लोककथा भाग 21
एक गरीब लकड़हारा था उसकी शादी हो गई थी परंतु उसके पास काम धाम का कोई जरिया नहीं था।वह रोजाना शहर जाकर लकड़ीया बेचता था जो कुछ पैसे उसे मिलतें उससे जैसे तैसे घर चल रहा था।
एक दिन जंगल से लकड़ियां काटकर जब वह वापस आने लगा तो उसने देखा जंगल मे आग लगी हुई है और उसमें एक बड़ा सा साँप फंसा हुआ है।पहले तो लकड़हारे को उस साँप से डर लगा लेकिन फिर उसके मन मे दया जगी और उसने एक बड़ा सा डंडा उठाया और उस डंडे से उस सांप को आग के बीच से उठाकर दूर रख दिया।और जाने लगा।
पीछे से एक आवाज सुनकर वह लकड़हारा रुक गया और पीछे मुड़कर देखा पीछे सांप के सिवाय उसे कोई और दिखाई नहीं दे रहा था।साँप को इंसानी भाषा मे बोलता देखकर लकड़हारा डरकर भागने ही वाला था कि साँप ने कहा “रुको डरो मत मैं एक जादुई साँप हुँ तुमने मुझे आग से बचाकर बहुत अच्छा काम किया है।मैं तुम्हें कोई वरदान देना चाहता हूँ।”
साँप ने प्रसन्न होकर उसे जानवरों, कीट पतंगों और पक्षियों की बोली समझने का वरदान दिया था, लेकिन एक शर्त भी थी कि यदि लकड़हारे ने किसी को भी इस बारे में बताया तो उसकी उसी क्षण म्रत्यु हो जायेगी।
लकड़हारा आगे बढ़ गया और जब वह एक पेड़ के नीचे से गुजर रहा था तभी पेड़पर बैठें कौवों की बातें सुनने लगा।
कौवा अपनी कौवी को बता रहा था इस पेड़ के नीचें राजा का पुराना खजाना गड़ा हुआ है।पता नहीं वह खजाना कब किसको मिलेगा”
खजाने की बात सुनकर लकड़हारे के कान खड़े हो गए उसने उसी पेड़ के नीचें गड्ढा खोदना सुरु कर दिया ।थोड़ी गहराई पर उसे एक सन्दूक मिला जिसमें सोने की अशर्फियाँ भरी पड़ी थी।अशर्फियाँ पाकर लकड़हारा बहुत खुश हुआ और सारा खजाना उठाकर घर ले गया।
खजाना देखकर उसकी पत्नी ने पूछा इतना सारा खजाना तुम्हे कहा मिला तो लकड़हारे ने बात को छिपाने के लिए बोल दिया की जंगल में एक गड्ढे में पड़ा हुआ मिला ये सारा खजाना , उसकी पत्नी खजाना पाकर बहुत खुश हुई और दोनों का जीवन अब अमीरी में गुजरने लगा
एक रात की बात है लकड़हारा अपनी पत्नी के साथ रात्री का भोजन कर रहा था, अचानक लकड़हारे ने देखा कि दो बडे चींटे थाली के बीच में घूम रहे थे। लकड़हारे को उत्सुकता हुयी कि जरा सुने की ये चींटियां क्या बात कर रही हैं। चींटा, चींटी से कह रहा था कि,
‘’ओ चींटी तूने औरत की थाली से चावल का दाना उठा कर लकड़हारे जी थाली में क्यों डाल दिया? औरत को पाप चढेगा, लकड़हारे को अपना जूठा खिलाने का।‘’
‘’हठ पगले! पति-पत्नी में जूठा खिलाने से पाप थोडी चढता है’’, प्यार बडता है, चींटी बोली।
यह सुन कर लकड़हारे को बडे जोर की हंसी आयी, और लकड़हारा अट्ठ्हास कर उठा। लकड़हारे को यह सोच कर आश्चर्य हुआ कि इतनी छोटी चींटी में भी समझ है। लकड़हारे को हंसते देख, उसकी पत्नी सोच में पड गयी कि क्या बात इन को बडी हंसी आ रही है। उसने पूछा “अरे बडा खिल खिला कर हंस रहे हैं, जरा हमें भी बताइये क्या हुआ? ” नहीं रानी कुछ नहीं, बस ऐसे ही। लकड़हारे ने कहा | “तो ऐसे ही हमें भी बता दीजिये हम भी थोडा हंस लेंगे, वैसे भी आपकी मां ने हमारा जीनावैसे ही दूभर कर रखा है। ” उसकी पत्नी बोली
लकडहटआ :”नहीं-नहीं बस ऐसे ही हंसी आ गयी थी, कुछ खास बात नहीं है।”
पत्नी :”अरे! ऐसे ही आनी है तो हमें क्यों नहीं आ रही है। सत्य कहिये आप हमें देख कर हंसे थे ना?”
