विनाशनि 2

पिछले भाग में आपने सौर्य और निधि के मिलने और कुछ अज्ञात परिस्तिथियों में होती हत्याओं के बारे में पढ़ा।अब आगे!

सामने एक पुलिसकर्मी घायल पड़ा हुआ था।उसके सर से बहुत ज्यादा खून बह रहा था।पास में निधि बैठी हुई थी ।निधि के हाथ मे मांस का एक छोटा सा टुकड़ा था।सौर्य ने निधि को उठाया।निधि नींद की आगोश में थी।उसके मुँह में खून लगा हुआ था।सौर्य ने उसे सहारा दिया और अपने घर में लाकर सुला दिया। उसके सिरहाने ही बैठे हुए इन सारी घटनाओं को जोड़कर कुछ निष्कर्ष निकलने की कोशिस करने लगा।

सबकुछ सोचते समझते सौर्य नींद की आगोश में चला गया।उसकी नींद दरवाजे पर की गई खटखटाहट से खुली।सौर्य उठा और दरवाजे पर कौन है ये देखने के लिए गया।दरवाजा खोलते ही सामने कुछ पुलिस वाले खड़े थे।उनमें से एक ने सौर्य की तरफ इशारा किया और बाकी पुलिसकर्मियों ने उसे दबोच लिया।सौर्य अचंभित रह गया।उसने कहा “मुझे क्यों पकड़ रहे हो? मैंने क्या किया है” एक पुलिस वाला जो उनका वरिष्ठ अधिकारी था कहा “तुमपर रात में होने वाले कत्ल का इल्ज़ाम है।हमें तुम्हारे घर की तलाशी भी लेनी है।”
सौर्य ने कहा “सर तलाश करने से आपको कुछ नहीं मिलने वाला।मैंने कोई भी कत्ल नहीं किया है।जिस कातिल को आप तलाश रहे हो वो निधि है।जो बेडरूम में सोई हुई है।”

“कोई बात नहीं।तलाशी के बाद हम उससे भी मिल लेंगें।हवलदार रामसिंह इसे पुलिस वैन में डालो।”कड़कते स्वर मे पुलिस अधिकारी ने कहा।

हवलदार रामसिंह ने सौर्य को हथकड़ी लगाई और पुलिस वैन में बिठा दिया।सौर्य चिल्लाते हुए कहता रहा “कोई भी कत्ल मैंने नहीं किया है।निधि ने किया है।मुझे क्यो पकड़ रहें।”किसी ने उसकी बातों को नहीं सुना।

सौर्य के कमरे की तलाशी लेने पर बेसमेंट में एक बड़ा फ्रीजर मिला जिसमें बहुत सारे दिल रखे हुए थे।इस दृश्य को देखकर पुलिस वालों के रोंगटे खड़े हो गए।इतना जघन्य हत्यारा जिसने कितने ही मासूमों को मौत के घाट उतार दिया।

फोरेंसिक लैब वाले सारे घर की फोटोग्राफी और सैम्पल इकट्ठे करने में जुटे हुए थे।उड़ती उड़ती ये खबर मीडियाकर्मियों को भी लग गई।सारे के सारे समाचार पत्रों के प्रतिनिधि वहाँ पहुँच चुके थे।वो भी मौके की फोटोग्राफी करने लगें।कुछ मीडिया कर्मी सौर्य से बात करना चाह रहें थे लेकिन पुलिसवालों की सख्ती के कारण सौर्य से बात नहीं हो पाई।सौर्य लगातार निधि ने सबकुछ किया है मैं निर्दोष हुँ चिल्ला रहा था।मीडिया कर्मियों ने उसकी इस बात को नोटिस किया और उसकी कुछ तस्वीरे लेकर अपने काम मे जुट गये।

