एक विवाह ऐसा भी।
रश्मि अपने माता पिता की इकलौती सन्तान थी।उसके पिताजी गवर्मेन्ट अफसर थे।माताजी घर संभालती और रश्मि की देखभाल करती।जब रश्मि का जन्म हुआ तब उसकी सुंदरता पे मुग्ध होकर डॉक्टर साहब ने ही उसे रश्मि नाम दे दिया।माता, पिता जी ने इसी नाम को अपना सौभाग्य समझ कर अंगीकार कर लिया और उस प्यारी नन्ही परी का नाम रश्मि पड़ गया।
रश्मि के माता पिता ने घर वालों की मर्जी के खिलाफ प्रेम विवाह किया था जिससे नाराज होकर उनके घरवालों ने उनसे सारा रिश्ता खत्म कर लिया था।उनके जीवन मे बुजुर्गों के आशीर्वाद की कमी हमेशा खलती थीं।रश्मि के जन्म पर भी उनके घर वालो का दिल नही पसीजा।इन दोनों ने प्रेम विवाह तो किया ही था अंतरजातीय विवाह भी था ये।उनके रूढ़िवादी परिवार ने इन दोनों का पूर्णरूप से परित्याग कर दिया था।इन दोनों ने कई बार कोशिस की अपने परिवार वालो से मिलने की,क्षमा याचना की मगर कोई फायदा नहीं हुआ।अंत में अपनी नियति मान कर इन्होंने कोशिस छोड़ दी।
रश्मि बचपन से ही बड़ी नटखट थी।उसकी शरारते और मोहक मुस्कान सबका दिल जीत लेते थे।
पड़ोसी हो या घर के लोग सब उसपर जान छिड़कते थे।माता पिता के तो आंखों का तारा थी रश्मि।धीरे धीरे रश्मि बड़ी होती गई।
वो दिन भी जल्दी आ गया जब रश्मि को पहली बार स्कूल जाना था।उसदिन मम्मी को बहुत चिंता हो रही थी इतनी छोटी बच्ची स्कूल में कैसे रहेगी।मुझे न पाकर रोयेगी तो नहीं।रश्मि पहली बार इतनी देर के लिए उनसे दूर हो रही थी।मन भी चिंतित हो रहा था।स्कूल ड्रेस में रश्मि किसी परी से कम नहीं लग रही थी।स्कूल बस स्टैंड तक छोड़ने पापा और मम्मी दोनो गए।जब बस आयी और रश्मि उसमे बैठ गयी।बस के जाते ही इन्हें ऐसा लग रहा था जैसे कलेजे का टुकड़ा उनसे दूर हो रहा हो।जब चार घण्टे बाद रश्मि स्कूल से वापस आ गई तब इनके जान में जान आयी।पहला दिन स्कूल का बहुत अच्छा था।रश्मि के कुछ दोस्त भी बन गए थे।उसने स्कूल के पहले दिन का सारा अनुभव माँ से शेयर किया।वो बहुत खुश थी।
समय का पहिया घूमता रहा।रश्मि अब आठ साल की हो गई थी।स्कूल में भी उसके बहुत सारे फ्रेंड बन गए थे।नटखट होने के साथ ही वो पढ़ाई में भी बहुत होशियार थी।कभी भी स्कूल से उसकी शिकायत नहीं आती थी।सब कुछ खुशहाली भरा चल रहा था।
पर कहते है ना “हर दिन न होत एक समान”.एक बार रश्मि के पिता आफिस के टूर पर कही बाहर गए थे।वहां से वो तो नहीं लौटे उनके मौत की खबर आई।हार्ट अटैक के वजह से उनकी मृत्यु हो गई थी।घर मे कोहराम मच गया था। रश्मि को समझ मे नहीं आ रहा था कि क्या हुआ, बालमन बहुत ही शुलभ होता है।रश्मि को तो यही लग रहा था पापा आएंगे तो सब ठीक हो जाएगा।पर जब उसके पापा की डेड बॉडी आयी तो शायद रश्मि को थोड़ा अंदाजा हो गया की उसने अपने प्रिय पिता को खो दिया है, हमेशा के लिए। वो भी बिलख बिलख कर रो रही थी।रोते रोते वो कोमा में चली जाती थी।उसकी माँ के लिए ये दोहरा आघात था।किसी तरह रश्मि की माँ ने खुदको सम्भाला और रश्मि का ख्याल रखने लगी।पूरे इग्यारह दिनों के बाद रश्मि को होश आया।होश में आते ही वो पापा पापा की रट लगाने लगती और फिर बेहोश हो जाती।
