कहानियां

लोककथा भाग 8(गंगा)

गंगा के बारे में भीलों की भी एक रोचक लोककथा है जो महाभारत की परम्‍परागत कथाओं से एकदम भिन्‍न है। और मौखिक रूप से पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। भील जनजाति के लोग विभिन्‍न राज्‍यों में निवास करते हैं, पर कहा जाता है कि वे मध्‍य भारत के मूल निवासी हैं।

एक मेंढ़क था जो गंगा की तीर्थयात्रा पर निकला। रास्‍ते में मवेशियों का एक झुण्‍ड उसके ऊपर से गुजर गया और इस तरह कुचले जाने से उसकी मौत हो गई। उसने एक महिला के शरीर में प्रवेश कर उसके बेटे के रूप में जन्‍म लिया। फिर काम करने के लिए वह इन्‍द्र के पास चला गया। वहाँ उसने अच्‍छी तरह काम किया और अन्‍त में वहाँ से आगे जाने की इच्‍छा व्‍यक्‍त की। वेतन के रूप में उसे एक गाड़ी भरकर सोना दिया गया।

तब वो एक बार फिर गंगा की तीर्थयात्रा पर निकला। रास्‍ते में एक बैल की मृत्‍यु हो गई तब उसने भगवान सूर्य से मदद के लिए गुहार लगाई। भगवान ने मदद के बदले उससे आधी गाड़ी सोना माँगा। उसके तैयार हो जाने पर सूर्य भगवान ने बैल को पुनर्जीवित कर दिया। गंगा में डुबकी लगाकर उसने सारा सोना गंगा में विसर्जित कर दिया। वापिस लौटने पर भगवान सूर्य ने उससे अपने हिस्‍से का सोना माँगा। सोना देने में असमर्थ होने पर भगवान सूर्य ने उसे गीदड़ बना दिया। 

गीदड़ बनकर वह गंगा के किनारे के जंगल में रहने लगा। एक दिन खूबसूरत गंगा को देखकर उसने गंगा के सामने विवाह का प्रस्‍ताव रखा। दुस्‍साहस से हँसती हुई गंगा अपने वेग से बहती रही। अगली बार जब फिर उसने गंगा से यह बात कही तो गंगा ने उस पर पत्‍थर फेंका जिससे उसकी आँख में चोट लग गई। इससे नाराज गीदड़ ने गंगा का पीछा किया। वो भागकर अपने गुरु सरसंकर के पीछे जाकर छिप गई। जैसे ही गीदड़ नज़र आया गुरु ने उसे जला दिया। गुरु ने उसकी राख गंगा को दी और उसे नदी में बहाने को कहा। जब गंगा ने राख नदी में बहाई तो राख से आवाज आई कि वो यह सब ऐसे कर रही है जैसे वह उसका पति हो।

गंगा पाताल लौट गई लेकिन समय के साथ उसकी राख नदी किनारे साल के पेड़ के रूप में उगी और एक बार फिर वह गंगा से बोला कि वह उसकी पत्‍नी की तरह है क्‍योंकि वह उसे गले लगा सकता है। प्रचण्‍ड गंगा ने उसे पानी से बाहर कर दिया। दर्जनों साल तक वह पेड़ वहीं पड़ा रहा और सूख गया। एक दिन गुरु सरसंकर वहाँ से गुजरे और उन्‍होंने उस लकड़ी में आग लगा दी। जलाने पर उसमें से शांतनु निकलेवे गुरू के साथ-साथ चल दिए। शांतनु ने धनुष और बाण तैयार किए और अंधाधुन्‍ध तरीके से पक्षियों और जानवरों को मारने लगे। गुरु ने शांतनु से ऐसा न करने का अनुरोध किया। उन्‍हें कहा कि यह पाप है। पर हठीले शांतनु ने कहा कि वो तब तक यह जारी रखेंगे जब तक गंगा उनसे विवाह नहीं कर लेतीं।गुरु ने गंगा को बुलाया और शांतुन से शादी करने के लिए कहा। गंगा शांतनु से विवाह करने को तैयार हो गई मगर उन्‍होंने एक शर्त रखी। शर्त के अनुसार उनकी हर संतान को शांतनु गंगा में प्रवाहित कर आएँगे। शांतनु ने शर्त मान ली और इस तरह कई जन्‍मों की मुसीबतों और आजमाइशों के बाद आखिरकार शांतनु ने गंगा को पा ही लिया। वों बादलों के महल मे रहने लगे। उनके तीन पुत्र हुए और तीनों ही बार शांतनु ने उन्‍हें खत्‍म कर दिया लेकिन जब एक राजकुमारी ने जन्‍म लिया तो शांतनु ने उसे अपने किसी विश्‍वासपात्र के पास छोड़ दिया। जब गंगा ने शांतनु से पूछा तो उन्‍होंने झूठ बोल दिया। गंगा इस बात से बेहद परेशान हुईं। अपनी तीन तालियों से उन्‍होंने तीनों राजकुमारों को वहाँ उपस्थित कर दिया लेकिन वह राजकुमारी वहाँ उपस्थित नहीं हुई। शांतनु के इस झूठ के कारण गंगा ने अपनी शादी तोड़ दी और शांतनु को छोड़ दिया।

आगे की कहानी आपको पता ही है।

Ravi KUMAR

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