श्रापित गुड़िया जंगलों की रहस्यमयी कहानिया।

गर्मियों की छुट्टियां आ गयी थी।हमने कही घूमने का प्लान बनाया पर कोई भी जगह फाइनल नहीं हो पा रही थी।
कभी पहाड़ियों की ठंडी वादियों की प्लानिंग करते तो कभी सागर की लहरें हमे खिंचती।अभी हम इन्ही विचारों में गुथमगुथा कर रहे थे तभी एक हमारे बहुत खास रिश्तेदार का फोन आया।

वो इम्फाल में रहते थे उन्होंने हमें इन गर्मियों की छुट्टी में वहां आने का निमंत्रण दिया बहुत मना करने के बाद भी वो मेजबानी पर डटे रहे।खैर हमनें 4 दिनों के लिए वहां जाने का निश्चय कर लिया।
हमने 4 दिन के हिसाब से पैकिंग वगैरह कर ली और अगले दिन हम मैं और मेरी पत्नी वहां को निकल पड़े।रास्ते मे सुरम्य वादियों के दर्शन करते हुए समय का पता ही नहीं चला  कि कब हम वहाँ पहुंच गए।
मेजबान महोदय ने हमारा जमकर स्वागत किया और दूसरे दिन हमसब आस पास के सुंदर स्थलों के दर्शन किये।कुल मिलाकर काफी आनंद आया।शाम का समय हो रहा था तभी   जतिन (हमारे मेजबान) ने मुझे दूर सड़क पर साइकिल से  आते हुए एक युवक को दिखाया और बताया ये राजेश है।बड़ा ही अच्छा पर अजीब इंसान हैं।महाशय के पास एक भी घडी नहीं है मगर हर शाम 4 बजे मुझसे मिलने आ जाता है।इन्हें देखकर तो हम अपने घड़ियों के टाइम भी मिला लेते है।लोग इन्हें इनके नाम से कम और डॉक्टर के नाम से ज्यादा जानते हैं।
क्या ये कोई डॉक्टर है या पी एच डी किये हुये है?मैंने पूछा
तबतक राजेश सड़क किनारे सायकिल खड़ी कर हमारे पास आ गए थे उन्होंने जतिन और मुझसे गर्म जोशी से हाथ मिलाया और कहा “आपके आने की खबर मुझे जतिन जी ने कल ही दे दी थी।मिलने की लालसा में मैं आज चला आया”।
इसके बाद हमने कुछ औपचारिक बात चीत की और चाय पीने का दौर चला।जाते जाते रमेश ने बहुत ही जोर शोर से अपने घर आने का न्योता दिया।हमने अगली सुबह उसके घर जाने का वादा किया तब जाके उसने हमारा पिंड छोड़ा।

अगले दिन भी हमलोग आसपास के बचे खुचे दर्शनीय स्थलों को देखने के बाद शाम में डॉक्टर के घर पहुँचे।जतिन जी को कुछ काम था तो वो हमे डॉक्टर के यहां छोड़कर चले गए।

डॉक्टर ने अभी शादी नहीं कि थी वो अपने घर में अकेला ही रहता था।एक मेड थी जो घर के काम धाम कर जाया करती थी जैसे खाना बनाना कपड़े धोना, घर की साफ सफाई आदि।घर साफ सुथरा और करीने से सजाया गया था।डॉक्टर को पढ़ने का बहुत शौक था इसलिए उनके पास किताबो का ढेर सारा संग्रह था।उसमें बहुत सी पुरानी किताबे भी थी।मेरी श्रीमती जी को किताबो का बहुत शौक था वो ये संग्रह देख कर फूली नहीं समा रहीं थीं।

डॉक्टर ने जुश का इंतजाम हमारी श्रीमती जी के लिए और अपने और मेरे लिए अंगूर की बेटी का इंतजाम कर रखा था।
खैर जब हमारा पीने का दौर चलने लगा तब श्रीमती जी जूस का गिलास लेकर किताबें देखने लगी।डॉक्टर ने अपना घर बहुत करीने से सजा रखा था।उसके घर मे तरह तरह की मूर्तियां स्थापित किया हुआ था।