इन्ही मीडियाकर्मियों में एक लड़की थी नेहा उसने अपने सहायक को पुलिस वालों को उलझाने को कहकर सौर्य से बात करने की ठानी।थोड़ी देर बाद नेहा का सहकर्मी पुलिसवालों के पास पहुँचा और अपना परिचय देकर सौर्य से बात करने की इच्छा व्यक्त की।पुलिस वाले वैसे ही परेशान थे उसे मना करते हुए थोड़ा सा धक्का दे दिया।सहयोगी वहीं गिर पड़ा और ऐसे नाटके करने लगा जैसे उसे मिर्गी का दौरा पड़ गया हो।अब पुलिसकर्मियों की हालत पतली हो गई।इतने सारे मीडियाकर्मियों के सामने किसी को धक्का देना और उसे दौरा पड़ने से मीडियावाले मिर्च मसाला लगाकर पता नहीं क्या क्या छाप देंगे।

सारे मीडिया कर्मियों और पुलिस वालों का ध्यान उस सहयोगी पर लगा हुआ था इधर नेहा सबसे बचते बचाते सौर्य के पास पहुँच चुकी थी।उसने सौर्य से पूछा “क्या ये सारे कत्ल आपने किया है?”सौर्य अपना राग अलापने लगा “नहीं ये सारे कत्ल मैंने नहीं किया है।ये सारे कत्ल निधि ने किया है।”
“कौन हैं यह निधि?कहाँ है अभी वह?”नेहा ने पूछा।
सौर्य ने बताया “वो मेरे ऑफिस में काम करती है।यहीं कहीं रहती है।उसने ही सारे कत्ल किये हैं।कल रात को मैंने उसे देखा भी था।उसने ही अगले चौराहे पर पुलिसवाले को घायल भी किया था”

नेहा ने फिर पूछा “आपके घर मे ये सारे मृत लड़कियों के दिल कैसे मिले?”
“निधि को मेरे घर की चाभी की जानकारी थी ।वही ये सारी चीजें लाकर यहाँ रख देती होगी”सौर्य ने कहा।
नेहा ने कुछ और सवाल किए और एक तसवीर सौर्य की लेकर वहाँ से अपने सहायक के पास चली गयी।उसके सहायक ने उसे देखा और धीरे धीरे ठीक होने का नाटक करते हुए खड़ा हो गया।फिर दोनो वहाँ से खिसक लिए।

अगले दिन सारे समाचार पत्रों में एक ही खबर थी “दिल चुराने वाला हत्यारा गिरफ्तार”।उसके बारे में कुछ परिचय और उसकी तस्वीरे।बस नेहा के अखबार में इस खबर के साथ निधि के विषय में भी लिखा हुआ था।
जितनी मुँह उतनी बातें हो रहीं थीं।कोई सौर्य को निर्दोष बताता तो कोई वहशी।

इधर पुलिस के रिमांड रूम में सब पागल हो गए थे।आजतक उनका एक से एक अपराधियों से पाला पड़ा था लेकिन ये सौर्य किसी अलग ही मिट्टी का बना हुआ था।कितनी भी पूछताछ हुई , टार्चर किया गया बस एक ही रट लगा रहा था मैंने कुछ नहीं किया।सबको निधि ने मारा है।ऊपर से केस को आगे बढ़ाने का बहुत दबाव था।बिना पूरी जानकारी और कुबूलनामे के यह जांच कोर्ट में एक दिन भी नहीं टिक पाता।ऊपर से मीडिया का दबाव प्रेस रिलीज के लिए ,और जनता के बहुत सारे सवाल क्या यही कातिल है?इसने कत्ल क्यों किये।अबतक तो कत्ल का मोटिव भी नहीं पता था।सौर्य को कातिल ठहराना तो दूर की बात थी।

फिर इंस्पेक्टर सिंह ने इसे दूसरे तरीके हल करने को सोचा।उन्होंने सारे सबूतों पर एक नजर डाली।सौर्य के घर से मिले दिल की फॉरेन्सिक जांच में साबित हो गया था कि ये उन मृत लड़कियों के ही हैं ।उन लड़कियों के ऊपर से कोई फिंगरप्रिंट तो नहीं मिले थे लेकिन कुछ बाल मिले थे जिनका मिलान सौर्य के बालों से हो चुका था।

एक कत्ल के समय उस सड़क पर एक सीसीटीवी कैमरे में थोड़ी रेकॉर्डिंग आ गयी थी।जिसमे कत्ल होने वाली लड़की के पीछे एक और लड़की गयी थी जो थोड़ी देर बाद वापस आ रही थी।लड़की की शक्ल सीसीटीवी में साफ नहीं दिख रहा था।यह सीसीटीवी फुटेज पुलिस की थ्योरी को झुठला रही थी।

