Categories: कविताएं

खामोशी भी कुछ कहती है

कभी तो सुना करो खामोशियों की
मेरी खामोशी भी कुछ कहती है।
जब खमोश रहती हो मेरी जबाँ
तुम्हें लगु की हूँ मैं बेपरवाह
शब्दो से नहीं लब्जो से नहीं
आंखों से ये बहुत कुछ कहती है।।

धुत अंधेरे में किसी पीपल पर जैसे 
जुगनुओं की जगमगाहट रहती हैं
कभी तो सुना करो खामोशियों की
मेरी खामोशी भी कुछ कहती है।।

हरदम निहारूँ उस डगर को अधूरी
हो गई थी जिससे हमारे बीच दूरी
आस नहीं है वापस आने की पूरी
फिर भी नज़र हटाये न हटती है
कभी तो सुना करो खामोशियों की
मेरी खामोशी भी कुछ कहती है।।

खोया रहूं तेरी यादों में हरपल
बसे तू मेरे ख्वाबों में निष्छल।
फिर भी क़यू तू मेरी जबाँ से 
अपनी तारीफों की उम्मीद रखती है।
कभी तो सुना करो खामोशियों की
मेरी खामोशी भी कुछ कहती है।

क़यू इस कदर चाहा खुद को 
मेरी नजरो से गिरना।
शायद तूने अबतक मुझे नही पहचाना
अहम खोकर तो तुझे पाया था
पता नहीं तूने क्या खुद को समझाया था
क़यू खुद तू अपनी नज़रों में ज़लील रहती है।
कभी तो सुना करो खामोशियों की
मेरी खामोशी भी कुछ कहती है।

Ravi KUMAR

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Ravi KUMAR

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