दि कॉमेडी ऑफ एरर्स:विलियम शेक्सपियर
कभी दो पड़ोसी देश थे, जिनके नाम थे – साइरेकस और एफेसस। पड़ोसी होने के बावजूद दोनों देशों के बीच गंभीर मतभेद थे और दोनों देशों के राजा आपस में कट्टर शत्रुता का भाव रखते थे। यहाँ तक कि नागरिकों को भी एक-दूसरे के देश में जाने की आज्ञा न थी। इसके लिए सख्त कानून बनाया गया था। इस कानून के मुताबिक यदि साइरेकस का कोई नागरिक एफेसस की सीमा में पकड़ा जाता था तो उसे एक हजार रुपये का जुर्माना भरना पड़ता था। जुर्माना न भरने की स्थिति में उस नागरिक को मृत्युदण्ड दिया जाता था। इस कानून के कारण लोग सीमा पार करते हुये डरते थे।
साइरेकस में एक व्यापारी था जिसका नाम था एजियन। एक बार एजियन एफेसस में घूमते हुये पकड़ा गया। एफेसस के कानून के मुताबिक उसे एक हजार रुपये जुर्माना भरना था किन्तु उसके पास देने के लिए कुछ भी नहीं था। अतः अंतिम निर्णय के लिए उसे राजा के दरबार में प्रस्तुत किया गया।
“महाराज़, यह व्यक्ति साइरेकस का रहने वाला है और हमने इसे महल के पास घूमते हुये पकड़ा है। कानून के अनुसार हम इससे जुर्माना भरवाकर इसे छोड़ देते किन्तु इसके पास देने के लिए कुछ भी नहीं है। अब आप ही फैसला कीजिये कि इसे क्या दण्ड दिया जाये ?” शहर कोतवाल ने राजा के सम्मुख निवेदन किया।
“तुम्हारा नाम क्या है ?” राजा ने एजियन से पूछा।
“एजियन,” उसने सपाट स्वर में जवाब दिया।
“तुमने हमारे देश में आने की हिम्मत कैसे की ? क्या तुम नहीं जानते थे कि साइरेकस के लोगों के एफेसस में आने पर सख्त प्रतिबंध है ?” राजा ने सख्त स्वर में पूछा।
“जी हाँ, मुझे यहाँ के कानून के बारे में पता था … ” एजियन ने उसी तरह बिना डरे जवाब दिया।
“फिर भी तुमने ऐसा दुस्साहस किया ? एजियन, अब हमारे कानून के अनुसार इस अपराध के लिए तुम या तो जुर्माने की रकम भरो या फिर मरने के लिए तैयार हो जाओ।” राजा ने फैसला सुनाते हुये कहा।
एजियन करुण स्वर में बोला, “महाराज, जुर्माना भरने के लिए न तो मेरे पास पैसे हैं और न ही मैं भरना चाहता हूँ। आप तो जितनी जल्दी हो सके मुझे मृत्युदण्ड दे दें ताकि मैं इस दुखी जीवन से मुक्त हो सकूँ। मैं और जीना नहीं चाहता हूँ। “
एजियन की बात सुनकर राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ। अब तक उसके सामने जितने भी अपराधी आए थे सभी किसी न किसी तरह बहाने बनाकर दण्ड से मुक्ति की प्रार्थना करते थे किन्तु एजियन ऐसा पहला व्यक्ति था जो खुद ही दण्ड देने की प्रार्थना कर रहा था। उसके चेहरे पर मृत्युदण्ड के भय का किसी भी प्रकार का कोई चिन्ह दिखाई न देता था।
आश्चर्यचकित राजा ने पूछा, “एजियन, ऐसी कौनसी बात है जिसके कारण तुम मृत्यु को गले लगाना चाहते हो ? मुझे बताओ, मैं तुम्हारे बारे में सबकुछ जानना चाहता हूँ।”
“महाराज, आप मेरे बारे में जानकर क्या करेंगे ? मेरी कहानी इतनी दुख भरी है कि उसे सुनकर आपका मन भी दुखी हो जाएगा। इसलिए आप तो बिना देरी किए मुझे दंडित करें।” एजियन पुनः दुखी स्वर में बोला।
अब तो राजा के मन में एजियन के बारे में जानने की इच्छा और भी तीव्र हो उठी। उसने दरबारियों की ओर देखा। वे सब भी एजियन की कहानी जानने को उत्सुक थे। उन्होने भी पहली बार ऐसा व्यक्ति देखा था जो अपने मुंह से अपने लिए मौत मांग रहा था। दरबारियों की मंशा भाँपकर राजा पुनः बोला, “एजियन, तुम निस्संकोच होकर अपनी बात कहो। तुम्हारी कहानी सुने बिना हम कदापि तुम्हें दंडित नहीं कर सकते। “
मजबूर होकर एजियन अपनी कहानी सुनाने लगा –
एजियन साइरेकस के एक धनी व्यापारी का पुत्र था। उसके पिता का व्यापार कई देशों में फैला था। पिता की मृत्यु के बाद एजियन ने उनका सारा व्यापार संभाल लिया। एक बार व्यापार के सिलसिले में उसे विदेश जाने का अवसर प्राप्त हुआ। वह अपनी पत्नी को साथ लेकर माल से भरे जहाज के साथ अपिडैमनम नामक नगर में पहुँच गया। वह नगर उसे खूब रास आया। उसके जहाज का सारा माल जल्दी ही बिक गया और उसे खूब धन प्राप्त हुआ। उसने वापस अपने देश लौटने का विचार त्याग दिया और अपनी पत्नी के साथ वहीं रहने लगा।