सिंह साहब ने एकबार फिर से सौर्य को ये सारे सबूत दिखाकर बात करने को सोचा।उससे पहले उन्होंने सौर्य के घर की फिर से एकबार तलाशी लेने का मन बनाया।सौर्य के घर पहुँचकर उन्होंने तलाशी लेना प्रारंभ कर दिया।सारे कमरे की तलाशी लेकर वे वार्डरोब की तलाशी लेने लगे।एक वार्डरोब में उन्हें लड़कियों के कपड़े मिले।उन कपड़ों में वो ड्रेस भी थी जो सीसीटीवी फुटेज में कातिल ने पहन रखी थी।उन्हें पूरा यकीन हो गया कि या तो सौर्य कातिल है या किसी न किसी तरह कत्ल में इसका हाथ है।जिसके बारे में अधिक जानकारी सौर्य से ही मिल सकती थी।उस कपड़े को लेकर सिंह साहब थाने पहुँच गए।

अब उनके पास तमाम सबूत थे या तो सौर्य कत्ल में अपना हाथ स्वीकार करलेगा या फिर कातिल के बारे में पूरी जानकारी दे देगा।सिंह साहब सारे डिटेल्स लेकर सौर्य के सम्मूख बैठे थे।सौर्य अपनी सहमी आंखों से उन्हें देख रहा था टार्चर की वजह से उसका हुलिया बिगड़ा हुआ था।बाहर से कोई घाव तो नज़र नहीं आ रहा था लेकिन अन्दरूनी चोटो ने उसे तोड़ दिया था।

सिंह साहब ने उसे समझाते हुए कहा “सौर्य देखो हमारी तुमसे कोई पेर्सनल दुश्मनी तो है नहीं।हम भी अपना ही काम कर रहे हैं।देखो कितने सबूत तुम्हारे खिलाफ मिले हैं और तुम अबतक किसी निधि की बात कर रहे हो।चलो एक बार को मान भी ले कि तुम निर्दोष हो।पर हमें तो ये निधि कहि नहीं मिली।अब या तो तुम सारे गुनाह कबूल करलो या कातिल जो भी है उसके बारे में साफ साफ बतादो।यही हमदोनो के लिए ठीक होगा।

सौर्य ने कहा “इंसपेक्टर मुझे नहीं पता आप किस सबूत की बात कर रहें है पर आप मेरे ऑफिस से पता कर सकते है।निधि और नकुल ने अभी जल्दी ही ऑफिस जॉइन किया था।आप नकुल या ऑफिस की मानवसंसाधन मैनेजर ऋचा से पूछ सकते है।सारे कत्ल निधि ने ही किये हैं।”

सिंह साहब गुर्राते हुए बोले “क्या बहकी बहकी बाते करते रहते हो न ही तुम्हारे दिए हुए पते पर कोई ऑफिस है और न ही कोई स्टाफ।फिर ये निधि और नकुल कहाँ से होंगे?”

“नहीं सर ऐसा कैसे हो सकता है मै तो वहाँ पिछले तीन साल से लगातार ऑफिस जाता हूं।आपको शायद कुछ गलतफहमी हुई होगी” सौर्य ने कहा

सिंह साहब दहाड़े “गलतफहमी मुझे नहीं तुम्हे हुई है सौर्य उस बिल्डिंग को खंडहर हुए 25 साल हो गए है और तुम कहते हो कि वो तुम्हारा ऑफिस है।पिछले तीन साल से तुम वहाँ आफिस जा रहे हो?या तो तुम निरे बेवकूफ हो या हमे बेवकूफ बनाने की कोशिस कर रहे हो।इन सबूतों को देखो और बताओ तुम्हे इनके बारे में क्या कहना है?”

