच्छा लगा कि वह बिस्तर से उठ कर खड़ा हो गया।
यह देख कर तो डाक्टर लोग हैरान रह गये। वे समझ ही नहीं सके कि यह सब कैसे हो गया। पर उनको यकीन था कि अब तक वे जो दवाएँ हरे नाइट को दे रहे थे वे सब उस पर अब असर कर रही थीं।
तीसरे दिन रसोईघर की नौकरानी को फिर से वह सूप तैयार करना पड़ा। इस सूप में उसने वे आखिरी तीन साँप के बच्चे डाल दिये और वह सूप फिर हरे नाइट के पास ले कर गयी। उस सूप को पीने के बाद तो हरा नाइट बिल्कुल ही ठीक हो गया।
वह कूदा और रसोईघर में रसोइये को खुद धन्यवाद देने के लिये गया क्योंकि वही तो उसका असली डाक्टर था जिसने उसको ठीक किया था।
अब हुआ क्या कि जैसे ही वह रसोईघर में पहुँचा तो वहाँ तो एक नौकरानी के अलावा और कोई था ही नहीं और वह नौकरानी भी उस समय बरतन पोंछ रही थी।
जैसे ही उसने उसको देखा तो वह उसको पहचान गया। तुरन्त ही उसको लगा कि उस लड़की ने उसके लिये क्या किया है। उसने उस लड़की को अपनी बाँहों में ले लिया और बोला —
“ओह तो वह तुम हो जिसने मेरा इलाज किया है। मेरी जान बचायी है। और मेरे शरीर के अन्दर जो जहर घुस गया था उससे छुटकारा दिलाया है। यह जहर मेरे शरीर में तब घुसा था जब मेरे खिड़की में रखी कैंची की खरोंच लगी जो रानी ने वहाँ रखी थी। ”
राजकुमारी इस बात से मना नहीं कर सकी। वह बहुत खुश थी और साथ में हरा नाइट भी।
दोनों की शादी उस हरे किले में ही हो गयी और फिर दोनों ने वहाँ के हरे जंगलों में रहने वालों पर बहुत सालों तक राज किया। और शायद अभी भी वहाँ राज कर रहे होंगे।

Ravi KUMAR

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