कुछ समय पश्चात उसकी पत्नी ने दो जुड़वां बेटों को जन्म दिया। दोनों बच्चे आश्चर्यजनक ढंग से रूप, रंग और आकार में बिलकुल एक जैसे थे। उनमें अंतर करना एजियन और उसकी पत्नी के लिए भी बहुत कठिन था।
वहीं उनके पड़ोस में एक गरीब महिला रहती थी। जिस दिन एजियन के बेटों का जन्म हुआ उसी दिन उस गरीब महिला ने भी दो बेटों को जन्म दिया। संयोग से उसके बेटे भी रूप, रंग और आकार में एक समान थे।
वह महिला इतनी निर्धन थी कि पुत्रों के पालन-पोषण के लिए उसके पास कुछ भी नहीं था। वह स्वयं के खाने का इंतजाम ही बड़ी मुश्किल से कर पाती थी, पुत्रों के भरण-पोषण का इंतजाम उसके लिए असंभव था। उसने एजियन से प्रार्थना की कि वह उसके पुत्रों को गोद ले ले ताकि वे भूख से न मरें। एजियन की पत्नी का दिल पिघल गया और उसके कहने पर एजियन ने उस गरीब महिला के दोनों पुत्रों को गोद ले लिया।
एजियन ने अपने दोनों पुत्रों का एक ही नाम रखा – एंटीफोलस। उसने गोद लिए दोनों बच्चों का नाम भी एक ही रखा – ड्रोमियो। इस प्रकार एजियन दोनों एंटीफोलस और दोनों ड्रोमियो का पालन-पोषण करने लगा।
एक बार एजियन को व्यापार के सिलसिले में फिर विदेश जाने का अवसर मिला। वह अपनी पत्नी और चारों बच्चों से बहुत प्रेम करता था इसलिए उसने उन्हें भी साथ ले लिया और जहाज पर सवार होकर दूसरे देश की यात्रा पर चल पड़ा।
उसका जहाज कई महीनों तक समुद्र में चलता रहा। एक दो दिन की यात्रा और शेष बची थी। एजियन खुश था कि जल्दी ही वह अपने जहाज का माल बेचकर वापस अपने देश चला जाएगा।
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किन्तु होनी को कुछ और ही मंजूर था। रात के समय समुद्र में भयंकर तूफान आया। एजियन का छोटा सा जहाज उस बलशाली तूफान का मुक़ाबला न कर सका और दो हिस्सों में टूट गया। जहाज के यात्री समझ गए कि जहाज डूबने वाला है इसलिए वे जल्दी-जल्दी जहाज पर अपने साथ लाई छोटी-छोटी नावें लेकर समुद्र में उतर गए। एजियन अपने परिवार के साथ जहाज में ही रह गया। किसी ने पीछे मुड़कर उनकी ओर देखना जरूरी नहीं समझा।
किसी तरह एजियन ने जल्दी से लकड़ी के दो तीन फट्टों को जोड़कर दो नावें तैयार कीं। एक नाव में उसने पत्नी के साथ एक एंटीफोलस और एक ड्रोमियों को बैठा दिया और दूसरी में खुद शेष दो बच्चों को लेकर सवार हो गया।
कुछ दूरी तक दोनों नावें साथ-साथ तैरती रहीं। किन्तु कुछ देर बाद तेज जलधाराओं के कारण दोनों नावें एक दूसरे से दूर जाने लगीं। एजियन की आँखों के सामने उसकी पत्नी और दो बच्चे उससे दूर बहे जा रहे थे और वह कुछ कर नहीं पा रहा था। तभी उसे पत्नी के नाव के पास एक बड़ी नाव दिखाई दी। उसने देखा कि नाव में सवार लोगों ने उसकी पत्नी और दोनों बच्चों को अपनी नाव में बैठा लिया है।
उन्हें सुरक्षित देखकर एजियन को असीम शांति का अनुभव हुआ। कुछ देर बाद उसे भी एक नाव ने उसके दोनों के बच्चों के साथ सुरक्षित बचा लिया।
परंतु उसके बाद वह अपनी पत्नी और उसके साथ गए दो बच्चों से बिछुड़ गया। उसने उन्हें ढूँढने का बहुत प्रयास किया परंतु निष्फल रहा।
समय धीरे-धीरे बीतता गया और साथ ही साथ एजियन की अपनी पत्नी और बिछुड़े बच्चों से मिलने की आशा धूमिल होती गई। उसने अपना ध्यान अपने साथ आए दोनों बच्चों पर केन्द्रित कर लिया। अब वे दोनों ही उसका परिवार थे।
समय के साथ एंटीफोलस और ड्रोमियो बड़े हो गए। एक दिन एंटीफोलस ने अपने पिता से अपनी माता के बारे में पूछा। एजियन अपने बेटों को अतीत में घटी घटनाओं के बारे में नहीं बताना चाहता था लेकिन बेटे जब जिद पर अड़ गए तो उसे बताना पड़ा।
पिता से सारी कहानी सुनने के बाद एंटीफोलस जोश में आकर बोला, “पिताजी, जब तक मैं अपनी माँ और दोनों भाइयों को ढूंढ नहीं लेता, मुझे चैन नहीं आएगा। आप मुझे आशीर्वाद दीजिये कि मैं उन्हें ढूँढने में सफल हो सकूँ।”
एजियन, जो कि अपनी पत्नी और दो बच्चों को पहले ही खो चुका था, किसी भी तरह एंटीफोलस को अपने से दूर नहीं जाने देना चाहता था किन्तु एंटीफोलस जिद पर अड़ गया। मजबूर होकर एजियन को अनुमति देनी पड़ी।
दूसरे ही दिन एंटीफोलस अपने साथ ड्रोमियो को लेकर अपनी माता और भाइयों की खोज में निकल पड़ा। एजियन घर पर रहकर उनके लौटने की प्रतीक्षा करने लगा।
