माँ का हठ

पीहू , नेहा की इकलौती सन्तान थी।उसके सिवाय इस दुनिया में कौन था उसका? माता पिता तो उसके बचपन में ही उसका साथ छोड़कर चले गए थे।पति का गत वर्ष इंतकाल हो गया था।ले देकर उसकी बेटी ही बची थी जिसके सहारे वो अपनी जिंदगी गुजार रही थी।अपने प्राणों से भी ज्यादा वो पीहू को प्यार करती थी।

एक दिन स्कूल से आते ही पीहू ने माँ से कहा “माँ मुझे चक्कर आ रहा है, तबियत ठीक नही लग रही है ।”
नेहा ने उसको छूकर देखा तो पाया पीहू बुखार से तप रही है।नेहा चिंतित हो गई।वैध जी बुलाये गए।वैद्य जी ने कुछ दवाइयां देकर कहा “चिंता की कोई बात नहीं है।बुखार एक दो दिन में उतर जाएगा ,आप बच्ची का खयाल रखना”

वैधराज  दवा देकर चले गए।नेहा पीहू की देखभाल में जुट गई।पीहू की सिरहाने दिन रात बैठी रहती थी।समय पर दवाइयां देती लेकिन कोई फायदा नहीं हो रहा था।
वैद्य जी दुबारा आकर दवाई दे गये मगर पीहू की हालत में कोई सुधार नहीं हो रहा था।
नेहा ने पूजा अर्चना, मनौती चुनौती जो भी हो सकता था सब कर डाला लेकिन पीहू का बुखार उतरने का नाम ही नहीं ले रहा था।

नेहा थक हार कर एक औघड़ के पास गई।औघड़ ने उसे देखते ही डांटना शूरु कर दिया।”दूर रहो मुझसे तुम्हारे घर पर किसी बहुत बुरे साये का प्रकोप है।चले जाओ यहां से तुम्हारी मदद अब कोई नहीं कर सकता।आज से तीसरे दिन वो साया तुम्हारी बेटी को अपने साथ लेकर चली जायेगी।” नेहा उस औघड़ की चरणों में गिरकर रोने लगी। “बाबा बड़ी उम्मीद लेकर आयीं हूँ आपके पास ,ऐसे खाली हाथ मैं वापस नहीं जाऊँगी।आप कुछ ना कुछ उपाय करो नहीं तो मैं यहीं तड़पकर जान दे दूँगी”।तब औघड़ ने कहा “जाओ और नजर रखो अपनी बेटी पर।मैं कुछ कोशिस करता हूँ लेकिन उम्मीद नहीं के बराबर ही रखना ।”उन्होंने नेहा को भभूत दिया और कहा “इस भभूत को पीहू को लगा देना।ऊपरवाले ने चाहा तो बुरी आत्मा उसको नुकसान नहीं पहुँचा पाएगी”

नेहा वापस आ गई।उसने पीहू को बाबा का दिया भभूत लगा दिया।पीहू का बुखार थोड़ा कम होने लगा। अब नेहा रात दिन जागकर पीहू का खयाल रखती थी।नेहा को जागते हुए एक सप्ताह हो गया था।सातवीं रात नेहा ने बहुत तेज़ झपकी सा महसूस किया।कुछ पल भर की झपकी आयी होगी।नेहा ने झट से आंखे खोलकर देखा तो शन्न रह गई। ये क्या हो गया , पीहू अब इस दुनिया में नहीं थी।नेहा चीत्कार उठी।जोर जोर से रोने लगी।उसके जीवन की आखरी उम्मीद भी नहीं रही।

पर नेहा ने हिम्मत नहीं हारी।वो भागकर गिरते पड़ते औघड़ के पास पहुँची और गिड़गिड़ाने लगी ।बाबा मैं हार गई।मेरे जीने का सहारा छीन लिया उसने।या तो मेरी पीहू को जीवन दे दो या मेरी जान ले लो।औघड़ ने कहा “बेटी मैंने पहले ही कहा था किसी के बस का नहीं था इस दुर्घटना को रोकना। अगर तुम अपनी बच्ची को इतना ही चाहती हो तो एक बहुत दुर्गम मार्ग है।पता नहीं तुम उसपर जा सकती हो या नहीं”