सिंह साहब ने सौर्य को सारे सबूत दिखाए।सौर्य अचंभित सा सब देखता और सुनता रहा उसकी समझ मे कुछ नहीं आ रहा था।उसने कहा “सर ये सब साबित तो करते हैं कि शायद मुझे कोई फसाने की कोशिस कर रहा है।अगर इन सबमे मेरा कोई भी हाथ होता तो मुझे स्वीकार करने में कोई आपत्ति नहीं होती।बेशक इस तरह के नृशंस हत्यारे को बहुत सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए।

सिंह साहब को लगा कि वो अपने बाल नोच लें।अपना या फिर सौर्य का सर दीवारों पर दे मारे।लेकिन इसका कोई फायदा नहीं होने वाला था।उन्होंने रामसिंह को बुलाकर रात भर सौर्य की विशेष सेवा का आदेश दिया और पैर पटकते हुये वहाँ से चले गए।

रात भर सौर्य की विशेष सेवा की गई लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला।सारे पुलिसकर्मियों को यक़ीन तो था कि इन सारे कत्ल के पीछे सौर्य का हाथ है लेकिन उसके कत्ल के बारे में सारी अनभिज्ञता उनको परेशानी में डाल रही थी।मिस्टर सिंह ने सोचा एक अंतिम प्रयास कर लिया जाए।उन्होंने क्रिमिनल मनोचिकित्सक को सम्पर्क किया और सारी बातें बताई।मनोचिकित्सक ने उन्हें अगले दिन आने का आश्वासन दिया और कहा “सिंह जी , मुझसे जो भी सम्भव हो सकेगा ।मैं अवश्य आपकी सहायता करने की कोशिस करूँगा”
“जी धन्यवाद।इस केस ने सभी का दिमाग घुमा कर रख दिया है।अब तो केवल आपसे ही कुछ उम्मीद है।”सिंह साहब ने कहा।फिर सिंह साहब अपने रोजमर्रा के कार्य मे व्यस्त हो गए।

अगले दिन मनोचिकित्सक साहब अपने सहयोगियों और कुछ मशीनों समेत थाने पहुँच गए।उन्होंने प्रथम दृष्ट्या सौर्य से कुछ बातचीत की।कोई संतोषजनक जवाब न पाकर उन्होंने सौर्य से उसपर हिप्नोटिज्म करने की इच्छा जताई जिसके लिए सौर्य सहर्ष तैयार हो गया।सारे यंत्र अपनी जगह पर लगाये गए।सौर्य की शरीरिक और मानसिक तनाव को मापने के लिए भी कुछ यंत्र अपनी जगह पर स्थापित किया गया।

उसके बाद मनोचिकित्सक ने सौर्य को हिप्नोटाइज करना शूरु कर दिया।

तीन घण्टे के अनवरत जारी प्रयासों के बाद सौर्य के अवचेतन मन ने मनोचिकित्सक महोदय को अपने अतीत से रूबरू करवाना शुरू किया ।

“मेरी उम्र तकरीबन 15 या 16 साल की है।सबकुछ तो ठीक ठाक है लेकिन मुझमे काम वासना का विकार भरा हुआ है।इस विकार की वजह से मैं खुद पर कंट्रोल नहीं कर पाता हूँ कुछ न कुछ गलतियां कर बैठता हुँ।कई बार मुझे और मेरे घरवालों इस वजह से शर्मिंदगी उठानी पड़ी।कई बार मेरे मन की इच्छा होती है कि मै अपनी जान दे दूँ।कमसे कम माता पिता और बहने इस शर्मिंदगी से तो बच जाएंगी।सब मुझसे नाराज़ रहते हैं।उनके लिए मैं एक बोझ और बदनुमा दाग से अधिक कुछ भी नहीं हूँ।अभी कुछ दिनों पहले की ही बात है।मैं पता नहीं किस इच्छा से वसीभूत होकर स्नान करते समय रागिनी के बाथरूम में ताकझांक कर रहा था।ताकझांक करते देख मुझे दीदी ने देख लिया और घर पर शिकायत करदी।फिर जो मेरी पिटाई हुई उसका दर्द तो अबतक है।

