महजबीन

समझ

समझ कर भी नासमझी का फ़साना क्यूँ।अपने सी लगती फिर भी बेगाना क्यूँ।नासमझी का यूँ हर रोज नया बहाना क्यूँ।हर…

2 वर्ष ago