जबसे जाना जितना जाना,
बुन रहा बस उसका ताना बाना
नाम सी स्वर्णिम,कर्म स्वरूपा
अंखियां जीवन ज्योत जगाई
अधरों पर मुस्कान समाई।।

रूप रंग की क्या बात करें
हृदय में मनभर स्नेह भरें
कर्मठ,जीवट रूप धरे
खुशियों से संसार भरे
जब मुस्काये पुष्प खिल जाए
निराशा की तो आस न आए
जीवन सम्बल बन स्नेह लुटाये
जग भर में कई आस जगाये।।

उम्मीद की तुम हो मूरत
रखती हो क्याबो सी सूरत
जीवन आस जब ढल जाए
परियों से आकर उमंग जगाये।।

Ravi KUMAR

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