उसकी माँ ने खुद को मजबूत किया और उसकी खातिर अपने गम भूल उसकी सेवा में जुटी रही।
कुछ दिनों बाद रश्मि के हालत में सुधार आने लगा।
धीरे धीरे रश्मि अब नार्मल हो गयी थी।स्कूल जाना भी उसने शूरु कर दिया।उसकी माँ को पापा की जगह पर नौकरी मिल गयी।रश्मी की माँ अब घर भी संभालती और काम पर भी जाति थीं।
नटखट चुलबुली रश्मि अब गम्भीर और बहुत समझदार हो गई थी।कभी मां से कोई ज़िद नही करती और घर के काम मे माँ का हाथ बटाती।मां और बेटी अपनी दुनिया मे रमे रहते।एक दूसरे के लिए जितना कर सकते थे वो पूरी कोशिस करते कि दोनों में से कोई भी दुखी न हो।
रश्मि की अब स्कूलिंग खत्म हो रही थी अब उसने कॉलेज में कदम रखा था।सुंदरता तो उसमें कूट कूट कर भरी थी युवती होतो ही कमसिन भी हो गयी।कॉलेज में जो भी उसे देखता अपलक उसे देखता ही रह जाता।हर लड़के का सपना था कि रश्मि उसे जीवनसाथी के तौर पे मिल जाये तो उसकी जिंदगी स्वर्ग से भी सुंदर बन जाएगी।कुछ लड़के उसके चारों ओर चक्कर भी लगते।कोई उसके पीछे पीछे उसके घर तक भी आता।रश्मि इनसब बातो से अनजान ही बनी रहती।
माँ हमेशा ही रश्मि को सिख देती की पिता का साया सिर पे न होने के कारण तुम्हे और मुझे इस समाज मे बहुत ही सावधानी से रहना होगा।हमसे कोई भी एक छोटी सी गलती हुए ये समाज वाले हमारा जिन दूभर कर देंगे।सुकून से जीने तो ये समाज उन्हें अभी भी कहा दे रहा था।बिना पुरुष वाले घर मे आतताईयों ने नर्क मचा रखा था।गली में खड़े शोहदे उसकी माँ और उसपर बहुत ही फब्तियां कसते।कभी कुछ बिगड़े पड़ोसी आपत्तिजनक सामग्री इनके आंगन में रात गए फेक आते और सुबह आंगन में खड़े होकर इनका रिएक्शन देखते हुए दाँत दिखाते रहते।कुछ अच्छे पड़ोसी भी थे जो गाहे बगाहे इनकी जरूरत में मदद करते थे।माँ ,बेटी इन्हें नजरअंदाज करते हुए अपना जीवन काट रहे थे।
कॉलेज में एक मनचला रश्मि के पीछे ही पड़ गया था।वो रश्मि का दीवाना हो चुका था।बड़े घर का बिगड़ैल लड़का राहुल।कभी वो रश्मि के पास आने की कोशिश करता तो कभी उसे छेड़ दिया करता।रश्मि उसे काफी लंबे समय से इग्नोर करती आ रही थी।मगर एक दिन तो हद हो गयी राहुल ने रश्मि का कॉलेज कंपाउंड में हाथ पकड़ लिया और फिल्मी अंदाज में प्यार का इज़हार करने लगा।रश्मि में उसको काफी बुरा भला कहा और वो आँसू बहाते हुए घर चली गयी।
राहुल को रश्मी ने ठुकरा दिया था जब राहुल अपनी मित्र मंडली में गया तो सारे मित्र उसका मजाक उड़ाने लगे ।कोई फब्तियां कसता “लंगूर को हूर की चाहत थी।उसने इन्हें बन्दर बना के नचा दिया” राहुल ऊपर से तो शांत था मगर अंदर ही अंदर उसमे क्रोध उबाल मार रहा था।उसने अपने दोस्तों के साथ बैठकर शराब पी और रश्मि के घर जाकर साफ साफ बात करने की ठानी।