लेकिन कई साल बीत जाने के बाद भी वे नहीं लौटे। एजियन के मन में रह-रह कर किसी अनहोनी की आशंका उठने लगी। जब उससे नहीं रहा गया तो वह भी बेटों को ढूँढने निकल पड़ा। ढूंढते-ढूंढते वह एफेसस देश में आ गया जहां सिपाही उसे पकड़कर राजा के सम्मुख ले आए।
एजियन की कहानी सुनने के बाद राजा का मन द्रवित हो उठा। दरबार में उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति के मन में एजियन से सहानुभूति का भाव उमड़ आया। राजा अपने मनोभावों को नियंत्रित करते हुये बोला, “एजियन, मुझे दुख है कि ईश्वर ने तुमसे सबकुछ छीन लिया। किन्तु उसकी लीला हम मनुष्य कभी नहीं समझ सकते। हम सब उससे प्रार्थना करते हैं कि वह शीघ्र ही तुम्हें तुम्हारे परिवार से मिलाये। फिर भी, मैं कानून को नहीं बदल सकता। किन्तु राजा होने के नाते तुम्हें एक दिन की मोहलत दे सकता हूँ। इस एक दिन में तुम कहीं से भी जुर्माने की रकम का इंतज़ाम करो, उसके तुम आजाद हो।”
राजा का फैसला सुनकर एजियन को कोई खुशी नहीं हुई। यह शहर उसके लिए लिए बिलकुल अंजाना था। यहाँ वह एक दिन तो क्या, एक महीने में भी हजार रुपये इकट्ठे नहीं कर सकता था। यदि कोई दया करके उसके जुर्माने की रकम भर भी दे तो भी अपने परिवार के बिना उसे अपना जीवन व्यर्थ प्रतीत हो रहा था। उसने एक बार और अंतिम प्रयास करने का निश्चय किया। वह जुर्माने का इंतजाम करने की चिंता छोड़ एक बार फिर अपने बेटों को खोजने शहर की गलियों में निकल पड़ा।
उधर, सालों पहले एजियन की पत्नी और दो बच्चों को जिन नाविकों ने डूबने से बचाया था, वे एफेसस देश के इसी शहर के थे। वे अपने साथ उन्हें भी इसी शहर में ले आए थे। शहर के एक दयालु और धनवान आदमी ने दोनों बच्चों को गोद ले लिया था। उसने अपने पुत्रों की तरह उनका लालन-पालन किया, खूब पढ़ाया लिखाया और उनकी हर सुख-सुविधा का ध्यान रखा। जवान होने पर दोनों ही लड़के, अर्थात बड़े एंटीफोलस और ड्रोमियो, सेना में उच्च पदों पर नियुक्त हो गए। दोनों ने शहर की ही सुंदर और कुलीन लड़कियों से विवाह कर लिया और सुखपूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे। उन्हें बिलकुल भी खबर नहीं थी कि उनके पिता और दो भाई भी इस दुनिया में जीवित हैं।
संयोग से, जिस दिन एजियन को बंदी बनाया गया, उसी दिन छोटे एंटीफोलस और ड्रोमियो भी भटकते-भटकते एफेसस के इसी नगर में आ पहुंचे। वहाँ उन्हें पता चला कि एफेसस में गैरकानूनी ढंग से घुसने के कारण एक व्यक्ति को पकड़ा गया है। उन्हें इस बात का सपने में भी भान नहीं था कि वह व्यक्ति और कोई नहीं बल्कि उनका अपना पिता, एजियन है।
उन्हें इस शहर में अपनी माता और भाइयों की खोज करनी थी। इसलिए कुछ दिन यहाँ ठहरने का निश्चय करके वे एक सराय में पहुंचे। सराय के मालिक ने उनसे परिचय पूछा तो उन्होने खुद को एफेसस का ही नागरिक बताया। उसने उन्हें रहने के लिए सराय का एक कमरा दे दिया। कुछ देर बाद, एंटीफोलस ने आवश्यक सामान लाने के लिये ड्रोमियो को बाजार भेजा। ड्रोमियो के जाने के कुछ देर बाद वह भी बाज़ार में घूमने निकल पड़ा।
अभी वह सराय से थोड़ी ही दूर पहुंचा था कि उसे सामने से ड्रोमियो आता हुआ दिखाई पड़ा। वह तेज-तेज कदमों से चलता हुआ उसी की ओर आ रहा था। एंटीफोलस सोच में पड़ गया कि मैंने तो इसे बाजार से सामान लाने भेजा था, किन्तु यह इतनी जल्दी कैसे लौट आया ? फिर उसने गौर किया कि ड्रोमियो के हाथ तो खाली हैं। उसके हाथ में कोई भी सामान नहीं है।
इससे पहले कि एंटीफोलस ड्रोमियो से कुछ कहता, ड्रोमियो बड़ी नम्रता से एंटीफोलस से बोला, “कप्तान साहब, आप यहाँ क्या कर रहे हैं ? चलिये, घर चलिये, आपकी पत्नी भोजन के लिए आपकी प्रतीक्षा कर रही हैं।”
ड्रोमियो की अजीबोगरीब बातें सुनकर एंटीफोलस चौंका, फिर क्रोधपूर्वक बोला, “ड्रोमियो ! तुम्हारा दिमाग तो खराब नहीं हो गया ! ये कैसी अजीब बातें कर रहे हो ? जब मेरी शादी ही नहीं हुई तो किसकी पत्नी, कैसी पत्नी ? और तुम तो बाजार से सामान लाने गए थे लेकिन तुम्हारे हाथ खाली हैं। ये क्या मज़ाक है ?”
