लोककथा: सोने का हार
बहुत पुरानी बात है। एक गांव में एक ब्राह्मण का बेटा बिलकुल नकारा था। कोई भी काम नहीं करता था। एक दिन उसे जब मां ने स्कूल भेजा तो वह स्कूल जाने की बजाए घर की छत में छुप गया और वहां की चिमनी से मां को रोटी बनाते देखता रहा कि मां ने कुल १० रोटियां बनाई हैं, जबकि मां सोचती रही कि वह स्कूल गया है। शाम को उस लड़के ने मां से कहा कि आपने आज १० रोटियां बनाई है। मां यह सुनकर आश्चर्यचकित हो गई कि आखिरकार स्कूल गये बच्चे ने ऐसा कैसा जान लिया।
यह बात आग की तरह पूरे गांव में फैल गई कि ब्राह्मण का बेटा ज्योतिषी हो गया है। यह बात राजा के पास तक पहुंच गई। उसी दौरान राजा का हार चोरी हो गया था। राजा ने ब्राह्मण के नालायक बेटे को बुलाया और कहा कि अपने ज्योतिष से पता लगाओ कि हार किसने चोरी किया है, सही बताओगे तो आधा राज्य व अपनी बेटी का हाथ दे दूंगा, अन्यथा फांसी पर चढ़ा दूंगा।
राजा के आदेश से वह डर गया। भय के कारण उसे रात में नींद नहीं आ रही थी। इसलिए वह गाने लगा कि ‘ आ जा रे निंदिया (नींद)आ जा, क्योंकि कल तो फांसी चढ़ना ही है। वह रात को बैठे-बैठे यही दोहराता रहा। आधी रात को उसने देखा कि सामने एक व्यक्ति हार लेकर खड़ा है। दरअसल वह राजा का नौकर था और उसका नाम निंदिया था। ब्राह्मण के बेटे के मुंह से अपना नाम सुनकर वह डर गया कि उसका राज खुल गया है।
फिर तो ब्राह्मण के नालायक बेटे का कल्याण हो गया, उसका भाग्य ही खुल गया। राजा का हार मिल जाने के बाद राजा का आधा राज्य भी मिल गया और राजा की बेटी के साथ उसकी धूमधाम से शादी भी हो गई।