ये शहर की उन बदनाम गलियों की कहानी है जहाँ शरीफ ज़ादे दिन के उजाले में जानें में कतराते हैं।मगर रात में अपनी कुंठा को बहाने के लिये इन्हीं गलियों में भटकते हैं।इन गलियों की वैसे तो बहुत ही दुखभरी कहानिया है।मगर कुछ कहानिया जो दिल को मर्मज्ञता से भर देते है।ऐसा प्रतीत होता है जैसे किसी ने दिल को मुट्ठी में दबाकर निचोड दिया हो।
इन्हीं गलियों में रहती थी वो हुस्नपरी, शबनम नाम था उसका।यथा नाम तथा गुण।सुंदर इतनी की अप्सरा भी उसके सामने पानी भरे।देखने से ही किसी शरीफ खानदान की लगती थी।
थी भी वो लखनऊ के एक बड़े मशहूर खानदान से।बस उसकी एक गलती ने उसे इस नरक में धकेल दिया।
प्यार जो कर बैठी थी वो।प्यार जिसमे जिस्म के मिलन से ज्यादा आत्मिक मिलन की अभिलाषा होती है।प्यार जिसमे भरोसा और निष्ठा होती है।
जब शबनम अपने उम्र की सोलहवीं पड़ाव पार करने वाली थी।उसे अपने स्कूल में पढ़ने वाले रुचिर से प्यार हो गया।अब वो प्यार था या पागलपन अब इन बातों को शबनम को कोई फर्क नहीं पड़ता।अब तो हर रात न जाने कितने प्यार करने वाले मिलते है और प्यार की कीमत देकर जाते है।शबनम खुस है या दुखी खुद उसे भी नहीं पता।अब उसके सारे सुख दुख उसकी प्यारी बेटी रुखसार तक ही सीमित है।
शबनम रुचिर से प्यार तो करती थी मगर जब उसके घरवालों को रुचिर के बारे में पता चला उन्होंने शबनम का घर से निकलना बंद करवा दिया।काफी मिन्नतें करने के बाद उसे स्कूल छोड़ने और लाने का काम उसके बड़े अब्बू ने सम्भाल लिया।उसकी पढ़ाई का जिम्मा और रुचिर से दूर रखने की जिम्मेदारी भी उन्होंने बखूबी सम्भाल ली थी।
मगर इसके बदले में शबनम से इसकी बहुत बड़ी कीमत वसूली करते थे।शबनम से छेड़खानी, उसके शरीर पर हाथ फेरना ये सब आम हो गया था।शबनम जब भी विरोध करने का प्रयास करती उसे कहते “तुम क्या कर सकती हो, तुम्हारे अम्मी , अब्बू तुम्हे बदचलन समझते है।तुम्हारी शिकायत को वो तुम्हारा नया शिगुफा मात्र समझेंगे।मुझपर अविश्वास का तो प्रश्न ही नहीं उठता।तुम्हारी भलाई इसी में है मैं जैसा कहुँ करती जाओ।”
शबनम ने कई बार अपनी अम्मी को बताना भी चाहा पर उसकी अम्मी ने शबनम को ही डांटना सुरु कर दिया ।” कितना गिरोगी शबनम।अपने बड़े अब्बा पर ऐसा घिनौना इल्ज़ाम लगाते तुम्हे शर्म नहीं आती?लानत है तुमपर।अरे हमसे नहीं तो खुदा से तो डरो” शबनम के पास अब कोई चारा नहीं था।वो न चाहते हुये भी बड़े अब्बू की गन्दी वासना को झेलती रही।
एक दिन घर के सारे लोग एक रिश्तेदार के यहाँ शादी में जा रहे थे।बड़े अब्बू भी उनके साथ ही जाने वाले थे।शबनम बीमारी का बहाना करके उनके साथ नहीं जा रही थी।वो रुचिर से मिलकर सारी आपबीती बताना चाहती थी।बस अब उसे रुचिर से ही कुछ उम्मीद बाकी थी।घरवालों को गए कुछ घण्टे बिट गए थे।रुचिर शबनम से मिलने उसके घर आ गया था।दोनो अंदर कमरे में बाते कर रहें थे तभी कॉलबेल बजी।शबनम के कीहोल से देखा बाहर उसके बड़े अब्बू खड़े थे।शबनम की हालत काट तो खून नहीं वाली हो गयी थी।उसने रुचिर को अपने बेडरूम में छिपा दिया और दरवाजा खोला।