इस बार ड्रोमियो चौंकते हुये बोला, “मैं भला आपसे मज़ाक क्यों करूंगा, कप्तान साहब ! आपकी पत्नी भोजन के लिए बुला रही हैं तो कृपा करके घर चलिये। और आप किस सामान की बात कर रहे हैं ? आपने मुझसे कौनसा सामान लाने के लिए कहा था ?”
अब तो एंटीफोलस का गुस्सा और भी बढ़ गया, “अच्छा ! तो अब तुम्हें यह भी याद नहीं है कि मैंने तुम्हें क्या सामान लाने को कहा था ? मज़ाक की भी हद होती है, ड्रोमियो ! अब जाकर चुपचाप अपना काम निपटाओ, समझे। और ये बार बार पत्नी पत्नी क्या लगा रखा है ? मेरी कोई पत्नी नहीं है।”
दरअसल, वह बड़ा ड्रोमियो था, जो छोटे एंटीफोलस को बड़ा एंटीफोलस समझ रहा था। वहीं, छोटा एंटीफोलस, बड़े ड्रोमियो को छोटा ड्रोमियो समझकर डांट रहा था। इस प्रकार, दोनों ही एक दूसरे को गलत समझ रहे थे।
एंटीफोलस का अजीब बर्ताव देखकर ड्रोमियो सोचने लगा कि अवश्य ही कप्तान साहब अपनी पत्नी से लड़कर आए हैं, इसीलिए गुस्से में ऐसी बातें कर रहे हैं। लेकिन भाभी ने तो मुझे इन्हें घर लाने के लिए कहा है तो मैं इन्हें लेकर ही जाऊंगा। यह सोचकर वह बार-बार एंटीफोलस से घर चलने का आग्रह करने लगा।
ड्रोमियो के मुँह से बार – बार घर चलने की बात सुनकर आखिरकार एंटिफोलस चिढ़ गया और बोला, “लगता है, तेरा दिमाग सचमुच खराब हो गया है। तू जानता है कि मेरा विवाह नहीं हुआ है फिर भी बार – बार पत्नी – पत्नी की रट लगाए हुये है। चल, पहले उस लड़की से मिलता हूँ जिसे तू मेरी पत्नी बता रहा है। बाद में तुझे सीधा करूंगा।”
इतना कहकर वह ड्रोमियो के साथ चल पड़ा। रास्ते में वे भीड़-भाड़ भरे बाज़ार से होकर गुजरे। इस भीड़ में एंटिफोलस और ड्रोमियो अलग-अलग हो गए। एंटिफोलस ने इधर-उधर देखा तो ड्रोमियो कहीं दिखाई नहीं दिया। वह गुस्से में बड़बड़ाता हुआ आगे बढ्ने लगा तभी उससे छोटा ड्रोमियो आ टकराया। एंटिफोलस उसे डांटता हुआ बोला, “कहाँ गायब हो गया था भीड़ में मुझे छोडकर ? चल, कहाँ लेकर चल रहा है मुझे ?”
छोटे ड्रोमियो को कुछ समझ नहीं आया। वह पलकें झपकाता हुआ बोला, “क्या कह रहे हैं आप ? आपने ही तो मुझे सामान लाने बाज़ार भेजा था ? और आप सराय छोडकर यहाँ बाज़ार में क्या करने आए हैं ?”
एंटिफोलस के गुस्से का पारा और ऊपर चढ़ गया, “ड्रोमियो, सराय से तुम मुझे यह कहकर लाये हो कि मेरी पत्नी खाने के लिए मुझे बुला रही है । और अब तुम कह रहे हो कि तुम सामान लाने आए हो । ऐसा बेहूदा मज़ाक तुम मेरे साथ कैसे कर सकते हो ?”
