एक विवाह ऐसा भी भाग 2

……………मुम्बई आकर भी रश्मि सहज नहीं हो पा रही थी।उसका अतीत उसके साथ साये की तरह लिपटा रहा। वह चाहकर भी उनसे पीछा नहीं छुड़ा पा रही थी। वह जहाँ कहीं भी जाती लोग उससे मुँह फेर लेते थे या मुँह बिचका कर आगे निकल जाते। बच्चे उसे देख कर डर जाते थे। पर इसके विपरीत वह बदले में अपनी प्यारी मुस्कान ही देती थी।
जीने का हौसला तो माँ बेटी में जैसे कुटकूटकर भरा था। दोनों एक दूसरे की प्रेरणा बनते हुए अपने हौसले को बुलंद करतीं और पुनः नए प्रभात के साथ नया आरम्भ करतीं। इसी कड़ी में रश्मि ने नौकरी के लिए आवेदन देना शुरू किया। शीघ्र ही उसे एक योग्य एवं सम्मानित पद हेतु साक्षात्कार का बुलावा आया।

उत्साह से परिपूर्ण अगली सुबह ,ज्यों ही साक्षात्कार के लिए तैयार हुई। स्वयं को आईने में देखते ही वह पुनः बिखर सी गयी।
बढ़ते कदम ठिठक से गये थे। तभी माँ ने उसके प्रबल होती निराशा को विराम दिया।
” मैं समझती हूँ बेटा तुम्हारी मनोदशा को। पर ऐसे दिखावे की दुनिया को ही सर्वोपरि मानोगी तो कैसे चल पाओगी।ये रूप सौंदर्य महज कुछ दिनों का है। हर इंसान की एक अवस्था ऐसी भी आती है जब उसका शरीर ही उसका साथ छोड़ देता है। बुढापा उसे उसकी सच्चाई से अवगत कराता है। ये अवस्था किसी के भी नितन्त्रण में नही होती। तुम अपने आत्मिक सौन्दर्य को परखो, ये ताउम्र तुम्हारा साथ देगी। तुम्हारी योग्यता ने तुम्हे ये अवसर दिया है न कि, तुम्हारे बाह्य सौंदर्य ने। बढ़ो और अपने हिस्से का हक, स्वाभिमान, सम्मान सब समेट लो। जिसकी तुम अधिकारी हो।”

रश्मि ने अपना पर्स और जरूरी कागजात उठाए। निकल पड़ी एक नए सफर के लिए।ये किस्मत ही थी उसकी कि, इतने आवेदकों के बीच उसे इस पद के लिए चयनित कर लिया गया। खुशी तो अथाह थी मगर एक कसक थी कि, कहीं उसकी अवस्था के चलते दया कहकर तो उसे यह नौकरी नही मिली?

तभी बॉस आकर पूरे तेवर में-
” देखो तुम्हारी पिछली जिंदगी में क्या हुआ मुझे नही पता और न ही मैं जानना चाहता हूँ। मुझे अपने काम के प्रति पूरी लगन और निष्ठा चाहिए। ये रहा आपका नियुक्ति पत्र। आप कल से अपना पद ग्रहण करें”

अगले दिन रश्मि ने सभी सहकर्मियों से औपचारिक होकर अपने काम का शुभारंभ किया। शीघ्र ही उसकी कार्यशैली और मधुर व्यवहार ने सबको अपनी ओर आकर्षित कर लिया। उसूलों की पक्की, समय पर कार्य को पूरा करना , यदा कदा सहकर्मियों के कार्य मे सहयोग, खासकर के अपने डब्बे से पियून भैया को भी हिस्सा लगा देना। इतने सरल स्वभाव ने  जैसे उसे दफ्तर का केंद्र बिंदु बना दिया हो। किसी को उसके शरीर के निशान दिखते ही नही थे। क्योंकि अब तक उसका चरित्र उसके रूप से बलवती हो चुका था।

