लोककथा भाग 10
गांव में एक पंडित रोज बात-बात पर पत्नी से झगडता था। वह उससे कहता- मेरी बात नही मानोगी तो संतों की शरण में चला जाऊंगा साधु बन जाऊंगा। फिर तुम अकेली दुर्दशा भोगोगी।
पत्नी पति की रोज-रोज की धमकी से परेशान थी।एक दिन एक संत उनके घर भिक्षार्थ आए। पंडित की पत्नी ने अपनी राम कहानी उन्हें सुनाकर किसी उपाय की प्रार्थना की। संत ने कहा- अब जब कभी वह ऐसा कहे, तब तुम साफ कह देना कि देर न करें अभी जाइए। फिर उसे मेरे पास भेज देना। मैं मंत्र फूंक दूंगा, फिर वह तुम्हारे वश में हो जाएगा।
संत चले गए। पतिदेव आए। भोजन में विलम्ब देख बिगडने लगे और अपना रटा-रटाया अस्त्र चलाया- यदि ऐसा ही करोगी तो मैं जंगल में जाकर संत बन जाऊंगा। पत्नी ने कहा- देर क्यों? इसी वक्त चले जाइए।
पंडित सोच में पड गया। पगडी कुरता पहन निकल पडा। संत के पास जाकर उनसे शिष्य बनाने की प्रार्थना की। संत ने उनकी बात स्वीकार कर ली। संत ने आदेश दिया कि तूंबा भर जल लाने नदी पर जाओ। इस बीच संत ने उसके सारे कपडे फाडकर पेड पर लटका दिए।
नदी से लौटने पर संत ने उसे लंगोटी पहनाई। संत क्न्द-मूल खाने लगे। पंडित को भी वही सब कुछ दिया गया। खाते हुए उसे लगा कि कुछ कडवा लग रहा है। पंडित ने कहा कुछ मीठी चीज दीजिए।
संत ने पास के पेड से नीम की कडवी पतियां तोडकर दीं। पंडित को जबरन खाने को कहा। पंडित उसे मुंह में रखते ही दुखी हो उठा। उसनें सोचा-घर पर सूखी रोटी तो मिलती थी, मैने यह विपत्ति क्यों मोल ली। वह पछताने लगा।
उसकी यह मन स्थिति देखकर संत ने कहा- जब वैराग्य का यह पहला पढने में ही तुम पछताने लगे, फिर घर में रहकर पत्नी को क्यों परेशान करते हो। बार-बार संत बनने का डर दिखाकर पत्नी को क्यों छलते हो। संत बनना इतना सहज है? पंडित ने क्षमा मांगी और भविष्य में पत्नी को कभी ऐसा नही नहीं कहने की प्रतिज्ञा की।