“मैंने कब कहा कि आपकी पत्नी बुला रही है ? आपकी तो अभी शादी ही नहीं हुई तो पत्नी कहाँ से आई ? मुझे लगता है आपको कोई गलतफहमी हो गई है। ” छोटा ड्रोमियो आहिस्ते से बोला।
इधर ये दोनों आपस में बहस में उलझ रहे थे उधर कप्तान की पत्नी घर पर खाने की थाली सजाये कप्तान की प्रतीक्षा कर रही थी। वह परेशान थी कि ड्रोमियो अभी तक कप्तान साहब अर्थात बड़े एंटिफोलस को लेकर क्यों नहीं आया।
जब काफी देर हो गई तो वह स्वयं पति को खोजने निकल पड़ी।
बाजार में उसने छोटे एंटिफोलस और छोटे ड्रोमियो को आपस में बहस करते देखा। वह उसे अपना पति समझकर पास आई और बोली, “प्रिय, आप यहाँ क्या कर रहे हैं ? मैं कब से खाने पर आपका इंतज़ार कर रही हूँ ? क्या आप मुझसे नाराज हैं जो बुलाने पर भी नहीं आ रहे ? चलिये, घर चलिये।”
एक अंजान युवती के मुख से अपने लिए ‘प्रिय’ सम्बोधन सुनकर एंटिफोलस चौंक पड़ा। यह उसके लिए असह्य था। वह क्रोध से भड़कते हुये बोला, “तुम कौन हो जो मुझे ‘प्रिय’ कहकर संबोधित कर रही हो ? मेरी कोई पत्नी नहीं है ।”
एंटिफोलस की मुखमुद्रा देखकर युवती पल भर के लिए हतप्रभ रह गई, फिर स्वयं को संयत करती हुई बोली, “ये सच है कि आप मेरे पति हैं। यदि आप किसी बात पर मुझसे नाराज हैं तो भी बाजार में इस तरह झगड़ना उचित नहीं है। अच्छा होगा, हम घर चलें और वहीं शांति से बात करें। चलो ड्रोमियो, तुम्हारी पत्नी भी तुम्हारा इंतज़ार कर रही है।”
एंटिफोलस की सोच को जैसे लकवा सा मार गया था। वह समझ नहीं पा रहा था कि उसके साथ यह सब क्या हो रहा है। यह युवती स्वयं को उसकी पत्नी बता रही है और ड्रोमियो को भी उसकी पत्नी के पास चलने के लिए कह रही है। यह सब हो क्या रहा है ? परदेश में यह कैसी मुसीबत उसके गले आन पड़ी है। वह सोच ही रहा था कि इससे पीछा कैसे छुड़ाया जाये तभी भीड़ में से एक आदमी बोला, “अरे साहब, क्यों घर की बातें बाज़ार में उछाल रहे हैं ? अगर पत्नी से कोई गलती हो गई है तो उसे घर जाकर समझा दें। आप जैसे पढे-लिखे लोगों को इस तरह की हरकतें शोभा देती हैं क्या ?”
भीड़ में से कई और लोगों ने भी उस आदमी की बात का समर्थन किया। स्थिति और विकट हो गई थी। अब तक तो केवल युवती ही उसके पीछे पड़ी थी, किन्तु अब राह चलते लोग भी उसके समर्थन में उतर आए थे। एंटिफोलस समझ गया कि यदि वह युवती के साथ नहीं गया तो मामला बिगड़ सकता है। वैसे भी वह ठहरा परदेसी। कहीं लेने के देने न पड़ जाएं। यही सोचकर वह युवती के साथ जाने को उद्यत हो गया।
युवती ने उसका हाथ पकड़ा और खींचते हुये घर की ओर ले चली। ड्रोमियो भी पीछे-पीछे आ रहा था।
घर पहुँचकर युवती ने बड़े प्यार से एंटिफोलस को खाने की टेबल पर बिताया और ड्रोमियो से बोली, “ड्रोमियो, जाओ तुम भी भीतर जाकर खाना खा लो, तुम्हारी पत्नी तुम्हारी राह देख रही होगी।”
यह कहकर वह एंटिफोलस के बगल में बैठ गई और प्यार भरी बातें करने लगी। एंटिफोलस हक्का-बक्का सा अनमने ढंग से खाने का कौर गले के नीचे उतारने लगा।
उधर, ड्रोमियो जैसे ही घर के भीतर पहुंचा, एक दूसरी युवती ‘प्रिय – प्रिय’ कहकर उसके गले से लिपट गई। छोटा ड्रोमियो छिटककर दूर खड़ा हो गया। युवती आश्चर्य प्रकट करती हुई बोली, “प्रिय, आज तुम्हें क्या हो गया है ? तुम तो ऐसे दूर खड़े हो गए जैसे तुमने किसी और की पत्नी को गले लगाया हो ? चलो अब खाना खा लो। “
बेचारा और करता भी क्या, चुपचाप बैठकर भोजन करने लगा।
जिस समय ये लोग घर के भीतर भोजन कर रहे थे, उसी समय बड़ा एंटिफोलस और बड़ा ड्रोमियो घर लौट आए और दरवाजा खटखटाने लगे। दरवाजा खुलने में देर हुई तो बड़ा एंटिफोलस बोला, “लगता है हम लोगों को आने में देर हो गई है इसलिए हमारी बीवियाँ हमसे नाराज हो गई हैं। चलो उन्हें खुश करने के लिए बाजार से कुछ उपहार ले आयें।”
ड्रोमियो ने सहमति में सिर हिलाया और वे दोनों दरवाजे से ही वापस फिर बाज़ार की ओर चले गए।
