श्रापित गुड़िया 2 जंगलों की रहस्यमय कहानिया

पूर्व भाग में आपने पढ़ा कैसे एक मित्र से मिलने हम इम्फाल जाते है वहां हमे एक डॉक्टर मित्र से मिलते है।उनके अनुभव के आधार पर मैं ये कहानी लिख रहा हूँ जब वे किसी दौरे पर थे तो उनके साथ कुछ अजीब सी घटनाओं का सिलसिला हुआ।अधिक जानकारी के लिए श्रापित गुड़िया पढ़े।अब आगे।

रात में दिनु की नींद दरवाजे की खट खट से खुल गयी उसने सोचा कौन है इतनी रात मुझे आवाज दे रहा।ध्यान से सुनने पर उसे वो आवाज़ उसकी बीबी रधिया की लगी।उसने सोचा इतनी रात गए रधिया यहाँ कैसे?कही ये मेरा भ्रम तो नहीं है।दूसरी बार जब खट खट की आवाज़ हुई तब दिनु से रहा न गया।वो दरवाजे पर आ गया और दरवाजे को खोल दिया।बाहर उसने देखा उसकी बिबी रधिया ही खड़ी है।उसने पूछा रधिया तू यहाँ क्या कर रही है?तुझे यहां आने की जरूरत क्या आ गयी।रधिया ने कहा मेरे साथ आओ मै तुम्हे कुछ दिखाती हूँ।ये बोलकर रधिया मुड़ गई और जाने लगी।
दिनु की समझ में कुछ नहीं आया वो रधिया के पीछे हो लिया।

रधिया को वो बार बार आवाज़ देता मगर रधिया न रुकती न किसी बात का जबाब देती।चलते चलते वो घने जंगल में पहुँच गए।चारो तरफ गहन अंधकार था।अजीब अजीब सी आवाज़े आ रही थी।जंगल मे सियार और भेड़ियों के रोने की आवाज़ें अजीब सी सिहरन पैदा कर रहीं थीं।रजिया वहीं एक पेड़ के पीछे चली गयी।दिनु उसके पीछे पीछे उस पेड़ के पीछे गया।मगर वहाँ कोई नहीं था।दिनु ये देखकर हक्काबक्का रह गया।उसके शरीर सिहरन से काँपने लगा।डर के कारण उसके कपकपी आने लगी।

वो इधर उधर देख रहा था उसे आभास हो गया कि वह इस जंगल में फस चुका है।वह वहाँ से निकलकर भागना चाहता था।उसने कोशिस भी की भागने की मगर उसने देखा कोई हाथ जमीन से निकली और उसके पैरों को जकड़ ली।उसके सामने कबीले का मृत सरदार खड़ा था।उसे देखकर वो ठहाके मारकर हस रहा था।”हा हा हा हा मैंने कहा था न उस गुड़िया को मत छूना।सब मरेंगे”।

दिनु को अपने पीछे एक काली परछाई दिखी वो दिनु की तरफ बढ़ रही थी।काली परछाई ने दिनु को अपने आगोश में लिया और कुछ ही देर में दिनु के शरीर को निचोड़ कर सारे रक्त को पी गयी।दिनु मर चुका था।उसका शरीर वहीं पड़ा हुआ था और शरीर बिलकुल रक्तहीन सफेद हो गया था।

सुबह होते ही हमने देखा दिनु अपने कमरे में नहीं है काफी खोजबीन की गई तब हमें दूर जंगल से उसकी लाश बहुत ही बुरी अवस्था में बरामद हुई।उसके शरीर पर बहुत सारे कट लगे हुए थे।और तो और लगता था रातभर जंगली जानवरों ने उसको नोच डाला हो।हमने कुछ लोगो की मदद लेकर उसका अंतिम संस्कार वहीं कुछ दूर जंगल में ही कर दिया।

अब मुझे और सेठ जी को भी डर लगने लगा कहि श्राप वाली बात सच तो नहीं है।दूसरा नौकर ये सब देखकर विक्षिप्त सा हो गया और वहाँ से भागने लगा।हमने सोचा भागकर ये सराय जाएगा।मगर भागते भागते वो एक शिकारियों के बनाये हुए ट्रैप में फस गया।कही से एक ट्रैप का भाला निकला और उसके आर पार हो गया।
ये दूसरी मौत हमारे सामने हुई थी।

