राजा के कपड़े
बहुत दिनों पहले एक राजा था, जो नए-नए कपड़ों का इतना शौकीन था कि वह अपने राज्य की आमदनी अपने शौक को पूरा करने में ही लुटा देता था। उसकी कामना हर समय यह रहती थी कि लोग उसके कपड़ों को देखते ही रहें। उसे न सेना को मजबूत बनाने की फिक्र थी, न ही खेल-तमाशे में वह कोई रस लेता था, न घूमने-फिरने को ही उसका मन करता था। हां, अपने नए कपड़ों को दिखाने के लिए वह चाहे दस कोस चला जाता। दिन और रात के हर घंटे के लिए उसके पास अलग पोशाक थी। जिस तरह किसी राज्य में राजा के बारे में पूछने पर उत्तर मिलता है कि वह अपने मंत्रियों की बैठक में है, उसी तरह यदि कोई इस राजा के बारे में पूछता कि वह कहां है, तो उत्तर मिलता कि वह पोशाक बदलने वाले कमरे में है।
जिस शहर में राजा की राजधानी थी वह भरा-पूरा था और वहां रात-दिन आने-जाने वालों की चहल-पहल रहती थी। कोई ही दिन ऐसा गुजरता होगा, जिस दिन बाहर से आने वाले लोग सैकड़ों की तादाद में राजधानी के बाजारों में दिखाई न पड़ते हों। इन्हीं में एक दिन दो ठग भी आए। उन्होंने लोगों को बताया कि वे बुनकर हैं और ऐसा बढ़िया कपड़ा बुनना जानते हैं कि सारे संसार में दीया लेकर ढूंढ़ने पर भी नहीं मिल सकता-यहां तक कि कोई उसकी कल्पना तक नहीं कर सकता। न केवल उस कपड़े का रंग और डिजाइन ही सुन्दर होगा, बल्कि उसमें यह भी विशेषता होगी कि जो आदमी अपने पद के योग्य नहीं होगा या हद दरजे का बेवकूफ होगा उसे वे वस्त्र दिखाई तक नहीं देंगे।
राजा ने मन-ही-मन सोचा, ‘इस तरह के वस्त्र तो अनमोल होंगे। यदि मैं ऐसे कपड़े पहन लूं, तो मुझे पलक मारते उन लोगों का पता मिल जाएगा, जो अपने-अपने पदों के योग्य नहीं हैं। तब मैं अपनी प्रजा में से होशियार लोगों को भी चुन पाऊँगा। इनसे अपने लिए कपड़े बनवाता हूँ।’ और उसने उन ठगों को कपड़ा बनाने के लिए फौरन ढेर सारा रुपया दिया और कहा कि वे फौरन काम शुरू कर दें।
ठगों ने एक करघा लगाया, और ऐसे दिखाने लगे जैसे कपड़ा बुन रहे हों।पर करघा खाली था। उन्होंने राजा से बढ़िया रेशम और सोने के तार माँगे थे पर उन्हें इस्तेमाल करने की जगह अपने झोलों में छिपा लिया। देर रात तक वे खाली करघे के सामने बैठकर ऐसा जाहिर करते थे जैसे कपड़ा बुन रहे हों।
राजा ने सोचा, देखूँ तो सही कि वे कैसे काम कर रहे हैं, पर यह सोचकर भी उसका दिल अजीब ढंग से धड़कने लगा कि जो बेवकुफ और अपने पद के लिए लायक नहीं है वह उस कपड़े को देख भी नहीं पाएगा। उसे यह चिंता नहीं थी कि उसके अपने साथ ऐसा होगा। फिर भी उसने सोचा कि पहली बार यह देखने के लिए कि वे कैसा काम कर रहे हैं, किसी और को भेजना चाहिए। पूरे शहर में सबने कपड़े के जादुई गुण के बारे में सुना था। सभी यह जानने को बेचैन थे कि उनका पड़ोसी कितना बेवकूफ और बेकार है।
राजा ने सोचा, मैं अपने वफादार प्रधानमंत्री को भेजता हूँ, वह देखकर आएगा कि जुलाहों का काम कैसा चल रहा है। वह होशियार और अपने काम में लायक आदमी है। अगर कोई जाँच कर सकता है तो यह वही होगा।
प्रधानमंत्री अच्छे स्वभाव वाला बूढ़ा आदमी था। जब वह उस कमरे में पहुँचा जहाँ जुलाहे काम कर रहे थे तो उसने देखा कि करघा खाली था। उसने अपनी आँखें बंद कीं, फिर खोलीं, और सोचने लगा, ‘हे भगवान, मुझे बचाओ! मुझे तो एक भी चीज़ दिखाई नहीं दे रही।’ फिर भी वह कुछ बोला नहीं।