इधर, भोजन करने के बाद छोटा एंटिफोलस और छोटा ड्रोमियो वहाँ से निकल भागने की बात सोचने लगे। दोनों स्त्रियाँ जब गहरी नींद में सो गईं तो वे चुपके से वहाँ से निकल आए।
अभी छोटा एंटिफोलस थोड़ी दूर ही निकला था कि एक सुनार उससे टकरा गया। वह मुसकुराते हुये उसके पास आया और एक डिब्बा उसके हाथ में पकड़ाते हुये बोला, “लीजिये कप्तान साहब अपनी अमानत संभालिए। मैं इसे देने के लिए आपके घर ही जा रहा था। अच्छा हुआ आप यहीं मिल गए। ऐसा सुंदर सोने का हार आपको शहर में दूसरा नहीं मिलेगा। आप इसकी कीमत दुकान पर ही भिजवा देना। ” इतना कहकर सुनार चला गया।
एंटिफोलस डिब्बा हाथ में लिए हैरान सा खड़ा हुआ था। बार बार उसके दिमाग में सुबह से घटित होने वाली घटनाएँ घूम रहीं थीं। वह इस शहर में पहली बार आया था लेकिन यहाँ हर कोई उसके साथ ऐसे व्यवहार कर रहा था जैसे वह उसे वर्षों से जानता हो। यह सुनार भी इतना बेशकीमती हार उसे बिना जान पहचान के सौंपकर चला गया।
वह खड़ा-खड़ा सोच ही रहा था कि तभी वहाँ से एक वृद्धा गुजरी। एंटिफोलस को देखते ही वह आशीर्वाद देते हुये बोली, “बेटा, भगवान तुम्हें लंबी उम्र दे। आज तुम्हारे कारण ही मेरा बेटा निर्दोष साबित होकर छूटा है।”
वृद्धा के जाने के बाद एक युवक उसके पास आया और उससे परिचितों की तरह मिला। इतने में एक व्यक्ति ने आकर अपने पुत्र की शादी का निमंत्रण-पत्र उसके हाथ में दिया और परिवार सहित समारोह में आने का आग्रह किया। वह व्यक्ति अभी गया ही था कि एक और व्यक्ति ने आकर उसके हाथों में मुहरों से भरी एक थैली थमा दी और कृतज्ञता पूर्वक बोला, “कप्तान साहब, आपने समय पर मेरी मदद करके मुझे उबार लिया वरना मैं तो बर्बाद हो जाता। यह लीजिये, आपका धन स्वीकार कीजिये।”
यह सब क्या हो रहा था, एंटिफोलस की कुछ समझ में नहीं आ रहा था। दरअसल, बड़ा एंटिफोलस इसी शहर पला-बढ़ा था, इसलिए शहर के अधिकांश व्यक्ति उसे बहुत अच्छी तरह से जानते-पहचानते थे। छोटे एंटिफोलस की शक्ल हूबहू अपने भाई से मिलती थी इसलिए सभी उसे बड़ा एंटिफोलस अर्थात कप्तान साहब समझ रहे थे।
अभी कुछ ही कदम आगे बढ़ा था कि एक लड़की उसके पास आकर बड़े दुलार से बोली, “भैया, आपने मेरा हार बनवा दिया ? लाइये, कहाँ है मेरा हार ? मैं कितनी बेचैनी से उसकी प्रतीक्षा कर रही थी । अच्छा तो इस डिब्बे में है मेरा हार ?”
यह कहकर वह लड़की एंटिफोलस के हाथों से डिब्बा लेने लगी, तो एंटिफोलस अपने गुस्से को काबू न कर सका, लगभग चीखते हुये बोला, “मैं कल ही इस शहर में आया हूँ और एक ही दिन में यहाँ मेरे इतने रिश्तेदार पैदा हो गए ? कोई खुद को मेरी पत्नी बताती है तो कोई बहन ! सच-सच बताओ तुम कौन हो ? मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि तुम सब मिलकर मुझे ठगना चाहते हो ?”
यह कहकर एंटिफोलस वहाँ से तेजी से निकल गया। लड़की ने सोचा कि किसी सदमे के कारण उसका भाई उसे पहचान नहीं पा रहा है। वह उसी समय तेजी से घर की ओर भागी और एंटिफोलस की पत्नी से रोते-रोते बोली, “भाभी, भैया पागल हो गए हैं ? उन्होने मुझे पहचानने से इंकार कर दिया।”
एंटिफोलस की पत्नी उसे धीरज बँधाती हुई बोली, “ये तुम क्या कह रही हो ? कहाँ मिले तुम्हें कप्तान साहब ? शायद तुम ठीक कह रही हो। आज उन्होने बाजार में मुझे भी पहचानने से इंकार कर दिया था। न जाने कैसी बहकी बहकी बातें कर रहे थे ? बार-बार कह रहे थे कि मैं शहर में नया आया हूँ, तुम मुझे फँसाने की कोशिश कर रही हो ।”
लड़की बोली, “भैया अभी-अभी बाजार की ओर गए हैं । आप जल्दी से जाकर उन्हें घर ले आइये। कहीं पागलपन में कुछ उल्टा-सीधा न कर बैठें ।”
कप्तान की पत्नी तुरंत बाजार की ओर भागी। उस समय बड़ा एंटिफोलस अर्थात कप्तान, सुनार की दुकान पर उपहार खरीदने पहुंचा। उसे ही सुनार बोला, “क्या बात है कप्तान साहब, कुछ और चाहिए क्या या फिर हार के पैसे चुकाने आए हैं ? इतनी भी क्या जल्दी थी ?”
यह सुनते ही बड़ा एंटिफोलस चौंका । आश्चर्य से बोला, “कौनसा हार ? मैंने तुमसे कौनसा हार लिया है ?”