दो दिनों बाद रक्षाबंधन है और मेरी बहनों ने ये घोषणा कर दी है कि इस राक्षस को राखी नहीं बंधेगी।क्या मैं इतना बुरा हुँ?क्या यह कामेक्षा इतनी बुरी चीज होती है?कई बार मैंने प्रयत्न किया लेकिन एक अजीब से सम्मोहन में बंधा हुआ मैं अपनी अधूरी कामेक्षा पूरी करने निकल पड़ता हुँ।एक बार तो भाई ने मुझे उन गन्दी बस्ती में पकड़ा और खूब पिटाई करवाई।क्या दोष है मेरा?अगर मनःस्थिति मेरी अलग है?
मैं तो अपनी कलुषित कामनाये ही पूरी करना चाहता हुँ किसी के साथ जोर जबरजस्ती तो नहीं करता।

कुछ दिनों बाद घर मे खूब हो हल्ला मचा हुआ था।मेरी पड़ोस की रिंकी ने मेरी शिकायत जो कर दी थी मेरे घर मे।कितना समझाया और गिड़गिड़ाया था मैं।लेकिन उसने तो संसर्ग का आनंद भी लिया और शिकायत भी कर दी।शिकायत भी क्या की जैसे मैं ही विलेन हुँ।उसके साथ जबरजस्ती की।माना सुरुवात में उसने मना किया था पर बाद में तो मान गयी थी।अब तो मैं घर मे मुँह दिखाने के काबिल भी नहीं रहा।बहने भी इस तरह मुझसे ब्यवहार करने लगी मानो उनपर भी मैं कुदृष्टि डाल रहा हूँ।बात तो पंचायत तक चली गयी थी पर भला हो रिंकी के घरवालों का उन्होंने मेरी कुटाई करवाकर ही छोड़ दिया था।

अब मुझे खुद से नफरत होने लगी है।मैं सबकी नजरों से गिर चुका हूँ।केवल मालती चाची ही मुझें समझती थी मुझे उनकी बताई बातें थोड़ा सुकून देती थीं।लेकिन उस दिन उनको अकेले में देख मेरी नियत डोलने लगी तबसे मैंने उनके पास जाना भी छोड़ दिया।मुझे इसका कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा।अब तो मैं अपनी नजरों में गिर चुका हूँ।

कुछ दिनों से किन्नरों के एक समूह यहीं गांव की सीमा पर बगीचे में डेरा डाले हुए हैं।मैं अपनी यौन पिपासा शांत करने उनके पास भी गया।उनके मुखिया से मैंने अपनी समस्या बताई।उन्होंने कुछ दिनों तक एक जड़ी बूटी का काढ़ा बनाकर पीने को दिया है।फिर अगले हफ्ते मुझे किसी क्रिया लिंगक्षेदन पता नहीं क्या है।उसके लिए बुलाया है।काढ़े के इस्तेमाल से अब मन शांत रहता है।सम्भवतः मैं ठीक हो रहा हूँ।मुखिया ने कहा है।उस प्रक्रिया के बाद मैं बिल्कुल ठीक हो जाऊंगा।

आज मैं किन्नरों के बस्ती में हुँ कुछ पूजा पाठ हो रहा है मेरे लिए।धीरे धीरे मुझपर नशा सा छाता जा रहा है।अब मैं बेहोश हो चुका हूँ।होश में आने पर मुझे बहुत कमजोरी सी महसूस हुआ।दर्द के मारे मेरी हालत खराब थी।मुझे अपने शरीर मे कुछ अधूरापन लग रहा था।पर दर्द के कारण मुझे ध्यान न रहा।किसी तरह गीरते पड़ते मै घर पहुँचा और फिर से बेहोश हो गया।

जब मेरी आँख खुली तो मैं अस्पताल में था।मेरे माता पिता और बहने मुझे घेरकर खड़ी थीं।सबके आंखों में आंसू थे।मेरे शरीर मे बहुत कमजोरी थी।मुझे टॉयलेट जाने की इच्छा हुई लेकिन सब लोगो ने बताया टॉयलेट जाने की जरूरत नहीं है।ब्लैडर मैनेजमेंट सिस्टम लगा है यहीं कर लो।मैंने टॉयलेट तो कर लिया पर मुझे कुछ अधुरापन से महसूस हुआ।माँ मुझे देख विलाप करने लगीं जिसे समझकर मुझे पता चल गया था कि मेरे साथ क्या हुआ है।अब मेरे आंखों में आँसू थे मुझे अपनी गलती का अहसास हो गया था।किंतु मुझे सुकून भी था कि मुसीबत से छुटकारा भी मिल गया था।

