संत तुकाराम

आज हम संत तुकाराम महाराजजी की कथा सुनेंगे । संत तुकाराम महाराज जी की भगवान पांडुरंग के प्रति अनन्‍यसाधारण भक्‍ति थी । उनका जन्‍म महाराष्‍ट्र के देहू गांव में हुआ था और वे सदेह वैकुंठ गए थे । अर्थात वे देहत्‍याग किए बिना अपने स्‍थूल देह के साथ भगवान श्रीविष्‍णुजी के वैकुंठधाम गए थे ।

उनके वैकुंठ-गमन की तिथी ‘तुकाराम बीज’ के नाम से जानी जाती है । आज हम उनके जीवन के कुछ प्रसंग सुनेंगे ।

संत तुकाराम महाराजजी का परंपरा से सावकारी का व्‍यवसाय था । एक बार उनके गाव में सुखा पड गया था । तब लोगों की दीन स्‍थिती देखकर उन्‍होंने अपने घर का सारा धन गांव के लोगों में बाट दिया । कर्ज के बदले में लिए गए लोगों की भूमि के कागज उनके पास थे । वो उन्‍होंने इंद्रायणी नदी में बहा दिए और लोगों को कर्ज से मुक्‍त किया । लोगों में धन बांटने के बाद वे विरक्‍त हो गए । उनकी घर तथा संपत्ति में से रूचि पूर्णतः नष्‍ट हो गई ।

संत तुकाराम महाराज के गुरु थे, सद़्‍गुरु बाबाजी चैतन्‍य ! एक दिन उन्‍होंने तुकाराम महाराजजी को स्‍वप्‍न में दृष्टांत देकर गुरुमंत्र दिया । पांडुरंग के प्रति असीम भक्‍ती के कारण उनकी वृत्ति विठ्ठल चरणों में स्‍थिर होने लगी । आगे मोक्षप्राप्‍ति की तीव्र उत्‍कंठा के कारण तुकाराम महाराज ने देहू के निकट एक पर्वत पर एकांत में ईश्‍वर साक्षात्‍कार के लिए निर्वाण प्रारंभ किया । वहां पंद्रह दिन एकाग्रता से अखंड नामजप करने पर उन्‍हें दिव्‍य अनुभव प्राप्‍त हुआ ।

बाद में उन्‍हे भजन और अभंग स्‍फुरने लगे । उनका एक बालमित्र उनके बताएं प्रवचन, अभंग लिखकर रखता था । तुकाराम महाराजजी अपने अभंगों से समाज को वेदों का अर्थ सामान्‍य भाषा में सिखाते थे । यह बात बाजू के वाघोली गाव में रामेश्‍वर भट नामक एक व्‍यक्‍ति को चूभ रही थी । तुकाराम महाराजजी की बढती प्रसिद्धी से वह क्रोधित था । इसलिए उसने संत तुकारामजी के अभंग की गाथा इंद्रायणी नदी में डुबों दी । इससे तुकाराम महाराजजी को अत्‍यंत दु:ख हुआ । उन्‍होंने भगवान विठ्ठल को अपनी स्‍थिती बताई । अपने बालमित्र से कहां, ‘‘यह तो प्रभु की इच्‍छा होगी ।’’ ऐसे १२ दिन बीत गए । १३ वे दिन गाथा नदी के पानी से उपर आकर तैरने लगी । यह देख रामेश्‍वर शास्‍त्री को अपने कृत्‍य का पश्‍चाताप हुआ और वे संत तुकाराम महाराजजी के शिष्‍य बन गए ।

तुकाराम महाराज जी भगवान पांडुरंग का नामस्‍मरण कर अखंड आनंद की अवस्‍था में रहते थे । उन्‍हें किसी वस्‍तु की कोई अभिलाषा नही थी । केवल लोगों के कल्‍याण के लिए ही वे जीवित थे । स्‍वयं भगवान श्रीविष्‍णु का वाहन उन्‍हे वैकुंठ ले जाने के लिए आया था । जाते समय उन्‍होंने लोगों को अंतिम उपदेश करते हुए कहां, ‘बंधुओ, जीवन व्‍यतित करते समय अखंड भगवान का नामस्‍मरण करें । अखंड नामजप करना यह भगवान तक जाने का केवल एक अत्‍यंत सुलभ मार्ग है । यह मैने स्‍वयं अनुभव किया है । नामजप करने से भगवान के प्रति श्रद्धा बढती है और मन भी शुद्ध होता है ।’’

तभी श्रीविष्‍णुजी का गरुड वाहन उन्‍हें लेने के लिए आता दिखाई दिया । भगवान श्रीविष्‍णुजी के अत्‍यंत सुंदर रूप का वर्णन करते हुए और उपस्‍थित लोगों को प्रणाम करते हुए तुकाराम महाराजजी भगवान के वैकुंठधाम गए । वह दिन था, फाल्‍गुन कृष्‍ण पक्ष द्वितिया ! भक्‍ति सिखानेवाले संत तुकाराम महाराजजी के चरणों में हम सभी कोटी कोटी वंदन करते है ।

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