इन्ही सब के बीच कुछ दिनों से उसने महसूस किया जैसे प्रतीक नामक सहकर्मी का व्यवहार उसके लिए कुछ अलग ही था। देखने में सुन्दर, सुघड़ ऊपर से अमीर परिवार से तलूक रखता रखने वाला प्रतीक थोड़ा था भी नकचढ़े स्वभाव का।
रश्मि कितना भी बेहतर काम करती, प्रतीक उसे झिड़कता ही रहता। ऐसा लगता के उसे वह देखना ही नहीं चाहता।यहाँ तक कि, खाने के समय यदि वह आ जाती तो प्रतीक डब्बा लेकर दूसरी तरफ चला जाता था। उसे देखते ही अजीब सी शक्ल बना लेता था। इसके विपरीत रश्मि इसे नजरअंदाज करते हुए अपने काम मे वयस्त हो जाती। सब समझते हुए भी नासमझ होकर आगे बढ़ जाती।

एक दिन रश्मि का जाना उसके किसी परिचित के यहाँ हुआ। जहाँ पहुँचने के लिए हाइवे से होकर गुजरना पड़ता था। टैक्सी में सवार रश्मि को बंद कार में घुटन सी महसूस हो रही थी । अतः उसने काँच को थोड़ा नीचे सरका दिया जिससे बाहर की हवा उसे सहज महसूस करवाएँ। तभी उसने देखा के हाईवे पे किनारे भीड़  लगी हुई है। उसने न चाहते हुए भी ड्राइवर को बोला। भैया देखना जरा क्या हुआ है। कोई दुर्घटना तो नही हुई।

ड्राइवर बॉस मैडम क्या रुकना, जाने भी दो, होगा कोई क्या करना हमे।
अरे नही भैया कोई भी हो सकता है उस जगह कृपया आप इंसानियत के नाते ही सही कम से कम देख तो लें। तभी बगल से गुजरते एक सज्जन से पूछने पर पता चला कि,-
कोई शराबी है शायद पी पाके एक्सीडेंट कर लिया। रश्मि रुकना चाहती थी पर ड्राइवर ने गाड़ी आगे बढ़ा दी। जैसे ही कुछ कदम वह आगे निकली होगी उसे दुर्घटनाग्रस्त मोटरसाइकिल दिखी जो प्रतीक जैसी लग रही थी। उसने आव देखा न ताव तपाक से गाड़ी रुकवाई और भाग कर पीड़ित के पास जा पहुँची।
पीड़ित कोई और नहीं प्रतीक ही था।जो कि बुरी तरह दर्द में कराह रहा था।
इनके सर से तो बहोत खून निकल रहा आपलोग कृपया सहायता करें अन्यथा कुछ भी हो सकता है। रश्मि ने सबसे अनुरोध किया पर कोई प्रतीक को हाथ भी लगाने को तैयार न था। सब काम की व्यस्तता या फिर फालतू के लफड़े में न पड़ने का बहाना बता कर बस तमाशा देख कर आगे निकल जा रहै थे। रश्मि ने टैक्सी ड्राइवर से मिन्नत की पर वो भी अनाकानी करने लगा।रहने दो मैडम अभी पुलिस , एम्बुलेंस सब आती होगी क्यों फालतू के लफड़े मोल ले रही मैडम।
रश्मि फटकार लगाते हुए चिल्लाई ये कोई जानवर नही इंसान हैं जब तक एम्बुलेंस आएगी तब तक कुछ भी हो सकता है। और ये मेरे परिचित हैं। आपकी कार गंदी होगी, होने दो मैं सबका भुगतान करने को तैयार हूँ। पर कृपया आप इन्हें अभी अस्पताल तक ले जाने में मेरी सहायता करें।
रश्मि के प्रयास से प्रतीक को तुरंत अस्पताल पहुँचाया गया। जब तक प्रतीक के घरवाले आ नही गए रश्मि वहीं रुकी रही।
डॉक्टर के अनुसार यदि कुछ भी क्षण विलम्ब हुआ होता तो प्रतीक को बचाना मुश्किल था।