अस्पताल से डिस्चार्ज होकर जब घर पहुँचा तो सबका नजरिया मेरे प्रति बदला हुआ था।जो बहने मुझसे कन्नी काटती थी अब वो मेरी देखभाल में लगी रहती।मुझे बहुत ही सुखद अनुभव हो रहा था।कुछ दिनों में मैं बिल्कुल ठीक हो गया।अपना रोजमर्रा के कामो में जुट गया।कुछ महीने तो सुकून से निकल गए।उसके बाद फिर मुझमे वासना का कीड़ा कुलबुलाने लगा।मुझे समझ मे नहीं आ रहा था जब सारे अंगों को निकाल दिया गया है फिर ये वासना के झोंके क्यों?
अब इन झोको को मैं कंट्रोल कर सकता था।मेरे अंदर की हीनभावना और नामर्दांनगी मुझे बेचैन करने लगीं थीं।मुझे अपने साथ हुए अत्याचार ने मानसिक रूप से बहुत कमजोर बना दिया था।

अब मैं कॉलेज जाने लगा था।मेरी पढ़ाई अच्छी चल रही थी।मुझे अब अपने जीवन को किसी तरह गुजारते जाना था कोई प्यार परिवार की तो कोई उम्मीद नहीं बची थी।कॉलेज में ही मेरा सामना प्रिया से हुआ।वो मेरे ही क्लास में पढ़ती थी।उसने ही हमारी दोस्ती की पहल की थी।धीरे धीरे हमारी ये दोस्ती रोजाना के मुलाकातों से होती हुई प्यार में बदलने लगी।कई बार मैंने अपने बारे में उसे बताना चाहा लेकिन शर्मिंदगी और उसे खो देने के डर से कभी कह नहीं पाया।
धीरे धीरे हमारा प्यार प्रगाढ़ होने लगा ।प्रिया अब मेरे साथ कुछ पर्सनल समय गुजरने की इच्छा व्यक्त करने लगी थी।उसे हमारे प्यार में कुछ अधूरेपन का अहसास होने लगा था।उसके करीब आने की कोशिस को मैं किसी न किसी बहाने टालता रहता।

एक दिन प्रिया ने अपना जन्मदिन मनाने मुझे एक गेस्ट हाउस में बुलाया वहाँ उसके कुछ और भी दोस्त आने वाले थे जिसके वजह से मैंने भी वहाँ आने को हाँ करदी।वहाँ पहुँचने पर पता चला उसके कुछ दोस्त ही आये थे जितने भी आये थे सारे कपल ही थे।उनके रात्रि विश्राम के इंतजाम भी उसी गेस्ट हाउस में ही था।पार्टी के बाद प्रिया ने भी मुझे वहाँ रुकने को कहा।हमने थोड़ी ड्रिंक भी कर रखी थी।और कभी न कभी मुझे इस पल का सामना तो करना ही था ये सोचकर मुझे वहाँ रुकना ही पड़ा।

रात्रि विश्राम को सारे कपल अपने अपने कमरे में चले गए।मैं भी प्रिया के साथ एक कमरे में चला गया।हम पहले तो प्यार भरी कुछ बाते करते रहें फिर धिरे धीरे मैंने प्रिया को अपनी हकीकत बताई।प्रिया उसे एक मजाक समझ हँस्ती रही फिर मेरे करीब आने की कोशिस करती रही।थोड़ी देर बाद जब प्रिया का सामना हकीकत से हुआ तो उसने मानो सारा गेस्ट हाउस सर पे उठा लिया।नशे में गन्दी गन्दी गलियों की बौछार करने लगी।मुझे तब भी उतना बुरा नहीं लगा।पर उसने अपने सभी दोस्तों को बुलाकर उनके सामने मेरी बेइज्जती की और नामर्द कहा तो मेरा मन चीत्कार उठा।ये तो फिर भी हद थी नशे में उसने जबरन मेरे कपड़े उतारकर मेरे नामर्दांनगी का प्रदर्शन सबके सामने कर दिया।अपनी निरीहता देख मेरे आंखों से आँसू निकल पड़े।उन सबने मेरा जमकर मज़ाक उड़ाया और इतनी रात गए मुझे गेस्टहाउस से धक्के मारकर निकाल दिया।मैंने अपने सच्चे प्यार का वास्ता दिया लेकिन उनकी हँसी में मेरा प्यार बहुत कमजोर मालूम पड़ा।

