लोककथा भाग 9
एक गांव में एक दर्जी रहता था। उसने एक बकरी पाली हुई थी। वह बकरी बातें करती थी। उस दर्जी के तीन बेटे थे। वे दर्जी-पुत्र जब बड़े हुए तो दर्जी ने उन्हें बकरी चराने का काम सौंपा। वह बकरी दिन भर चरती और भर पेट खाती। पर जब दर्जी शाम को उस पर हाथ फेर कर उससे हाल पूछता, तो वह कहती-आपके बेटे मुझे मैदान में एक खूंटे से बांध कर रखते हैं। वह स्वयं खेलते रहते हैं और मैं भूखी रहती हूं।
दर्जी बहुत दिनों तक बात टालता रहा। फिर एक दिन उसने बेटों को डांट-डपट कर कहा-निकल जाओ घर से, तुम सब निकम्मे हो।
बेकसूर लड़के भी एक दम घर से निकल गए। उनके जाने के बाद दर्जी को बकरी की धूर्तता का पता चला। वह अब अपनी गलती पर पछताने लगा और बेटों के घर लौट आने की राह देखता रहा।
दर्जी के तीनों पुत्रों को घर से दूर एक-दूसरे से अलग-अलग नौकरी मिल गई। उनके मालिक उनके काम से खुश हुए। सबसे बड़ा लड़का लड़की का साज-सामान बनाने वाले के पास नौकर हो गया। दूसरा उसी नगर में एक पनचक्की पर नौकर हो गया और तीसरा एक दुकानदार के यहां।
दोनों बड़े भाइयों को पिता की याद सता रही थी। उन्होंने फैसला किया कि वह घर लौट जाएंगे। उनके मालिक भी इस बात को मान गए। बड़े भाई को उसके मालिक ने एक छोटी सी मेज देकर कहा-बेटा, इस मेज से जिस तरह का भोजन मांगोगे, वह तुम्हें इस पर तैयार मिलेगा।
दूसरे भाई को चक्कीवाले ने एक गधा देते हुए कहा-जाओ खुश रहो। इस गधे को भी ले जाओ। जयों ही तुम इससे कहोगे-मुझे मुहरें दो, त्यों ही यह मुंह से मुहरें उगलने लगेगा। जब तक तुम ‘बस करो’ न कहोगे यह मुहरें उगलता रहेगा।
दोनों भाई अपने-अपने उपहार लेकर घर की ओर चल दिए। वे सायंकाल के समय एक गांव में पहुंचे। वे रात भर आराम करने के लिए एक सराय में ठहरे। सरायवाला दुष्ट था। उसने उन्हें रात भर रहने की जगह दी पर बात ही बात में उनके उपहारों की विशेषता के बारे में भी जानकारी प्राप्त कर ली। जब उसे मेज और गधे के गुणों का पता लगा तो उसने उन्हें हथियाने की बात सोची। वे दोनों भाई जब सोकर खर्राटे भर रहे थे तब उस दुष्ट ने मेज के बदले हू-ब-हू वैसी ही मेज रख दी और गधा भी उसी शक्ल का खूंटे से बांध दिया। सुबह वे दोनों भाई इन नकली चीजों को लेकर चल दिए।
घर पहुंचे तो उनका पिता बहुत खुश हो गया। उसने गधे और मेज की करामात सुनी तो और भी प्रसन्न हो गया। परंतु जब दोनों भाइयों ने अपने-अपने उपहार की परख और प्रदर्शन करना चाहा, तो हैरान हो गए। उनका बाप यह देख बड़ा नाराज हो गया। वह समझा कि बेटे मुझसे धोखा कर रहे हैं। बहुत कुछ समझाने पर भी उसकी शंकर दूर न हुई। अत: उन्होंने अपने छोटे भाई को आपबीती लिखकर भेजी और उसे सराय वाले से सतर्क रहने को कहा। इसी के साथ उसे यह भी बताया कि अगर संभव हो तो वह उससे चुराई हुई चीजें भी प्राप्त करने की कोशिश करें।
पत्र पाकर तीसरे भाई ने भी स्वामी से घर लौट जाने की स्वीकृति ली, तो उसे उपहार में एक थैला देते हुए मालिक ने कहा-यह थैला लो। इसका गुण यह है कि जब कभी तुमको सहायता की जरूरत पड़े तो इसे यों कहो-रस्सीये जकड़, और डंडे मार। तुम्हारे कहने के साथ ही इसमें से एक रस्सी निकलेगी और तुम्हारे शत्रु को जकड़ लेगी। साथ ही इसमें से एक डंडा निकल आएगा जो उसकी खोपड़ी पर चोट करने लगेगा।
खैर, यह दर्जी पुत्र भी घर की ओर चल दिया। वह रात को उसी सराय में रुका। जब वह सोने लगा तो उस थैले को अपने तकिये के नीचे यों रखा, जिससे सराय वाले को शंका हुई कि इसमें माल भरा है। आधी रात को सरायवाला थैले का धन चुराने के इरादे से आया। दर्जी पुत्र इसी ताक में आंखें बंद किए हुए लेटा हुआ था। ज्यों ही उसने सिरहाने के नीचे से थैला निकाला त्यों ही वह बोला-रस्सीये जकड़, और डंडे मार।
कहने की देर थी कि थैले में से सचमुच ही एक रस्सी निकली, जिसने सराय वाले को जकड़ लिया। साथ ही एक डंडा भी उछल-उछल कर उसकी खोपड़ी पर पटाख-पटाख करता हुआ बरसने लगा। सरायवाला रोने-धोने और चिलाने लगा-भाई माफ करो, माफ करो। हाय मरा! मरा!!
जब उस डंडे ने सरायवाले की खोपड़ी पर अच्छी मार बरसाई तो दर्जीपुत्र बोला-बदमाश कहीं का, ये चीजें तभी थैले में लौट जाएंगी जब तू मेरे भाइयों से हथियाया हुआ माल लौटाने का वायदा करेगा।
लहूलुहान सरायवाले ने उससे वायदा किया तो उसने इन दोनों चीजों को वापस बुलाया। इसके बाद सरायवाले से मेज और असली गधा प्राप्त करने के बाद वह घर लौटा।
जब वह घर पहुंचा तो तीनों भाइयों ने पिता सहित खूब दावत उड़ाई। पिता अपने पुत्रों की सफलता पर बड़ा खुश हुआ। वह धूर्त बकरी रात के समय ही घर से भाग गई। अब बाप बेटे उन तीनों करामती चीजों के कारण बड़े सुख से रहने लगे।