वो और उसके तीन चार दोस्त रात गए पहुँच गए रश्मि के घर और दरवाज़ा खटखटाने लगे।रश्मि की माँ दरवाजे पर आई तो राहुल ने कहा रश्मि कहाँ है उसे बुलाइये मुझे उससे कुछ बात करनी है।माँ ने उसे जाने को कहा और सुबह बात करने को कहा।मगर शराब का नशा उसपे भी बड़े बाप का रोब राहुल उनसे ही भीड़ गया।जब काफी सोर सराबा मच गया तो रश्मी बाहर आई।उसने देखा दरवाजे पे राहुल और उसके दोस्त और पड़ोसियों का मजमा लगा हुआ है।लोग उसे अजीब नजरो से घूर रहे है।राहुल ने वहीं सबके सामने रश्मि को आई लव यू बोलना और प्रणय निवेदन करना चालू कर दिया।
शांत रहने वाली रश्मि का पारा चढ़ गया उसके शरीर मे गुस्से की वजह से कम्पन होने लगा।आगे बढ़कर उसने कहा “तुम समझते क्या हो अपने आप को।बड़े बाप के बेटे हो तो दूसरे की कोई इज़्ज़त नहीं है।तुम जैसे लड़को पर तो कोई लड़की थूके भी नहीं” और गुस्से में उसने राहुल को एक थप्पड़ जड़ दिया।अब पड़ोसी भी रश्मि के पक्ष में बोलने लगे और इन लड़को की पिटाई पर उतारू हो गए।अपने आप को घिरा देख राहुल और उसके दोस्त माँ बेटी को देख लेने की धमकी देते हुए वहाँ से निकल गए।
इस बात को बीते कई दिन हो गए थे रश्मि कॉलेज जाती रही मगर राहुल का कुछ पता नहीं था।उसने कॉलेज आना छोड़ दिया था।एक दिन जब रश्मि कॉलेज से घर आ रही थी दोपहर का वक़्त था और रास्ता सुनसान। रश्मी अपनी सहेलियों के साथ कॉलेज से घर आ रही थी।तभी कहि से चार नकाबपोश मोटरसाइकिल से आये और रश्मि को घेरकर खड़े हो गए।उसमे से एक नए कहा “बहुत घमंड है इसे अपनी सुंदरता पर आज इसका गुरुर तोड़ देते है” रश्मि की सहेलियां डर तो गयी थीं पर साथ नहीं छोड़ रहीं थी रश्मि का।तभी अचानक रश्मि के पीछे सिर पर किसी ने वॉर किया।रश्मि इस वॉर को झेल नही पाई और चक्कर खा के गिर गयी।एक दूसरे लड़के ने जेब से एक सीसी निकली और रश्मि के चेहरे पर गिराकर भाग गया।उसके साथ ही सारे मोटरसाइकिल सवार रफू चक्कर हो गए।
रश्मि की सहेलियों ने बड़ा ही बीभत्स दृश्य देखा।रश्मि के बाल खुद ब खुद निकलते जा रहे है।उसके चेहरे का मांस गल रहा है।उन्होंने रश्मि के चेहरे पर पानी डालना शुरू कर दिया और एम्बुलेंस को कॉल कर दिया।आननफानन में एम्बुलेंस आयी और रश्मि को लेकर वे सब हॉस्पिटल पहुँच गए
रश्मि की माँ अपने कार्यालय में व्यस्त है।तभी उनके फोन की घण्टी बजती है।फोन उठाते ही उधर से जो कुछ भी कहा जाता है वह सुनकर रश्मि की माँ की हालत खराब होने लगती है।वो रोते हुए हॉस्पिटल को निकल जाती हैं।सहकर्मी उनके इस हालत को देखकर कुछ समझ नहीं पाते।कुछ सहकर्मी रश्मि की माँ के साथ हो लेते है।रश्मी की माँ जैसे तैसे खुद तो सम्भालते हॉस्पिटल पहुँचती है।वहाँ रश्मि की सहेलियां और पुलिस को देखती हैं और उनसे सवाल करती है”कहाँ है मेरी बेटी,कैसी है वो?मुझे उससे अभी मिलना है।”
रश्मि की माँ को फोन पर केवल एक्सीडेंट हो गया ऐसा बताया गया था।रश्मि की सहेलियां उनके गले लगकर रोने लगती हैं और सारी बातें विस्तार से बताती हैं।सारी बाते सुनकर रश्मि की माँ दहाड़ मारकर रोने लगी।उनके सहकर्मी उनको हौसला देने की कोशिस करते हैं।इस मुश्किल घड़ी में डॉक्टर उन्हें बुलाते है और उनसे हॉस्पिटल की कुछ फॉरमैलिटी पूरी करवाते हैं।रश्मि की माँ डॉक्टर से कहती हैं” डॉक्टर साहब कैसी है मेरी बेटी?क्या मैं उससे मिल सकती हूं?ठीक तो है ना वो?”
