जबतक मेरी पोस्टिंग पिथौरागढ़ के उस छोटे से चौकी पर थी वहां के कुछ अजीबोगरीब केस और कुछ अजीबोगरीब कहानियों से पाला पड़ता रहा था।उसी कहानियों को श्रृंखला बध करके यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ उम्मीद करता हूं आपलोगों को पसंद आएगी।
रहस्यमयी घड़े
कभी कभी गांव के लोग किसी बच्चे या मवेशियों के खो जाने की शिकायत लेकर हमारे पास आते थे।मैं और हमारी पूरी टीम उनकी मदद करते थे।कई बार खोये हुए मवेशी या बच्चे अपनी जगह से कुछ किलोमीटर के अंदर मिल जाते थे कई बार कुछ दुःखद खबर हमे उनके घर वालों को देनी पड़ती थी।कुछ मामलों में बच्चे जंगली जानवरों का शिकार बन चुके होते थे।जब कभी ऐसा होता था तब बहुत दिनों तक इलाके में खौफ छाया रहता था।
कई बार जंगल मे खोये लोगो को ढूंढने के क्रम में हमे कई अजीब चीज़ें मिलती थी पर उसके बारे में कोई बात नहीं करता था।कई बार मैंने उनके बारे में कुछ पूछने की कोशिश करी मगर सारे लोग मुझे चुप रहने और उन वस्तुओं के पास न जाने की हिदायत देते और उसके बारे मे कोई बात नहीं करते।
उन अजीब चीज़ो में कुछ घड़े सिंदूर और कुछ कपड़े और कभी कभी कुछ घड़े होती थी।
शुरू शुरू में मुझे भी अजीब लगा था लेकिन थोड़े ही टाइम बाद मुझे भी इनकी आदत पड़ गयी थी और तकरीबन हर दूसरे तीसरे दिन ही इनसे सामना हो जाता था. होता यूँ था की तकरीबन हर एक केस में ही, जब हमें किसी को ढूंढ़ने के लिए जंगल में कई किलोमीटर अंदर तक जाना पड़ता था, कई किलोमीटर मतलब 5-7 किलोमीटर दूर अंदर जंगल के, हमें हमेशा ही घने पेड़ो के बीच में घड़े मिलती. हर बार अलग अलग घड़े. ऐसी घड़े मानो की जैसे आपके घर में बनी होती है ऊपर जाने के लिए, बिलकुल ऐसी. लेकिन सिर्फ घड़े, ना कोई घर, ना कोई कमरा, ना और कुछ. घना जंगल, और बीच में रखी घड़े. ऐसी ऐसी जगहों पर हमें घड़े मिली जहाँ कोई आम आदमी पहुंच तक नहीं सकता था, घड़े रखना तो दूर की बात. पहली बार जब मैंने उन घड़े को देखा तो मैं हैरान रह गया, मैंने अपने स्टाफ़ से पूछा तो उन्होंने शांत रहने को बोला. बोला की ये नार्मल है और घबराने की जरुरत नहीं है. जितने भी लोगो से मैंने पूछना चाहा, सबने ये एक ही बात कही. मैं उन घड़े के ऊपर जाना चाहता था उनको अच्छे से चेक करने करने के लिए की वो कहाँ से आयी हैं, लेकिन मेरी यूनिट के लोगो ने मुझे बहुत अच्छे से समझा दिया था कभी भूल के भी उनके पास नहीं जाना है. अब तो जैसे उनकी आदत सी पड़ गयी है क्योकि इतनी बार मुझे वो घड़े मिल चुकी हैं की अब तो उनपर ध्यान भी नहीं जाता.
इन रहस्यमयी घड़े की बात करू तो मैंने बहुत तरह की घड़े देखी हैं जंगलो में. सब घड़े की बनावट अलग अलग होती है और सबका साइज भी अलग ही होता था. कुछ घड़े बिलकुल नयी होती थी मानो की बिलकुल अभी बनायीं गयी हो, तो कुछ बिलकुल पुरानी और जर्जर हालत में होती थी. एकबार मैंने ऐसे घड़े देखी जिसको देखके लगा की वो अभी अभी किसी दुकान से बन के आयी हो. ज्यादातर घड़े जो की लकड़ी की बनी लगती थी, वो घड़े लोहे की बनी लग रही थी और धूप में चम् चमा रही थी. आमतौर पर दूसरी घड़े से बड़ी थी और घूम कर ऊपर जा रही थी बिलकुल ऐसी जैसी बड़ी पानी की टंकीओ में घड़े होती है बिलकुल ऐसी.