ठगों ने उसे करघे के पास बुलाया जिससे वह उनके बनाए कपड़े का रंग और डिज़ाइन देख सके। खाली करघे की तरफ इशारा करके उससे देखने को कहा। बेचारा प्रधानमंत्री, मंत्री करघे के एकदम निकट आकर आंखें फाड़-फाड़कर देखने लगा, मगर उसे फिर भी कुछ दिखाई नहीं दिया। दिखाई तो तब देता, जब वहां कुछ होता। उसने मन में सोचा कि क्या ऐसा भी संभव हो सकता है कि मैं मूर्ख होऊं? मुझे तो इस बात का गुमान तक भी नहीं था। मगर खैर, अब तो यह बात किसी पर प्रकट नहीं होनी चाहिए। और भला क्या ऐसा भी हो सकता है कि मैं अपने पद के योग्य न होऊं? ओह! यह बताने से तो कतई काम नहीं चलेगा कि मुझे कपड़ा दिखाई नहीं देता।
“अरे, आपने हमारे काम के बारे में अभी तक भी कुछ नहीं बताया!” दोनों ठगों में से एक बोला।
“ओह! यह कपड़ा तो बहुत सुन्दर है, बहुत लुभावना है।” बूढ़े मंत्री ने कहा। फिर और भी निकट से अपने चश्मे को संभालते हुए उसने कहा, “डिजाइन भी सुन्दर है और रंग का तो कहना ही क्या! अब मैं राजा साहब को कपड़े का राई-रत्ती हाल बता सकता हूं। बहुत शानदार कपड़ा है।”
“हमें यह जानकर बहुत प्रसन्नता हुई,” दोनों बुनकर बोले। फिर उन्होंने कपड़े के डिजाइन और रंग की बारीकियां मंत्री को समझाने का प्रयत्न किया। मंत्री सब ध्यान देकर सुनता रहा, जिससे राजा साहब के सामने कपड़े की सुन्दरता बयान करते समय वह सारी बातें बता सके और उन्हीं शब्दों का प्रयोग कर सके, जिनके द्वारा दोनों ठग कपड़े की बारीकियां समझा रहे थे। उसने ऐसा ही किया भी ।
अब दोनों ठगों ने और अधिक रेशम, सोने के तारों और धन की फरमाईश की तुरन्त सब चीज़ें उन्हें दी गईं। उन्होंने सब चीज़ों का भी निवाला बनाया और आराम के साथ फिर अपने निरर्थक धंधे में जुट गए। वही ‘खटाखट, खटाखट’ और हवा की बुनाई जारी रही।
एक दिन राजा ने एक दूसरे कुशल मंत्री को यह देखने के लिए भेजा कि बुनकरों का काम कैसा चल रहा है। उसके साथ भी बिलकुल वैसी ही घटना घटी । वह यह देखकर हक््का-बक्का रह गया कि करधों पर कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा।
“क्या खयाल है आपका? कपड़ा सुन्दर है या नहीं?” दोनों ठगों ने उससे भी यही सवाल किया और साथ-के-साथ उस झूठ-मूठ के कपड़े के डिजाइन और रंगों की सुन्दरता बखानना आरंभ कर दिया।
‘मैं मूर्ख तो नहीं हूं’, उस मंत्री ने सोचा, “न ही मैं अपने पद के लिए अयोग्य हूं। हां, यह हो सकता है कि राजा साहब ने जिस काम के लिए मुझे अब भेजा है मैं उसी के अयोग्य होऊं। है तो यह बड़ी अजीब बात, पर पता इसका किसी को नहीं चलना चाहिए इसलिए उसने भी कपड़े की तारीफ और उसके रंगों तथा डिजाइन को खूब सराहा। फिर राजा के पास जाकर बोला, “कपड़ा वास्तव में बहुत ही प्यारा है और आज तक किसी ने ऐसा कपड़ा नहीं देखा होगा।”” शहर में जिसके मुंह से सुनो कपड़े की तारीफ हो रही है।
