उस पगली की बातों में खोना।
उसका पास होकर भी न होना।
ख्याब उसके हरपल सँजोना।
उसकी आगोश में आँखे भिगोना।

आश भरकर उससे रखना।
अपना सबकुछ उससे कहना।
उसका बस सुनते ही जाना
मेरा बस कहते ही रहना।

पता है की है वो कितनी पगली।
न रखेगी याद अगली या पिछली।
भूल जाती है सब एक दौरे के बाद।
नहीं रहेगी उसे मेरी भी याद।
पर प्रेमी तो पागल ही होते हैं।
जब सारा जग सोये वो रोते है।

नींद बड़ी अच्छी आती है पगली को।
बडी सुकून से सो जाती है वो।
उसे कहाँ अपनी खबर
कहाँ उसे किसी की भी फिकर।
कैसे मेरे मन की दशा वो समझती
जब समझ ही जाती तो पागल कहाँ होती।

लाग लगाई तब ये जाना।
न चाहूँ तब भी उसे अपना माना।
गुस्सा भी बहुत आये उसपर
फिर भी प्यार उड़ेलु भरकर।
कुछ बोलू भी तो क्या बोलूँ।
उसकी भोली आँखों मे खो लूँ।।

Ravi KUMAR

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