निशा बचपन से ही बहुत खूबसूरत थी।जैसे जैसे बड़ी होते गई उसकी खूबसूरती में चार चांद लगते गए। वो जिससे भी मिलती,हर कोई उसकी खूबसूरती का कायल हो जाता था।
बचपन मे नन्ही परी बनकर इधर उधर फुदकती, सबके मन को खूब भाती।सभी उसके खूबसूरती का बहुत ही बखान किया करते थे।

स्कूल में सहेलियों से भी निशा तारीफ पाती।धीरे धीरे निशा को अपनी खूबसूरती का गुमान होने लगा।आखिर उसे गुमान हो भी क़यू न,सारे जवार में उसके जैसी सुंदर लड़की कोई नहीं थी।खूबसूरती और गुमान का तो चोली दामन का साथ है।

अब निशा अपनी सहेलियां और दोस्ती भी खूबसूरती देखकर करने लगी।काले और बदसूरत लोगो से वो दूरी ही बना कर रखती।हद तो तब हो गयी जब वो बदसूरत लोगो से बदसलूकी करने लगी।कभी भी किसी के रूप और रंग का मजाक उड़ाया करती।कभी उनकी बातें अनसुनी कर निकल जाया करती थीं।

लोग इन बातों को उसका बचपना समझकर माफ कर दिया करते थे।निशा पढ़ाई लिखाई में भी बहुत ही होशियार थी।जब बोर्ड का रिजल्ट आया तब उसने स्कूल में टॉप किया था।उसके घरवालों के गर्व से सीना चौड़ा हो गया।उन्होंने एक बड़े भोज का आयोजन किया और पूरे गांव को न्योत दिया।
लोग बिटिया के सफलता की बहुत बधाई दे रहे थे।

अब निशा की पढ़ाई कॉलेज में होनी थी जो गांव से बहुत दूर शहर में था।निशा के घरवालों ने उसका एडमिशन कॉलेज में करवा दिया और वहीं होस्टल में रहने की ब्यवस्था कर दी।

गांव में उसके बचपन की एक सहेली थी राधा।इन दोनों का बचपन साथ ही बीता था।दोनो अपना सुख दुःख साथ बाटते हुये बड़ी हुयी थीं।राधा के नंबर भी बोर्ड इम्तिहान में अच्छे आये थे।उसके घर वालों ने भी उसका एडमिशन शहर के उसी कॉलेज में करवा दिया था।दोनो साथ मे ही होस्टल में रहते थे।निशा और राधा में कोई फर्क था तो वो था रंग का,जहाँ निशा बला की खूबसूरत थी तो राधा सामान्य कद काठी की थी।

दोनो ही होस्टल में रहकर पढ़ाई करने लगीं।सुरूवाती दौर में शहर का रहन सहन उन्हें थोड़ा अजीब लगा लेकिन धीरे धीरे वो इसमे रम गयीं।

कॉलेज में इनके कुछ दोस्त भी बन गए थे।रवि जो कि पढ़ने में बहुत ही होशियार था पर शक्ल सूरत उतनी अच्छी नहीं थी।वो इनदोनो का बेस्ट फ्रेंड था।निशा उससे थोडी कटी कटी ही रहती।काम होता तो रवि के आगे पीछे घूमती ,काम खत्म होते ही निशा रवि से नाक चढ़ा लेती।राधा और रवि ज्यादातर साथ रहते और मन लगाकर पढ़ाई कर रहे थे।

उनकी क्लास में एक सुंदर सा लड़का भी पड़ता था जो स्थानीय मंत्री जी का बेटा था।उसकी कॉलेज में धाक थी।हरकोई उससे कन्नी काटता रहता,क्योंकि उसका काम ही दिनभर आवारागर्दी करना और मारपीट करना होता था।नए लड़के लड़कियों को परेशान करने में उसे बड़ा मजा आता।
उसकी नजर जब निशा पर पड़ी तो उसके ऊपर निशा की खूबसूरती का जादू चल गया।अब वो किसी भी तरह निशा के पास आने की कोशिस करता।क्लास से गायब रहने वाला राजीव अब निशा के पीछे पीछे क्लास में भी पहुचने लगा।

शुरू शुरू में तो निशा को इन बातों की भनक नहीं थी पर धीरे धीरे जब निशा को उसके आकर्षण के बारे में पता चला तो निशा ने भी उसपर ध्यान देना शुरू कर दिया।उसकी अमीरी,उसकी खूबसूरती, उसका नई नई गाड़ियों में घूमना फिरना, और निशा को यू दिनभर घूरते रहना उसे बहुत भाता था।अब निशा भी उसे पसंद करने लगी।

निशा ने ये बात जब राधा और रवि को बताई तब दोनो ने उसे राजीव से दूर रहने की सलाह दी और कहा”राजीव एक अच्छा लड़का नहीं है।तुम उससे दूर ही रहो”
निशा ने कहा “तुम उसकी अमीरी और खूबसूरती से जलते हो इसलिये तुम्हे वह पसंद नहीं है।मै तो उससे दोस्ती करूंगी।और ये दोस्ती ,दोस्ती से कहीं ज्यादा होगी,मैने उसे अपना जीवनसाथी बनाने का फैसला कर लिया है।”

रवि और राधा ने उसे बहुत समझाने की कोशिस की पर सब बेकार।हार मानकर उन्होंने यही नीयति समझ ली और निशा को समझाना छोड़ दिया।

