चरवाहे को दुल्हन मिली
एक बार एक ग्वाला जो की एक रेवड़ का चरवाहा था और नित्य मध्याह्न में अपने रेवड़ को पीपल के पेड़ के नीचे विश्राम करने के लिए ले कर आया करता था। एक दिन पीपल का पेड़ ग्वाला से बोला “यदि तुम मेरे जड़ में प्रतिदिन दूध उड़ेला करोगे तो मैं तुम को एक वरदान दूंगा,” इसलिए ग्वाला उस समय से पीपल के जड़ में प्रत्येक दिन दूध उड़ेलने लगा और कुछ दिनों के उपरांत उसने वहाँ धरती में एक विवर देखा; इसने सोचा की पेड़ के जड़ के फैलने के कारण जमीन में दरार पड़ रहा है लेकिन सच्चाई यह था कि वहाँ एक साँप दफन था, और वह दूध पीकर मोटा होते चला गया और वहाँ के भूमि में दरार पैदा करके एक दिन बाहर प्रकट हो गया; उसे देख कर ग्वाला भय से आक्रांत हो गया और ग्वाला ने समझा कि साँप अब निश्चित ही उसे निगल जाएगा। परंतु साँप ने कहा “डरो मत मैं निम्नस्थ दुनिया का बंदी था, और तुमने मुझ पर अनुग्रह करके मुझे यहाँ से स्वाधीन किया है। मेरी आकांक्षा है कि मैं तुम्हारे प्रति कृतज्ञता प्रकट करुँ और तुम को तुम्हारे इच्छानुसार इच्छित वरदान दूँ।” ग्वाला ने उत्तर दिया की साँप को ही यह चयन करना चाहिए की वह उसे क्या देना चाहता है; तब साँप ने उसे अपने और समीप बुलाया, और उसके अतिशय लंबे बालों पर एक जोर की फूँक छोड़ी और अब उसके बाल सोना के तरह चमकने लगा, और साँप ने कहा इस बाल के कारण उसे एक पत्नी प्राप्त होगी और ग्वाला अत्यंत शक्तिशाली हो जाएगा; और तुम जो कुछ बोलोगे वह घटित हो जाएगा। ग्वाला ने पूछा कैसी चीज़ें घटित होगी। साँप ने उत्तर दिया “यदि तुम कहोगे की अमुक व्यक्ति की मृत्यु हो जाएगी तो उसकी मृत्यु हो जाएगी और यदि तुम कहोगे की अमुक व्यक्ति जीवित हो जाए तो वह जी उठेगा। लेकिन तुम यह किसी को बिलकुल मत बताना; यहाँ तक की जब तुम विवाह करोगे तो अपनी पत्नी को भी मत बताना; यदि तुम ऐसा करोगे तो यह शक्ति लुप्त हो जाएगी।”
कुछ समय के बाद यह हुआ की ग्वाला एक नदी में स्नान कर रहा था; और स्नान करते समय उसका एक बाल टूट कर बाहर आ गया और एक माया ने उसे ले कर एक पते में लपेट कर बहते हुए पानी की धार में छोड़ दिया। नदी के नीचे की ओर एक राजकुमारी अपने सेविकाओं के साथ स्नान कर रही थी और उन्होने एक पुड़िया को सीधे राजकुमारी की ओर बह कर जाते हुए देखा और राजकुमारी ने उसको पकड़ लिया और उसको खोल कर देखा और उसमें बाल को पाया। यह बाल सोने के जैसा चमक रहा था और जब बाल की मापी की गई तो ज्ञात हुआ की बाल की लंबाई बारह पोरसा (पुराने जमाने का गहराई मापने का एक मानक एक पोरसा बराबर लगभग छह फिट) के बराबर है। इस प्रकार राजकुमारी ने बाल को अपने कपड़े में बाँध कर रख लिया और अपने घर वापस चली गई और अपने आप को अपने कक्ष में बंद कर लिया, और उसने खान-पीना और बात करना भी बंद कर दिया। उसकी माँ ने उसके दो सहचरीयों को उससे पूछने के लिए भेजा की क्या मामला है, और अंत में राजकुमारी ने कहा की वह न ही उठेगी और न ही भोजन करेगी जब तक की वे लोग उस सुनहले बाल वाले व्यक्ति को ढूंढ कर नहीं लाते हैं; यदि वह कोई पुरुष हुआ तब उसको उसका पति बनना होगा और यदि वह कोई स्त्री हुई तो उसे आकार उसके साथ उसकी सखी के तरह रहना होगा।