नेहा ने कहा “बाबा आप निश्चिंत होकर आदेश करे मैं अपनी जान दे दूँगी मगर पीहू के लिए कुछ भी करूंगी।”
औघड़ ने बताया “तुम्हें आज रात मेरे साथ श्मशान में चलना होगा वहीं तुम्हारी आगे की यात्रा सुरु होगी” नेहा ने बड़ी बेसब्री से रात का इंतजार किया और रात होते ही दोनो शमसान की ओर चल पड़े।श्मशान घाट पर पहुचने के बाद औघड़ एक कब्र के पास कुछ सिद्धि करने लगा।थोड़ी ही देर में उस कब्र का पत्थर सरकने लगा उसके अंदर सीढ़िया नज़र आ रही थीं।औघड़ ने कहा “जाओ पुत्री और अपने पीहू को लाने की अंतिम कोशिस कर लो” नेहा औघड़ को प्रणाम करने के बाद उन सीढ़ियों से कब्र में उतरने लगी।

अँधरे में नेहा को कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था काफी देर तक चलते रहने के बाद उसे एक दरवाजा दिखाई पड़ा।दरवाजे पर लिखा था वो सारी लोरिया गाओ जो भी तुमने पीहू को सुनाया है।तभी ये दरवाजा खुलेगा।नेहा ने सारी लोरिया गा कर सुना दिया।लोरियों के खत्म होने के साथ ही दरवाजा अपने आप खुल गया।दरवाजे के उस पार एक नदी थी।नदी पार करने की शर्त थी अपने आखों को निकाल कर नदी में डालना।नेहा ने नदी के किनारे से एक नुकीला पत्थर उठाया और उसकी मदद से अपनी आंखें निकालकर नदी को अर्पित कर दिया।दर्द के मारे नेहा का होश खोने लगा मगर पीहू को वापस पाने की चाह ने उसे हिम्मत दी।नदी का पानी ऐसा करते ही सुख गया।नेहा गिरती पड़ती आगे बढ़ी।
आगे जाने पर नेहा एक खंडहर में पहुँच गयी जहाँ पर वह शैतानी साया रहता था।शैतानी  साये ने जिनकी भी जान ली थी उनकी आत्मा को अलग अलग गुड़िया में कैद कर रखा था। उन गुड़ियों की देखभाल करने के लिए वहाँ शैतान की पत्नी थी।नेहा ने उसे अपनी दुखभरी कहानी बताई तो उसने कहा अगर तुम अपने बेटी की गुड़िया पहचान लो तो मैं तुम्हारी कुछ मदद कर पाऊंगी।नेहा ने अपनी पीहू की गुड़िया को उसकी धड़कन की आवाज से पहचान लिया।

उस शैतान की पत्नी ने नेहा से उसके सर के बाल मांगे।नेहा ने अपने सारे बाल उसे दे दिए तब उसने बताया “इन गाड़ियों में ही एक शैतान की भी गुड़िया है तुम्हे शैतान के वापस आने से पहले उस गुड़िया को ढूंढकर तोड़ना होगा।अगर तुमने सही गुड़िया ढूंढकर तोड़ गया तो तुम्हारी पीहू जिंदा हो जाएगी नहीं तो तुम्हारी बेटी और तुम भी सदा के लिए यहीं कैद हो जाओगी।

नेहा हर गुड़िया को उठा उठा कर उसकी धड़कन सुनने लगी।एक गुड़िया बिल्कुल खामोश थी क्योंकि उसकी आत्मा तो बाहर थी।वही शैतान की गुड़िया थी।नेहा ने उस गुड़िया को तोड़ दिया।उस गुड़िया के टूटने से वहाँ की हर चीज़ टूट टूट कर गिरने लगीं।सभी आत्मायें आज़ाद होकर अपनी अपनी मंजिल को चल पड़ी।शैतान की पत्नी भी मुस्कुराते हुए नेहा से विदा लेकर अपने लोक को चली गयी।नेहा के सामने अचानक बहुत तेज़ रोशनी प्रकट हुई जिसके बाद नेहा की आँखे, बाल सबकुछ ठीक हो गया। जब नेहा ने आंखे खोली तो अपने आप को पीहू के बगल में बैठा पाया।पीहू अब बिल्कुल ठीक हो गयी थी।

Ravi KUMAR

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