लोककथा भाग 12
त्रिपुरा के राजा देव अपने मंत्री के ज्ञान व उनकी हाजिरजवाबी से कुपित थे। एक बार जब मंत्री के हाजिरजवाबी से नाराज हो गये उन्होंने मंत्री के जन्मदिन पर जब समारोह के दिन सब खुशी से झूम रहे थे,मंत्री अपना जन्मदिन मना रहे थे फाँसी की सजा सुना दी।
सैनिक राजा का संदेश लेकर पहुंचे और बोले- आज शाम को मंत्री को फांसी दी जाएगी।’ यह सुनकर समारोह में उदासी छा गयी। मंत्री के मित्र संबंधी सभी रोने लगे। मगर मंत्री आराम से संगीत व नृत्य का आनंद लेते रहे। ऐसा लगा जैसे उन्होंने कुछ सुना ही नहीं यह सोचकर सैनिकों फिर से राजा का संदेश सुनाया तो मंत्री ने सैनिकों से कहा ‘राजा को मेरी ओर से धन्यवाद देना कि कम से कम मृत्यु से पहले आनंद मनाने के लिए अभी जब कई घंटे शेष हैं। ‘
उन्होंने मुझे पहले बताकर मुझ पर बड़ा उपकार किया है। हम अब अपनी मौत से पहले पूरी खुशी मना सकते हैं।’ यह कहकर मंत्री फिर से नाचने लगे यह देखकर सैनिक वापस राजा के पास पहुंचे।
राजा ने पूछा- ‘मौत का संदेश सुनकर मंत्री का क्या हाल था?’ सैनिकों ने बताया कि वह तो खुशी से झूम उठे आपको धन्यवाद देने को कहा है। राजा ने कल्पना तक नहीं की थी कि मौत की खबर पर कोई खुश हो सकता है। वह सच जानने के लिए मंत्री के घर पहुंचे तो देखा कि मंत्री खुशी से नाच-गा रहे थे। राजा ने मंत्री से पूछा, ‘आज शाम मौत है और तुम हंस रहे हो, गा रहे हो?’ मंत्री ने राजा को धन्यवाद दिया और कहा- ‘इतने आनंद से मैं कभी भी न भरा था। आपने मौत का समय बताकर बड़ी कृपा की। मृत्यु का उत्सव मनाना आसान हो गया। यह सुनकर महाराज देवराज अवाक रह गए और बोले- जब तुम मौत से व्यथित ही नहीं तो अब तुम्हें फांसी देना बेकार है।’