धीरे-धीरे प्रतीक की तबियत में सुधार होता गया। रश्मि प्रतिदिन दफ्तर जाते और आते प्रतीक से मिलती थी। प्रतीक कुछ न बोल पाता था। बस आंखों से आत्मग्लानि छलका देता।
कुछ ही समय मे प्रतीक ने सामान्य होकर दफ्तर भी आना शुरू कर दिया। अब एक नए प्रतीक का जन्म सा हुआ था। उसका व्यवहार बहुत परिवर्तित था खास करके रश्मि के लिए। रश्मि भी प्रतीक के इस बदले व्यवहार से आकर्षित सी हुई जा रही थी।

आज होली की छुट्टी पे जाने से पहले सभी एक दूसरे को गुलाल लगाकर बधाई दे रहे थे।इसी बीच प्रतीक ने हाथ मे लाल गुलाल उठाया और रश्मि के माथे पर सजाते हुए-
” जी, मुझे नही पता मेरा इस तरह सबके सामने बोलना और आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी जाने बगैर मेरा बोलना ठीक होगा या नहीं, पता नही । पर मैं कहना चाहता हूँ कि, मेरे हृदय में आपके लिए एक पृथक ही चित्र बस चुकी है क्या आप उसे सजीव करेंगी।मैं आपको अपनी जीवन संगिनी बनाना चाहता हूँ।
क्या आप मुझसे विवाह करेंगी”।

रशिम स्तब्ध बस देखती रह गयी। मुह से शब्द न निकले। सब जा चुके थे बस रश्मि और प्रतीक ही रह गए थे। द्वंद था सहमति और असहमति का।
रश्मि  प्रतीक को समझाते हुए –
प्रतीक तुम्हे अच्छी कड़कियाँ मिल जाएंगी शादी के लिए। तुम्हे तो मेरी सच्चाई पता है न।
मुझे उससे कोई फर्क नही आदत रश्मि मेरी ये जिन्दगी तुम्हारी देन है, अब आगे की जिंदगी मैं तुम्हारे साथ बिताना चाहता हूँ।

अच्छा तो तुम जान बचाने का एहसान चुकाना चाहते हो?

नही रश्मि उस हादसे के बाद मुझे वास्तिविकता और दिखावे में फर्क समझ आ गया है।

पर तुम्हारे माता पिता? उन्हें भी तो बड़े अरमान होंगे तुमको लेकर? उनका क्या?

मैंने पहले ही उन्हें इस पहलू से अवगत करा रखा है। उन्हें सिर्फ और सिर्फ मेरी खुशी चहिए।अब बस तुम्हारी हाँ की देर है।

दोनी तरफ काफी देर तक सन्नाटा पसरा रहा। थोड़ी देर बाद रश्मि ने हाथ मे लाल गुलाल उठाया और प्रतीक के गालों पर मल दिया। और नजरें झुकाते हुए एक अनोखे विवाह को सहमति दे डाली……..

Ravi KUMAR

Recent Posts

नेवला

जापान में एक बहुत ही सुंदर जगह है- नारूमी। वहाँ पर एक नदी के किनारे…

1 वर्ष ago

कुआं

केशवपुर गांव में अधिकतर लोग खेती करने वाले ही थे। पूरे गांव में सिर्फ दो…

2 वर्ष ago

औरत की आत्मा

साल 1950 का यह एक चौंकाने वाला किस्सा रानी बाजार का है। यहां रामप्रकाश रहता…

2 वर्ष ago

गुड़िया मर गयी

गुड़िया मर गयी :* रचना में आँसुओं का आधिक्य, स्याही की कमी है,प्रभू! तू ही…

2 वर्ष ago

कुबेर ऐसे बन गए धन के देवता

अपने पूर्व जन्म में कुबेर देव गुणनिधि नाम के गरीब ब्राह्मण थे. बचपन में उन्होंने…

2 वर्ष ago

सिंदबाद जहाजी की पहली यात्रा

सिंदबाद ने कहा कि मैंने अच्छी-खासी पैतृक संपत्ति पाई थी किंतु मैंने नौजवानी की मूर्खताओं…

2 वर्ष ago