प्यार लस्ट या निर्वाण

कहते हैं जिंदगी बहुत कुछ सिखाती है।शुरू होती है एक बेपरवाह अल्हड़ बचपन से और लेकर जाती है प्रौढ़ता तक।
ये प्रौढ़ता केवल उम्र की नहीं होतीं, इसके साथ आती है अनुभव और समझदारी । जिंदगी के इन अनुभूतियो को ग्रहण करने के बाद आज साठ वर्ष की उम्र में बैठे हुए राकेश शर्मा जी अपने पिछली यादों को कुरेद रहें थे।

उन्हें याद आता है उनके कॉलेज के दिन, जब वो अपने स्कूल के जीवन को सम्पन्न कर कॉलेज में नये नये दाखिला लिये थे।कॉलेज में दाखिला तो हो गया अब रह गई थी रहने के लिए कुछ इंतज़ाम करना।

थोड़ी खोजबीन के बाद कॉलेज से ही थोड़ी दूर एक अच्छा सा रूम मिल गया था।कोई दस फ़ीट लम्बे और इतने ही चौड़े रूम के साथ लगा हुआ किचन और बाथरूम था। उस कमरे का किराया भी बहुत ज्यादा नहीं था,आगे लम्बी खुली हुई टैरेस थी।राकेश को ये रुम इसी टेरेस के कारण बहुत ही पसंद आया था।

जब राकेश यहाँ रहने आया तब शुक्ला जी के परिवार के बारे में पता चला। शुक्ला जी अपनी पत्नी, बड़ी बेटी और उससे छोटे एक बेटे के साथ रहते थे।शुक्ला जी की बड़ी बेटी जो राकेश की हमउम्र थी उसका नाम सुनीता था।वो बहुत खूबसूरत और बहुत ही जहीन थीं।

राकेश के उस कमरे में रहते हुए 6 महीने कब  गुजर गए राकेश को पता ही नहीं चला। राकेश अपने कॉलेज जाता वहां से सीधा कमरे पर आता और खाना बनाकर अपने पढ़ाई में जुट जाता।आते जाते या कभी टैरेस पर किसी काम से आई सुनीता से उसका कभी कभार सुनीता से सामना हो जाता था पर राकेश बिना उसको तवज़्ज़ो दिये निकल जाता था।

ऐसे ही सबकुछ ठीक चल रहा था।एक बार राकेश कॉलेज से आते वक्त बारिश में भीग गया।और बीमार पड़ गया तब शर्मा जी की पत्नी अपने यहाँ से खाना राकेश को सुनीता के छोटे भाई रवि के हाथों भिजवा देती थी।

एक दिन रवि किसी काम से बाहर गया हुआ था तो खाना लेकर सुनीता आई थी।उसने राकेश को खाना अपने हाथों से परोसा और सोचा खाना खा लेने के बाद बर्तन धोने के बाद चली जाऊंगी।यही सोचकर वो उसके कमरे के पास खड़ी थी।राकेश ने उसे पहली बार भरपूर नजर से देखा।उसे वो काफी खूबसूरत लगी।एक तो सुनीता की खूबसूरती ऊपर से उम्र का तकाजा राकेश सुनीता को मन ही मन पसंद करने लगा।

पर राकेश यहाँ केवल पढ़ाई पूरी करने के लिए आया था।उसकी समझदारी और उसके घर की मज़बूरियां उसे प्यार व्यार के लफड़े से दूर रहने को कहते थे।इन्ही उधेड़बुन में राकेश खोता जा रहा था।अब सुनीता को छिप छिप कर देखने की लालसा और उससे मौके खोजकर बात करने की राकेश की बहुत इच्छा होती थी मगर वो मन को मारता रहता।शायद उसके दिल ने कही न कही उसे देखने और बात करने को राजी कर लिया कि प्यार न सही बातचीत तो की ही जा सकती है।

अब राकेश अपना ध्यान सुनीता के दिनचर्या में लगाने लगा।उसने उसका स्कूल उसके आने जाने का समय और दिनभर के क्रियाकलापों को नोट कर लिया।जब भी उसको सुनीता के आगमन या दर्शन का आभास होता उसके दिल की धड़कनें बढ़ जाती।धड़कने इतनी तेज हो जाती की उसे उनकी आवाज़ सुनाई पड़ने लगती।

राकेश को अच्छा तो बहुत लगता था ये एकतरफा प्यार।मगर धीरे धीरे राकेश की बेचैनी बढ़ते ही जा रहीं थी उसे समझ नहीं आ रहा था की उसके साथ ये सब क्या हो रहा है।आखिरकार उसके दिमाग ने दिल से हार मान ली और उसके दिल ने विद्रोह का बिगुल बजाया और ऐलान कर दिया की वो सुनीता से प्यार करने लगा है।

अब तो राकेश की हालत और खराब हो गयी।दिन रात सुनीता की यादों में खोया रहना दिनभर प्यार भरे गाने सुनना ।सुनीता के दर्शनलाभ के लिए दिनभर टैरेस पर घूमते रहना।यही उसकी दिनचर्या होकर रह गई थी।

सुनीता उसपर कभी ध्यान नहीं देती थी ये सब देखकर राकेश का जी जल जाता था।पहले पहल एक तरफे प्यार में राकेश को सुनीता से कोई अपेक्षा नहीं थी पर जैसे जैसे समय बीतता गया उसे लगने लगा सुनीता भी उसे प्यार करती है पर सुनीता की तरफ से कोई इशारा न पाने से उसका मनोबल कमजोर पड़ने लगा।उसे रोज ही इंतज़ार रहता कि शायद आज बात आगे बढ़े ।डर और संकोच और अपने शर्मीले नेचर के कारण वो भी कोई कदम नहीं उठा पा रहा था।

एक दिन शायद ऊपर वाले ने उसकी सुन ली।हुआ यूं कि सुनीता का एग्जाम चल रहा था और उसके मैथ के पेपर सही से तैयार नहीं थे।बातो बातो में शुक्ला जी ने राकेश को कोई ट्यूटर ढूंढने को कहा तो राकेश ने कहा “मैं ही उसकी पढ़ाई में मदद कर दिया करूँगा, कोई ट्यूटर की जरूरत नहीं पड़ेगी”शुक्ला जी को और क्या चाहिए था उन्होंने सुनीता को बोल दिया कि राकेश भैया से पढ़ाई में मदद ले लिया करना” सुनीता भी शायद राकेश से भ्रातृत्व भाव रखती थी उसे इसमे क्या आपत्ति थी उसने पिताजी से कहा ठीक है पिताजी रोज शाम में एक घंटे जाकर उनसे पढ़ लुंगी।

इधर राकेश के दिल मे तितलियां उड़ने लगी।उसे अपना पूरा शरीर बहुत ही हल्का महसूस होने लगा।उसे लगा जैसे वो हवा में उड़ रहा हो।अब उसे उस समय का बेसब्री से इंतजार था जब सुनीता उसके पास आती।

अगले ही दिन सुनीता शाम के चार बजे राकेश के कमरे में बुक्स लेकर पढ़ने पहुची।

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प्रिय पाठकों।आपको ये रचना कैसी लग रही है।कृपया बताएं ताकि इसे और सुरुचिपूर्ण ढंग से प्रस्तुत करने का उत्साह मिले।

क्रमशः।

Ravi KUMAR

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