बड़े अब्बू अंदर आते ही मुस्कुराते हुए बोले जानेमन अब हमें रोकने वाला कोई नहीं अब तो हम आपके साथ जी भरकर प्यार करेंगे।वो शबनम के साथ जबरजस्ती करने की कोशिस करने लगे।शबनम उनके शैतानी इरादे भांपकर बेडरूम में भाग गई।पीछे पीछे उसके बड़े अब्बू भी आ गए।रुचिर ये सब देख रहा था उसका खून खौल उठा।वो बाहर आकर शबनम के बड़े अब्बू को रोकना चाहा।मगर रुचिर को देखते ही उनका खून खौल उठा।गुस्से में उन्होंने पास ही पड़े सरिये को उठाया और रुचिर के सर पर कई बार वार कर दिये।रुचिर वहीं निष्प्राण होकर गिर गया।
उनकी हैवानियत यहीं खत्म नहीं हुई।वहीं मृत खून से सने रुचिर की बगल में ही शबनम की इज़्ज़त तार तार कर दी।
शबनम बस आंसू ही बहाते रह गयी।उसे अपने बेबसी पर बहुत ही लानत आ रहा था।
इसके बाद बड़े अब्बू ने रुचिर के लाश को ठिकाने लगाया और शबनम को लेकर गाड़ी में बैठ गए।उसे सीधा लाकर इन गंदी गलियों में पटक दिया और उसकी कीमत लेकर चलते बने।घरवाले को बता दिया शबनम रुचिर के साथ भाग गई।इससे उनके रुचिर की हत्या का शक सुबहा भी जाता रहा।
इन्हीं नाजायज रिस्तो की पैदाइश थी उसकि बेटी रुखसार अभी उसकी उम्र 5 वर्ष थी।जब भी शबनम का कोई शरीफजादा ग्राहक आता शबनम रुखसार को बाहर खेलने भेज दिया करती और उस ग्राहक के साथ वक़्त बिताती।रुखसार को वह इन सबसे दूर रखना चाहती थी।रुखसार बिना कोई सवाल किए बाहर चली जाती और उन्हीं सीढ़ियों के पास खेलती रहती।
एक दिन तीन कड़के इस गली में आये तीनो शराब पीकर टुन्न थे।पर जेब मे पैसे कम थे।कोई कोठेवाली उन्हें घास नहीं डाल रही थी।दूर से ही इनको दुत्कार कर भगा दे रहीं थी।
तभी इनकी नजर सीढ़ियों के पास खेलते बच्ची पर गयी।….
शबनम के ग्राहक के चले जाने के बाद काफी देर तक जब रुखसार वापस नहीं आयी तो शबनम को चिंता होने लगी।सीढ़ियों के पास जाकर देखा तो रुखसार वहाँ नहीं थीं।उसने इधर उधर सब जगह देख लिया पर रुखसार उसे कहीं दिखाई नहीं दी।शबनम रुखसार को आवाज़ दे देकर रोने लगी।सभी लोग बाहर निकल आये और सबलोग मिलकर उसे ढूंढने लगे।
थोड़ी देर के बाद वहीं एक अंधेरे कमरे में रुखसार जख्मी हालत में मिली।उसकी हालत देखकर लगता था जैसे जंगली जानवरों ने उस नन्ही बच्ची को भम्भोड डाला हो।पूरा शरीर खून से लथपथ था।प्राण के नाम पर बस हल्की हल्की सांसे चल रहीं थीं।
शबनम को यू लग रहा था जैसे फिर से उसका बलात्कर हुआ हो।वह चीख मारकर बेहोश हो गई।।
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