उन मूर्तियों में एक अजीब सी आदिवासी लड़की की मूर्ति थीं जो किसी आदिवासी सम्प्रदाय की देवी सी लग रही थीमेरी श्रीमती जी किताबें के देखने के बाद टहलते हुए उन मूर्तियों के पास  पहुँची और मूर्तियों को उठा कर देखने परखने लगी।वो मुर्तिया काफी प्राचीन लग रहीं थी हम इधर बातो में व्यस्त थे और श्रीमती जी मूर्तियां देखने में।धीरे धीरे जब वे उस आदिवासी देवी नुमा लड़की की मूर्ति के पास पहुँची तभी डॉक्टर ने चिल्लाते हुए कहा “उस मूर्ति को हाथ मत लगाना आप”
ये सुनकर मेरी पत्नी पीछे आ गयी और हमदोनों डॉक्टर को घूरने लगे कि क्या हो गया हमेसा शांत हसमुख रहने वाले डॉक्टर के चेहरे पर भय की लकीरें और आंखों में दहशत थी।वो जैसे किसी गहरे कुए से बोल रहा हो हाथ मत लगाना उस मूर्ति को बड़ी मनहूस है वो मूर्ति।

मै और मेरी पत्नी डर गए।पर हमें ऐसी किसी बात का यकीन नहीं था तो हमने डॉक्टर से उस मूर्ति के रहस्य को बताने की इच्छा जाहिर की।मेरी पत्नी जो अबतक घूम रही थी पास आकर सोफे पर बैठ गयी और डॉक्टर के कुछ कहने का इंतजार करने लगी।

हमने पूछा क्या हुआ राजेश जी आप इतने जोर से क़यू चीखें?आपने तो हमें डरा ही दिया।राजेश जी ने बताना चालू किया।यह एक बहुत पुरानी बात है जब मैंने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद कोइ नौकरी की तलाश कर रहा था मुझे एक सौदागर के पास लिखा पढ़ी का काम मिल गया था।सौदागर का काम अलग अलग जगहों पर जाकर समान बेचने का काम था उसके साथ उसके नौकर भी जाते थे।ऐसे ही किसी सिलसिले में हमे नेपाल की तराइयों में जाना पड़ा।
वहां कुछ नग हिरे आदि खरीदारी करने के बाद हमे वापसी का सफर तय करना था।

खरीदारी करते करते काफी समय बीत गया ।काफी खरीदारी करने के बाद सेठ ने निश्चय किया कि इतना समान लेकर हमे मंजिल की ओर निकलना चाहिए ।रात में कही किसी सराय में ं विश्राम कर लिया जाएगा।हमलोग चल पड़े हमारे साथ सामान को ढोने के लिए सेठ जी के 2 नौकर भी थे।चलते चलते हम सब एक जंगली इलाके में पहुंच गए।

हमारे चलते हुए काफी समय हो गया था रात होने को आई थी।रात ठहरने के लिए हमे आस पास कोई सुरक्षित जगह देखने लगे।आस पास कोई नजर नहीं आ रहा था।सेठ के नौकरों में दिनु जो उन्ही इलाके का था उसने बताया यही कुछ दूरी पर कोई आदिवासी कबीले के लोग रहते है।उनके यहां रात को रुकने का इंतजाम किया जा सकता है।हमलोग दिनु के बताए हुए दिशा में चल पड़े।करीब एक घंटे के बाद अंघेरे जंगल में हमे वो कबीला दिखाई पड़ा।