सुनार बोला, “अरे साहब, इतनी जल्दी भूल गए ? अभी थोड़ी देर पहले ही तो मैंने आपको सोने का हार दिया था ?”
“थोड़ी देर पहले ? क्या बात कर रहे हो तुम ?” बड़ा एंटिफोलस बोला, “आज यह हमारी पहली मुलाक़ात है। लगता है तुम्हें कोई गलतफहमी हुई है।”
“कप्तान साहब, ऐसा मज़ाक अच्छा नहीं है। मैंने खुद अपने हाथों से आपको वह हार सौंपा है। ” सुनार उत्तेजित स्वर में बोला।
अब बड़े एंटिफोलस ने हार लिया हो तो वह स्वीकार करे ! दोनों में बहस होने लगी। कीमती हार का मामला था सो बात पुलिस तक पहुँच गई। थानेदार ने पकड़कर दोनों को हवालात में बंद कर दिया।
उधर कप्तान की पत्नी उसे खोजती हुई सुनार की दुकान पर पहुंची। वहाँ उसे पता चला कि उसके पति को पुलिस पकड़कर ले गई है। वह भागी-भागी थाने पहुंची और थानेदार से बोली, “मेरे पति बिलकुल निर्दोष हैं। वे कोई अपराध नहीं कर सकते। आज सुबह से वे अजीब सा व्यवहार कर रहे हैं। लगता है उन्हें पागलपन का दौरा पड़ा है। इसी वजह से उनसे कोई भूल हो गई होगी। आप उन्हें छोड़ दीजिये ताकि मैं उनका इलाज करवा सकूँ !”
थानेदार को उसकी बातों पर विश्वास हो गया और उसने कप्तान को छोड़ दिया। कप्तान की पत्नी उसे घर लेकर आई और नौकरों से बोली, “कप्तान साहब को तुरंत रस्सियों और जंजीरों से बांधकर एक कमरे में बंद कर दो। वे पागल हो गए हैं। मैं डॉक्टर को बुलाकर उनका इलाज करवाती हूँ।”
एंटिफोलस चिल्ला-चिल्लाकर कहता रहा कि वह पागल नहीं है किन्तु किसी ने उसकी एक न सुनी। उसे पकड़कर एक कमरे में बंद कर दिया गया और उसकी पत्नी डॉक्टर को लेने चली गई।
जब वह डॉक्टर को लेकर घर की ओर लौट रही थी तभी उसने बाजार में छोटे एंटिफोलस को देखा। उसने समझा कि उसका पति किसी तरह खुद छुड़ाकर भाग आया है।
वह तुरंत चिल्लाकर डॉक्टर से बोली, “डॉक्टर साहब, वे रहे मेरे पति,” फिर आवाज लगाती हुई एंटिफोलस की ओर दौड़ी, “कप्तान साहब, कप्तान साहब”।
छोटे एंटिफोलस ने यह आवाज सुनी और कप्तान की पत्नी को अपनी ओर भागते देखा। यह देखते ही उसके होश उड़ गए। वह समझ गया कि यह स्त्री फिर उसे अपने साथ अपने घर ले जाएगी। वह सिर पर पाँव रखकर वहाँ से भागने लगा।
उसे भागते देखकर कप्तान की पत्नी चिल्लाई, “पकड़ो उन्हें, भगवान के लिए कोई पकड़ो उन्हें ! वे पागल हैं !”
छोटा एंटिफोलस अपने लिए ‘पागल’ शब्द सुनकर और भी घबरा गया। वह और भी तेजी से भागा और जाकर एक मंदिर में जा छिपा। मंदिर में एक पुजारिन रहती थी। एंटिफोलस ने अपनी सारी कहानी उसे संक्षेप में बताई और कहा कि एक चालाक औरत जबर्दस्ती उसे अपना पति बनाकर अपने घर ले जाना चाहती है। वह पुजारिन के पैरों में गिर पड़ा और रोते हुये बोला, “माँ, उस दुष्ट औरत से मेरी रक्षा करो !”
