गाँव में यह खबर बिजली की तरह फैल गई – मलेटरी ने बहरा चेथरू को गिरफ्तार कर लिया है और लोबिनलाल के कुँए से बाल्टी खोलकर ले गए हैं। यद्यपि 1942 के जन-आन्दोलन के समय इस गाँव में न तो फौजियों का कोई उत्पात हुआ था और न आन्दोलन के समय इस गाँव तक पहुँच पाई थी। किन्तु जिले-भर की घटनाओं की खबर अफवाहों के रूप में यहाँ तक आकर जरूर पहुँची थी। मोगलाही टीशन पर गोरा सिपाही एक मोदी की बेटी को उठाकर ले गए। इसी को लेकर सिख और गोरे सिपाहियों में लड़ाई हो गई, गोली चल गई। ढोलबाजा में पूरे गाँव को घेरकर आग लगा दी गई।
एक बच्चा नहीं निकल सका। मुसहरू के ससुर ने अपनी आँखों से देखा था- ठीक आग में भूनी गई मछलियों की तरह लोगों की लाशें महीनों पड़ी रहीं, कौआ भी नहीं खा सकता था; मलेटरी का पहरा था। मुसहरू के ससुर का भतीजा फारबिन का खानसामा है; वह झूठ बोलेगा? पूरे चार साल के बाद अब इस गाँव की बारी आई है। दुहाई माँ काली माँ काली! दुहाई बाबा लरसिंह!
यह सब गुअरटोली के बलिया की बदौलत हो रहा है।
बिरंचीदास ने हिम्मत से काम लिया; आँगन से निकलकर चारों ओर देखा और मालिकटोला की ओर दौड़ा। मालिक तहसीलदार विश्वनाथप्रसाद भी सुनकर घबड़ा गए, “एलोबिन बाल्टी कहाँ से लाया था? जरूर चोरी की बाल्टी होगी! साले सब चोरी करेंगे। और गाँव को बदनाम करेंगे।”
मालिकटोले से यह खबर राजपूतटोली पहुँची-कायस्थ टोली के विश्वनाथप्रसाद और ततमाटोली के बिरंची को मलेटरी के सिपाही पकड़कर ले गए हैं। ठाकुर रामकिशन सिंह बोले, “इस बार तहसीलदारी का मजा निकलेगा। जरूर जमींदार लगान वसूल कर खा गया है। अब बड़े-घर की हवा खाएँगे बच्चू!”
यादवटोली के लोगों ने खबर सुनते ही बलिया उर्फ बालदेव को गिरफ्तार कर लिया। भागने न पाए! रस्सी से बाँधी! पहले ही कहा था कि यह एक दिन सारे गाँव को बँधवाएगा।
तहसीलदार विश्वनाथप्रसाद एक सेर घी, पाँच सेर बासमती चावल और एक खस्सी लेकर डरते हुए मलेटरीवालों को डाली पहुँचाने चले, बिरंची को साथ ले लिया। बोले, “हिसाब लगाकर देख लो, पूरे पचास रुपए का सामान है। यह रुपया एक हफ्ता के अन्दर ही अपने टोले और लेबिन के टोले से वसूल कर जमा कर देना। तुम लोगों के चलते…
“मलेटरीवाले कोठी के बगीचे में हैं। बगीचे के पास पहुँचकर विश्वनथप्रसाद ने जेब से पलिया टोपी निकारकर पहन ली और कालीथान की ओर मुँह करके मां काली को प्रणाम किया, “दुहाई माँ काली!”
बगीचे में पहुँचकर तहसीलदार साहब ने देखा, दो बैलगाड़ी हैं; बैल घास खा रहे हैं; मलेटरीवाले जमीन पर कम्बल बिछाकर बैठे हैं। ऐं… मुढ़ी फाँक रहे हैं! और बहरा चेथरू भी कम्बल पर ही बैठकर मूढ़ी फाँक रहा है!
“सलाम हुजूर!”