अब निशा राजीव के साथ समय बिताने लगी।उसके साथ घूमने फिरने में उसे बहुत खुसी मिलती थी।रवि और राधा से भी दूर दूर रहा करती थी।बाकी कॉलेज के किसी भी लड़की या लड़के को वो अपने समकक्ष भी नहीं समझती।राजीव को तो मन मांगी मुराद मिल गई थी।वो निशा की खूबसूरती का कायल हो गया था।उसके साथ ही दिनभर घूमना फिरना और उसकी जी हुजूरी करना यही उसका काम था।

निशा को राजीव पर पूरा भरोसा था।ऐसे ही ख्वाब में जीते हुए उनके कॉलेज का अंतिम वर्ष आ गया।निशा अब जैसे तैसे नम्बरों से पास हो जाती थी ।राधा और रवि मन लगाकर पढ़ाई करते और हर साल अव्वल दर्जे से पास होते।उनका सपना था प्रशासनिक अधिकारी बनना।उसकी भी वे साथ मे तैयारी कर रहे थे।

आज रिजल्ट घोषित होना था।हर बार की तरह रवि और राधा अच्छे अंको से पास हुए और निशा दुतीय दरजे से।निशा उदास तो थी मगर राजीव पे उसे बहुत भरोसा था।सब आपस मे विदाई देने के बाद अपने अपने घर को निकल गए।
राधा और रवि आगे की तैयारी करने दिल्ली चले गए और निशा के घरवाले निशा की शादी राजीव से करने में जुट गए।

निशा के पिताजी जब राजीव के घर उसका रिश्ता लेकर गए तब राजीव घर पर नहीं था।राजीव के घरवालों ने निशा के पिताजी का बहुत मज़ाक उड़ाया।उनको उनकी औकात और हकीकत से वाकिफ करवा दिया।वो भारी मन से वापस लौट आए थे।निशा ने उनसे जब सबकुछ पूछा तो उन्होंने सारा हाल कह सुनाया।

निशा को राजीव के घरवालों पर बहुत गुस्सा आया।उसने तुरंत ही राजीव को फोन किया और सारा हाल कह सुनाया।राजीव अपने घर पहुँचा और सबसे लड़ झगड़ कर सारा घर सर पे उठा लिया।थक हारकर उसके घरवालों को उसकी जिद माननी पड़ी।उन्होंने शादी के लिए हां करदिया।

अगले महीने ही निशा और राजीव की शादी हो गयी।अब निशा की खूबसूरती और दौलत ,करेला वो भी नीम चढ़ा हालात हो गए थे।निशा को वो हर चीज मिल जाती जो भी वो चाहती।किसी चीज़ की कोई कमी नहीं थी।अब तो निशा और नकचढ़ी हो गयी थी

अब तो उसे गरीबो से भी नफरत होने लगी थीं।अपने पास न तो गरीबो को और न ही किसी बदसूरत या काले लोगों को वो बर्दास्त कर पाती थी।धीरे धीरे उसने अपने मायके वालों से भी दूरी बना ली।उसके मायके वाले उसकी प्रतिष्ठा में एक धब्बे लगते थे।

समय ऐसे ही गुजरता रहा।धीरे धीरे पांच साल कब गुजर गए किसी को पता ही नहीं चला।उसके ससुर जी इसबार इलेक्शन में हार गए थे।इस बार इलेक्शन में उनके बहुत ही पैसे खर्च हो गए थे।नई सरकार ने उनके  ऊपर किसी घोटाले की जांच भी शुरू कर दी थी।घर की स्तिथि अब उतनी अच्छी नहीं रह गई थी।मगर निशा का घमंड जस का तस था।

घर के हालात ज्यादा अच्छा नहीं था।निशा को घर बैठे पैसे के लिए दूसरे का मुंह ताकना पड़ता था।उसने सोचा वो राजीव के साथ उसका आफिस जॉइन करले।और पैसे की कीच कीच से मुक्ति मिले।उसने राजीव से बात की राजीव को कोई आपत्ति नहीं थीं।

अब वो राजीव के ऑफिस जाने लगी।वहाँ भी वो अपने वर्करों और मजदूरों को शक्ल और सूरत देखकर व्यवहार किया करती थी।बहुत सारे मजदूर उसके इस व्यवहार से नाराज़ रहा करते थे।और दिल से बद्दुआ दिया करते थे।
एक दिन एक मजदूर को पैसे की बहुत जरूरत थी।उसकी बिबी पेट से थी पर कुछ कॉम्प्लिकेशन के वजह से उसका तुरंत आपरेशन करना जरूरी था। राजीव उस समय ऑफिस में नहीं था। एकाउंट डिपार्टमेंट में उसने पैसे की अर्जी लगाई तो पता चला मैडम से सहमति के बाद ही पैसे मिल सकते है।
वो मैडम के पास गया पर मैडम ने उसकी बदसूरती देख गेट पर से ही भगा दीया।

वो गेट पर से ही खड़ा होकर गिड़गिड़ाने लगा मगर निशा पर उसका कोई फर्क नहीं पड़ा।मजदूर की बिबी उसी रात चल बसी।उसके साथ ही उसका अजन्मा बच्चा भी चला गया।
इनके गम में उस मजदूर ने भी फैक्टरी में ही फाँसी लगाकर आत्महत्या कर लिया।

आगे की कहानी दूसरे भाग में†**********************
पाठक गण क्षमा करें।कोशिस थी कि छोटी कहानी लिखू मगर लिखते लिखते यू लगा जैसे इसे छोटा करना अन्याय होगा।यद्यपि इसे काफी शॉर्टकट में लिखने की कोशिश की है।फिर भी इसका विस्तार देखते हुए मुझे लगता है।अगले 2 भागो में ये खत्म हो पायेगा।।

Ravi KUMAR

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