घड़े बहुत बड़ी नहीं हुआ करती थी, इतनी ही होती थी जितनी आमतौर पर घरो में होती है.
इतने घने जंगलो के बीच में जहाँ आदमी का नामोनिशान तक नहीं हो वहां घड़े रखी हुई हैं. साफ बताऊ तो उन घड़े का वहां होना हद से ज्यादा अजीब था. वो एक नार्मल था, जिसपर की लाल रंग की कालीन बिछी हुई थी और करीब 10-15 घड़े बनी थी. बिलकुल ऐसी जैसी घरो में होती हैं. फर्क सिर्फ इतना था की वो किसी घर में नहीं थी बल्कि एक घने जंगल के बीचोबीच रखी थी. जिस लकड़ी से वो घड़े बनी थी मैं उसकी लकड़ी को ठीक से देख सकता था.
मैं उन घड़े के सामने खड़ा था, ऐसा लग रहा था मानो दिमाग ने काम करना ही बंद कर दिया है. तभी मेरी स्टाफ आके मेरे साथ खड़ी होती है, बिलकुल आराम से जैसे उसको कोई फर्क ही नहीं पड़ा वो देख के. मैं हैरान होकर उससे पूछता हूँ – “ये है क्या चीज ?”“इसकी आदत डाल लो सर्, बहुत सामना होगा इनसे आपका” – वो हँसते हुए मुझसे कहती है.मैं घड़े की तरफ बढ़ता हूँ, लेकिन वो मेरा हाथ पकड़ के पीछे खींच लेती है. जोर से.” नहीं नहीं नहीं… सोचना भी मत ” वो मुझसे कहती है.उसकी आवाज़ नार्मल थी लेकिन उसने मेरा हाथ जोर से पकड़ा हुआ था.
” तुम्हे ऐसी घड़े बहुत देखने को मिलेंगी. बस कभी उनके पास मत जाना, उनको छूना मत और उनके ऊपर मत जाना. बस उनको देख के अनदेखा कर देना” उसने मुझसे कहा.मैं उससे और ज्यादा पूछना चाहता था, लेकिन जिस तरह से वो मुझे देख रही थी, मैं समझ गया था की मेरे लिए ज्यादा ना पूछना ही बेहतर है.उसकी बात सही थी, क्युकी मेरी हर हफ्ते ही एक दो ऐसी घड़े से सामना हो ही जाता था.कई बार तो 2-3 किलोमीटर अंदर जाने पर ही उनसे सामना हो जाता था, कई बार 25-30 किलोमीटर दूर अंदर मिलती थी. ऐसी ऐसी जगहों पर जहाँ कुछ भी नहीं था सिवाए घने जंगलो के.
ज्यादातर उनकी कंडीशन बिलकुल नयी जैसी ही होती थी. लेकिन हर बार अलग अलग साइज, अलग अलग डिज़ाइन. एक बार तो ऐसी मिली जैसे 18th century के किसी महल से निकाल कर रखी हो. कम से कम 10 फ़ीट चौड़ी और करीब 20 फ़ीट ऊपर जाती हुई. मैने कई बार कई लोगो से इनके बारे में बात करने की कोशिश की लेकिन हर बार वही जवाब जो मेरी स्टाफ़ ने दिया था – ” डरो मत, ये बिलकुल नार्मल है. बहुत मिलेंगी ऐसी. बस उनके पास मत जाना कभी. ”बाद में जब मेरे नये स्टाफ मुझसे यही सवाल करते थे तो मेरा भी यही जवाब होता था. मुझे पता ही नहीं था की उनको और क्या बताऊ. उम्मीद है किसी दिन मुझे और कुछ जानने को मिलेगी उन घड़े के बारे में.
प्रिय पाठकगण ये कहानी कैसी लगी जरूर बताएं।
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