फेसबुक और गूगल बोट

फेसबुक और गूगल बोट

कहानिया लिखकर हम अपने मन की बात पाठकों के समक्ष रखते है।पर कई बार मन मे उठ रहे विचार इतने गहरे और अंधड़ लिये हुए होते हैं कि किसी एक कहानी में उनको गुथ पाना मुश्किल होता है।तब बिना लाग लपेट के सीधी बात कह देना ही उचित होता है।

एक बचपन की पढ़ी कहानी याद आती है जिसमे एक बहुत ही सुंदर मूर्ति एक मूर्तिकार द्वारा निर्मित किया जाता है।मूर्ति इतनी सुंदर थी कि मर्तिकार को उससे ही प्रेम हो जाता है।
उसी मूर्ति रूपी स्त्री को पाने के लिए वो मूर्तिकार खाना पीना त्याग कर तपस्या में लीन हो जाता है।उसकी तपस्या से खुश होकर भगवान आते हैं और उसकी मनोकामना पूर्ति करते हैं।वो मूर्ति सजीव हो जाती है।और उसपर उम्र का असर दिखने लगता है।चेहरे पर झुर्रियां आ जाती हैं।कलाकार को अपनी रचना के नस्ट होने का आभास होता है और वो बहुत पछतावा करता है।

ये तो थी कहानी,इस कहानी का खयाल मेरे मन मे कुछ समाचारपत्र और कुछ गल्प कहानियों से आया।एक कहानी पर नजर गयी जिसमें एक कंप्यूटर जिसमे न्यूरल नेटवर्क था जो सोच सकता था उसको प्यार हो जाता है एक इंसान से और वो कंप्यूटर किसी छोटी बात से नाराज होकर उसका कत्ल कर देता है।

कुछ लोगो को एलेक्सा से धमकी भरे मैसेज रात को सुनने को मिलने की शिकायत है।तो कभी सिरी या सोफिया मानवता को खत्म करने की धमकी दे देती है तो कभी फेसबुक और गूगल के चैट बोट आपस मे बात करते करते कोई नई भाषा में बात करने लगते है।जो वैज्ञानिकों की समझ से परे हो जाता है और इन्हें बन्द करना पड़ जाता है।

काफी न्यूज़ और अफवाहों को सुनकर मुझे लगा कि इन घटनाओं पर शायद मैं कुछ प्रकाश डाल सकूँ।तो सबसे पहले मैं अपने कंप्यूटर संगिनी के साथ बीते लम्हो का परिचय दे रहा हूँ ।शायद आपलोगो को यह साथ पसंद आये।

हुआ यूं कि जब हम छोटे थे क्लास 9वी में तबतक हमारे लिए कंप्यूटर, फ़ोन और मोबाइल एक सपनो की दुनिया थी।हमने एकाध बार कही इनकी झलक भर देखी थी।छूने की बात तो बहुत दूर की थी।उसी समय हमारे स्कूल से ही पढ़े हुए 2 सीनियर जो कि अपनी पढ़ाई खत्म कर चुके थे।हमारे हेडमास्टर से स्कूल में कंप्यूटर लैब सेटअप करने की बात किये।चुकी हमारा स्कूल सरकारी स्कूल था और इनसब चीजो के लिए उन्हें कोई मदद नहीँ मिलनी थी फिर भी हेडमास्टर साहब ने उन्हें अनुमति दे दी।एक बड़ा सा हॉल और बिजली का प्रबंध करवा दिया।

इन दोनों ने हमारे हाइस्कूल में कंप्यूटर लैब सेटअप कर दिया।स्कूल के बच्चों को 90 रुपए फीस तय की गई और बाहरी बच्चों की 250।मैने अपने पिताजी से कहकर 2 महीने बाद एड्मिसन ले लिया। उस समय DOS वाले ब्लैक एंड व्हाइट कंप्यूटर आते थे।बड़े वाले फ्लॉपी डिस्क के साथ।कुछ समय बाद छोटे फ्लॉपी डिस्क वाले कंप्यूटर भी आ गए।

अब हमारी कंप्यूटर शिक्षा का शुभारम्भ हुआ।ac कमरे में रखे चार कंप्यूटर उनके यूपीएस बरबस ही हमारा ध्यान अपनी ओर खिंचते थे।सबसे अजीब लगता था कंप्यूटर लैब के बाहर जूते, चप्पल उतार कर अंदर जाना।वहां पर हमें dos, basic, नॉर्टन एडिटर और एडिट इत्यादि सॉफ्टवेयर पर काम करना सिखाया गया।जितना हमे सिखाया जाता उससे ज्यादा हम ताकझांक करके सीखते।कई बार तो ऐसे ऐसे काम करते जो हमे डांट भी खिलवा देते।कई बार तो कुछ मजेदार घटनाएं भी हो जाती।