मेरे जीने की इच्छा खत्म हो चुकी थी लेकिन अपनी माँ और बहनों की मुझसे उम्मीद ने मुझे सम्बल प्रदान किया।अब कॉलेज में मैं एक परिहास की वस्तु बन गया था।प्रिया को एक दूसरा प्रेमी मिल गया था वो उसके साथ मुझे जलाने के लिए मेरे सामने ही आलिंगनबध हो जाती।तो कभी किसी और तरीके से मेरा उपहास करती।

धीरे धीरे कॉलेज खत्म हो गया।और मैं जॉब के सिलसिले में इस शहर में आ गया।मुझे हमेशा ही अपनी कमी खलती।जब भी किसी जोड़े को देखता या किसी हँसते खेलते परिवार को तो मेरे दिल से टिस निकलकर रह जाती”

इतना कहकर सौर्य शांत हो गया।मनोचिकित्सक महोदय ने बहुत कोशिस की लेकिन सौर्य ने कुछ नहीं कहा।उन्होंने फिर से कोशिस की “सौर्य आगे क्या हुआ बताओ।सौर्य सुन रहे हो मुझें?” थोड़ी देर कमरे में खामोशी छाई रही उसके बाद सौर्य ने कहा “उसके बाद मैं आयी इसकी जिंदगी में”
ये सुन मनोचिकित्सक और कमरे में बैठे लोगों पर हवाइयां उड़ने लगी।सौर्य अब किसी नारी की आवाज़ में बोल रहा था।

मनोचिकित्सक ने पूछा “आप कौन?”
सौर्य ने नारी आवाज़ में कहना शूरु किया “मैं निधि।सौर्य की गर्लफ्रैंड।जिससे सौर्य बहुत प्यार करता है।पर अपनी कमियों के कारण कह नहीं पाता।मैं भी इससे बहुत प्यार करती हूँ इसकी कमियों के मेरे प्यार पर कोई फर्क नहीं पड़ता।मैं बिल्कुल वैसी ही हुँ जैसी सौर्य कल्पना करता है। मैंने इसे दिलोजान से प्यार किया है और यह भी मुझसे बहुत प्यार करता है।हम दोनों एक दूसरे के लिए ही बने है।मेरी रूप प्रतिरूप सब सौर्य की देन है।मैं ही उसकी कल्पना हूँ मैं ही उसका सच।”

मनोचिकित्सक ने पूछा “फिर उन लड़कियों का कत्ल किसने किया है?”

सौर्य ने नारी स्वर में कहा “उन सबको मैंने मार है।जैसे उन्होंने सौर्य की बेज्जती की मेरे प्यार की बेज्जती का किसी को हक़ नहीं।मैंने उसका ही बदला लिया है।मैं और भी लड़कियों को मरूँगी।सारे दुनिया की लड़कियों को मार दूँगी।अपने प्रेमी के बदले के लिए”

मनोचिकित्सक ने कहा “उन लड़कियों की क्या गलती थी जिनको मारा।उनके दिल क्यो निकाल लाती थी तुम?”

सौर्य ने नारी स्वर में कहा “सारा खेल तो दिल का ही है डॉक्टर।सारी लड़कियों को मारकर उनके दिल से खेलना मुझे बहुत पसंद हैं।मुझे मेरे सौर्य से कोई अलग नहीं कर सकता।मैं सबको मार दूँगी।”

उसके बाद सौर्य की हार्टबीट बहुत तेजी से बढ़ने लगी।डॉक्टर ने अपनी पूछताछ वहीं रोक दी और सौर्य को होश में लाने का इंजेक्शन लगा दिया।थोड़ी देर में धीरे धीरे सौर्य को होश आया गया उसकी हार्टबीट भी सामान्य हो गयी थी।सारे लोग उसे ही घूर रहें थे मानो वों कोई अजूबा हो।