अब तो राजा ने उसे स्वयं भी देखना चाहा। बाद में तो सामने आएगा ही, मगर करघे पर बुना जाता देखने में और ही बात थी। इसलिए राजा ने बहुत से सभासदों को अपने साथ लिया और कपड़ा देखने के लिए चल दिया। उन सभासदों में वे ईमानदार और बुद्धिमान मंत्री भी थे, जो पहले कपड़ा देखने गए थे। जब राजा दोनों ठगों के पास पहुंचा तो उसने देखा कि दोनों-के-दोनों पसीने-पसीने हो रहे हैं और तेज़ी के साथ मशीन की तरह अपना काम कर रहे हैं, हालांकि उनके पास एक भी सूत का रेशा नहीं था।
“कितना शानदार कपड़ा है!” दोनों मंत्रियों ने कहा, “महाराज, तनिक और निकट चलकर देखिए और इस कपड़े के डिजाइन और रंगों को सराहिए।” उन्होंने खाली करघों की ओर इशारा किया। वे समझते थे कि चाहे उन्हें कपड़ा दिखाई न दे रहा हो, मगर औरों को तो जरूर दिखाई दे ही रहा होगा।
“यह क्या? राजा सोचने लगा, ‘वाह! यहां तो कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा है। वह तो बड़ी गड़बड़ की बात हुई। क्या यह हो सकता है कि मैं बेवकूफ होऊं या राजा होने की योग्यता मुझमें न हो। यह तो मेरे लिए बड़ी खराब बात होगी और सारे राज्य में मेरी बदनामी हो जाएगी ।” इसलिए उसने प्रकट में कहा, “हां सचमुच कपड़ा बहुत सुन्दर है। मैं इसे बहुत पसन्द करता हूं।” और वह खाली करघों की ओर देख-देखकर इस तरह मुस्कराने लगा, मानो डिजाइन की परख करने के बाद वह उस पर मोहित हो गया हो। यह तो वह किसी भी तरह स्वीकार करने को तत्पर नहीं था कि उसे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा है। लोगों ने “वाह-वाह” की झड़ी लगा दी। जितने मुंह उतनी बातें-‘कपड़ा सुन्दर है, बढ़िया है, शानदार है, रोबीला है…ऐसा है, वैसा है..’ और सभी प्रसन्न हो रहे थे, मानो उन्होंने कपड़े को अपनी आंखों देखा है। राजा ने तुरन्त उन्हें ‘राजकीय बुनकर’ के पदक प्रदान किए और आज्ञा दी कि उन पदकों को वे अपने-अपने कोटों के काजों में लगा लें। राजा के सभासदों ने उसे सलाह दी कि उन मूल्यवान कपड़ों को आने वाले महासम्मेलन के दिन पहना जाए। राजा ने उनकी बात मान ली।
जिस दिन महासम्मेलन का जुलूस निकलना था उससे पहली रात को दोनों ठग जागकर काम करते रहे और बीस हंडे उन दोनों ने जलवाए रखे! हर आदमी देख सकता था कि वे दोनों राजा के नए कपड़े तैयार करने में ज़मीन-आसमान एक कर रहे हैं। उन लोगों ने ऐसा दिखाया मानो कपड़ा करघों पर से उतर गया है। अब उन्होंने बड़ी-बड़ी तेज़ कैंचियां लीं और बड़े कायदे से हवा में ही चलाया। फिर बिना धागे की सूईयां लेकर ऐसा दिखावा किया, मानो कपड़े सिए जा रहे हैं। अन्त में जुलूस के समय से थोड़ी ही देर पहले वे हाथ-पैर झाड़कर निबट गए, मानो बड़ा भारी किला फतह कर डाला हो। उन्होंने संदेशवाहक से कहा, “देख नहीं रहे हो कपड़े तैयार हो गए हैं? राजा साहब को सूचना दो।”
संदेशवाहक तुरन्त जाकर राजा को खबर दे आया, “महाराज, बहुत बढ़िया कपड़े सिलकर तैयार हो गए हैं। मैंने अपनी आंखों से देखे हैं ।”
राजा अपने साथियों को लेकर स्वयं तैयार कपड़ों को देखने के लिए आया। ठगों ने अपने एक-एक हाथ फैलाकर इस तरह दिखाए, मानो बड़े कीमती कपड़े पहन रखे हों। एक बोला, “देखिए, महाराज, इस प्रकार के कपड़े सारी दुनिया में देखने को नहीं मिलेंगे। यह देखिए, गले की काट बिलकुल नए तर्ज की है और आस्तीन के घुमाव पर झोल की छाया तक नहीं है और कमर तो मानो स्वयं राजा की कमर का मुकाबला कर रही है। हुजूर, इन कपड़ों को पहनकर न केवल आप अपने राज्य के राजा दिखाई देंगे, बल्कि फैशन के राजा भी कहलायेंगे। इन कपड़ों की बारीकी को देखिए। इसकी वजह से इनमें वज़न भी मकड़ी के जाले से अधिक नहीं है। जो उन्हें पहनता है उसे यही मालूम नहीं होता कि वह कुछ पहने हुए भी है। लेकिन इसी में तो इन कपड़ों की खूबसूरती छिपी हुई है।’”