हममें से केवल दिनु को उनकी भाषा आती थी दिनु आगे जाकर कबीले के सरदार से बातचीत करने लगता है।थोड़ी देर बाद वो वापस आया और हमसे कहा “सरदार ने हमे रात में यहाँ रुकने का आश्वासन दे दिया है बदले में हमे उन्हें कुछ इनाम देना होगा” हमलोग आगे जाकर सरदार से मिले और उन्हें शहर से लाये कुछ सामान दिया ।सरदार बहुत खुश हो गया उनके कबीले वालो ने हमारे स्वागत के लिए बकरे का मिट बनाया और देशी शराब के साथ हमे डिनर में दिया।खा पीकर नाच गाने का प्रोग्राम हुआ।जो काफी ही आनंदित कर रही थी।

रात को हमलोग कबीले के झोपड़ी में ही सोने गए वहीं पर ये मूर्ति रखी हुयी थी।हमारे सेठ को ये बहुत भा गयी।सेठ ने दिनु की मदद से सरदार से वो मूर्ति देने को कहा।और ये भी बोला कि इसके बदले व्व कितना भी पैसा सरदार को दे सकता है।
सरदार ये सुनकर बहुत गुस्सा हो गया और कुछ बोलबोल कर चिल्लाने लगा।दिनु ने उससे कुछ कहा।तब जाकर सरदार शांत हुआ मगर हमारी तरफ घूर कर देख रहा था।
दिनु ने बताया सरदार बहुत नाराज है ये मूर्ति उनके कुलदेवी की है।वो किसी भी कीमत पर इस मूर्ति को किसी को नहीं देगा।अगर ये मूर्ति उनके कबीले के बाहर चली जायेगी तो ये कबीला तो नष्ट होने से कोई नहीं बचा पायेगा।और तो और जिसके पास ये मूर्ति रहेगी उसको मूर्ति का श्राप लगेगा।

सेठ जी का दिल उस मूर्ति पर आ चुका था वो किसी भी कीमत पर उस मूर्ति को पाना चाहता था।जब हमलोग सो गए तो सुबह अंधेरे में किसी ने मुझे जगाया और कहा चलो यह से निकलो।हमलोग निकल पड़े।थोड़ी दूर निकल जाने पर मैंने देखा वो मूर्ति सेठ के नौकर दिनु के पास है।मैंने पूछा सरदार कैसे इस मूर्ति को देने के लिए मान गया।दिनु ने गंभीर हो कर बताया सरदार को रात में ही मारकर ये मूर्ति हमने हथिया लिया और सुबह अंधेरे में बिना किसी को पता चले काबिले से निकल पड़े।अब मुझे काटो तो खून नहीं वाली स्तिथि में पहुच चुका था।हम कबीले वालों के डर से दिनभर चलते ही रहे।शाम तक काफी दूर निकल आए ।

शाम होते ही हमने एक सराय में रुकने का फैसला किया और मुख्य रास्ते से हटकर एक सराय में रैनबसेरा करने लगें।मै और सेठ जी एक कमरे में और दोनों नौकर दूसरे कमरे में पड़े सो रहे थेरात के करीब 3 बजे की बात होगी।दिनु के कमरे को किसी ने ठक ठकाया और किसी औरत ने उसका नाम पुकारा।दिनु की नींद खुल गयी उसने सोचा इतनी रात गए कौन मुझे पुकार रहा है?शायद थकान के ककारण भ्रम हो गया है वो फिर सोने की कोशिस करने लगा।थोड़ी देर बाद ठक ठक की आवाज़ फिर से आई जो काफ़ी साफ थी और उसी औरत की आवाज आई।दिनु ने ध्यान दिया तो वो आवाज़ उसे जानी पहचानी लगी।ये आवाज़ उसके पत्नी की थी।उसे बहुत ही आश्चर्य हुआ कि उसकी पत्नी यहाँ इतनी रात को कैसे पहुच गयी और यहाँ क्या कर रही हैं?

क्या होगा आगे जानने के लिए पढ़े श्रापित गुड़िया 2 जंगलों की रहस्यमय कहानिया

क्रमशः

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