बिरंची ने सामान सिर से नीचे उतारकर झुककर सलाम किया, “सलाम सरकार!” बकरा भी मेमिया उठा।
“आ रे, यह क्या है? आप कौन हैं?” एक मोटे साहब ने पूछा।
“हुजूर, ताबेदार राजा पारबंगा का तहसीलदार है, मीनापुर सर्किल का।”
“ओ, आप तहसीलदार हैं! ठीक बात! हम लोग डिस्ट्रिक्ट बोर्ड का आदमी है। यहाँ पर एक मैलेरिया सेंटर बनेगा। ऊपर से हुकुम आया है, यही बागान का जमीन में। मार्टिनसाहब डिस्ट्रिक्ट बोर्ड को यह जमीन बहुत पहले दे दिया।”
तहसीलदार साहब फिर एक बार सलाम करके बैठ गए। बिरंची हाथ जोड़े खड़ा रहा।
राजपूतटोली के रामकिरपालसिंह जब कोठी के बगीचे में पहुँचे तो उन्होंने देखा कि बगीचे के पच्छिमवाली जमीन की पैमाइश हो रही है; कुछ लोग जरीब की कड़ी खींच रहे हैं, टोपावाले एक साहब तहसीलदार साहब से हँस-हँसकर बातचीत कर रहे हैं। और अन्त में यादवटोली के लोग बालदेव के हाथ और कमर में रस्सी बाँधकर हो-हल्ला मचाते हुए आये। उसकी कमर में बँधी रस्सी को सभी पकड़े हुए हैं। फिराकी-सुराजी को पकड़ने वालों को सरकार बहादुर की ओर से इनाम मिलता है- एक हजार, दो हजार, पाँच हजार! साहब तो देखते ही गुस्सा हो गए, “क्या बात है? इसको क्यों बाँधकर लाया है? इसने क्या किया है?”
“हुजूर, यह सुराजी बालदेव गोप है। दो साल जेहल खटकर आया है; इस गाँव का नहीं, चन्नपट्टी का है। यहाँ मौसी के यहाँ आया है। खध्धड़ पहनता है, जैहिन्न बोलता है।”
“तो इसको बाँधा है काहे?”
“अरे बालदेव!” साहब के किरानी ने बालदेव को पहचान लिया, “अरे, यह तो बालदेव है। सर, रामकृष्ण कांग्रेस आश्रम का कार्यकर्ता है; बड़ा बहादुर है।”
यादवों के बन्धन से मुक्ति पाकर बालदेव ने साहब और किरानी को बारी-बारी से “जाय हिन्द” किया। साहब ने हँसते हुए कहा, “आपका गाँव में मलेरिया सेंटर खुल रहा है। खूब डाक्टर आ रहा है। डिस्ट्रिक्ट बोर्ड का तरफ से मकान बनेगा। लेकिन बाकी काम तो आप लोगों की मदद से ही होगा।”
तहसीलदार साहब ने जमींदार खाते और नक्शे को तजवीज करके कहा, “हजूर जमीन एक एकड़ दस डिसमिल है।”
ठाकुर रामकिरपाल को अब तक साहब को सलाम करने का भी मौका नहीं मिला था। विश्वनाथप्रसाद ने बाजी मार ली। जिन्दगी में पहली बार सिंहजी को अपनी निरक्षता पर ग्लानि हुई। सचमुच विद्या की महिमा बड़ी है।
लेकिन भगवान ने शरीर दिया है, उच्च जाति में जन्म दिया है। इसी के बल पर बहुत बाबू-बबुआन, हाकिम हुक्काम और अमला-फैला से हेलमेल हुआ, जान-पहचान हुई। मौका पाते ही सलाम करके जोर से बोले, “जै हो सरकार की! पबली को भलाय के वास्ते इतना दूर से कष्ट उठाकर आया है, और हम लोग हुजूर का कोई सेवा नहीं कर सके। गुसाईं जी रमैन में कहिन हैं- धन्य भाग प्रभु दरशन दीन्हा…” हुजूर सेवक का नाम रामकिरनपाल सिंघ वल्द गरीबनेवाजसिंह, मोत्ताफा, जात राजपूत मोकाम गढ़बुन्देल राजपूत हाल मोकाम मेरीगंज।”
“सिंह जी हमारा कोई सेवा नहीं चाहिए। सेवा के वास्ते मैलेरिया सेंटर खुल रहा है। इसी में मदद कीजिए सब मिलाकर। यही सबसे बड़ा सेवा है।” साहब हँसते हुए बोले।
यादवटोली के लोग एक-एक कर नजर बचाकर, नौ-दो-ग्यारह हो चुके थे। उन्हें डर था कि बालदेव को बाँधकर लानेवालों का साहब चालान करेंगे।
साहब ने चलते समय कहा, “सात दिन के अन्दर ही डिस्ट्रिक्ट बोर्ड का मिस्तिरी लोग आवेगा। आप लोग बाँस, खढ़, सुतली और दूसरा दरकारी चीज का इन्तजाम कर देगा। तहलीलदार साहब, आप हैं, बालदेवप्रसाद तो देश का सेवक ही है, और सिंह जी हैं। आप हाथ जोड़कर मिलकर कीजिए।”
सबने हाथ जोड़कर, गर्दन झुकाकर स्वीकार किया। साहब दलबल के साथ चले खस्सी मेमिया रहा था। बालदेव गाड़ी के पीछे-पीछे गाँव कर गया।
बालदेव ने लौटकर लोगों से कहा, “डिस्टीबोट के बंगाली आफसियर बाबू थे परफुल्लो बनरजी, और उनका किरानी जीत्तनबाबू, पहले कांग्रेस आफिस के किरानी थे।
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