जब राजा और रानी ने यह सुना की एक सुनहरा बाल नदी में तैरता हुआ ऊपर से नीचे की ओर आया था तब वे अपनी बेटी के पास गए और अपनी बेटी को कहा की एक बार वे हरकारों को नदी के ऊपरी धारा की ओर उस सुनहले बाल वाले व्यक्ति को खोजने के लिए भेजेंगे। तब जा करके राजकुमारी आश्वस्त हुई और उठी और भात खाई। उसी दिन राजा ने हरकारों से कहा की वे जा कर नदी के किनारे के सभी गाँव में सभी ग्रामीणों से पूछ कर उस सुनहले बाल वाले व्यक्ति का पता लगाएँ; इस प्रकार हरकारों ने बाहर जाकर नदी के दोनों किनारों पर के गाँवों में उस सुनहले बाल वाले व्यक्ति के बारे में मालूम करने का प्रयास किए परंतु यह कोशिश निरर्थक सिद्ध हुआ और वे बिना किसी सूचना के वापस लौट आए; तब पवित्र भिक्षुणीयों को सुनहले बाल वाले व्यक्ति के तलाश में भेजा गया लेकिन वे भी विफल होकर लौट आए।
तब राजकुमारी ने कहा “यदि तुम लोग उस सुनहले बाल वाले व्यक्ति को नहीं खोज सकते हो तो मैं फांसी के फंदे पर लटक कर अपनी प्राण त्याग दूंगी !” उसी समय एक पालतू कौआ और एक पालतू तोता जो की जंजीर से बँधे वहीं बैठे हुए थे ने कहा “तुम लोग कभी भी उस सुनहले बाल वाले आदमी को नहीं खोज पाओगे; निश्चय ही वह घने जंगल के अंदर में रहता होगा; यदि वह गाँव में रहता होता तो इन लोगों को मिल गया होता, परंतु हम लोग अकेले ही उसको खोज के निकाल लाएँगे; हमारे जंजीर को खोल दो हम लोग उसके खोज में जाएँगे। इस प्रकार राजा ने उनको जंजीर से मुक्त करने का आदेश दिया और यात्रा के आरंभ करने से पहले उनको अच्छा भोजन दिया, क्योंकि वे लोग मनुष्यों की भांति अपना राशन नहीं ढ़ो सकते थे। तब कौआ और तोता दोनों हवा के घोड़े पर सवार हो कर नदी के ऊपर-ऊपर उड़ चले, और काफी लंबी खोज के बाद उन्होने सहसा ग्वाला को जंगल में पीपल के पेड़ के नीचे अपने मवेशियों के साथ आराम हुए देखा; इस प्रकार वे नीचे उतर कर पीपल के पेड़ पर बैठ गए और आपस में सलाह करने लगे की कैसे ग्वाला को फुसला कर यहाँ से ले जया जाए। तोता ने कहा उसे जानवरों के नजदीक जाने में डर लग रहा है और इसलिए तोता ने प्रस्ताव दिया की पेड़ के नीचे जहां ग्वाला की छड़ी और चादर के पास उसकी बांसुरी पड़ी हुई है कौआ नीचे उड़ कर वहाँ जाए और वहाँ से ग्वाला का बांसुरी को उठा लाए। इस प्रकार कौआ एक गाय से दूसरे गाय पर उड़ते हुए गया और अकस्मात लपक कर बांसुरी पर पंजा मारते हुए उसे अपने चोंच में उठा कर उड़ चला; जब ग्वाला ने यह देखा तो वह अपनी बांसुरी को वापस लेने के लिए कौआ के पीछे भागा और कौआ उसे लालच देते हुए एक के बाद दूसरे पेड़ पर फड़फड़ाता रहा और ग्वाला उसका पीछा करता रहा; और जब कौआ थक गया तब तोता ने कौआ से बांसुरी को ले लिया और इस प्रकार दोनों ग्वाला को राजा के शहर में ले आए, और वे दोनों उड़ कर राजमहल में जा पहुँचे और ग्वाला भी पीछा करता हुआ वहाँ चला गया, और वे दोनों उड़ कर उस कक्ष में प्रवेश कर गए जिस कक्ष में राजकुमारी थी और वहाँ उन्होने बांसुरी को राजकुमारी के हाथ में गिरा दिया, ग्वाला भी पीछा करता हुआ वहाँ कक्ष में चला गया और तब कक्ष का दरवाजा बंद हो गया। ग्वाला ने राजकुमारी से अपना बांसुरी लौटने को कहा तब राजकुमारी ने कहा यदि वह उससे विवाह करने का वचन देता है तो वह उसका बांसुरी वापस केरेगी वरना नहीं।
