मगध देश में महाबल नाम का एक राजा राज्य करता था । जिसके महादेवी नाम की बड़ी सुन्दर कन्या थी। वह अद्वितीय रूपवती थीं। जब वह विवाह योग्य हुई तो राजा को बहुत चिन्ता होने लगी।
बहुत से राजकुमार आये लेकिन राजकुमारी को कोई पसंद न आया। राजा ने सोचा जो राजकुमार शक्तिशाली और गुणवान होगा उसी से राजकुमारी का विवाह होगा। एक दिन एक राजकुमार राजदरबार में आया और बोला, “मैं राजकुमारी का हाथ मांगने आया हूँ।”
राजा ने कहाँ, “मैं अपनी लड़की उसे दूँगा, जिसमें सब गुण होंगे।” राजकुमार ने कहा, “मेरे पास एक ऐसा रथ है, जिस पर बैठकर जहाँ चाहो, घड़ी-भर में पहुँच जाओगे।”
राजा बोला, “ठीक है। कुछ दिन इंतजार करें, मैं राजकुमारी से पूछकर बताता हूँ।” फिर एक दिन एक और राजकुमार आया। उसने कहा- “मैं त्रिकालदर्शी हूँ। मैं भूत, वर्तमान और भविष्य तीनों की बातें बता सकता हूँ।”
राजा ने उसे भी इंतजार करने को कहा।
कुछ दिन बाद एक और राजकुमार आया। जब राजा ने उससे पूछा कि आपमें क्या गुण हैं तब उसने कहा- “मैं धनुर्विद्या में निपुण हूँ। धनुष चलाने में मेरा कोई मुकाबला नहीं कर सकता।”
इस तरह तीन वर इकट्ठे हो गये। राजा सोचने लगा कि कन्या एक है, राजकुमार तीन हैं। तीनों ही सुंदर और गुणवान हैं। क्या करे! इसी बीच एक राक्षस आया और राजकुमारी को उठाकर विंध्याचल पहाड़ पर ले गया। तीनों वरों में जो त्रिकालदर्शी था। राजा ने उससे पूछा तो उसने बता दिया कि एक राक्षस राजकुमारी को उड़ा ले गया है और वह विंध्याचल पहाड़ पर है।
दूसरे ने कहा, “मेरे रथ पर बैठकर चलो। ज़रा सी देरी में वहाँ पहुँच जायेंगे।” तीसरा बोला, “मैं शब्दवेधी तीर चलाना जानता हूँ। राक्षस को मार गिराऊँगा।”
वे सब रथ पर चढ़कर विंध्याचल पहुँचे और राक्षस को मारकर राजकुमारी को बचा लाये। इतना कहकर बेताल बोला “हे राजन्! न्यायी विक्रम, अब तुम न्याय करो। बताओ, वह राजकुमारी उन तीनों में से किसको मिलनी चाहिए?”
राजा ने कहा, “जिसने राक्षस को मारा, उसकों मिलनी चाहिए, क्योंकि असली वीरता तो उसी ने दिखाई। बाकी दो ने तो सिर्फ मदद की।” राजा का इतना कहना था कि बेताल फिर पेड़ पर जा लटका और राजा जब उसे लेकर आया तो रास्ते में बेताल ने फिर एक कहानी सुनायी।
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