‘माँ’ सम्बोधन सुनते ही पुजारिन के मन में प्रेम और ममता का सागर उमड़ आया। उसने एंटिफोलस के सिर पर हाथ फेरते हुये कहा, “घबराओ नहीं बेटा, वह तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगी। तुम जाकर पासवाले कमरे में छिप जाओ। मैं सब संभाल लूँगी।”
छोटा एंटिफोलस दौड़कर साथ वाले कमरे में जा छिपा। तभी कप्तान की पत्नी मंदिर में आई और पुजारिन से कहने लगी, “माताजी, मेरे पति भागते हुये इसी तरफ आए हैं। आपने उन्हें जरूर देखा होगा। कृपया बताइये वे कहाँ हैं ? उनकी मानसिक दशा ठीक नहीं है। मैं उन्हें घर ले जाना चाहती हूँ।”
पुजारिन उसे समझाते हुये कहने लगी, “बेटी, वह तुम्हारा पति नहीं है। तुम्हें जरूर कोई गलतफहमी हुई है। मैं उसे तुम्हारे हवाले कदापि नहीं कर सकती। तुम यहाँ से चली जाओ।”
किन्तु कप्तान की पत्नी जिद पर अड़ गई कि वह अपने पति लिए बिना वहाँ से नहीं लौटेगी। उसने ज़ोर ज़ोर से रोना शुरू कर दिया। उसका रोना सुनकर वहाँ भीड़ लगने लगी। लोग आपस में काना-फूसी करने लगे। अब तक कप्तान के पागल होने की बात पूरे नगर में फैल चुकी थी। एक तरह से सारे शहर में हड़कंप मच गया था।
उधर, राजा ने एजियन को जुर्माना अदा करने के लिए जो समय-सीमा दी थी वह समाप्त हो रही थी। वह जुर्माना नहीं भर पाया था इसलिए राजा ने उसे फांसी पर चढ़ाने का निश्चय कर लिया था। लेकिन उस देश का नियम था कि फांसी की सजा राजा की मौजूदगी में ही दी जाती थी। अतः राजा को फांसी के समय फाँसीघर में पहुंचना आवश्यक था।
संयोग से वह फाँसीघर, उस मंदिर के पास ही बना हुआ था, जहां पुजारिन और कप्तान की पत्नी के बीच विवाद चल रहा था। आसपास खड़ी भीड़ तमाशे का आनंद ले रही थी।
उधर, बड़ा एंटिफोलस, घर पर नौकरों को चकमा देकर भाग निकला था और नौकर उसका पीछा कर रहे थे। उनकी नजरों से बचने के लिए वह मंदिर के पास खड़ी उस तमाशबीन भीड़ में जा घुसा। तभी कप्तान की पत्नी की नजर उस पर पड़ गई। वह प्रसन्न होकर चिल्लाई, “मुझे मेरे पति मिल गए ! मुझे मेरे पति मिल गए !”
एंटिफोलस को देखकर पुजारिन भी चकित रह गई। उसने तो उसे कमरे में छिपाया था और दरवाजा बंद था, जिसके बाहर वह खड़ी हुई थी, फिर यह बाहर कैसे आ गया। वह हैरान-परेशान सी कमरे के भीतर गई तो छोटा एंटिफोलस वहाँ मौजूद था। वह उसे लेकर बाहर आ गई।
छोटे एंटिफोलस के बाहर आते आसपास खड़े लोग स्तब्ध रह गए। कप्तान की पत्नी कभी अपने पति को देखती तो कभी पुजारिन के साथ खड़े एंटिफोलस को। उसका चेहरा घबराहट और आश्चर्य के मारे पीला पड़ गया था। दो सर्वथा अपरिचित व्यक्तियों के रूप-रंग, चेहरे, कद-काठी हूबहू एक समान कैसे हो सकते हैं ? सभी लोग इन दोनों हमशकलों का रहस्य जानने को उत्सुक हो रहे थे किन्तु किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था।
तभी राजा का काफिला मंदिर के सामने से गुजरा। वे लोग एजियन को फाँसी चढ़ाने ले जा रहे थे। सबसे आगे कैदियों की वेषभूषा में एजियन चल रहा था। छोटे एंटिफोलस ने जब अपने पिता को देखा तो वह तुरंत पहचान गया और दौड़कर उनके गले लग गया। पुत्र को देखकर एजियन की आँखों से भी अश्रुधारा बह निकली।
बड़ा एंटिफोलस अपनी पत्नी के साथ दूर खड़ा यह सब देख रहा था। उसने होश संभालने के बाद कभी अपने पिता को नहीं देखा था इसलिए उसके द्वारा एजियन को पहचानने का सवाल ही नहीं था।
लेकिन पिता-पुत्र के इस मिलन को देखकर राजा सारी बात समझ गया क्योंकि वह एजियन के मुँह से उसकी पूरी कहानी सुन चुका था। वह समझ गया कि कप्तान एंटिफोलस और कोई नहीं बल्कि एजियन का समुद्री तूफान में खोया हुआ पुत्र है।
उसने बड़े एंटिफोलस को अपने पास बुलाया और एजियन की पूरी कहानी सुनाई। अब कप्तान एंटिफोलस भी भावुक हो उठा और अपने पिता के गले से लग गया।
तभी पास खड़ी वृद्धा पुजारिन, जो इतनी देर से एजियन के चेहरे को गौर से देखे जा रही थी, रोते हुये आई और एजियन से बोली, “स्वामी, आप कहाँ चले गए थे ? मेरे बेटे भी मुझसे दूर न जाने कहाँ चले गए ? मैं आपकी अभागी पत्नी हूँ जो आपके वियोग में तड़प-तड़प कर दिन गुजार रही हूँ।”
एजियन ने वृद्धा पुजारिन की ओर गौर से देखा तो तुरंत पहचान गया कि वह उसकी खोई हुई पत्नी है। उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। तभी दोनों ड्रोमियो भी वहाँ आ गए। एजियन और उसकी पत्नी ने उन दोनों को भी गले से लगा लिया। एक बिछुड़े हुये परिवार का पुनर्मिलन हो गया। कप्तान की पत्नी भी पूरी बात समझ चुकी थी। वह भी जाकर अपने सास-ससुर के गले से लग गई।
फिर कप्तान एंटिफोलस ने राजा से प्रार्थना की कि वह पूरा जुर्माना भरने के लिए तैयार है। कृपा करके उसके पिता को छोड़ दिया जाये। लेकिन राजा ईश्वर की इस लीला को देखकर इतना चकित था कि उसने बिना जुर्माना लिए ही एजियन को मुक्त कर दिया।
इसके बाद पूरा परिवार खुशी-खुशी एकसाथ रहने लगा।