क्या है मौत,क़यू है मौत।
कोई कहे कविता सी सूंदर
कोई कहे परियो सी खूसूरत।
किसी को लगे शांति की मूरत
किसी को जन्नत की हुरत।
क्या है मौत।
किसी ने माना जिंदगी जब हो जाये बेगाना।
तपकर, थककर,रूककर थम जाना है मौत।
फिर क़यू डरते है इससे सबलोग
मुँह चुराते छिपते रहते है लोग
अपनो को खोना।अंधेरे का एक कोना।
काली शाया से भी डरावनी है मौत।
देव ,दानव,बानर, नर सबको सबक सिखाती है मौत।
खुद रोती सबको रुलाती है मौत।
कई तरह के बहाने बनाती है मौत।
क्या कभी किसी की ठहर पाती है मौत।

Ravi KUMAR

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