ग्वाला बोला वह कैसे अचानक उससे विवाह कर सकता है जबकि वह अभी तक उसकी मँगेतर भी नहीं है; लेकिन राजकुमारी ने कहा “हमलोग काफी लंबे समय से एक दूसरे के मँगेतर हैं; तुम को याद है एक दिन नदी में नहाते समय तुमने एक पता में अपने बाल को बाँध कर नदी के निचले धारा में बहने के लिए छोड़ दिया था; वही बाल हमलोगों का बिचौलिया बन कर हमारी सगाई करा चुका है।” तब ग्वाला को याद आया कैसे साँप ने कहा था कि उसका बाल के कारण उसको पत्नी मिलेगी और उसने राजकुमारी से पूछा मुझे वह बाल दिखाओ जो तुम्हें मिला है, इस प्रकार राजकुमारी ने उस बाल को ला कर दिखाया जो कि बिलकुल उसके बाल कि तरह लंबा और चमकीला था; तब उसने कहा हाँ “हम एक-दूसरे के हैं” और तब राजकुमारी ने दरवाजा खोलने के लिए आवाज लगाई और ग्वाला को अपने माता-पिता के पास ले गई और उनको कहा कि उसकी मनोवांछित इच्छा पूरी हुई अब यदि वे उसकी राजमहल में ब्याह के लिए राज़ी नहीं होंगे तो वह ग्वाला के साथ भाग जाएगी। इस प्रकार पाणिग्रहण का दिन निश्चित किया गया और निमन्त्रण पत्र बांटे गए और यह परिणय सम्पन्न हुआ। ग्वाला शीघ्र ही अपनी दुल्हन के अनुराग में खो गया और अपने मवेशी जिसे की उसने जंगल में बिना किसी के देखभाल में छोड़ आया था उसे भूल गया; लेकिन कुछ समय के बाद उसे मवेशियों की याद आई और उसने अपनी दुलहन से कहा की उसे अपने मवेशियों के पास वापस जाना है, क्या वह वहाँ उसके साथ जाना चाहेगी या नहीं?
राजकुमारी ने कहा वह अपने माता-पिता से अनुमति ले कर उसके साथ जाएगी; तब राजा ने उन दोनों को बिदाई का जेवनार दिया और ग्वाला को अपने राज्य का आधा हिस्सा भी दिया, और राजा ने ग्वाला को अपनी संपत्ति में से हाथी, घोड़ा, अन्य दूसरे मवेशी भी दिये और कहा “तुम स्वतंत्र हो और जो चाहो करो: तुम यहाँ भी रह सकते हो या अपने घर भी जा सकते हो; लेकिन यदि तुम यहाँ रहने का निर्णय करते हो तो मैं तुम्हें कभी वापस नहीं जाने दूंगा।” ग्वाला ने विचार किया और कहा वह अपने श्वशुर के साथ रहना पसंद करेगा लेकिन उसे किसी भी प्रकार से अपने मवेशियों को जिसे उसने अकेले जंगल में बिना किसी के देखभाल के छोड़ आया था वहाँ जंगल में जा कर यह देखा की सभी मवेशियों की मृत्यु हो चुकी है। यह देख कर ग्वाला का हृदय वेदना से द्रवित हो उठा और उसके नेत्र आँसू से भर गए वह विलाप करने लगा; तब उसको साँप का दिया हुआ वचन याद आया की वह किसी भी मृत शरीर में प्राण डाल सकता है और उसने अपने इस शक्ति के परीक्षण का निर्णय लिया।
इसलिए उसने अपनी पत्नी से कहा की उसे इन मृत गायों का उपचार करना होगा इन को दवाई देनी होगी और उसने जंगली जड़ी से मृत मवेशियों के नाक के पास हवा किया और जैसे ही उसने ऐसा किया, और साथ ही साथ उसने कहा “जी उठो” और, देखते-देखते एक के बाद एक सभी गायें उठ कर खड़ी हो गई और अपने बछड़ों के लिए राँभने लगी। साँप के वचन को सत्य साबित होते देख ग्वाला ऊंचे स्वर से कृतज्ञता प्रकट करने लगा और एक बड़े बर्तन में दूध भर कर पीपल के जड़ में उंडेल दिया और साँप दोबारा आया और उसने राजकुमारी के बालों पर भी फूँक मार कर उसे भी सोने की तरह चमकीला बना दिया।
अगले दिन उन लोगों ने अपने सभी गायों को इकट्ठा किया और गायों को हाँकते हुए वापस राजकुमारी के घर की ओर चल पड़े और ग्वाला और उसकी पत्नी श्वशुर द्वारा प्राप्त आधे राज्य पर शासन करते हुए प्रसन्नता पूर्वक वहाँ रहने लगे। और कुछ वर्षों के बाद ग्वाला को ऐसा लगा की वह साँप उसके माता-पिता की तरह थे और वह आतुरता में साँप से यथोचित ढंग से विदाई लिए बिना यहाँ आ गया है, इसलिए वह यह देखने के लिए फिर से गया की क्या वह साँप अभी भी वहाँ है; लेकिन वह साँप को वहाँ नहीं पाया और तब उसने पीपल के पेड़ से पूछा लेकिन पेड़ ने भी कोई उत्तर नहीं दिया, अतः वह निराश हो कर दुःखी मन से वापस घर आ गया।