ऐसी ही कुछ घटनाओं से आपको रूबरू करवा रहा हूँ।
इससे पहले आपको अपने कंप्यूटर टीचर्स के बारे में बता दु।सबसे सीनियर थे शिराज उसके बाद मनोज फिर अजय ।हुआ यूं कि हम dos के बेसिक कमांड सिख रहे थे मनोज सर् को उस समय हम मासूम बच्चों को अपनी कलाकारी दिखाने में बड़ा मजा आता था।तो उन्होंने ne.exe जो की नॉर्टन एडिटर का exe था उसको अपने नाम से rename करके ajay.exe बना रखा था।हमलोग तब rename कमांड सिख रहे थे।wildcard इस्तेमाल करने की प्रैक्टिस कर रहे थे।उसमे हमने एक कमांड चला दिया rename *.* ?t*.* ये कमांड करंट डायरेक्टरी के हर फ़ाइल के नाम के दूसरे कैरक्टर को t में बदल देता है।अब अजय सिर आये उन्होंने पूछा क्या कर रहे हो हमने बता दिया rename अभी सिख रहे है।वो हँसने लगे और बोले देखो तुमलोगो को मैं एक जादू दिखता हु।मैंने एक अपना एडिटर बनाया है।और उन्होंने ajay लिखकर एंटर किया।जैसा कि होना था स्क्रीन पर bad command or file name एरर आ गया।हम मन ही मन हँसने लगे।उन्होंने कई बार ट्राय किया।जब बात नहीं बनी तो dir से डायरेक्टरी देखी।dir कर्रेंट डायरेक्टरी के हर फ़ाइल और फोल्डर की लिस्ट दिखा देता है।
उस लिस्ट में atay.exe भी दिखाई देता था पर उस जमाने के मॉनिटर का resolution और कुछ दृष्टि भ्रम के कारण उन्हें वो अजय नाम का ही फ़ाइल दिखाई देती थी।हँस हँस कर हमारी सांसे फूल चुकी थी।
तभी दूसरे मनोज sir वहाँ पहुँचे उन्होंने जब ये वाकया सुना तो कंप्यूटर में देखने लगें।देखते ही वो समझ गए कि चक्कर क्या है।उन्होंने फिर अजय सर् का बहुत मज़ाक उड़ाया।और अजय sir हमे ऐसे घूर रहे थे मानो कच्चा चबा जाये।

ये तो था एक वाकया हमलोग जब भी किसी जगह काम करते फस जाते तब हमलोग किसी sir को बुलाते और देखते वो कैसे इसे ठीक करते है।इसी दरम्यान हमने देखा वो दो बटन प्रेस करते थे एक के ऊपर esc और दूसरे के ऊपर tab लिखा होता था।तब हमें उन बटन्स के नाम नहीं पता थे।हमने फिर किसी भी मुसीबत से बचने का एक तरीका ढूंढ़ लिया था।जब भी कहीं फसो टेबलेट खिला दो अगर काम ना बनें तो इश्क करवा दो।मतलब tab या esc बटन प्रेस करदो।

उस समय dos ऑपरेटिंग सिस्टम पे जब हमसब काम करते थे तब कोई हार्डडिस्क तो होती नही थी।जब कोई एक्सटर्नल कमांड चलाना होता था तो बूट लोडर फ्लॉपी निकाल के दूसरी फ्लॉपी डालनी होती थी।उसमें भी कुछ एरर आ जाये तो फिर से बूटेबल फ्लॉपी डालो।क्योंकि बहनजी को command.com फ़ाइल लगभग हर काम और परेशानी के लिए चाहिए होता था।

जब कभी कॉपी करना होता था और एक ही ड्राइव होती थी उसमें तो फ्लॉपी बदल बदल कर कॉपी करते जाना होता था।

एक सवाल पाठको से करना चाहूंगा कि क्या मुद्दे पर लिखते हुए।इस सब्जेक्ट को पूरा करू या फिर कुछ कंप्यूटर की बेसिक जानकारी की डिटेलिंग करते हुए।शायद किसी पाठक की रुचि जाग जाए या फिर कुछ ज्ञान भी मिल जाये।कृपया अपने विचार दे।तब इस भाग और अगले भाग की आधारशिला रखी जाए।।

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