लकड़हारे ने कहा “नहीं बिलकुल नहीं, आपको देख को मैं कैसे हंस सकता हुं।”
पत्नी बोली:”हमें देखकर आप कभी खुश हुए भी हैं। तो जिसे देख के इतना प्रसन्न हो रहे थे, उसी का नाम बता दीजिये?”
लकड़हारे ने फिर कहा :”अरे कुछ भी नहीं रानी साहिबा, आप तो बस पीछे ही पड गयी हैं, कोई बात नहीं है आपभोजन कीजिये। “
पत्नी बोली:” अब तो ऐसे ही कहंगे। हुंह!!!”
पत्नी नाराज हो कर खाना अधूरा छोड कर ही चली गयी। लकड़हारे का मन भी खाना खाने का नहीं करा। लेकिन वह तो शर्त से बंधा था कि वह उसके भाषा ज्ञान के बारे में किसी को बता नहीं सकता है।
वह अपने वस्त्र बदल जब पत्नी के कमरे में पहुंचे तो देखा पत्नी मुंह फ़ुलाये अपना मुंह दूसरी ओर कर लेटी हुयी थी। उस ने जब बात करने का प्रयास किया तो वह भडक गयी, सबके सामने मेरी बेइज्जती कर दी और अब बडा प्यार जता रहे हो।
अरे रानी हमें क्षमा कर दो, पर बात ही ऐसी थी कि हम आपको नहीं बता सकते थे। लकड़हारे ने कहा
अच्छा अब ऐसी बातें भी होने लगी जो आप हमें नहीं बता सकते। पत्नी बोली
लकड़हारे ने कहा :” क्यों व्यर्थ हठ कर रही हैं, छोडिये बात को।”
अच्छा हठ भी अब मैं ही कर रही हुं, इतनी ही बात है तो बता क्यों नहीं देते की बात क्या थी? पत्नी बोली
आप नहीं समझ पायेंगी प्रिय , छोडिये ना, इतनी सुंदर रात है। लकड़हारे ने मिन्नत की
“हठो, छूना मत मुझे। कोई आवश्यकता नहीं है, उसी के पास जाईये जिसकी याद में इतना प्रसन्न हो रहे थे, मैं तो जिद करती हुं ना।” पत्नी बोली
लकड़हारे ने पुनः कोसिस की “आप बात को गलत समझ रही हैं, ऐसी कोई बात नहीं है जैसा आप सोच रही हैं, वो तो बस छोटी सी बात थी।”
पत्नी बोली:” मुझसे बात मत करो, जब तक मुझे सच-सच नहीं बताते कि आखिर माजरा क्या है।”
लकड़हारे के समझ में नही आया कि क्या करे, तो उसने सोचा कि चलो थोडी नाराजगी ही तो है, कल सुबह तक ठीक हो जायेगी। लेकिन अगली सुबह भी रानी के मुंह की सूजन कम नहीं हुई, लकड़हारे ने बातचीत का कितना प्रयास किया और कितने प्रलोभन दिये पर वह नहीं मानी। उसके दिमाग में शक घर कर गया था। लकड़हारा जितना समझाने का प्रयास करता बात उतनी ही बिगड जाती। पत्नी का हठ बडता ही गया, अपनी बात मनवाने को उस ने खाना-पीना भी छोड दिया।
एक सप्ताह हो चुका था, पत्नी का स्वास्थ्य भी कमजोर हो गया था। लकड़हारे के समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे, एक तरफ़ कुंआ और दुसरी तरफ़ खाई वाली स्थिति हो गयी थी। या तो पत्नी को सारी बात बता दे और अपनी म्रत्यु को आमंत्रण दे या फ़िर अपने प्राणप्रिया को ऐसे ही तडपने दे। लकड़हारे ने पत्नी को मनाने लाख प्रयास कर दिये पर वह तो हंसी का कारण जानना चाहती थी। आखिर थक हार के लकड़हारे ने पत्नी से अंतिम बार पूछा कि
प्रिय मैं आपको वह बात बताने को तैयार हुं, परन्तु एक बात आप जान लें इसका परिणाम बडा भयंकर होगा। मैं मर रही हुं, इससे बुरा क्या हो सकता है। मत बताओ।
प्रिय , इस बात को बताने से मेरे जीवन पर संकट आ सकता है।
वह व्यंग करते हुये बोली,
आप के प्राण को संकट? वो भी एक छोटी सी बात बताने पर? फ़िर तो मेरा ही प्राण त्यागना उचित है। अपनी बात अपने पास ही रखिये, मेरे लिये थोडा सा विष मंगा दीजिये, अब तो जीने का मन ही नहीं है।
लकड़हारे के समझ में नही आ रहा था कि एक छोटी से बात के लिये वह कैसे अपने प्राण दे सकती है। उलट लकड़हारे ने निश्चय किया कि वह पत्नी को सब बता देगा। साथ ही उसने सोचा कि जब मरना ही है तो किसी तीर्थ स्थान में जाकर प्राण त्यागने में ही भलाई है, कम से कम कुछ सद्गति हो होगी।