मनोचिकित्सक के साथ सिंह साहब दूसरे कमरे आये ।सिंह साहब फ़टी फ़टी आंखों से मनोचिकित्सक महोदय को घूर रहे थे शायद कुछ पूछना छह रहें थे लेकिन खामोश थे कि मनोचिकित्सक महोदय ही सुरुवात करें।

मनोचिकित्सक महोदय ने कहना शुरू किया “इंस्पेक्टर सिंह यह केस सबपर भारी पड़ने वाला है।सौर्य को मल्टीपल पेरसोनालिटी डिसऑर्डर नामक मानसिक बीमारी है।इसमें इंसान का दिमाग उसे आभासी दुनिया में ले जाता है।जहाँ वह अपनी सोच के अनुसार सबकुछ रचने लगता है।इसने अपनी एक प्रेमिका रच ली है।जो इसके दबे हुए भावों को हवा देती है और जब वो इसपर हावी होती है इसकी परसोनालिटी पूरी तरह बदलकर उस प्रेमिका में परिवर्तित हो जाती है।उस अवस्था में ये जोकुछ भी करता है उसका भान इसे बिलकुल भी नहीं होता है।ऐसे केसेस में कोर्ट अपराधी को सजा देने के बदले उसके मानसिक इलाज की ब्यवस्था करने को कहता है।”

इंसपेक्टर ने कहा “वो सब तो ठीक है डॉक्टर लेकिन ये बताइये की मीडिया वालों को क्या बताना है?क्या इस कहानी पर वो यकीन करेंगे?या पुलिस की नाकामी समझकर हमारी धज्जियां उड़ा देंगे?”

“मैं आपको एक ऐसे ही पुराने केस का एक रेफरेंस दूंगा आप उसके साथ मीडिया को अपनी सारी रिपोर्ट भेज देना” मनोचिकित्सक ने कहा।
सिंह साहब को थोड़ी तस्सली तो हुई फिर उन्होंने डॉक्टर साहब को अपने जांच के रिपोर्ट बनाकर भेजने को बोलकर विदा किया और खुद किसी गहरे चिंतन में बैठ गए।

मीडिया में उन्होंने सारे खुलासे की कड़ी जोड़कर भेज दी।अगले दिन सभी अखबारों में मिर्च मसाले लगाकर ये खबर छपी।नगर में हर कोई इस कहानी को पढ़कर अचंभित रह गया।

सिंह साहब को मनोचिकित्सक की बातों पर यकीन नहीं हो रहा था उन्होंने खुद थोडी छान बिन करना चाहा।रात को सौर्य के कोठरी में दो हवलदारों के साथ पहुच गए और उससे निधि के बारे में पूछने लगे।उसे निधि निधि कहकर पुकारते रहे।लेकिन सौर्य बस बड़ी बड़ी आंखों से उन्हें ताकता रहा।थक हार कर वो वापस चले गए।उनके जाते ही सौर्य के चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान आ गई।

सारी खोजबीन से मिले रिपोर्ट कोर्ट में पेश करने के बाद सौर्य को मानसिक चिकित्सालय भेज दिया गया।वहाँ पर सौर्य के इलाज का प्रबंध किया गया।कुछ दिन तो सौर्य सामान्य रहा एक दिन निधि उससे मिलने अस्पताल में आई।उसे देख सौर्य बहुत खुश हो गया और निधि से पूछा “तुम इतने दिन कहाँ थीं?सब कह रहे है मैंने वो सारे कत्ल किये और देखो उन्होंने मुझे यहाँ बन्द करके रखा है।मुझे तुमसे मिलने भी नहीं दिया।”
“तुम्हे और मुझे कभी ये दुनिया वाले मिलने नहीं देंगें।हमे मिलने का केवल एक ही रास्ता बचा है ।आओ मेरे साथ”निधि ने कहा।

निधि आगे आगे चलती रही और सौर्य उसके पीछे पीछे।थोड़ी दूर बालकनी पर आकर निधि ने सौर्य को अपनी बाहों में भर लिया और धीरे से बाहर को सरक गई।दोनो प्रेमी धीरे धीरे अब आसमान की सैर करने लगें।उसकी नश्वर देह नीचे फर्श पर छिन्न भिन्न अवस्था में पड़ी हुई थी।

।। इतिश्री।।

Ravi KUMAR

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