अब हमें मूर्ती के श्राप पर पूरा यकीन हो चला था।हमने वहीं से घर वापसी का निर्णय लिया और एक लोकल मजदूर को समान धोने के लिए अपने साथ कर लिया।उस मजदूर को इस मूर्ति के बारे में कुछभी पता नहीं था उसने सहर्ष कुछ पैसों की लालच में हमारा समान और ये मूर्ती घर तक पहुचाने की हामी भर दी।

घर पहुचने के पहले हमें एक रात और कहीं रुककर गुजारनी थी हम तीनों इसबार एक सराय में एक ही कमरे में रहने का प्रबंध कर लिए।रात्रि भोजन से निबटने के बाद हम अपने कमरे में सोने चले गए।

रात के करीब एक बज रहे होंगे कुछ खटपट की आवाज़ से मेरी नींद खुल गयी मैंने देखा सेठ जी कोने में खड़े होकर कुछ बड़बड़ा रहे है।मैंने उनको आवाज़ लगाई पर उनका ध्यान मेरी ओर नहीं था वो पता नही किससे बाते करते रहे।थोड़ी देर बाद सेठजी ने मेरी तरफ देखकर कहा खुद को बचाना चाहते हो तो भाग जाओ कही दूर जहाँ ये न पहुँच पाये।मैंने पूछा कौन ये सेठजी तो उन्होंने हँसते हुए मूर्ति की ओर इशारा किया।

मैंने उनसे कहा सेठजी रात बहुत हो गयी है आइये सो जाईये।”तुमने सुना नहीं, वो मुझे बुला रहे हैं।वो मुझे लेने आये है।मुझे जाना होगा” इतना कहकर सेठजी ने बाहर जंगल की तरफ दौड़ लगा दी।हमने उनका पीछा करने की कोशिस की मगर व्यर्थ।वो हमें नहीं मिले हमने उन्हें अगले दिन पूरे जंगल में छान मारा मगर वो हमें कही नहीं मिले।

मैंने शाम तक अपने घर पहुचने का निष्कर्ष निकाला और उस नौकर के साथ अपने घर आ गया।कुछ पैसे देकर नौकर को विदा किया और इस मूर्ति को अपने घर मे ही रख दिया।
इतना कहकर चुप होते ही मेरी पत्नी ने डॉक्टर से पूछा जब ये मूर्ति श्रापित है।तो आपको कोई नुकशान क़यू नहीं पहुँची।और आपने इसे अपने साथ क़यू रखा हुआ है?

डॉक्टर ने बताया ये मूर्ती प्राचीन कला की एक बेहतरीन नमूना है इसकी कीमत करोड़ो में है।प्राचीन कला में रूचि रखने वालों के लिए ये नायाब हीरा है।और मै एक पुरातत्व वेता हु इसलिए लोग मुझे डॉक्टर कहते हैं।इस मूर्ती ने मुझे भी नहीं बख्शा है।

“पर आप तो सही सलामत दिख रहे हैं?”मैंने पूछा डॉक्टर एक रहस्यमयी मुस्कान के साथ मुस्कुराते हुए कहा”हा इस मूर्ति की एक और खासियत है।वो तो मैंने आपको बताया ही नहीं”
हमने एकसाथ पूछा क्या डॉक्टर ने कहना सुरु किया “ये अपने आखरी शिकार के पास तबतक रहती है जबतक की अगला शिकार उसे न मिल जाये।अब मैं चलता हूं” इतना कहते ही कमरे में अंधेरा छा गया।जब अंधेरा हटा तो डॉक्टर और उसके समान का कहि कोई नामोनिशान नहीं था।हम एक उजाड़ खंडहर में बैठे हुए थे।हम डरकर वहा से निकल भागे।भागते भागते हम जतिन के घर पहुँचे।वहाँ भी खंडहर ही मिला हमे।न वहां जतिन था ना ही उसका घर ।

भागकर हम स्टेशन पहुँचे जो भी पहली ट्रेन थी उसके वापसी का टिकट लिया।और ट्रेन आने पर उसमे बैठ गए।समान तो कुछ था नहीं हमारे पास फिर अपने सीट पर बैठे बैठे ही मेरे पैरों से कुछ टकराया।झांककर देखने पर मेरे रोंगटे खड़े हो गए डॉक्टर की बात याद आ गयी “ये अपने आखरी शिकार के पास तबतक रहती है जबतक की अगला शिकार उसे न मिल जाय”.

समाप्त।।

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