अंतत: लकड़हारे ने हार मान ही ली, उसने पत्नी को बताया कि वह वह बात बताने को तैयार है जिसके कारण उसे हंसी आयी थी। वह मन ही मन खुश तो बहुत हुई कि आखिर वह जीत गयी
लकड़हारे ने शर्त ये रखी कि वह बात हरिद्वार चल कर बतायेगा। रानी और खुश कि चलो यात्रा भी हो जायेगी, कब से कहीं जाने का अवसर भी नहीं मिला।
अंतत: लकड़हारे ने अपने सारे हिसाब किताब नौकरो को समझाकर, वाइफ को साथ लेकर यात्रा प्रारंभ की। पुराने समय में यात्राओं में लंबा समय लग जाता था अत: बीच-बीच में पडाव डाल के यात्रा पूरी की जाती थी। ऐसे ही दोनों ने यात्रा के दौरान पडाव डाला हुआ था। एक बडे खेत के किनारे लकड़हारा खुले में शांत बैठे प्रकति का आनंद ले रहे थ। पत्नी भी कुछ दूर में ही बैठी थी, तभी राजा को थोडी दूर पर एक बकरा और बकरी दिखायी दिये। उन्हे देखकर लकड़हारे को फ़िर उत्सुकता हुयी कि देखें ये दोनो क्या बात कर रहे हैं। बकरा और बकरी दोनो प्रेम की बातें कर रही थे, लकड़हारे को सुनने में आनंद आ रहा था। वार्तालाप कुछ ऐसे था,
मेरी बकरी, तेरी आंखों में तो मुझे अपनी ही शक्ल दिखायी देती है। ऐसा लगता है कि तुझे जमीं पर बुलाया गया है मेरे लिये।
मर जांवा मेरे बकरु, मुझे तो तु्झे देखते ही पहली नजर में प्यार हो गया था। अच्छा एक बात बता तु मेरे लिये क्या कर सकता है?
तेरे लिये तो मैं कुछ भी कर सकता हुं, मेरी जान, तू कह तो सही, तू कहे तो तेरे लिये आसमान से तारे तोड लाउं।
अरे नहीं, आज मेरा मन हरी-हरी घास खाने का मन कर रहा है, मेरे लिये ला ना।
ले अभी ले, कौन सी वाली, नदी के किनारे वाली या फ़िर उस घनी गुफ़ा के पीछे से, तू बता तुझे कौन सी पसंद है।
अरे नहीं मेरे लिये तु वो घास ला जो कुएं के अंदर उग रही है, वो घास आज तक किसी बकरी ने नहीं खायी है। मेरी उस मोटी बकरी से शर्त से लगी है कि तु मेरे लिये वह घास ला सकता है। देख आज मेरी इज्जत का सवाल है , यदि तूने मना कर दिया तो आज में उस मुटिया से हार जाउंगी।
वह यह वार्तालाप सुन कर मन ही मन हंस रहा था कि देखो जरा कैसे अपनी शर्त मनवा रही है। तभी बकरा बोला,
अरे जानु, कुछ और मांग ले, कुएं के अंदर तो मैं जा सकता हुं पर बाहर कैसे आउंगा। मैं कोई मनुष्य तो नहीं हुं।
अच्छा प्यार करते समय तो डायलाग बडे आदमियों वाले मारते हों, बडा कह रहे थे कि आसमान से तारे तोड लाउंगा। अब लाओ।
अरे प्यारी बकरी बात तो समझ, ऐसा कैसे संभव हैं, मैं मर जाउंगा।
मैं कुछ नहीं जानती बकरे, अगर तु ला सकता है तो ला, वरना हमारा ब्रेकअप निश्चित है, मेरी अपनी भी कुछ ईज्जत है।
ऐसा सुन कर बकरे को मन ही मन तो बहुत क्रोध आया, पर फ़िर भी बोला,चल दिखा कहां पर है, मैं लाता हुं।
कुंआ नजदीक ही था, बकरी बकरे तो लेकर कुंऐ की मुंडेर पर पहुंची और दिखाने लगी कि वो वाली। बकरे ने बकरी को एक जोर का धक्का दिया और बकरी कुएं के अंदर गिर गयी, तब बकरा बोला, तू समझती क्या है अपनी आप को, तेरे लिये मैं कुएं में घुसकर घास लाऊं। तूने मुझे क्या ये लकड़हारा समझा हुआ है जो अपनी पत्नी की जिद के आगे जान देने पर तुला है। खा अब जी भर के घास।
लकड़हारे ने जब ये सुना पहले तो मुस्कुराया और फ़िर शर्म से पानी-पानी हो गया। उसी क्षण उठा और पत्नी से बोला की तुझे घर चलना है कि नहीं। वह बोली, पहले तुम्हारे हंसने का कारण तो बताओ? लकड़हारे ने गुस्से से कहा, चलना है तो चल नहीं तो यहीं रह’।
वह भी समझ गयी कि अब दाल गलने वाली नही है, तो बोली, अरे आप तो नाराज हो गये, मैं तो मजाक कर रही थी। चलिये घर चलते हैं।