“जी हां, यह बात सौ फीसदी सही है।” सारे सभासद बोल उठे, मगर वास्तव में उन्होंने देखा कुछ नहीं था, क्योंकि था ही कुछ नहीं, जिसे वे देखते।
“अगर महाराज अपने कपड़े उतार डालें, तो हम यहीं शीशे के सामने महाराज को ये नए शानदार वस्त्र पहना दें।” ठगों ने कहा।
राजा ने अपने सारे कपड़े उतार डाले। ठगों ने एक के बाद एक राजकीय वस्त्र राजा को पहनाने का दिखावा किया और राजा भी जैसे-जैसे वे कहते गए वैसे-वैसे हरकत करता गया। यही नहीं, लोगों को यह दिखाने के लिए कि वह अपने नए वस्त्रों को कितने ढंग से पहन रहा है, शीशे के सामने खड़े राजा साहब कभी झुकते, कभी सीधे होकर कॉलर झटकाते मालूम होते।
सभी लोग चिल्ला उठे, “वाह-वाह! कितने नफ़ीस कपड़े हैं! कमाल है, ऐसा नमूना आज तक नहीं देखा था। रंग तो इन्द्रधनुष को मात करते हैं। डिजाइन आज तक ऐसा नहीं निकला था। बहुत शानदार राजसी पोशाक है।”
मुख्य चोबदार ने कहा, “महाराज, आपका छत्र आपको ले जाने के लिए बाहर प्रतीक्षा कर रहा है।”
“ठीक है, हम तैयार हैं!” राजा ने कहा, “क्यों, फिट हो गए न?” और वह कॉलर ठीक करता हुआ शीशे में अपने को अकड़कर देखने लगा, मानो उन नए वस्त्रों में अपने जंचाव को स्वयं भी जांच रहा हो।
राजा के लम्बे लटकते चलने वाले चोगे को उठाने वाले दासों ने नीचे झुककर ऐसा दिखावा किया, मानो सचमुच पोशाक को कायदे से उठाकर चल रहे हों। वे भी यह नहीं चाहते थे कि कोई यह कह सके कि उन्होंने हाथ में कुछ उठा नहीं रखा है अथवा उन्हें वस्त्र दिखाई नहीं देते।
इस प्रकार शानदार छत्र के नीचे, चंवर डुलवाता हुआ राजा जुलूस के आगे-आगे चला। सड़क के दोनों ओर खड़े तथा खिड़कियों पर लदे स्त्रियों और पुरुषों ने गला फाड़-फाड़कर राजा के कपड़ों की प्रशंसा की, “क्या सुन्दर और फिट पोशाक है!” क्या शानदार फैशन है! संसार का कोई वस्त्र इनका मुकाबला नहीं कर सकता। कितना सुन्दर चोगा लटकता जा रहा है।”
वास्तव में कोई भी यह नहीं चाहता था कि वह जो काम कर रहा है उसके अयोग्य ठहरा दिया जाए अथवा मूर्ख मान लिया जाय । इसलिए राजा ने आज तक जितनी पोशाकें पहनी थीं, उनमें से यह पोशाक सबसे अधिक सफल सिद्ध हुई। यह दूसरी बात है कि पोशाक वास्तव में थी ही नहीं।
अन्त में एक छोटे-से बच्चे ने चिल्लाकर कहा, “देखो तो, राजा नंगा है।”
‘लो, सुनो तो इस अबोध बालक की बात!’ बच्चे का पिता घबराकर बोला। परन्तु बात ने जड़ पकड़ ली और लोग एक-दूसरे के कान में खुसर-फुसर करने लगे, “सच ही राजा नंगा है।”
अन्त में सब लोग चिल्ला पड़े, “राजा ने कोई कपड़ा नहीं पहन रखा है। सब वहम है।”
राजा बड़े चक्कर में पड़ा, क्योंकि मन-ही-मन वह समझ रहा था कि वे लोग सही कह रहे हैं। मगर उसने सोचा कि जब इसे शुरू ही कर दिया गया है, तो अन्त करके छोड़ना चाहिए, नहीं तो बड़ी हेठी होगी…जुलूस आगे बढ़ता चला गया और दास लोग उस पोशाक को थामे लिए चलते रहे, जो थी ही नहीं।