“मैम आपको हिम्मत रखनी होगी।उसपर बहुत ही स्ट्रांग एसिड अटैक हुआ है।जान उसकी भले ही बच जाए मगर जो मानसिक आघात उसे लगा है।उससे उबरने में पता नहीं वो सफल हो भी पाएगी या नहीं कह नहीं सकता।आपको बहुत स्ट्रांग होना पड़ेगा” डॉक्टर ने कहा।
रश्मि की माँ ने बहुत रिक्वेस्ट किया कि एक बार उसे रश्मि से मिलने दिया जाये।तब डॉक्टर उन्हें रश्मि के पास लेकर गए। रश्मि बेहोश पड़ी हुई थी।मॉ ने जैसे ही उसका वीभत्स चेहरा देखा बहुत जोर से विलाप करने लगीं।नर्स ने उनको शांत करने की कोशिस करी और उन्हें लेकर कमरे से बाहर आ गयी।
रश्मि की माँ रश्मि को इस हाल में देखने के बाद खुद को संभाल नहीं पा रहीं थीं।उनकी दुनिया तो खत्म हो गयी थी पति के जाने के बाद जीने की जो उम्मीद थी उसकी ये हालत देखकर उनकी सारी उम्मीदे और हौसला टूट चुका था।
केस
पुलिस वालों ने कुछ अज्ञात लोगों के खिलाफ केश दर्ज किया और फॉरमैलिटी करक वहाँ से चले गए।इलाज के कुछ दिनों के बाद रश्मि को होश आया।अपने बगल में बैठी माँ को देखकर उसकी आँखों से आशु बहने लगे ।माँ उसे हौसला देना चाह रही थी लेकिन वो खुद अपने आशु नहीं सम्भाल पायी।रश्मि अभी कुछ भी बोलने की स्तिथि में नहीं थीं मगर लिखकर उसने पुलिस वालों को बताया की उस एसिड अटैक के पीछे राहुल का हाथ ह सकता है।
पुलिस वालों ने राहुल को उठा लिया जमकर उसकी कुटाई की।राहुल टूट गया और उसने स्वीकार कर लिया कि उसने ही अपने तीन साथियों के साथ मिलकर इस घटना को अंजाम दिया है।राहुल के परिवार वाले ये सब जानकर स्तब्ध रह गए।कहाँ उन्होंने अपने बेटे से बड़ी बड़ी उम्मीदें लगा रखी थीं कहा उनके बेटे ने ऐसी नीच हरकत करके उनकी इज़्ज़त दागदार कर दी।
राहुल के माता पिता हॉस्पिटल में रश्मि को देखने पहुँचे।रश्मि की हालत देखकर उनकी भी आंखे भर आयी।उन्होंने राहुल की तरफ से रश्मि और उसकी माँ से माफी मांगी और रस्मी के इलाज के सारे खर्च को वहन करने की बात करने लगे।रश्मि की माँ ने मना कर दिया मगर अपराधबोध से घिरे राहुल के माता पिता के बहुत गिड़गिड़ाने पर उसकी माँ और रश्मि मान गयी।
उन्होंने बहुत अच्छे डॉक्टर बुलवाए।बहुत सारे आपरेशन हुए तब कही जाके दो साल के बाद रश्मि नॉर्मल हो पाई।मगर उसका चेहरा बहुत ही खराब हो चुका था।बहुत सारे मनोवैज्ञानिक काँसेलिंग के बाद अब उसने अपने आप को स्वीकार करने लगी थी।खुद को सामान्य रखने लगी थी।इधर राहुल को इन दो सालो में बेल मिल गयी थी।उसकी शादी भी हो गयी थी और एक सामान्य जीवन जीते हुए वो अपने पिताजी के बिज़नेस में मदद करने लगा था।उसके लिए ये घटना एक नासमझी में कई गयी गलती थी।मगर उसकी ये गलती कितनी बड़ी सज़ा थी रश्मि के लिये , ये बस रश्मि और उसकी माँ ही समझ सकती थीं।
रश्मि घर पर रहते रहते थक चुकी थी अब वो बाहर निकलना चाहती थी।मगर जब भी वो बाहर जाती उसे लगता हर कोई उसकी तरफ उंगली उठाकर उसे उसका अतीत याद दिला रहा हो।उसे अब यहाँ बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता था।उसने अपनी माँ से कहा “माँ यहाँ मेरा मन नहीं लगता।जब भी कही जाओ लोग मेरे अतीत और मेरी सुंदरता के बारे में बाते करते हैं।और सहानुभूति जताई जाती है।प्लीज कही और चलते हैं।जहाँ मै नए जीवन की कि शुरूआत कर सकूं।”माँ ने भी सोचा ठीक ही तो कह रही है रश्मि।उन्होंने अपने कार्यालय में ट्रांसफर की बात की औऱ उनका ट्रांसफर मुम्बई हो गया।कुछ ही दिनों बाद सारी तैयारियां पूरी करने के बाद दोनों मुम्बई शिफ्ट हो गए।
बाकी अगले भाग में**†**********