सरल हृदय, सुलभता भरा मन।
आ गए आंसू आंखों में कुछ देख सुन।
कभी खुशी के तो कभी गम में।
कभी हार से तो कभी जीत की।
रोना आया तब भी आये आँसू ।
किसी के दुख दर्द को देख आये आँसू।
कभी अपनो की तकलीफ में
तो कभी अपने तकलीफ में।
कभी प्रेम की अधिकता में
तो कभी नफरत की अधीरता में।
कभी प्रियतम की जुदाई में।
तो कभी प्रिय मिलन में
बड़े बेशरम है ये आँसू।
हर जगह रुषवा करवाते हैं ये आंसु।
जिसका दिल हो साफ़।
जिसकी नज़र हो पाक।
उससे दूर नहीं जाते आँसू।
मंदिर,मस्जिद या गिरिजाघर
निर्मल मन मे भर आये आँसू।
कभी ये न समझना ये आँसू है
मेरी कमजोरी की निशानी।
ये तो है बस एक छणिक ठहराव।
जिसके बाद फिर नए जोश से उठना है।
खड़े होकर फिर हर परिस्तिथियों से लड़ना है।
राम ने बहाया भरत के लिए।
कृष्ण ने सुदामा को न्योता ये आँसू।
हर रिश्ते को सशक्त करता है ये आँसू।।
क्या हुआ जो रो पड़े दिल के दर्द से।
क्या हुआ जो आ गए आँसू किसी गैर के सामने।
क्या हुआ जो हार मान ली किसी परिस्तिथियों से।
क्या हुआ जो मन मैला हो गया उससे।
बहाकर इन आसुओ को धो दे सारे क्लेश।
चल उठ, खड़ा हो।बन जा अखिलेश।
साल 1950 का यह एक चौंकाने वाला किस्सा रानी बाजार का है। यहां रामप्रकाश रहता…
अपने पूर्व जन्म में कुबेर देव गुणनिधि नाम के गरीब ब्राह्मण थे. बचपन में उन्होंने…
सिंदबाद ने कहा कि मैंने अच्छी-खासी पैतृक संपत्ति पाई थी किंतु मैंने नौजवानी की मूर्खताओं…